थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त | थार्नडाइक के प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त के गुण-दोष

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त | थार्नडाइक के प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त के गुण-दोष

प्रश्न 1 प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए बताइए कि शिक्षा में इसकी क्या उपयोगिता है?
प्रश्न 2 थार्नडाइक के प्रयास एवं त्रुटि-सिद्धान्त का उनके प्रयोग के साथ विश्लेषण कीजिए।
प्रश्न 3 अधिगम सिद्धान्त का गुण-दोष सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर – ई. एल. थार्नडाइक ने 1913 में प्रकाशित होने वाली अपनी पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने का एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, यथा-

  1. थार्नडाइक का सम्बन्धवाद।
  2. सम्बन्धवाद का सिद्धान्त।
  3. उद्दीपन-प्रतिक्रिया सिद्धान्त।
  4. सीखने का सम्बन्ध सिद्धान्त।
  5. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धान्त।

सिद्धान्त का अर्थ-

जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है, तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक होता है, जो उसे एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार एक विशिष्ट उद्दीपक का एक विशिष्ट प्रतिक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जिसे उद्दीपक प्रतिक्रिया सम्बन्ध द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस सम्बन्ध के फलस्वरूप जब व्यक्ति भविष्य में उसी उद्दीपक का अनुभव करता है, तब वह उससे सम्बन्धित उसी प्रकार की प्रतिक्रिया या व्यवहार करता है।

थार्नडाइक द्वारा सिद्धान्त की व्याख्या-

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए लिखा है- “सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य, मनुष्य का मस्तिष्क करता है।”

थार्नडाइक की धारणा है-

सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का विभिन्न मात्राओं में सम्बन्ध होना आवश्यक है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उद्दीपकों और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायुमण्डल में स्थापित होता है। इस सम्बन्ध की स्थापना, सीखने की आधारभूत शर्त है। यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है। इस पर प्रकाश डालते हुए बिगी एवं हण्ट ने लिखा है। “सीखने की प्रक्रिया में किसी मानसिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से, शारीरिक क्रिया का मानसिक क्रिया से, मानसिक क्रिया का मानसिक क्रिया से या, शारीरिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से सम्बन्ध होना आवश्यक है।”

थार्नडाइक का प्रयोग-

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किये। उसने अपने एक प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को पिंजड़े में बन्द कर दिया। पिंजड़े का दरवाजा एक खटके के दबाने से खुलता था। उसके बाहर भोजन (उद्दीपक) रख दिया। उद्दीपक के कारण उसमें प्रतिक्रिया आरम्भ हुई। उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया। एक बार संयोग से उसका पंजा खटके पर पड़ गया। फलस्वरूप, वह दब गया और दरवाजा खुल गया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया। अन्त में एक समय ऐसा आ गया, जब बिल्ली किसी प्रकार की भूल न करके खटके को दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोलने लगी। इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध स्थपित हो गया। थार्नडाइक के सम्बन्धवाद के सिद्धान्त ने सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि को विशेष महत्व दिया। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ ने लिखा है। प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिए अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं। बिल्ली समान बालक भी चलना, जूते पहनना, चम्मच से खाना आदि क्रियाएँ सीखते हैं। वयस्क लोग भी ड्राइविंग, टेनिस, क्रिकेट आदि खेलना, टाई की गाँठ बाँधना इसी सिद्धान्त के अनुसार सीखते हैं।

सिद्धान्त के गुण या विशेषताएं

  1. इस सिद्धान्त के उद्दीपक एवं अनुक्रिया के सम्बन्ध को अधिगम को आधार माना गया है, जिससे अधिगम स्थायी होता है।
  2. इस सिद्धान्त में प्रयन्त एवं त्रुटि की अनुक्रियाएं तब तक चलती रहती है, जब तक अधिगमकर्ता अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता है।
  3. इस सिद्धान्त में लक्ष्य की प्राप्ति पर सफलता पुनर्बलन का कार्य करती है। इससे अधिगमकर्ता पुनः ऐसी सिथति आने पर सही प्रयत्न अथवा अनुक्रिया का चयन करने में सफल हो जाता है।
  4. इस सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने अधिगम के नियमों का प्रतिपादन किया है, निका प्रयोग करके शिक्षक-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।
  5. इस सिद्धान्त के अनुसार प्रयत्न एवं त्रुटि के लिए कृत अनुक्रियाओं से प्राप्त अनुभवों से अधिगमकर्ता में अधिगम हेतु क्षमताओं का विकास होता है।
  6. 6 . सिद्धान्त गठित, विज्ञान एवं समाजशास्त्र जैसे गम्भीर चिन्तन वाले विषयों के अधिगम के लिए विशेष उपयोगी है।
  7. यह सिद्धान्त अधिगम-प्रक्रिया में समस्या समाधान पर विशेष बल देता है।
  8. इस सिद्धान्त की लिखने, पढ़ने एवं गणित सिखाने में विशेष उपयोगिता है।

सिद्धान्त के दोष या सीमाएं

  1. यह सिद्धान्त पशुओं पर कृत प्रयोगों पर आधारित है। अत: मानव-अधिगम-प्रक्रिया की सम्यक् व्याख्या नहीं करता है।
  2. यह सिद्धान्त अधिगम हेतु प्रयत्नों पर अधिक बल देता है। परिणामस्वरूप अधिगम में समय अधिक नष्ट होता है।
  3. इस सिद्धान्त के अनुसार अधिगमकर्ता प्रयल एवं त्रुटि द्वारा ही अधिगम करते हैं, जब कि मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि सूझ द्वारा भी अधिगम होता है।
  4. इस सिद्धान्त में किसी कार्य को करने अथवा सीखने के लिए प्रयत्न / अभ्यास पर अधिक बल दिया गया है, जब कि उसी कार्य को किसी एक विधि से एक बार में ही किया अथवा सीखा जा सकता है।
  5. यह सिद्धान्त अधिगम-प्रक्रिया को यांत्रिक बनाता है। यह अधिगम के लिए मनुष्य के तर्क, चिन्तन एवं सूझ को महत्त्व नहीं देता है जबकि अधिगम हेतु इनका विशेष महत्त्व है।

सिद्धान्त का शिक्षा में महत्त्व –

शिक्षा में प्रयास तथा त्रुटि का सिद्धान्त अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस सिद्धान्त का महत्त्व इस प्रकार है-

  1. बड़े तथा मन्द बुद्धि बालाकों के लिए यह सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी है।
  2. इस सिद्धान्त से बालकों में धैर्य तथा परिश्रम के गुणों का विकास होता है।
  3. बालक में परिश्रम के प्रति आशा का संचार करता है।
  4. इस सिद्धान्त के कार्य की धारणायें स्पष्ट हो जाती हैं।

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