भूगोल / Geography

जैव विविधता किसे कहते हैं | What is biodiversity called in Hindi 

जैव विविधता किसे कहते हैं | What is biodiversity called in Hindi 

जैव विविधता किसे कहते हैं।

सामान्य रूप से वैज्ञानिक भाषा में किसी भी स्थान प्रदेश या देश के प्राकृतिक परिवेश (स्थानीय. जलीय और वायुमण्डलीय) में पाये जाने वाले पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियों को जैव-विविधता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। पृथ्वी पर उपलब्ध जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों की लाखों करोड़ों जातियों, प्रजातियों, नदियों, झीलों, समुद्रों, वन क्षेत्रों सभी को मिलाकर जैव- विविधता कहते हैं। जैव-विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जो हमें सुरक्षा प्रदान करती है। जैव-विविधता का अभिप्राय जीवन की उन विविधबीरचनाओं से है जो हमारे चारों ओर दिखाई देती हैं अर्थात् इसका अर्थ जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों, विभिन्न स्रोतों, पारिस्थितिकीय जटिलताओं और पारितंत्रों की जीवित रचनाओं में विभिनता से है। “जैव विविधता एक समूहवाची शब्द है जिसमें पृथ्वी के सभी प्रकार के सजीव प्राणी, पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव समाहित है। वस्तुतः इनमें प्रजातियों के अन्दर, प्रजातियों के बीच, तथा पारितंत्र की विविधताएँ सम्मिलित हैं।’

“जैव-विविधता से तात्पर्य समस्त स्रोतों, भूमि, समुद्र, जलीय पारितंत्र व समूहों में उपलब्ध प्राणी वर्ग की उस पारस्परिक क्रियाशीलता से है जिसके वह अंग हैं, इसमें प्रजातियों में अन्दर ही अन्दर, प्रजाति और पारितंत्र के मध्य विविधता सम्मिलित है।”

“जैव-विविधता” का अर्थ है जीवधारियों (जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों व वनस्पतियों की) में विभिन्नता अर्थात् उनके विभिन्न प्रकार।

जैव-विविधंता की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार

  1. जैव-विविधता प्राकृतिक विचलनता का एक व्यापक समूहवाची शब्द है।
  2. इसमें विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सम्मिलित होते हैं।
  3. इसमें जैविक विषमता एवं अनेक पारितंत्रों का बोध होता है।
  4. इसमें जीवों की शारीरिक रचना, आकृतियों एवं अनुवांशिक पक्षों को सम्मिलित किया जाता है।
  5. जैव-विविधता का सम्बन्ध जीवधारियों की विभिन्नता और उनके पर्यावरण से होता है।
  6. प्रत्येक जीवधारी की अपनी अनेकों प्रजातियाँ होती है।
  7. जैव-विविधता का प्रारम्भ पृथ्वी पर आने से हुआ।
  8. भौगोलिक, भौतिक स्थितियाँ, जलवायु के कारक जीवधारियों की शारीरिक संरचना को प्रभावित करती है जिससे नयी प्रजातियाँ बनती है।
  9. प्रत्येक प्रकार के जीवधारी की अपनी परिसीमा होती है।
  10. जैव-विविधता के लिए पारिस्थितिकी तंत्र उत्तरदायी होता है।

जैव-विविधता की आवश्यकता का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

  1. सभी जीवधारियों (मानव, जीव-जन्तु, पेड़ पौधों) में निकट का पारस्परिक सम्बन्ध एवं निर्भरता है जिससे पारिस्थिकी संतुलन बना रहता है। जब पारस्परिक सम्बन्ध कम होने लगता है तब पारिस्थिकी संतुलन बिगड़ने लगता है। प्रत्येक जीवधारी का अपना स्थान, कर्त्तव्य व विशिष्ट महत्व है। सभी जीवों में आन्तरिक निभरता होती है और इस संवेदनशील संबंधों के लिए मानव एक महत्वपूर्ण कड़ी होता है जब यह कड़ी टूटने लगती है तो स्वयं मनुष्य के लिए समस्या उत्पन्न होने लगती है इसलिए कहा जा सकता है कि पारिस्थितिकी सतुलन बनाये रखने के लिए जैव-विविधता की आवश्यकता होती है।
  2. मनुष्य तथा सभी जीवधारी विकास प्रक्रिया में सम्मिलित होते हैं इसलिए मनुष्य को विकास प्रक्रिया तथा जीव-विज्ञान की पारिस्थितिकी तंत्र का ज्ञान होना चाहिए। जैव-विविधता का न विकास प्रक्रिया को समझने में सहायक होता है। जीवन की रक्षा और विकास की प्रक्रिया के लिए जैव-विविधता का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।
  3. प्रत्येक जीवधारी का पारिस्थितिकी तंत्र में अपना स्थान होता है जिससे उसके स्तर का अनुरक्षण होता है। जीवधारियों के सम्बन्धों में परिवर्तन होने से पारिस्थितिकी तंत्र बदल जाता है और मानव का पर्यावरण भी बदल जाता है और मानव-जीवन को प्रभावित करता है जिसका अनुभव कभी-कभी वह नहीं कर पाता है।

जैव विविधता को निम्न स्तरों पर देखा जा सकता है।

  1. पारिस्थितिक तंत्र के स्तर पर- जैसे पहाड़ी पारिस्थितिक तंत्र, मैदानी पारिस्थितिक तंत्र, रेगिस्तानी पारिस्थितिक तंत्र व तटीय पारिस्थिकि तंत्र आदि। पारिस्थितिक तंत्र के स्तर पर विविधता के निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-

(i) एल्फा विविधता- एक समुदाय के अनुसार विविधता एल्फा विविधता कहलाती है। इसका अर्थ जीवों की उस विविधता से है जो एक ही समुदाय या आवास में रहते हैं।

(ii) बीटा विविधता- समुदायों के मध्य विविधता को बीटा विविधता कहते हैं। यह आवासों अथवा समुदायों की प्रवणता के आधार पर प्रजाति के विस्थापित होने की दर है।

(iii) गामा विविधता- किसी क्षेत्र की सम्पूर्ण विविधता गामा कहलाती है। यह सम्पूर्ण भूदृश्य अथवा भौगोलिक क्षेत्रों में आवासों की विविधता है।

  1. प्रजातियों के स्तर पर- विश्व में विभिन्न स्तर पर प्रजातियों की संख्या बहुत अधिक है। यह क्षेत्र के भीतर प्रजातियों के विभिन्न प्रकारों से सम्बन्धित है। सामान्यतः जितनी प्रजाति समृद्धता अधिक होगी उतनी ही प्रजाति विविधता अधिक होगी। वह क्षेत्र अधिक विविध होगा जिसमें वर्गिकीय रूप से असम्बन्धित प्रजातियाँ अधिक होंगी।
  2. आनुवांशिक विविधता/प्रजातियों के अन्तनिर्निहित स्तर पर- हर प्रजाति के अन्दर ही अनेक प्रकार की विविधता संभव है। आनुवांशिक विविधता प्रजाति के अन्दर ही जीन की विविधता से सम्बन्धित है। भिन्नताएँ ऐलीलो के एक ही जीन के विभिन्न (Variant) में पूर्ण जीन में किसी विशेष गुण को निर्धारित करने वाले विशेषक (Trait) अथवा गुणसूची रचनाओं में हो सकती है। आनुवांशिक विविधता, किसी प्रजाति की जनसंख्या को उसके परिवेश में ढालने और प्राकृतिक चयन पर प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाती है। यदि किसी प्रजाति में अधिक आनुवांशिक विविधता होती है तो वह अच्छे ढंग से परिवर्तित हुई पर्यावरणीय स्थिति को अपना सकती है। यही नयी जाति के विकास (जाति उद्भवन ) का आधार है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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