विज्ञापन प्रति का अर्थ | विज्ञापन प्रति की परिभाषा | एक अच्छी विज्ञापन प्रति की विशेषताएँ | एक अच्छी विज्ञापन प्रति का लक्षण
विज्ञापन प्रति का अर्थ | विज्ञापन प्रति की परिभाषा | एक अच्छी विज्ञापन प्रति की विशेषताएँ | एक अच्छी विज्ञापन प्रति का लक्षण | Meaning of Advertisement in Hindi | Definition of Ad copy in Hindi | Characteristics of a Good Ad Copy in Hindi | Characteristics of a good advertising copy in Hindi
विज्ञापन प्रति का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Advertising Copy)
विज्ञापन की सफलता एक प्रभावी प्रति पर निर्भर करती है। विज्ञापनदाता जो विज्ञापन देता है, वह विज्ञापन संदेश ही विज्ञापन प्रति कहलाता है। राइट एवं बर्नर के अनुसार, “विज्ञापन-प्रति में मुद्रित या प्रसारित विज्ञापन संदेश या सूचना के महत्वपूर्ण तत्व सम्मिलित होते हैं।” एक प्रभावी विज्ञापन-प्रति वह है जो ग्राहकों को आकर्षित कर सके, उनमें विज्ञापित वस्तु के प्रति इच्छा जाग्रत कर सके एवं उन्हें क्रय करने के लिए प्रेरित कर सके।
एक अच्छी विज्ञापन प्रति की विशेषताएँ अथवा लक्षण
(Essentials or Characteristics of a Good Advertising Copy)
किसी भी विज्ञापन प्रलेख की रूपरेखा को प्रारम्भ में ही निश्चित कर लेना चाहिए। यह कार्य विशेष कलाकार को सौंप देना सदैव श्रेष्ठकर रहता है। कलात्मक विज्ञापनों में एक ऐसी अद्भुत चुम्बकीय शक्ति होती है जिसके कारण जन-साधारण उन्हें देखने, पढ़ने, समझने, विश्वास करने तथा विज्ञापित वस्तु को क्रय करने के लिए लालायित हो उठता है। प्रो. एस. आर. डावर (S.R. Davar) के अनुसार एक अच्छी विज्ञापन प्रति में निम्नलिखित विशेषताएँ अथवा लक्षण होने चाहिए।
(1) ध्यानाकर्षण (Attention Value) — आज का मानव अपने कार्यों में अत्यधिक व्यस्त रहता है। अतः जब तक उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए कोई नई वस्तु उसके सामने नहीं आती, तब तक वह पढ़ने के लिए तैयार नहीं होता और इस प्रकार वह अच्छे से अच्छे विज्ञापन की उपेक्षा कर देता है। ऐसे गिने-चुने व्यक्ति मिलेंगे जोकि समाचार पत्र में लिखी हुई सभी बातों को विस्तृत रूप से पढ़ने का कष्ट करते हों। यही कारण है कि विज्ञापन-प्रति में अधिक से अधिक हृदयग्राह्यता तथा आकर्षण लाने का प्रयत्न किया जाता है, ताकि जन- साधारण की दृष्टि उस पर पड़ सके और उसका प्रभाव व्यापक हो। एक विज्ञापन प्रति अधिक से अधिक आकर्षक हो, इसके लिए निम्न तरीके प्रयोग में लाये जाते हैं—(i) चित्र (Picture), विशेषतः मनमोहक लड़कियों के चित्र, (ii) विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग; (iii) आकर्षक शीर्षक; (iv) मार्मिक नारे (Slogans); (v) प्रदर्शन तत्व (Display Value); (vi) सुन्दर धारियाँ; (vii) विशिष्ट स्थान; (viii) उत्तर के लिए कूपन तथा (ix) नवीनता आदि।
(i) “गुरुकुल काँगड़ी चाय” आपके स्वास्थ्य की रक्षा करती है।
(ii) “खाओ गगन रहो मगन।”
(iii) “हर मौके पर रंग, कोका कोला के संग।“
(iv) “जी भरकर जीओ, गोल्ड स्पाट पीओ।”
(v) “कौन कहता है कि इमल्शन आपकी पहुँच से बाहर है? एशियन पेण्ट्स का सुपर डोकोप्लास्ट आजमाकर तो देखिये।”
(vi) “परिवार के लिए ‘माँ’ की पसंद का ‘डालडा’ ।”
ध्यानाकर्षण करने के लिए विज्ञापन में मौलिकता का होना बहुत आवश्यक है। इसके अभाव में पाठकगण उसकी ओर आकृष्ट नहीं होंगे।
(2) सुझावात्मक तत्व (Suggestive Value) –पढ़ने वालों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के बाद मस्तिष्क में विचार-तरंग उत्पन्न होनी चाहिए अर्थात् वस्तु के गुण, प्रयोग विधि एवं सुझाव आदि का समावेश होना चाहिए। उदाहरण के लिए, “साँस की बदबू हटाये, दाँतों की सड़न रोके, कोलगेट का सुरक्षा चक्र अपनाइये।”; “पालन-पोषण सही कीजिये, बच्चों को बोर्नविटा दीजिये।”; “लाइफबॉय है जहाँ, तन्दुरुस्ती है वहाँ।”, “ग्लूकोज-सी गर्मी की थकान को फौरन मिटा डालता है।”; “जी भर के जीओ, गोल्ड स्पॉट पीओ।” आदि ।
(3) स्मरण तत्व (Memorising Value) – अधिकांश विज्ञापनों का प्रदर्शन अल्पकालिक होने के कारण जन-साधारण उनसे अधिक प्रभावित नहीं हो पाता और इस प्रकार कुछ समय बाद भूल जाता है। इससे विज्ञापन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। अतः यह आवश्यक है कि विज्ञापन को बार-बार दुहराया जाय। ऐसा करते समय उसमें ऐसे सूक्ष्म एवं प्रभावशाली नारों का प्रयोग करना चाहिए जो कि पाठकों के मन में आसानी से घर कर लें, जैसे–‘लाल इमली प्रोडक्टस’, ‘टाटा प्रोडक्ट्स’, ‘जे. वी. प्रोडक्ट्स’, ‘शालीमार पेण्ट्स’ आदि।
(4) विश्वास तत्व (Conviction Value)– विज्ञापन प्रति में जन-साधारण में विश्वास उत्पन्न करने की क्षमता होना नितांत आवश्यक है। आज का उपभोक्ता तब तक किसी वस्तु को खरीदने के लिए तैयार नहीं होता जब तक कि उसे उस वस्तु के सम्बन्ध में पूर्ण विश्वास न करा दिया जाय। अतः विज्ञापन प्रति में ऐसे तथ्यों का समावेश होना चाहिए जो पाठकों को वस्तु के उपयोग के प्रति विश्वास दिला सकें। जैसे-गारण्टी देना, कथित गुणों के अनुरूप न होने पर लौटने की व्यवस्था अथवा ‘पसंद न आने पर पैसे वापस’, ‘दूषित सिद्ध करने वाले को बड़ी निधि के इनाम देने की घोषणा।’ आदि। ऐसे प्रलोभनों से पाठकों का वस्तु की उपयोगिता में शीघ्र विश्वास उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए, ‘दूध’ से बनी वस्तुओं का विज्ञापन करने के लिए किसी स्वस्थ एवं सुन्दर ‘गाय’ का चित्र साथ दे दिया जाना अथवा ऊन की शुद्धता का विश्वास जाग्रत करने के लिए ‘लाल इमली’ के उत्पादों पर बालों से भरी हुई स्वस्थ ‘भेड़’ का चित्र छपा रहता है।
(5) भावात्मक तत्व (Sentimental Value) – विज्ञापन-प्रति में ऐसी किसी भी बात का समावेश नहीं होना चाहिए जिससे किसी जाति अथवा धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचती हो अथवा पहुँचने की सम्भावना हो। विज्ञापन प्रति में ऐसी भावनाओं को दुखाने की अपेक्षा सहलाया जाता है। खाद्यान्न सामग्री के सम्बन्ध में यह बात विशेष रूप से लागू होती है, ‘अण्डा रहित’, ‘चर्बी रहित’ आदि शब्दों के प्रयोग से शाकाहारी भोजन करने वाले लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। दूध तथा दही की दुकानों पर प्रायः गाय का चित्र लगा रहता है क्योंकि यह शुद्धता का प्रतीक है। इसी प्रकार कुछ विशिष्ट शब्द लोगों में राष्ट्रीय भावना जाग्रत करते हैं, जैसे–‘हिन्द साइकिल’, ‘हिन्दुस्तान मोटर’, ‘मदर इण्डिया’ आदि। ‘स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग कीजिए, कुटीर उद्योग को संरक्षण दीजिए’ आदि शीर्षक विभिन्न देशी उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं का उपयोग बढ़ाने के लिए काम में लाये जाते हैं।
“जो बीबी से सचमुच करे प्यार, वह प्रेस्टिज से कैसे करे इनकार।”
अथवा
क्या आप जानते हैं कि मेरी त्वचा क्यों इतनी कोमल एवं स्वच्छ है।
क्योंकि मैं
‘लक्स साबुन का प्रयोग करती हूँ।’
-माधुरी दीक्षित
अथवा
“डालडा के प्रयोग के कारण ही मेरा भोजन अति स्वादिष्ट होता है।”
(6) शिक्षा तत्व (Educational Value) – शिक्षा तत्व से हमारा अभिप्राय किसी वस्तु के प्रयोग विधि से है। हमारा यह अनुभव है कि ग्राहक किसी भी ऐसी वस्तु को क्रय करने में हिचकिचाहट अनुभव करता है। जिसकी कि प्रयोग विधि उसे मालूम न हो। अतः विज्ञापन- प्रति में वस्तु-विशेष की प्रयोग विधि स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, सेण्ट्रल टी मार्केटिंग बोर्ड अपने विज्ञापन में अच्छी चाय कैसे बनाई जाय, इस सम्बन्ध में पाँच नियम देता है। इसी प्रकार डालडा के विज्ञापन में स्वादिष्ट पकवान बनाने की विधि दी जाती है। दवाइयों के विज्ञापन प्रायः शिक्षा तत्व लिये होते हैं।
(7) प्रवृत्ति तत्व (Instinctive Value)– प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है। वह उन्हीं प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर किसी वस्तु के क्रय करने का निर्णय करता है। अतः एक विज्ञापन की प्रति में यह गुण होना चाहिए कि विभिन्न प्रकार की प्रवृत्तियों को जाग्रत करे।
डॉ. स्टॉक तथा प्रो. हँस के अनुसार, मानव की निम्न आठ प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं—(1) स्वरक्षा प्रवृत्ति (Self-preservation Instinct), (2) खाद्य प्रवृत्तियाँ (Food Preservation Instinct), (3) आखेट प्रवृत्तियाँ (Hunting Preservation Instinct), (4) वस्त्र प्रवृत्ति (Clothing Preservation Instinct), (5) संचयी प्रवृत्ति (Hoarding Preservation Instinct), (6) पैतृक प्रवृत्ति (Parental Preservation Instinct), (7) कौतूहल प्रवृत्ति (Curiosity Preservation Instinct), (8) बैठे से बेगार भली प्रवृत्ति (Something Preservation Instinct) I
विज्ञापन प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक
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