विज्ञापन प्रबंधन / Advertising Management

विज्ञापन का प्रभाव या महत्त्व | विज्ञापन के प्रतिकूल प्रभाव या हानियाँ या सीमाएँ | विज्ञापन के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव

विज्ञापन का प्रभाव

विज्ञापन का प्रभाव या महत्त्व | विज्ञापन के प्रतिकूल प्रभाव या हानियाँ या सीमाएँ | विज्ञापन के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव | Advertisement Functions in Hindi | Strategy in Advertising in Hindi | principles of effective advertising in Hindi

विज्ञापन का प्रभाव या महत्त्व

विज्ञापन के प्रभावों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(I) विज्ञापन के आर्थिक अनुकूल प्रभाव

विज्ञापन का आर्थिक दृष्टि से काफी महत्व है। विज्ञापन केवल उत्पादकों को अपना माल बेचने में ही सहायता नहीं करता बल्कि अन्य कई तरीकों से अर्थव्यवस्था में योगदान देता  है। विज्ञापन के आर्थिक क्षेत्र में पड़ने वाले अनुकूल प्रभाव का वर्णन निम्न प्रकार है-

  1. उत्पादन में वृद्धि एवं लागत में कमी- विज्ञापन का उद्देश्य माँग का सृजन करना एवं विभिन्न वस्तुओं के नये बाजारों का विस्तार करना होता है। यह उद्देश्य व्यापक पैमाने पर उत्पादन करने को प्रोत्साहित करता है जिससे व्यापक पैमाने पर किये जाने वाले उत्पादन के लाभ उत्पादकों को प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ, उत्पादन में वृद्धि होने के कारण प्रति इकाई लागत कम हो जाती है, संस्था के साधनों का समुचित प्रयोग सम्भव होता है और अन्ततः संस्था के लाभ बढ़ते हैं।
  2. माँग में निरंतर वृद्धि- विज्ञापन नये ग्राहकों का निर्माण करता है और वर्तमान को स्थायी बनाये रखता है जिससे विज्ञापन की माँग में स्थायी तौर पर एक निरंतरता बनी रहती है। विज्ञापन सतत मांग के सृजन में सहायता करता है। माँग में स्थायी तौर पर सतत वृद्धि होने से उत्पादकों एवं निर्माणकों को अनेक लाभ होते हैं। उत्पादन का स्तर नहीं गिर पाता और साधन निष्क्रिय नहीं रहते हैं, श्रमिकों की छंटनी नहीं करनी पड़ती और श्रम समस्याएँ जन्म नहीं ले पाती हैं, ग्राहकों को वस्तुएँ उपलब्ध होती रहती है।
  3. वितरण व्ययों में कमी- यह एक सामान्य स्वीकृत तथ्य है कि विज्ञापन न केवल उत्पादन लागत में ही कमी करता है अपितु विक्रय एवं वितरण व्ययों में भी कमी करता है। विज्ञापन दूर-दूर तक वस्तुओं के बारे में ग्राहकों को जानकारी देकर मध्यस्थों की सहायता करता है। यही नहीं, मौसमी वस्तुओं की मांग को मौसम के अतिरिक्त अन्य समय में भी उत्पन्न करता है जिससे उत्पादन एवं वितरण कार्य सतत होते रहते हैं। इस प्रकार विक्रय बढ़ाकर एवं विक्रेताओं की नियुक्तियाँ कम करके विज्ञापन वितरण व्ययों में कमी करता है।
  4. व्यवसाय के विक्रय एवं लाभों में वृद्धि- विज्ञापन माँग को बढ़ाकर उत्पादन में वृद्धि करता है। बढ़ा हुआ उत्पादन लागतों में कमी करता है। उत्पादन लागतों में कमी होने से कीमत भी अपेक्षाकृत कम होती है। इससे विक्रय और संस्था के लाभों में वृद्धि होती है। यही नहीं, विज्ञापन वितरण व्ययों में कमी करके भी संस्था की वस्तुओं के मूल्य को प्रतियोगी बनाये रखता है और विक्रय वृद्धि में सहायता करता है जिससे कि लाभ बढ़ते हैं और व्यवसाय का विस्तार होता है।
  5. विदेशी व्यापार को बढ़ावा-विज्ञापन द्वारा विदेशों में भारतीय वस्तुओं की माँग बढ़ाकर विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है। विज्ञापनों से देश-विदेश के आयातकों एवं निर्यातकों के बीच सम्पर्क स्थापित होता है एवं विदेशी व्यापार को बढ़ावा मिलता है। इन्टरनेट पर विज्ञापनों ने विदेशी व्यापार को काफी बढ़ावा दिया है।

(II) विज्ञापन के सामाजिक प्रभाव

विज्ञापनों के सामाजिक स्थितियों पर निम्न प्रकार अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं

  1. उच्च जीवन एवं सभ्यता के विकास का आधार-विज्ञापन उपभोक्ताओं को सस्ती एवं अच्छी वस्तुएँ क्रय करने में सहायता करते हैं और नाना प्रकार की शिक्षा प्रदान करते हैं जिससे समाज का जीवन स्तर ऊँच होता है और राष्ट्रीय सभ्यता विकसित होती है। राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने एक बार कहा था कि “विगत अर्द्ध-शताब्दी में जनता के विभिन्न वर्गों में जो सामान्य जीवन स्तर बढ़ा है, वह विज्ञापन के द्वारा दिये जाने वाले उच्च स्तरीय ज्ञान के बिना असम्भव होता।”
  2. रोजगार की उपलब्धि-विज्ञापन माँग को बढ़ाकर पैमाने के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है जिससे कि रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। यही नहीं बल्कि विज्ञापन का कार्य करने वाले अनेक कर्मचारी वर्गों जैसे, विज्ञापन प्रति तैयार करने वाले, पोस्टर बनाने एवं लगाने वाले, ब्लॉक बनाने वाले, आकाशवाणी एवं माइक पर संदेश प्रसारित करने वाले, मॉडल बनाने वाले, विज्ञापन सेवाएँ देने वाले वर्गों आदि को जन्म मिला है और विज्ञापन अनेक व्यक्तियों की रोटी-रोजी का साधन बन गया है।
  3. नयी वस्तुओं का प्रचलन- श्री तलयार खान का विचार है कि विज्ञापन ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं की पुरानी आदतों पर नये एवं अतिरिक्त उत्पादों के लिए उनकी इच्छा को विकसित करके विजय प्राप्त करता है, जिससे उत्पादकों को नवीन वस्तुएँ बाजार में रखने के लिए प्रेरणा एवं प्रोत्साहन मिलता है। फलस्वरूप नये उत्पादक बाजार में आते हैं, रोजगार बढ़ता है और समाज का जीवन स्तर भी ऊंचा उठता है।
  4. वस्तुओं के परिवर्तनों की सूचनाएँ- उत्पादकों को आधुनिक समय में प्रतियोगिता में टिके रहने के लिए अपने उत्पादों में समय-समय पर डिजाइन एवं नये-नये उपयोगों सम्बन्धी विशेषताएँ उत्पन्न करनी होती हैं और उनकी सूचनाएँ ग्राहकों को देनी होती हैं। उत्पादों में किये गये किस्म, डिजाइन एवं उपयोग सम्बन्धी सुधारों की सूचनाएँ देने के लिए विज्ञापन ही एक महत्वपूर्ण द्रुतगामी साधन है जो कम लागत पर व्यापक और शीघ्र सूचना प्रसारण कर सकता है।

विज्ञापन के प्रतिकूल प्रभाव या हानियाँ या सीमाएँ

यद्यपि विज्ञापन आधुनिक व्यापार-व्यवसाय की आत्मा है लेकिन इनके कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ते हैं। कुछ विपरीत प्रभाव निम्न प्रकार हैं-

  1. वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि- विज्ञापन पर पर्याप्त मात्रा में व्यय करना पड़ता है जो किसी न किसी रूप से वस्तु के मूल्य में वृद्धि करता है और जिसका अन्तिम बोझ उपभोक्ता पर ही पड़ता है अर्थात् उपभोक्ता को वस्तु का अधिक मूल्य देना पड़ता है।
  2. फैशन परिवर्तन से हानि–विज्ञापन फैशन में परिवर्तन करता है जिसका प्रभाव उपभोक्ता व मध्यस्थ दोनों पर पड़ता है। उपभोक्ता को फैशन वाली वस्तु खरीदने में ज्यादा व्यय करना पड़ता है तथा उत्पादक या मध्यस्थ को फैशन में परिवर्तन होने से हानि होती है क्योंकि उसकी वस्तु या तो बिकती नहीं है या कम मूल्य पर बेचनी पड़ती है।
  3. अश्लील विज्ञापनों से सामाजिक विकृतियाँ- कुछ विज्ञापन इस प्रकार के पक्षहोते हैं जिनमें लड़कियों के नग्न या अर्द्धनग्न फोटो छपे रहते हैं या स्त्रियों का हाव-भाव विलासितापूर्ण दिखाया जाता है। आजकल यह एक साधारण बात बन गयी है। ऐसे चित्र जनता को आकर्षित करते हैं तथा उस पर ये अश्लील विज्ञापनों से अनैतिक प्रभाव डालते हैं।
  4. धन का अपव्यय- विज्ञापन उपभोक्ता को उन वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित करता है जिनकी उसको आवश्यकता नहीं है या जो उसके स्तर को देखते हुए विलासितापूर्ण है। विज्ञापनों से प्रेरित होकर महिलाएँ एवं बच्चे कई ऐसे उत्पाद खरीदने की जिद करते हैं जो उनके लिए उपयोगी नहीं है या कम उपयोगी है। इससे पारिवारिक बजट गड़बड़ा जाता है। इस प्रकार ऐसी वस्तुओं पर उसके द्वारा किया गया खर्च अपव्यय ही होता है।
विज्ञापन प्रबंधन महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!