अर्थशास्त्र / Economics

WTO क्या है ? विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization)

WTO क्या है ? विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization)

सारणी

  • WTO क्या है ?
  • WTO की विशिष्टता
  • WTO के अन्तर्गत राष्ट्रों के समूह
  • WTO में निर्णय लेने की प्रक्रिया
  • WIO के उद्देश्य (Objectives of WTO)

 

WTO क्या है ?

WTO एक बहुपक्षीय संस्था है। इसका गठन व्यापार का उदारीकरण और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। WTO के अनुसार वह एक मात्र ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो विभिन्न देशों के बीच व्यापार के नियमों को लेकर कार्य करती है। इसका मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार सुगम और मुक्त रूप से चलता रहे। इस बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के केन्द्र में WTO के समझौते हैं जिन पर विश्व के अधिकतर देशों ने हस्ताक्षर किये हैं। ये समझौते विभिन्न देशों के बीच व्यापार का कानूनी द़ांचा तैयार करते हैं, और अपने सदस्य देशों के व्यापार संबंधी अधिकारों की रक्षा करते हैं । आज WTO विश्व की सबसे शक्तिशाली नव उदारवादी व्यापार संस्थान है व्यापार समझौतों से जुड़े मामलों में यह देशों की सरकारों द्वारा लिए गए निर्णयों को भी बदलने में साक्षम है।

WTO का गठन 1995 में हुआ, लेकिन पिछले 50 वर्षों से इसका स्वरूप जनरल एग्रीमेंट  ऑन टेरिफ एण्ड ट्रेड (गैट) के माध्यम सो धीरे-धीरे तैयार हो रहा था दूरारे विश्व युद्ध के बाद, जुलाई 1994 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन हुआ इसे ब्रेट्टन वुड्स (Bretton Woods) सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है इस सम्मेलन का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा और वित्तीय व्यवस्था को नियमित करने के लिए किया गया था । इसमें 44 देशों से 730 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के परिणाम रवरूप ‘पुनर्निर्माण और विकारा के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक’ (या विश्व बैंक) और ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश’ (आई.एम.एफ) का गठन हुआ। तत्पश्चात् यह तय किया गया कि अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहकारिता के लिए एक तीसरी संस्था का गठन किया जाएगा। मार्च 1948 को हवाना ( क्यूबा) में आयोजित ‘व्यापार और रोजगार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (आई.टी. ओ) (International Trade Organisation) की स्थापना को लेकर चर्चा हुई। यह तीरारा ब्रेट्टन बुड्रा सांस्थान था और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की देख-रेख के लिए इसे निर्णय लेने और विवाद निपटान (dispute settlement) के लिए जरूरी शक्तियां भी देने का प्रस्ताव था। लेकिन 1950 में अमेरिका की सिनेट ने हवाना चार्टर को मानने से इंकार कर दिया। इस प्रकार आई.टी.ओ बनने से पहले ही खत्म हो गया।

जिस वक्त आई.टी.ओ के प्रारूप पर बातचीत हो रही थी और देश यह विचार कर रहे थे कि वे इस संगठन के साथ जुड़ेंगे या नहीं, उसी वक्त 23 देशों के प्रतिनिधियों ने जेनेवा में ‘गैट’ के रूप में एक अनंतिम समझौता (provisional agreement) अपनाया। इसका उद्देश्य सफलतापूर्वक व्यापार का उदारीकरण और मुक्त व्यापार के सिद्धांत पर आधारित विश्व बाजार स्थापित करने के लिए आयात और निर्यात प्रशुल्कों को कम करने का था। इसा अरथाई बहुपक्षीय रामझौते का मुख्य लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने का था और साथ ही 1930 के महामंदी (greal depression) के दौर में लिए गए संरक्षणवादी उपायों से हुए नुकसान की भरपाई करना था। इस समझौते को 1 जनवरी 1948 से लागू किया जाना था और यह तभी तक रहता जब तक आई.टी.ओ की स्थापना नहीं हो जाती। वर्ष 1995 में WTO के गठन तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने वाला यह एकमात्र बहुपक्षीय उपकरण था।

गैट समझौता बाध्यकारी नहीं था। संगुक्त राज्य अमेरिका (और अन्य राष्ट्रो) ने गैट को इस शर्त पर स्वीकार किया कि इसके प्रावधान तभी तक बाध्यकारी होंगे जब तक वे देश के मौजूदा कानून के साथ असंगत न हों । इसे ‘अनंत्तिम प्रयोग का प्रोटोकॉल’ (Protocol of Provisional Application) कहा गया।

WTO के गठन से पहले गैट के तहत कई बार वार्ताएं हुई। इनमें सितम्बर 1986 में उरुग्वे मंत्रिस्तरीय बैठक काफी महत्वपूर्ण थी। उरुग्वे दौर में कई जटिल मुद्दों पर बातचीत हुई पर इनके केन्द्र में अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान का प्रस्ताव था, जिसके माध्यम से ये गैट फ्रेमवर्क में बदलाव लाकर अंतर्राष्ट्रीय निवेश को सरकारों से नियंत्रण मुक्त करवाना चाहते थे।

उरुग्वे दौर 8 वर्षों {1986-1994) तक चलता रहा। इस दौरान ‘व्यापार उदारीकरण’ वैश्वीकरण के नए अवतार के रूप में उभरा। औद्योगिक प्रशुल्क और गैर-प्रशुल्क अवरोधों को हटा कर गैट ने व्यापार उदारीकरण को सुगम बनाया। उरुग्वे दौर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने व्यापार एजेंडा में औद्योगिक माल के साथ-साथ कृषि उत्मादों के व्यापार, सेवाओं का निजीकरण, बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की सुरक्षा को भी शामिल कर दिया। इसके साथ- साथ कॉर्पोरेट मुनाफे में बाधा उत्पन्न करने वाले राष्ट्रीय कानून और विनियमन को भी साफलतापूर्वक सीमित किया गया दिसम्बर 1991 तक एक विरतृत प्रारूप तैयार कर लिया गया जिसे ‘फाईनल एक्ट’ या ‘डंकल प्रारूप’ के नाम से भी जाना गया इसका नाम आर्थर डंकल (1980-1993) के ऊपर पड़ा जो उस वक्त गैट के महानिदेशक थे। अप्रैल 1994 में मार्राकेश (मोरक्को) के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में इस ‘फाईनल एक्ट’ को औपवारिक रूप से स्वीकृत्त कर लिया गया। इस प्रकार 1 जनवरी 1995 से WTO अरितत्व में आया और इराने गैट की जगह ले ली।

WTO समझौतों का मकसदव्यापार के अवरोधों को दूर करना था और ऐसी रिथतियां पैदा करनी थीं, जिसमें बड़े कारपोरेट पूरे विश्व में मुक्त व्यापार कर सकें। इसमें माल के व्यापार के लिए प्रशुल्क अवरोधों को दूर करना अंतर्निहित है। गैर-प्रशुल्क व्यापार अवरोधों में स्वास्थ्य, पर्यावरण और श्रम कानून इत्यादि विषय शामिल हैं ।

WTO की विशिष्टता

WTO कई प्रकार से गैट से अलग है। गैट का सम्बन्ध सिर्फ माल के व्यापार से था जबकि WTO में वैश्विक व्यापार के तीनों पहलू शामिल हैं : (1) माल का व्यापार, ( 2 ) सेवाओं का व्यापार; और ( 3) बौडद्धिक सम्पदा (नई खोजों) का व्यापार। WTO की दूसरी खासियत उसकी विवाद निपटान प्रक्रिया है, जो अनुशासन और अनुपालन लागू करने के साथ साथ व्यापार टकराव की सम्भावनाओं को कम करने का एक उपाय है। इसके जरिए अगर कोई सदस्य व्यापार समझौते का उल्लंघन करता है तो दूसरा सदस्य उसके ऊपर दंड, जुर्माना और प्रतिबन्ध लगा सकता है। कोइ भी देश किसी अन्य देश को WTO के ‘विवाद निपटान निकाय’ (Dispute Settlement Body) में सुनवाई के लिए ला सकता है। परन्तु हकीकत यह है कि वर्ष 1995 से लेकर आज तक अधिकांश व्यापार विवादों में ज्यादातर फैसले शक्तिशाली औद्योगिक देशों के पक्ष में ही लिए गए हैं। कई बार फैसले राष्ट्रीय स्वास्थ्य और सुरक्षा, श्रम, मानव अधिकार और पर्यावरणीय कानून के खिलाफ भी लिए गए हैं, क्योंकि शक्तिशाली देशों द्वारा इन्हें व्यापार अवरोधों के रूप में पेश किया गया।

कई बार विकासशील देश WTO की धमकी से डरकर और दण्डात्मक प्रतिबन्धों से बचने के लिए अपनी जनहित नीतियों को बदलने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यही नहीं ‘विवाद निपटान निकाय’ के आदेशों को राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा भी रोका नहीं जा सकता है। इस प्रकार कभी-कभी WTO का दर्जा राष्ट्र से भी बड़ा हो जाता है। गैट से अलग ITO) एक कानूनी इकाई है और इसके समझौते बाध्यकारी हैं। WTO के समझौतों की सरकारों द्वारा संपुष्टि (Ratification) किया जाता है. जिसके कारण इसकी मान्यता वैधानिक हो जाती है। WTO के समझौते र्थाई होते हैं। WTO के सभी सदस्यों के पास बराबर अधिकार होते हैं, हरेक के पास एक बोट होता है और हर वोट का महत्व बराबर होता है।

WTO का सचिवालय जेनेवा (स्विटजरलैंड) में स्थित है और इसके महानिदेशक अभी रोबटों अजेवेडो हैं। WTO के सारे प्रमुख निर्णय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में लिए जाते हैं, जो प्रत्येक 2 वर्षों में एक बार होता है। इस वक्त WTO के 162 सादस्य (30 नबग्बर 2015 तक) हैं। रादस्यों के अलावा करीब 22 देशों को प्रेक्षक पद (observer status) प्राप्त है, जो सदस्यता से पहले दिया जाता है। इस प्रकार विश्व के लगभग सभी देश WTO के साथ जुड़े हुए हैं। WTO में सभी प्रकार के देश शानिल हैं- पूंजीवादी समाजवादी, अमीर और गरीब देश, औद्योगिकृत और विकासशील देश। WTO का बजट 16 करोड़ स्विस फ्रैंक है। WTO के सदस्यों द्वारा किए गए कुल व्यापार के अनुपात में देशों का निजी सहयोग राशि निर्धारित की जाती है।

अभी तक आयोजित WTO के मंत्रिरतरीय सम्मेलन (MinisterialConference) इस प्रकार हैं –

सम्मेलन

वर्ष

स्थान

1

9-13 दिसम्बर 1996

सिंगापुर

2

18-20 मई 1998

जिनेवा (स्विट्ज़रलैण्ड)

3

30 नवम्बर – 3 दिसम्बर 1999

सिएटल (अमेरिका)

4

9-13 नवम्बर 2001

दोहा (कतार)

5

10-14 सितग्बर 2003

कैनकुन (मैक्सिको)

6

13-18 दिसम्बर 2005

हांगकांग

7

30 नवम्बर – 2 दिसम्बर 2009

जिनेवा (स्विट्ज़रलैण्ड)

8

15-17 दिसम्बर 2011

जिनेवा (स्विट्ज़रलैण्ड)

9

3-6 दिसम्बर 2013

बाली (इंडोनेशिया)

10

15-18 दिसम्बर 2015

नैरोबी (कीनिया)

 WTO के अन्तर्गत राष्ट्रों के कई समूह हैं:

  • कम विकसित देश (Least Developed Country): इनमें विश्व के सबसे गरीब देश शामिल हैं।
  • छोटे और सन्वेदनशील अर्थव्यवस्थाएं (Small and Vulnerable Economies) : इनमें WTO के वे सदस्य शामिल हैं, जिनका विश्व व्यापार में बहुत छोटा हिस्सा है तथा ये आर्थिक अनिश्चितताओं और पर्यावरणीय घटनाओं के प्रति काफी सन्वेदनशील हैं।
  • अफ्रीकी, कैरिबियन और पैसिफिक देश (African, Caribbean and Pacific Countries – ACP) : इस समूह के देशों का यूरोपीय संघ के साथ विशेशाधिकारों वाला व्यापार सम्बन्ध है जो इन्हें लोमे (Lome) संधि (जिसे अब कोटोनाउ समझौता (Cotonou Agreement) कहा जाता है) के तहत प्राप्त हुआ था
  • अफ्रीकी समूह : इसमें WTO के अफ्रीकी सदस्य देश शामिल हैं।
  • कपास-4 (Cotton Four C4) : इनमें बेनिन, बु्किना फासो, चाड, और माली शामिल हैं; पश्चिमी अफ्रीकी देशों का यह गठबंधन विकसित देशों में कपारा की साब्शिडी और प्रशुल्क में कटौती की मांग करता है
  • जी-90 (G-90) : इसमें अफ्रीकी समूह, ACP समूह (अफ्रीकी, कैरिबियन, पैसिफिक देश), और कम विकसित देश शामिल हैं।
  • जी-33 (G-33) : यह विकासशील देशों का गठबंधन है जो अपने लिए कृषि क्षेत्र में बाजार को पूरी तरह से नहीं खोलने की छुट की बात करता है; इस बक्त इसमें 33 से ज्यादा सदस्य हैं।
  • जी-20 (G-20) : यह विकाराशील देशों का एक गढबंधन है जो विकरित देशों में कृषि के लिए महत्त्वाकांक्षी सुधार की बात करता है और साथ ही अपने लिए इसमें नरमी की आशा भी करता है (वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंक गर्वनरों का भी एक जी-20 समूह है पर वह इससे अलग है )
  • कैर्नस् (Cairns) समूह : यह कृषि उत्पादों का निर्यात करने वाले राष्ट्रों का गठबंधन है जो कृषि व्यापार उदारीकरण की बात करता है; ये रामूह निर्यात राब्सिडी और व्यापार को विकृत करने वाली सब्सिडियों को पूरी तरह से खत्म करने की भी मांग करता है, इसीलिए इसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान शागिल नहीं हैं

WTO में निर्णय लेने की प्रक्रिया

WTO के नियम कहते हैं कि प्रत्येक सदस्य देश के पास एक वोट है और अमीर देशों का वोट तथा गरीब देशों के वोट एक बराबर हैं। परन्तु WT) में आमतौर पर वोटिंग के आधार पर नहीं बल्कि आम सहमति से फैसले लिए जाते हैं। अन्य शब्दों में, जब तक सभी देशों की सहमति न हो कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है। बाद में प्रत्येक देश को अपनी संसद द्वारा इन समझौतों की संपुश्टि (ratify) करनी होती है । साथ ही WTO के अन्दर जिस प्रकार से ये निर्णय लिए जाते हैं, उनमें जोड़-तोड़ और हथकण्डों का भी इस्तेमाल होता है। कई बार देशों के ऊपर दबाव डालकर या उन्हें मजबूर करके भी निर्णय लिए जाते हैं और उस वक्त सहभागिता, पारदर्शिता, साझेदारी और लोकतंत्र जैसे सिद्धांत धरे रह जाते हैं। हालांकि WTO में 162 सदस्य देश हैं पर सभी महत्वपूर्ण निर्णय एक छोटे चुने हुए देशों के समूह द्वारा लिया जाता है जिसे ‘ग्रीन रूम’ या ‘फ्रेंड्र ऑफ द चेयर’ (राभापति के हितैशी ) कहा जाता है। आज तक कभी भी WTO के अन्दर किसी भी निर्णय पर वोटिंग नहीं हुई है। इस तरह अंदाजा लगाया जा सकता है किे WTO कहीं से भी लोकतांत्रिक संस्थान नहीं है। सभी मंत्रिस्तरीय बैठकों में अमेरिका, यूरोपीय संघ के देश, जापान और कनाडा का दबदबा बना रहता है। इन चारों को कई बार ‘चौकड़ी’ (Quadilateral ) या ‘कुआड’ (Quad) भी कहते हैं। दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद से विकासशील देशों ने मजबूती से अपनी बातों को रखना शुरू कर दिया था। कृषि समझौते के क्षेत्र में जी-33 और जी-20 की भूमिका और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है । इस प्रकार ब्राजील, भारत, और आस्ट्रेलिया भी (Cairns समूह के प्रतिनिधि के रूप में ) इस नए कुआड’ (The New Quad) में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा ‘छोटी मंत्रिस्तरीय’ (mini ministerial) बैठकों की प्रक्रिया भी जनतांत्रिक नहीं हैं। वर्ष 2002 से 2010 तक मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों से पहले, कई ‘छोटी मंत्रिस्तरीय’ बैठकें हुईं, जहां एजेंडा को पहले से तैयार करने के लिए सभी 6 देशों ने या कुछ खास देशों ने भाग लिया । इन ‘छोटी मंत्रिस्तरीय’ बैठकों में विकासशील देशों की सहभागिता नहीं के बराबर होती है। यहां तक की ‘विवाद निपटान निकाय’ भी सही मागने में जनतांत्रिक नहीं है। नियम के अनुसार कोई भी WTO का सदस्य किसी भी अन्य सदस्य को नियम उल्लंघन के आरोप में ‘विवाद निपटान निकाय’ में ला सकता है। परन्तु ऐसी रांभावना बहुत कम है कि कोई गरीब देश कभी भी अमेरिका या यूरोपीय रांघ जैरो शक्तिशाली देश के खिलाफ नियम उल्लंघन की शिकायत करे। दूसरी तरफ अमीर देशों के पास इतनी आर्थिक ताकत या शक्ति होती है कि वह किसी भी गरीब देश को डरा-धमका सकता है। इससे यह स्पश्ट हो जाता है कि औपचारिक रूप से भले ही WTO में बराबरी हो परन्तु यहां हमेशा अमीर देशों का ही पलड़ा भारी रहता है।

WIO के उद्देश्य (Objectives of WTO):

WTO की प्ररतावना में उसके उद्देश्यों का स्पष्ट उल्लेख है । इसमें यह साफ-साफ कहा गया है कि WTO के सदस्य अपने व्यापार और आर्थिक संबंधों का इस प्रकार आचरण करेगें जिससे लोगों के जीवन स्तर में पृद्धि हो, सम्पूर्ण रोजगार सुनिश्चित हो, वास्तविक आय निरन्तर बढ़ती रहे और प्रभावी मांग (effective demand) में वृद्धि हो। इसके साथ-साथ सामान और सेवाओं के उत्पादन और व्यापार का विस्तार हो । यह सब कुछ वैश्विक रांराधनों का यथोचित इतेमाल और टिकाऊ विकास के रिद्धांतों के आधार पर होना चाहिये, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण दोनों हो सके।

संक्षेप में WTO के प्रगुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. सदस्य देशों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार,
  2. सम्पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना और प्रभावी मांग (effective demand) में व्यापक वृद्धि,
  3. सामान के उत्पादन और व्यापार का विस्तार,
  4. सेवाओं के व्यापार को बढ़ाना,
  5. वैश्विक संसाधनों का यथोचित (सबसे अच्छा) उपयोग सुनिश्चित करना,
  6. पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण, और
  7. टिकाऊ विकास के सिद्धांत को स्वीकार करना।

WTO के मौलिक सिद्धांत (Fundamental Principles)

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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