गरीबी से क्या तात्पर्य है

गरीबी से क्या तात्पर्य है | निर्धनता दूर करने हेतु सरकार का प्रयास

गरीबी से क्या तात्पर्य है | निर्धनता दूर करने हेतु सरकार का प्रयास

निर्धनता (गरीबी से क्या तात्पर्य है)

साधारण भाषा में निर्धनता से तात्पर्य अभावों में जीवन व्यतीत करने वाले लोगों से है जो पौष्टिक आहार करना तो दूर, बल्कि अर्द्ध-पेट भोजन ग्रहण करते हैं। पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े तो दूर, बल्कि अर्द्ध-नग्न रहते हैं, आवास के नाम पर घास-फूस की झोपड़ी व विभिन्न प्रकार से आर्थिक संक्रान्ति से गुजरते हैं। इस प्रकार निर्धनता का आशय सापेक्ष लोगों के निम्न जीवन स्तर से होता है। अर्थशास्त्री निर्धनता के सम्बन्ध में सापेक्ष निर्धनता व निरपेक्ष निर्धनता नामक दो अर्थ लगाते हैं।

(1) सापेक्ष निर्धनता- सापेक्ष निर्धनता का तात्पर्य आय की असमानता से है जिसमें कम आय वाले लोग गरीब व ऊँची आय वाले लोग धनी समझे गए हैं। सापेक्ष निर्धनता में निर्धन व अमीर लोगों के वर्ग निर्वाह स्तर से मूल्यांकित होते हैं।

(2) निरपेक्ष निर्धनता- निरपेक्ष निर्धनता से तात्पर्य ऐसे लोगों से है जो निर्वाह-स्तर में इतने निम्न हैं कि न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं।

भारतवर्ष में निर्धनता का अर्थ-

योजना आयोग ने निर्धनता का अर्थ पौष्टिक आहार से लिया है कि यदि गाँववासियों को 2400 कैलोरी व शहरवासियों को 2100 कैलोरी प्रतिदिन नहीं मिल पा रही है तो उसे निर्धन समझना चाहिए। अतः निर्धारित कैलोरी प्राप्त न करने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे समझे जाते हैं। इसको मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है कि सन् 1980 के मूल्य निर्देशांक के आधार पर शहरवासियों की 88 रु. प्रतिमाह, गाँववासियों की 76 रु. प्रतिमाह आय अवश्य होनी चाहिए, जबकि नवीन आँकड़ों के अनुसार शहरवासियों की आय 122 रु. प्रतिमाह तथा गाँववासियों की मासिक आय 107 रु0. होनी चाहिए। योजना आयोग ने 2011 में निर्धनता रेखा का पुनर्मुल्यांकन कर कहा है कि शहरी क्षेत्र के 32 रु. प्रतिदिन, ग्रामीण क्षेत्र के 26 रुपये प्रतिदिन आय प्राप्त करने वाले लोग गरीबी रेखा के ऊपर है, जिसकी आलोचनाओं के कारण उक्त तथ्य वापस लेकर पुनः निर्धारण की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई है।

निर्धनता दूर करने हेतु सरकार का प्रयास

“संसार में सबसे पहले दुःखी वह है जो निर्धन है।” गरीबी एक अभिशाप है, जो मानव को पशु की तरह असहाय व कमजोर बना देती है। विद्वानों का मत है कि गरीबी की समस्या का समाधान निर्धन व्यक्तियों की आय बढ़ाने में निहित है। इस परिप्रक्ष्य में सरकारी प्रयत्नों का आर्थिक विश्लेषण निम्नवत् है-

  1. बेरोजगारी का निराकरण (Eradication Unemployment)- भारत सरकार स्वतंत्रता के पश्चात् 1951 में आर्थिक नियोजन के माध्यम से पंचवर्षीय योजना में बड़े उद्योगों की स्थापना, रुग्ण उद्योगों को पुनः संचालित करके विविध प्रकार के उपाय किये, इससे लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। सार्वजनिक निर्माण कार्यों के द्वारा भी रोजगार सृजन किया गया। पांचवीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार के अवसरों में वृद्धि के उद्देश्य से श्रम प्रधान तकनीक विकसित की गई, जिसमें कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना व कृषि का विकास हुआ। इस योजना-काल में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम , रा्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम व ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम व बीस सूत्रीय कार्यक्रम आदि घोषित हुए। छठीं व सातवीं योजनाएँ भी बेकारी निवारण का भगीरथ प्रयास करने में लगी रहीं, जिससे रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। अतःआर्थिक नियोजन में प्रथम उद्देश्य “सामाजिक न्याय” की बात बराबर कही गई।
  2. बुनियादी आवश्यकताओं की व्यवस्था (Arrangement of Fundamental Necessities)- गरीबों के जीवन स्तर में सुधार सरकार का प्रथम उद्देश्य है। अतः सरकार ने बुनियादी आवश्यकताओं के लिए भगीरथ प्रयास किये हैं, फिर भी देश के निर्धन लाभान्वित नहीं हो सके हैं। लेकिन पांचवीं योजना में “न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम” (Minimum Needs Programme) प्रारम्भ हुआ, जिसमें गरीबों की बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए क्षेत्रीय विषमताओं को कम किया गया| छठवीं व सातवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबों को सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से बुनियादी आवश्यकताएँ जैसे- पेयजल, स्वास्थ्य सुविधा, प्राथमिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, ग्रामीण सड़कें, विद्युतीकरण, पोौष्टिक आहार, गन्दी बस्तियों का जीर्णोंद्धार आदि सुविधाएँ प्रदान की गईं।
  3. अत्यन्त गरीबों के लिए विशेष कार्यक्रम (Special Programme for the Very Poor’s) – भारत सरकार ने सर्वाधिक गरीब लोगों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये हैं। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ी जाति के सर्वाधिक परिवार हैं, जिनकी संख्या लगभग 20 प्रतिशत है। उन्हें विशेष कल्याण कार्यक्रम के लाभान्वित करने की योजना है। सातवीं पंचवर्षीय योजना में ऐसे लोगों को लाभ पहुँचाने के लिए 14,208 करोड़ रु. व्यय करने का प्रावधान रखा गया है। आठवीं योजना (1992-1997) में 64,520 करोड़ रु. व्यय का प्रावधान था।

भारत सरकार सामाजिक उत्थान एवं गरीबी निवारण हेतु निम्न नवीन योजनाएँ प्रारम्भ की हैं।

  1. रोजगार गारण्टी योजना – देश के अति पिछड़े 2475 विकास खण्डों में ग्रामीण निर्धनों के लिए 100 दिन की अकुशल शारीरिक मजदूरी देना।
  2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना- लघु उद्योगों की स्थापना से बेकार युवकों को रोजगार देना।
  3. सामाजिक सहायता कार्यक्रम – वृद्धावस्था पेन्शन, जीविकोपार्जन के लिये पारिवारिक लाभ एवं मातृत्व लाभ प्रदान करना।
  4. ग्रामीण सामूहिक बीमा योजना- देश में गरीब ग्रामीणों को आर्थिक सहायता युक्त प्रीमियम वाली सामूहिक बीमा योजना से लाभान्वित करना।
  5. माध्याह्न भोजन योजना- ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में पौष्टिक आहार देना।
  6. महिला समृद्धि योजना – ग्रामीण स्त्रियों को बचत की आदत हेतु योजना।
  7. इन्दिरा महिला योजना – देश की महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलम्बी एवं सशक्त बनाने हेतु योजना।
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