विज्ञापन प्रबंधन / Advertising Management

विज्ञापन की आवश्यकता | विज्ञापन के लाभ | विज्ञापन की आर्थिक उपयोगिता

विज्ञापन की आवश्यकता | विज्ञापन के लाभ | विज्ञापन की आर्थिक उपयोगिता | Advertisement Required in Hindi | Benefits of advertising in Hindi | economic utility of advertising in Hindi

विज्ञापन की आवश्यकता

(Need of Advertising)

आधुनिक युग विज्ञापन का युग है। बाट्सन डून के अनुसार, “जहाँ कहीं हम हैं, विज्ञापन हमारे साथ है।” (Where-ever we are advertising is with us.) इसकी उपयोगिता किसी एक वर्ग अथवा क्षेत्र विशेष के लिए न होकर समूचे समाज के लिए है। इस सम्बन्ध में विज्ञापन और प्रकाशन का दावा है कि “मैं वर्तमान की आवाज हूँ- मैं भूतकाल के आवरण का ताना तथा भविष्य का बाना हूँ। मैं शांति तथा युद्ध दोनों की समान रूप में कहानियाँ बताता हूँ-मैं प्रकाश, ज्ञान तथा शक्ति हूँ।” इसीलिए तो कहा जाता है कि ‘विज्ञापन लाभप्रद है’ (It pays ot Advertise)।

अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से विज्ञापन के लाभों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(I) उत्पादकों अथवा निर्माताओं को लाभ (Advantages to Producers or Manufactures)

(1) नव-निर्मित वस्तुओं की माँग उत्पन्न करना एवं वृद्धि करना- विज्ञापन में वह चुम्बकीय शक्ति होती है जिसके फलस्वरूप उपभोक्ताओं की रुचि में परिवर्तन हो जाता है, वे पुरानी वस्तु को छोड़कर नव-निर्मित एवं विज्ञापित वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं। यही नहीं, आगे जाकर वस्तुओं की माँग में भी दिनों-दिन वृद्धि होने लगती है। बर्टन (Burton) के अनुसार, “विज्ञापन निरंतर माँग का सृजन करने में सहायता पहुँचाता है, जैसे – ACC द्वारा सीमेण्ट का विज्ञापन ।”

(2) अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विनाश- सामूहिक विज्ञापन द्वारा अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विनाश किया जा सकता है तथा पर्याप्त बचत की जा सकती है। उदाहरणार्थ, वनस्पति घी तथा सीमेण्ट के विज्ञापन को लीजिए। इसमें उत्पादक लोग आपस में मिलकर उस वस्तु का विज्ञापन करते हैं जिसे वे सभी निर्मित करते हैं।

(3) वस्तुओं के लिए स्थायी माँग- विज्ञापन में एक ऐसी चुम्बकीय शक्ति है जिसके द्वारा किसी वस्तु की माँग को स्थायी रखा जा सकता है। उदाहरणार्थ, चाय को ही लीजिए। समाचार पत्रों में इस प्रकार का विज्ञापन निकला करता है- “ब्रुक बॉण्ड चाय पीजिये,क्षयह गर्मियों में ठण्डक एवं जाड़ों में गर्मी पहुँचाती है।” बहुत से लोग इन विज्ञापनों से प्रभावित होकर बारह महीने चाय पीने लगे हैं। इससे चाय की माँग स्थायी बन जाती है। एक विद्वान के अनुसार, “विज्ञापन माँ के उस दूध के समान है जो माँग रूपी नवजात शिशु का भरण-पोषण तथा रक्षा करता है।”

(4) उत्पादन में वृद्धि एवं गति- विज्ञापन द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है और इस प्रकार वे बड़ी मात्रा में बिकने लगती हैं। इस विक्रय वृद्धि के कारण उत्पादन अधिकाधिक गति से होने लगता है और उत्पादकों अथवा निर्माताओं का लाभ बढ़ जाता है।

(5) व्यवसाय की ख्याति में वृद्धि- विज्ञापन द्वारा ‘प्रसिद्धि’ होती है जिसके परिणामस्वरूप व्यवसाय की ख्याति निःसंदेह बढ़ती है। इससे व्यापारी को भारी आर्थिक लाभ होते हैं। उदाहरण के लिए, गोदरेज एवं टाटा को लीजिए जो आज अपनी प्रसिद्धि के कारण अनेक वस्तुओं का निर्माण कर रहे हैं।

(6) वस्तु के प्रति विश्वास- जब विज्ञापन की प्रथा न थी, तब विक्रेता अपने क्वालिटी बताने की योग्यता पर अब से बहुत अधिक निर्भर था। सामान्य उपभोक्ता के लिए यह ताना सम्भव नहीं था कि वह असली सोना खरीद रहा है या नकली। जिन वस्तुओं का सम्पूर्ण देश में विज्ञापन होता है, उनका खरीददार अपने पिछले अनुभव के कारण यह विश्वास करता है कि यदि निर्माता अपनी वस्तुओं की कोई विशेष क्वालिटी विज्ञापन द्वारा सूचित करते हैं तो वे उसी क्वालिटी की होंगी।

(7) उत्पादन लागत अथवा निर्माण एवं वितरण व्यय में कमी- विज्ञापन के होने से वस्तु की माँग में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप बड़ी मात्रा में उत्पादन सम्भव हो जाता है अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार बड़ी मात्रा में उत्पादन के परिणामस्वरूप उत्पादन-व्यय प्रति इकाई कम हो जाता है। इसी प्रकार वितरण क्षेत्र में भी प्रति इकाई व्यय में कमी हो जाती है क्योंकि विज्ञापित वस्तु के सम्बन्ध में उपभोक्ता को आवश्यक जानकारी हो जाने के कारण स्वयं विक्रेता से उस वस्तु की माँग करने लग जाता है।

(8) लाभों में वृद्धि- विक्रय में वृद्धि तथा उत्पादन व्यय अथवा वितरण व्यय में कमी होने से उत्पादकों के लाभों में वृद्धि होती है। सर विन्सटन चर्चिल (Sir Winston Churchill) के  अनुसार, “विज्ञापन के बिना टकसाल के अतिरिक्त कोई भी धन की उत्पत्ति नहीं कर सकता है।”

(9) थोक तथा फुटकर कीमतों में कमी- उत्पादन-व्यय में कमी हो जाने के कारण वे अपने माल को कम कीमत में थोक विक्रेता को बेचने के लिए सहमत हो जाते हैं, अतः थोक व्यापारी भी फुटकर व्यापारी को कम कीमत पर माल देने को तत्पर हो जाता है। इसका कारण यह है कि थोक व्यापारी का सिद्धांत प्रायः “कम लाभ पर किन्तु बड़ी मात्रा में विक्रय करना होता है।” इसके अतिरिक्त, आपसी प्रतिस्पर्द्धा के कारण सभी कम से कम लाभ पर ही वस्तुओं को बेचने का प्रयत्न करते हैं यही नहीं, आजकल उत्पादक अथवा निर्माणकर्ता।

(10) उत्तम प्रमाप की स्थापना किया जाना— अच्छा विज्ञापन उत्तम प्रमाप कायम करता है क्योंकि अच्छा विज्ञापन अच्छी वस्तुओं के सम्बन्ध में ही सफल हो पाता है। लोग प्रायः ‘ब्राण्ड’ के नाम से वस्तुओं का क्रय करते हैं क्योंकि इस सम्बन्ध में उनका यह विश्वास रहता है कि उनको उस ‘ब्राण्ड’ के अन्तर्गत अच्छी किस्म का माल ही मिलेगा, जैसे— एटलस साइकिल, लक्स साबुन, लाइफबॉय साबुन आदि। यहाँ तक कि वे लोग भी, जोकि सस्ता एवं निम्न श्रेणी का माल बेचकर जन-साधारण का शोषण करते हैं, बाध्य होकर अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि या तो वे अपना व्यवसाय बन्द करें अथवा माल की किस्म में सुधार करें।

(11) वितरण कार्य को सरल बनाना- विज्ञापन वस्तुओं के लिए बाजार का निर्माण कर उत्पादकों के लिए वितरण कार्य सरल बना देता है। मध्यस्थ व्यापारी विज्ञापन से प्रभावित होकर स्वयं अपनी ओर से अपनी सेवाएं माल बेचने के लिए प्रस्तुत करने हेतु तत्पर हो जाते हैं।

(12) विशिष्टीकरण के लाभ-विज्ञापन के परिणामस्वरूप उपभोक्ता वर्ग एक विशिष्ट प्रकार के माल का उपभोग करने का आदी हो जाता है अतः उत्पादक या निर्माता को अन्य प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन अथवा निर्माण में अपना समय तथा पूंजी नष्ट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

(13) अन्य लाभ-(i) प्रबंधकों एवं श्रमिकों को प्रेरणा- प्रबंधक और श्रमिक सदैव इस बात का प्रयास करते रहते हैं कि वस्तु विज्ञापित गुण के अनुरूप हो। (ii) वस्तुओं में परिवर्तन की सूचना- विज्ञापन द्वारा निर्माता वस्तुओं में परिवर्तन की सूचना यथाशीघ्र दे सकता है। (iii) व्यवसाय का विकास-विज्ञापन सम्पूर्ण व्यवसाय के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)

(1) शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्द्धक- विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को नयी-नयी वस्तुओं के बारे में ज्ञान होता है। उदाहरणार्थ, डालडा का विज्ञापन देखिये जिसमें विभिन्न वस्तुएँ किस प्रकार स्वादिष्ट बनायी जा सकती हैं, इस बात का विज्ञापन होता है। बुक ब्रॉण्ड चाय के विज्ञापन में रुचिकर चाय किस प्रकार बनानी चाहिए, इसकी जानकारी होती है। इसी प्रकार विभिन्न रेडियो तथा दूरदर्शन केन्द्रों से महिलाओं के लिए विशेष प्रोग्राम प्रसारित किये जाते हैं जिसमें उनको भोजन बनाने की विभिन्न विधियाँ तथा कढ़ाई-बुनाई कराने के ढंगों की जानकारी करायी जाती है।

(2) मध्यस्थों की संख्या में कमी- मध्यस्थों की एक लम्बी कड़ी होने से वस्तुओं का मूल्य बहुत बढ़ जाता है तथा इसका प्रभाव उपभोक्ताओं पर बहुत बुरा पड़ता है किन्तु विज्ञापन द्वारा मध्यस्थों की कड़ी को न्यून कर दिया जाता है क्योंकि इसके द्वारा उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों में प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जैसे-डाक द्वारा व्यापार के लिए किया गया विज्ञापन। इस प्रकार विक्रय व्यय में कमी हो जाती है और वस्तुओं का मूल्य भी कम हो जाता है।

(3) उपभोक्ताओं के समय में बचत- विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ताओं के समय की बचत होती है क्योंकि उनको वस्तु के ढूंढ़ने में अधिक समय व्यर्थ में नहीं खोना पड़ता है। इसके द्वारा उनको यह मालूम हो जाता है कि किस प्रकार की वस्तु कहाँ से तथा किस मूल्य पर प्राप्त की जा सकती है।

(4) थोक तथा फुटकर कीमतों में कमी- विज्ञापन से प्रतिस्पर्द्धा पनपती है क्योंकि इसके माध्यम से थोक व्यापारी तथा फुटकर व्यापारी दोनों ही अधिकाधिक विक्रय वृद्धि करने के उद्देश्य से कम मूल्यों पर भी विक्रय करने को तैयार हो जाते हैं। उधर उपभोक्ता वर्ग भी उसी स्थान से विज्ञापित वस्तुओं का क्रय करता है जहाँ पर उसका मूल्य कम से कम हो क्योंकि वस्तु के गुण आदि के सम्बन्ध में तो उसे पहले से ही जानकारी हो जाती है। परिणामस्वरूप थोक तथा फुटकर मूल्यों में पर्याप्त कमी हो जाती है।

(5) रहन-सहन के स्तर में सुधार- विज्ञापन से उपभोक्ताओं को नयी-नयी वस्तुओं की जानकारी होती है जिसके कारण उपभोग में वृद्धि होती है और इस प्रकार उनके जीवन-स्तर में सुधार होने लगता है। सर विन्सटन चर्चिल के अनुसार, “विज्ञापन अच्छे जीवन-स्तर के लिए मांग उत्पन्न करता है।”

(6) मूल्यों की जानकारी- विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को वस्तुओं के मूल्यों के सम्बन्ध में जानकारी हो जाती है। इसका कारण यह है कि विज्ञापनदाता प्रायः विज्ञापित वस्तु के मूल्य के सम्बन्ध में भी सूचित कर देते हैं, अतः उनके ठगे जाने का भय नहीं रहता।

(7) उत्पादों की किस्म में सुधार- विज्ञापन न केवल विक्रय वृद्धि में सहायक है अपितु प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने के लिए उत्पादकों अथवा निर्माताओं को उत्पाद की किस्म में सुधार करने के लिए भी बाध्य करता है। इस कार्य के लिए वे अपने यहाँ एक पृथक अनुसंधान एवं विकास विभाग की स्थापना करते हैं। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को श्रेष्ठ वस्तुएँ उपभोग करने के लिए मिलती हैं।

(8) क्रय में सुविधा– अमेरिकन विज्ञापन विशेषज्ञों के अनुसार, “विज्ञापन- ग्राहकों को बुद्धिमत्तापूर्ण क्रय करने में सहायता प्रदान करता है।” इसके द्वारा ग्राहक सही समय पर, सही स्थान से, सही वस्तु का चयन करने में समर्थ होते हैं।

(9) महत्वाकांक्षी बनाना-विज्ञापन उपभोक्ताओं को महत्वाकांक्षी बनाता है। उपभोक्ता विज्ञापित वस्तु को क्रय करने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। डब्ल्यू. डी. मोरियारिटी के अनुसार, “एक फोनोग्राफ या प्यानो या मोटरगाड़ी प्राप्त करने की इच्छा ने बहुत-से व्यक्तियों को अधिक मेहनत तथा अधिक समय तक कार्य करने अथवा जहाँ अधिक लाभ हो, वहाँ कार्य ढूंढ़ने के लिए बाध्य किया है।”

(10) अन्य लाभ-(i) विज्ञापन वस्तुओं की अच्छी किस्म की गारण्टी देता है। (ii) विज्ञापन उपभोक्ताओं के साथ वस्तुओं के मूल्य अथवा किस्म के सम्बन्ध में धोखाधड़ी की सम्भावनाओं को कम कर देता है। (iii) विज्ञापन हमें कई बातों का स्मरण कराता है, जैसे-बैंक का विज्ञापन बचत की प्रकृति का स्मरण कराता है; एक दंत मंजन का विज्ञापन दाँत साफ रखने का स्मरण कराता है। (iv) विज्ञापन अपने ग्राहकों की शंकाओं का समाधान करने में सहायक है।

मध्यस्थों को लाभ (Advantages to Middlemen)

उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के बीच में सम्पर्क स्थापित कराने वाले अनेक मध्यस्थ होते हैं जिन्हें विज्ञापन से निम्नलिखित लाभ हैं

(1) विक्रेताओं की सहायता-प्रो. नाइस्ट्रोम के अनुसार–“विज्ञापन विक्रेताओं के लिए मार्ग तैयार करता है।” विज्ञापन न केवल विक्रेताओं के मार्ग में होने वाली बाधाओं को दूर करता है अपितु आदेश प्राप्त करने एवं विक्रय वृद्धि में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है।

(2) जीविका का स्थायी साधन- विज्ञापन से वस्तुओं माँग में वृद्धि होने के बाद उसमें स्थायित्व आ जाता है। परिणामस्वरूप उनकी जीविका के साधन भी स्थायी हो जाते हैं।

(3) मूल्यों में स्थायित्व-विज्ञापन के कारण वस्तुओं के मूल्यों में स्थायित्व-सा आ जाता है। प्रायः सारे बाजार में मूल्य एक समान हो जाते हैं, अतः मध्यस्थों को ग्राहकों से मूल्यों के बारे में माथा-पच्ची करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(4) माल उपलब्धि की सूचना- विज्ञापन द्वारा मध्यस्थ अपने ग्राहकों को माल उपलब्धि की सूचना दे सकते हैं।

(5) निर्माताओं अथवा उत्पादकों से सम्पर्क- विज्ञापन के माध्यम से मध्यस्थ निर्माताओं अथवा उत्पादकों के सम्पर्क में आ जाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी निर्माता द्वारा अपनी नवीन वस्तुओं का विज्ञापन किये जाने के विभिन्न स्थानों के थोक व्यापारी अपने पत्र- व्यवहार द्वारा सम्पर्क स्थापित करते हैं। इसी प्रकार थोक व्यापारी द्वारा विज्ञापन किये जाने से फुटकर व्यापारी उससे सम्बन्ध स्थापित करते हैं।

(6) विक्रेताओं को प्रोत्साहन एवं समर्थन- विज्ञापन विक्रेता के लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है। जब विक्रेता अपने ग्राहक से मिलता है तो उसे वस्तु के बारे में प्रारम्भिक जानकारी नहीं देनी पड़ती क्योंकि विज्ञापन के होने से ग्राहक को स्वतः विज्ञापित वस्तु के बारे में पहले से ही जानकारी हो जाती है। अतः विक्रेता के पास तो केवल ग्राहक से आदेश प्राप्त करने का ही कार्य रह जाता है जिसे कि वह सफलता के साथ आसानी से निभा सकता है।

(7) जोखिम की कमी-विज्ञापन के कारण मध्यस्थों के पास संग्रहीत माल की बिक्री शीघ्रता से हो जाती है अतः उनके पास अधिक समय तक माल स्टॉफ में पड़ा नहीं रहता है। परिणामस्वरूप फैशन अथवा रुचि आदि में परिवर्तन होने से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(8) अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का अन्त- अच्छी विज्ञापित वस्तु के मूल्यों पर निर्माता का नियंत्रण रहता है, अतः बाजार से अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का अन्त हो जाता है।

समाज एवं देश को लाभ (Advantages to Society and the Country)

(1) अनेक व्यक्तियों को आजीविका मिलना- विज्ञापन हेतु कलाकारों, लेखकों तथा विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है। इन लोगों की जीविका का एकमात्र साधन विज्ञापन ही है। यही कारण है कि आजकल यह एक स्वतंत्र व्यवसाय हो गया है। विदेशों में ऐसी अनेक कम्पनियाँ हैं जो केवल विज्ञापन का कार्य करती हैं। हमारे देश में भी अब ‘एडवरटाइजिंग एजेंसीज’ की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है क्योंकि इनके द्वारा विज्ञापन कराने से विज्ञापन अधिक आकर्षक एवं मितव्ययी होता है।

(2) स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास– विज्ञापन से स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास होता है जिससे व्यवसाय का विकास होता है।

(3) रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठना- विज्ञापन द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि‌होती है। विभिन्न वस्तुओं के उपभोग को प्रोत्साहन मिलता है। इसके परिणामस्वरूप समाज का जीवन स्तर ऊँचा उठने लगता है।

(4) अन्य क्षेत्रों में लाभ-व्यापारिक एवं आर्थिक क्षेत्र के अतिरिक्त विज्ञापन का महत्व सामाजिक, राजनीतिक एवं सार्वजनिक क्षेत्र में भी है। चुनाव जीतने के लिए भी विज्ञापन, सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिए भी विज्ञापन तथा समाज का नैतिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए भी विज्ञापन का ही सहारा लेना पड़ता है।

(5) समाचार पत्रों की आय में वृद्धि- समाचार पत्रों को अपनी आय का. 75% भाग केवल विज्ञापन से ही मिलता है तथा शेष 25% भाग वाचकों से इस प्रकार विज्ञापन इनकी आय का एक प्रमुख साधन है।

(6) देश का आर्थिक विकास–विज्ञापन किसी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। अमेरिका के लूथर एच. हाजेज के अनुसार, “विज्ञापन के बिना हम सबसे सम्पन्न राष्ट्र के निवासी नहीं बन सकते हैं।”

(7) समाज का दर्पण- विज्ञापन का आधार जन-साधारण की रुचि, जन-जीवन का स्तर तथा सामाजिक प्रथाएँ होती हैं। इनको विज्ञापन में सम्मिलित किया जाता है जिससे विज्ञापन में समाज के जीवन की झलक मिलती है।

(8) अन्य लाभ-(i) विज्ञापन सभ्यता के विकास में सहायक है। (ii) विज्ञापन औद्योगिक अनुसंधान को प्रोत्साहन देता है। (iii) विज्ञापन ललित कलाओं को प्रोत्साहन प्रदान करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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