विज्ञापन प्रबंधन / Advertising Management

विज्ञापन के कार्य | विज्ञापन में व्यूह-रचना | प्रभावी विज्ञापन के सिद्धांत

विज्ञापन के कार्य | विज्ञापन में व्यूह-रचना | प्रभावी विज्ञापन के सिद्धांत | Advertisement Functions in Hindi | Strategy in Advertising in Hindi | principles of effective advertising in Hindi

विज्ञापन के कार्य

(Functions of Advertising)

अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से विज्ञापन के कार्यों का वर्गीकरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है:

Table of Contents

(I) व्यापारिक या वाणिज्यिक कार्य (Commercial Functions)

(1) विक्रय में वृद्धि करना- विज्ञापन का सबसे प्रमुख कार्य नवीन ग्राहकों की संख्या में वृद्धि करके, वस्तु के नवीन उपयोग प्रचलित करके, वस्तु की माँग बनाये रखकर विक्रय की मात्रा में वृद्धि करना है। (2) मध्यस्थों की सहायता करना- वस्तुओं का निरंतर विज्ञापन होते रहने से जनता को पहले से ही उनके बार में पर्याप्त जानकारी हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप मध्यस्थों (थोक एवं फुटकर व्यापारियों) का कार्य सरल हो जाता है। (3) बिक्री का बीमा – विज्ञापन एक प्रकार का विक्रय बीमा है। लगातार विज्ञापन होते रहने से वस्तु के प्रति जनता के मस्तिष्क में आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और फिर वे किसी अन्य वस्तु के क्रय के बारे में सोचते भी नहीं है। हिन्दुस्तान लीवर का वनस्पति घी ‘डालडा’ इसका ज्वलन्त उदाहरण है। (4) उपभोग में वृद्धि-  का कार्य विज्ञापित वस्तु के उपभोग में निरंतर वृद्धि करना है। उदाहरण के लिए, चाय का प्रयोग साधारणतया जाड़ों में ही होता था किन्तु यह विज्ञापन की ही देन है कि आजकल चाय का उपभोग बारह महीनों चलता रहता है। (5) ग्राहकों की रुचि बनाये रखना- विज्ञापन का कार्य विज्ञापित वस्तु के प्रति ग्राहकों की रुचि निरंतर बनाये रखना है। विज्ञापित वस्तु के गुणों का प्रचार बार-बार किये जाने से ग्राहकों की रुचि कम नहीं होती। (6) विक्रय की बाधाओं को दूर करना- विज्ञापन का कार्य विक्रय की बाधाओं को दूर करना भी है। विज्ञापन के माध्यम से वस्तु के विपक्ष में फैलाये गये मिथ्या प्रचार का खण्डन किया जा सकता है; स्थानापन्न वस्तुओं को हतोत्साहित किया जा सकता है; मूल्यों में स्थिरता लायी जा सकती है तथा दूर-दूर तक फैले हुए उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा सकता है। (7) मध्यस्थों प्राप्ति- विज्ञापन का कार्य मध्यस्थों की प्राप्ति करना भी है। जब किसी नवीन वस्तु का विज्ञापन होता है तो मध्यस्थ उसे क्रय करने अथवा एजेंसी लेने के लिए स्वतः ही उत्पादक अथवा निर्माता से सम्पर्क स्थापित करते हैं। (8) नये बाजारों का विकास करना- विज्ञापन का कार्य नये बाजारों की खोज करना एवं उनका विकास करना भी है। विज्ञापन उन क्षेत्रों के लोगों को भी वस्तुओं की जानकारी देता है जहाँ पर पहले उक्त वस्तु का प्रयोग नहीं होता था। इससे नवीन क्षेत्र के लोगों को जानकारी प्राप्त होती है तथा नये बाजारों का विकास सम्भव होता है। (9) परिवर्तनों के बारे में सूचना देना– निर्माताओं को उपभोक्ताओं की अभिरुचियों तथा बाजार की परिस्थितियों के अनुसार वस्तुओं एवं नीतियों में समय-समय पर आवश्यक परिवर्तन करने पड़ते हैं। विज्ञापन का कार्य इन परिवर्तनों के बारे में लोगों को अवगत कराना है। (10) ग्राहकों को संतुष्टि प्रदान करना- विज्ञापन का कार्य ग्राहकों को संतुष्टि प्रदान करना है तथा संशय एवं भ्रामक विचारों का उन्मूलन करना है।

(II) सामाजिक कार्य (Social Function)

(1) सामाजिक ज्ञान में वृद्धि करना- विज्ञापन नई-नई वस्तुओं की जानकारी देकर समाज के ज्ञान में वृद्धि करता है। (2) जीवन स्तर में सुधार- विज्ञापन नई-नई वस्तुओं की उपयोगिता की जानकारी प्रदान करके मानव के जीवन-स्तर में सुधार लाता है एवं उसे सुखमय बनाता है। उदाहरणार्थ, फ्रिज, कूलर, टेलीविजन आदि के विज्ञापन। (3) आशावादी वातावरण- विज्ञापन का कार्य समाज में आशावादी वातावरण उत्पन्न करने में सहायता प्रदान करना है। विज्ञापन का कार्य लोगों में नई-नई वस्तुओं के प्रयोग करने की इच्छा जाग्रत करके करता है। (4) रोजगार के अवसर बढ़ाना- विज्ञापन समाज में अनेक कलाकारों, मुद्रकों आदि के लिए प्रत्यक्ष तथा उत्पादन एवं उपभोग वृद्धि प्रोत्साहित करके श्रमिकों के लिए अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार के अवसरों को बढ़ाता है। (5) अन्य सामाजिक कार्य- (i) सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना (जैसे-विवाह एवं नौकरी के विज्ञापन), (ii) स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बनाये रखने में सहायता देना, (iii) उपभोक्ताओं को महत्वाकांक्षी बनाना, (iv) सामाजिक भलाई की योजनाओं को सफल बनाने में सहायक आदि।

(III) मनोवैज्ञानिक कार्य (Psychological Functions)

(1) वस्तु के प्रति विश्वास उत्पन्न करना- किसी वस्तु का बार-बार विज्ञापन करने से जनता का उस वस्तु के प्रति विश्वास बढ़ जाता है। (2) ध्यानाकर्षण करना- विज्ञापन का एक महत्वपूर्ण कार्य ध्यानाकर्षण करना है। इस कार्य के लिए उचित स्थान, उचित रंगों का समन्वय एवं उचित साधनों का उपयोग किया जाता है। (3) कार्य करने की प्रेरणा देना- विज्ञापित वस्तु के खरीदने के लिए लोगों को अधिक से अधिक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। (4) उपभोक्ताओं को स्मरण कराना- बार-बार विज्ञापन करने से उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु के सम्बन्ध में स्मरण कराया जाता है।

(IV) आर्थिक कार्य (Economic Functions)

(1) उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों में वृद्धि करना- विज्ञापन से विक्रय की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों में वृद्धि करना सम्भव हो जाता है। (2) वस्तु की किस्म पर नियंत्रण- जब विज्ञापित वस्तु की किस्म एवं उसके ऊंचे स्तर पर निरंतर प्रचार किया जाता है तो निर्माता उसकी किस्म को बनाये रखने का प्रयत्न करता है अन्यथा बाजार से खो जाने का भय उत्पन्न हो जाता है। (3) विक्रय व्ययों में कमी- विज्ञापन के कारण विक्रय व्ययों में पर्याप्त कमी करना सम्भव हो जाता है। मध्यस्थ भी कम कमीशन पर माल बेचने को तैयार हो जाते हैं, जैसे-टाटा कम्पनी के उत्पादन (4) उपभोक्ता के हित के कार्य आदि।

प्रभावी विज्ञापन के सिद्धांत

(Principles of Effective Advertising)

अथवा

विज्ञापन में व्यूह-रचना

(Strategy in Advertising)

श्री आर. एच. बुसकिकर्क के शब्दों में, “विज्ञापन का मूलभूत सिद्धांत यह बताता है कि सही माध्यम द्वारा संदेशा लेकर उसे सही लोगों तक सही समय पर पहुँचाया जाय।” इसी प्रकार अन्य विद्वानों ने, जैसे—प्रो. हापिन्स, प्रो. हेरी, सिमसन आदि ने भी विज्ञापन के सिद्धांतों के सम्बन्ध में अपने-अपने विचार प्रकट किये हैं। इन सभी के विचारों का अध्ययन करने के पश्चात् विज्ञापन के प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता हैः

(1) भावी ग्राहकों को सदैव ध्यान में रखिये (Know Your Prospects)- विज्ञापन का सबसे प्रमुख सिद्धांत यह है कि विज्ञापन देते समय सम्भावित अथवा भावी ग्राहकों को सदैव ध्यान में रखिये। ग्राहकों की दृष्टि से ही विज्ञापन किया जाना चाहिए क्योंकि इसका प्रमुख लक्ष्य ग्राहकों को क्रय करने के लिए आकर्षित करके उन्हें माल का विक्रय करना होता है। अतः ग्राहकों की शिक्षा के स्तर, किस्म, जीवन-स्तर एवं उनके सामाजिक रीति-रिवाजों पर ध्यान देते हुए विज्ञापन किया जाना चाहिए। ग्राहक स्त्री है या पुरुष, बालक है या युवक आदि बातों का भी ध्यान रखना चाहिए।

(2) रुचि उत्पन्न करना (Arouse Interest ) – विज्ञापन का दूसरा सिद्धांत सम्भावित ग्राहकों के मन में वस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न करना एवं उसे खरीदने के लिए लालायित करना है। रुचि उत्पन्न करने के लिए सम्भावित ग्राहकों की रुचियों एवं हितों को ध्यान में रखकर ही विज्ञापन प्रतिलिपि तैयार की जानी चाहिए।

(3) विज्ञापन का आकर्षक एवं प्रभावी शीर्षक होना (Attractive and Effective Head-line of Advertisement) – विज्ञापन का तृतीय महत्वपूर्ण सिद्धांत इसका आकर्षक एवं प्रभावी शीर्षक होना चाहिए, ताकि जन-साधारण का ध्यान सरलता से विज्ञापन की ओर आकर्षित किया जा सके। उदाहरण के लिए, ‘पालन-पोषण सही कीजिए, बच्चों को बोर्नबिटा दीजिए’, ‘लाइफबॉय है जहाँ, तन्दुरुती है वहाँ’ आदि।

कई विज्ञापन अपने तीखेपन या तीव्रता के कारण पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। तीखे विज्ञापनों का चुनाव करते समय अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इस  प्रकार के विज्ञापन अधिक सुसंस्कृत एवं सम्पन्न नागरिकों का ध्यान आकृष्ट नहीं कर पाते। विज्ञापन में केवल इतना तीखापन होना चाहिए जोकि पाठकों को आकृष्ट तो करे परन्तु यह इतना तीखा न हो कि पाठक इसकी तीव्रता से भड़क उठे। तीखे विज्ञापन की विषय-सामग्री यथासम्भव कम से कम शब्दों में होनी चाहिए। इसका उदाहरण निम्न चित्र में दिखाया गया है:

नई टिक – २०

नई टिक- 20 से ज्यादा और जल्दी खटमल मरते हैं

टाटा फ्राइज़न का उत्पादन

(4) प्रकृतियों को उत्तेजित कीजिए (Arose Instincts) — इच्छा को उत्पन्न करने एवं उसे बनाये रखने के लिए विज्ञापन में मनुष्य की विभिन्न प्रवृत्तियों को उत्तेजित करने का गुण आवश्यक है। ये विभिन्न प्रकार की प्रवृत्तियाँ- सुरक्षा, प्रवृत्ति, खाद्य प्रवृत्ति, वस्त्र प्रवृत्ति, आखेट प्रवृत्ति, पैतृक प्रवृत्ति, कौतूहल प्रवृत्ति, बैठे से बेगार भली प्रवृत्ति आदि हैं।

(5) विज्ञापन सरलता से समझने योग्य होना चाहिए (Advertisement should be Easily Understandable)– विज्ञापन ऐसा हो जो जन-साधारण की समझ में सरलता से आ जाय। इसकी भाषा, शीर्षक, चित्र आदि सरल होने चाहिए।

(6) वस्तु की उपयोगिता को सिद्ध कीजिए (Prove Your Product Value)– विज्ञापनदाता को विज्ञापन के माध्यम से वस्तु की उपयोगिता को सिद्ध करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए, ताकि सम्भावित ग्राहक उसे खरीदने के लिए प्रेरित हो। उदाहरण के लिए, ‘दो एनासिन लीजिए तथा दर्द से मुक्ति पाइये’, ‘सीरप शंख पुष्पी इस्तेमाल कीजिए तथा अपनी स्मरण शक्ति बढ़ाइये’ आदि।

(7) चित्रों का उपयोग (Use of Pictures) — सम्भावित ग्राहकों को आकर्षित करने एवं वस्तु की कल्पना करने में सहयोग देने के लिए विज्ञापन में प्रभावी चित्रों का उपयोग कीजिए। इससे विज्ञापन के प्रति आकर्षण बढ़ता है।

(8) वस्तु की नवीनतम स्पष्ट कीजिए (Demonstrate the Novely of Your Product)— विज्ञापन ऐसा हो जिससे वस्तु का नयापन प्रकट हो, तभी सम्भावित ग्राहक उसे खरीदने के लिए उत्सुक होगा। उदाहरण के लिए, ‘न्यू सुपर सर्फ’, ‘माइक्रोफाइण्ड ऐस्प्रो’, ‘अपने मनचाहे रंगों में लक्स साबुन लीजिये’ आदि से वस्तु की नवीनता का आभास होता है।

(9) विज्ञापन सृजनात्मक हो (Advertising must be Creative)- विज्ञापन सृजनात्मक होना चाहिए जो ग्राहकों को सृजन करने में समर्थ हो सके। इसमें नये-नये ग्राहकों का सृजन करने की क्षमता होनी चाहिए।

(10) वस्तु को रखने में गर्व का अनुभव (Feeling Pride of Possession)- विज्ञापन द्वारा यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि विज्ञापित वस्तु को रखने में आपको किसी प्रकार के गर्व का अनुभव होगा। उदाहरण के लिए, ‘लक्स फिल्मी सितारों का सबसे लोकप्रिय साबुन है।’ यह विज्ञापन कुछ व्यक्तियों पर यह प्रभाव डाल सकता है कि लक्स का प्रयोग करने से वे कम से कम एक बात में तो फिल्मी सितारों की बराबरी कर ही सकते हैं।

(11) अन्य सिद्धांत-उपरोक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त प्रभावी विज्ञापन के निम्नलिखित सिद्धांत भी हैं-(i) वस्तु का बराबर विज्ञापन किया जाना; (ii) विज्ञापन की प्रतिलिपि में विभिन्न रंगों का उपयोग होना; (iii) भावी ग्राहकों की समस्या को समझना तथा उनके अनुसार विज्ञापन किया जाना; (iv) वस्तु की किस्म पर जोर दिया जाना; (v) सेवा तत्व निहित होना; (vi) समय एवं स्थान के अनुसार विज्ञापन किया जाना आदि।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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