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व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का योगदान | व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क की भूमिका | व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का महत्व

व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का योगदान | व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क की भूमिका | व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का महत्व

व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का योगदान / भूमिका / महत्व

(Role/Significance/Importance of Public Relations in Business Organizations)

व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का योगदान/भूमिका/महत्व दिनोंदिन बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप आज प्रत्येक आधुनिक व्यावसायिक संगठन के लिए एक पृथक् जन सम्पर्क विभाग की स्थापना करना आवश्यक ही नहीं वरन् अनिवार्य हो गया है। इस सम्बन्ध में अमेरिका की जन सम्पर्क समिति ने कुछ वर्ष पूर्व एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में व्यावसायिक प्रबंधकों से कई प्रश्न पूछे गये थे। उनमें यह प्रश्न भी था कि आपकी संस्था में जन सम्पर्क का क्या योगदान है? उत्तर देने वालों में से 91% प्रबंधकों ने इसे अत्यन्त महत्वपूर्ण माना और केवल 4.5% प्रबंधकों ने इसे महत्वपूर्ण नहीं माना। व्यावसायिक संगठनों में जन सम्पर्क का योगदान/महत्व/भूमिका का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :

(1) संस्था तथा उसके उत्पादों के बारे में उत्पन्न अफवाहों तथा भ्रांतियों के उन्मूलन में सहायक- जन सम्पर्क विभाग का सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान प्रतियोगियों, रूठे हुए दुकानदारों एवं ग्राहकों आदि द्वारा संस्था तथा उसके उत्पादों के बारे में विभिन्न प्रकार की जो भ्रांतियाँ एवं अफवाहें फैला दी जाती हैं, उनका प्रभावी ढंग से उन्मूलन करने में सक्रिय सहयोग प्रदान करता है, जैसे- समाचार पत्रों में विज्ञापन, प्रेस विज्ञप्ति आदि।

(2) संस्था की ख्याति में वृद्धि करना- जन सम्पर्क संस्था की ख्याति में वृद्धि करने में सक्रिय सहयोग करता है। यह संस्था की प्रगति, विक्रय वृद्धि, लाभों में वृद्धि नवीन एवं आधुनिक संयंत्रों की उत्पादकता, किस्म में सुधार, प्रतियोगी मूल्य नीति आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ प्रसारित करके संस्था की ख्याति में वृद्धि करने में सहायक है।

(3) विभिन्न जन समूहों में सम्पर्क- एक व्यावसायिक संगठन में जन सम्पर्क का महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न सम्बन्धित जन-समूहों, जैसे—ग्राहक संघ, श्रम संघ, व्यापार संघ, सरकारी तंत्र, नागरिक संघ आदि से सम्पर्क स्थापित करना, उनके विचारों एवं समस्याओं की जानकारी प्रदान करना तथा प्रबंध के सक्रिय सहयोग से उनके प्रश्नों, शंकाओं एवं समस्याओं का समाधान करना तथा संतुष्टि प्रदान करना है।

(4) परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करना- आधुनिक व्यावसायिक जगत का एक महत्वपूर्ण लक्षण उसकी क्रियाओं में परिवर्तन होता है, जैसे-व्यापारिक नीतियों में परिवर्तन, उत्पादों की किस्म में परिवर्तन, बाजार व्यूहरचना में परिवर्तन, क्रियाओं में परिवर्तन आदि। जन सम्पर्क विभाग इन परिवर्तनों के बारे में जन साधारण को सूचित करता है तथा उनको इन परिवर्तनों के पक्ष में सक्रिय सहयोग प्रदान करता है।

(5) ग्राहकों की शिकायतों एवं समस्याओं का निवारण करना- किसी भी व्यावसायिक संगठन की प्रगति उसके ग्राहकों की संतुष्टि पर निर्भर करती है अतएव एक आधुनिक एवं प्रगतिशील व्यावसायिक संगठन ग्राहक संतुष्टि को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। यह तभी सम्भव है जबकि वह ग्राहकों की शिकायतों एवं समस्याओं को सुने तथा उनका तत्काल निवारण करे। इस कार्य के निष्पादन में जन सम्पर्क महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(6) उपभोक्ताओं को सूचित करना तथा प्रशिक्षित करना- जन सम्पर्क विभाग व्यावसायिक संगठनों द्वारा निर्मित किये जाने वाले विभिन्न उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं को सूचित करता है तथा उनका लाभप्रद उपयोग कैसे किया जाय, इस बारे में उपभोक्ताओं को प्रशिक्षित करता है, जैसे—हाकिन्स का प्रेशर कुकर कैसे इस्तेमाल करें, लिप्टन की चाय कैसे उपयोग में लाये आदि।

(7) प्रबंधकों तथा कर्मचारियों के मध्य स्वस्थ सम्बन्धों के निर्माण में सहायता प्रदान करना- जन सम्पर्क विभाग प्रबंधकों तथा संस्था में कार्यरत स्वस्थ सम्बन्धों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह संस्था में कार्यरत कर्मचारियों की उदासीनताओं, शिकायतों, समस्याओं, शंकाओं आदि के सम्बन्ध में समुचित जानकारी प्रबंधकों को प्रदान करता है, उनके समाधान में सक्रिय सहयोग देता है तथा उनका समाधान होने पर कर्मचारियों को सूचित तथा संतुष्टि प्रदान करने का पूर्ण प्रयास करता है। संस्था में पारस्परिक विश्वास का वातावरण उत्पन्न करने में सक्रिय सहयोग निभाता है।

(8) सरकार तथा व्यावसायिक संगठन के मध्य तालमेल बैठाना- जन सम्पर्क सरकार तथा सम्बन्धित व्यावसायिक संगठन के मध्य तालमेल बैठाने में सक्रिय सहयोग करता है। आज संसार के 50 से भी अधिक देशों में कोका कोला या पैप्सी कोला इसलिए बनता और बिकता है कि उन देशों की सरकारों ने इन कम्पनियों को वहाँ ये पेय बनाने की आज्ञा दी, इसे कोका कोला व पैप्सी कोला के जन सम्पर्क की करामात ही कहा जायेगा। यदि सत्ताधारी राजनीतिक, पार्टी व सरकारी अधिकारियों से ठीक सम्बन्ध रखे जायें तो संस्था के व्यापार के विरुद्ध बनने वाले अवांछित कानूनों को रोका जा सकता है तथा अपने व्यापार के लिए अधिक सुविधाएँ तथा कर व उत्पादन शुल्क इत्यादि में वांछनीय रियायतें प्राप्त की जा सकती हैं। यदि कोई प्रभावित संस्था या व्यक्ति अपनी कठिनाइयों के प्रति सहानुभूति प्राप्त करके अपने व्यावसायिक संगठन के लिए वैध सुविधाएँ व कानून में रियायतें प्राप्त करता है तो वह अनैतिक नहीं है।

(9) व्यावसायिक संगठन के कार्यों एवं नीतियों के प्रभावों का मूल्यांकन करने में सहायक– एक स्वस्थ व्यावसायिक संगठन अपनी नीतियों तथा कार्यों के प्रभावों का निरंतर मूल्यांकन करके अपनी सफलता को सुनिश्चित कर सकता है किन्तु इनके मूल्यांकन के लिए प्रभावकारी जन सम्पर्क होना आवश्यक हैं। जन सम्पर्क विभाग अपने संगठन की नीतियों एवं कार्यों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरण आदि प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करता है। इस अध्ययन के परिणामों के अनुसार ही यह विभाग अपने उच्च अधिकारियों को अपनी नीतियों एवं कार्यों में आवश्यक समायोजन एवं परिवर्तन करने देता है।

(10) संवर्द्धनात्मक कार्यक्रमों की जानकारी देना- जन सम्पर्क विभाग व्यावसायिक विभाग के संवर्द्धनात्मक कार्यक्रमों की जानकारी देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हैं। उदाहरणार्थ, कब छूट या कमीशन पर माल विक्रय प्रारम्भ किया जाने वाला है, कब तथा कहाँ प्रदर्शनी लगायी जाने वाली है, कब तथा कहाँ उत्पाद का प्रदर्शन किया जाने वाला है, कौन- कौन सी विक्रय प्रतियोगिताएं प्रारम्भ की जा रही हैं आदि विक्रय संवर्द्धन कार्यक्रमों की जानकारी देने में जन सम्पर्क विभाग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(11) विविध-(i) उत्पादों की आपूर्ति में कमी के कारणों को स्पष्ट करने में सहायक। (ii) उत्पादों का प्रचार एवं माँग में वृद्धि करने में सहायक। (iii) संकटकाल, जैसे- हड़ताल होने, कोई हादसा हो जाने, माल के वितरकों द्वारा अचानक माल का वितरण बन्द कर देने की स्थिति में यह ग्राहकों को विज्ञप्तियों, सूचनाओं, प्रसारणों आदि के माध्यम से वास्तविक स्थिति से अवगत कराता है तथा संकट की स्थिति से उबरने में सहायता प्रदान करता है। (iv) संस्था के विचारों के प्रति जन समर्थन जुटाना है।

प्रायः विज्ञापन में वस्तु का मूल्य भी लिख देता है जिसके कारण थोक तथा फुटकर व्यापारी अधिक मूल्य लेने में डरते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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