भारत एक धनी देश है किन्तु भारत के निवासी निर्धन हैं
“भारत एक धनी देश है किन्तु भारत के निवासी निर्धन हैं”
भारत एक धनी देश है, किन्तु भारत के निवासी निर्धन हैं – भारत के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों तथा अर्थव्यवस्था की विशेषताओं के सन्दर्भ में डॉ. बीरा एन्सटे ने अपनी पुस्तक ‘भारत का आर्थिक विकास’ में लिखा है कि “भारत एक धनी देश है किन्तु यहाँ के निवासी निर्धन हैं।” यह कथन उचित है क्योंकि जहाँ एक ओर भारत के पास प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों की अधिकता है जो इसकी समृद्धि का द्योतक है। वहीं दूसरी ओर देश की अधिकांश जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। जो इसकी निर्धनता का द्योतक है। अतः इसकी व्याख्या करने के लिए इसके दोनों पक्षों का अध्ययन करना आवश्यक होगा।
(अ) भारत एक धनी देश है-
भारत प्राचीन काल से ही एक धनी देश रहा है। इसके साधनों की अधिकता के कारण ही इसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा गया है। भारत में न केवल प्राकृतिक साधनों के प्रचुर भण्डार ही हैं बल्कि विभिन्न भाषाओं, जाति एवं धार्मिक विश्वासों का संगम और प्रकृति के विभिन्न सौन्दर्य का भी अत्यन्त लाभप्रद संयोग यहाँ दिखाई देता है। भारत एक धनी देश है, इसके सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
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भौगोलिक स्थिति-
भारत की भौगोलिक स्थिति अच्छी है। उत्तर में हिमालय इसका प्रहर ही है। पूर्व में बांग्ला देश व म्यामार (ब्मा) है। पश्चिम में अरब सागर व दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवा स्थान है जिसका क्षेत्रफल 32.88 लाख वर्ग किलोमीटर है।
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जल शक्ति-
भारत में निरन्तर प्रवाहित होने वाली नदियाँ हैं। इन नदियों पर बाँध बनाकर पर्याप्त रूप से सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हा सकती है। जल शक्ति का उपयोग विद्युत शक्ति के निर्माण में भी किया जा रहा है जिसका उपयोग देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास हेतु हो रहा है।
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जलवायु-
भारत में भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न जलवायु पायी जाती है। इसी जलवायु की विभिन्नता को देखते हुए मार्सडेन ने लिखा है कि “विश्व की समस्त जलवायु भारत में मिल जाती है।
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जन शक्ति-
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 84.4 करोड़ जनसंख्या थी जो सन् 2011 में बढ़कर 112 करोड़ से अधिक हो गयी है।
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वन सम्पदा-
वन किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य सम्पत्ति होते हैं। भारत इस दृष्टि से भी धनी हैं। भारत में 675.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन हैं जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.55% है। वन देश के तारपीन का तेल, उद्योग, कागज उद्योग, पेण्ट्स एवं वारनिश, रबर, औषधि व शहद आदि का आधार हैं।
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खनिज सम्पदा-
खनिज सम्पदा की दृष्टि से भारत धनी देश है। आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक कोयला, लोहा, मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट व तांबा आदि खनिज पदार्थ भारत में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। भारत का अभ्रक उत्पादन में विश्व में प्रथम व मैंगनीज उत्पादन में तीसरा स्थान है।
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शक्ति के साधन-
भारत में शक्ति के साधन के रूप में कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, गैस, अणुशक्ति, जलविद्युत व लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । एक अनुमान के अनुसार कोयले का उपयोग यदि वर्तमान दर पर ही किया जाये तो कोयला भण्डारों का उपयोग 600 वर्षों तक किया जा सकता है। पेट्रोलियम पदार्थों की पूर्ति हेतु नवीन स्थानों पर खुदाई की जा रही है।
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पशु धन-
पशु धन की दृष्टि से भी भारत काफी धनी देश है। विश्व के दूध देने वाले पशुओं की कुल संख्या का 25% भाग भारत में पाया जाता है। भारत में विश्व के कुल पशु धन का 30% पाया जाता है जो सम्भवतया विश्व में सर्वाधिक है।
उपर्युक्त तथ्यों के विश्लेषणात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि भारत एक धनी देश है यही कारण है कि भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता है।
(ब) यहाँ के निवासी निर्धन हैं (Inhabitants are poor) –
प्राकृतिक साधनों की पर्याप्तता होते हुए भी भारत के निवासी निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, यह खेदजनक स्थिति है। आज भारतवासी अपनी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असमर्थ हैं, उनका जीवन-स्तर निम्न है। इसका प्रमुख कारण यह है कि देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का पूर्णतया उपयोग नहीं किया जा रहा है जिससे देश में निरन्तर निर्धनता बढ़ती जा रही है। भारतवासियों की निर्धनता के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं-
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प्रति व्यक्ति निम्न आय-
भारत में अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति औसत आय बहुत कम है।
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गरीबी-
स्वतन्त्रता के 64 वर्ष पश्चात् भी भारत की लगभग 30% जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। देश में आज भी न केवल ग्रामीण क्षेत्र में बल्कि शहरी क्षेत्र में भी अनेक लोग कच्चे मकानों में रहते हैं और तन ढकने के लिए भी उनके पास पर्याप्त वस्त्र नहीं होते तथा एक वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते हैं।
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व्यापक बेरोजगारी-
भारत बेरोजगारों का देश है । यहाँ न केवल अशिक्षित बल्कि शिक्षित व्यक्तियों में भी बेरोजगारी पायी जाती है। रोजगार कार्यालय के चालू रजिस्टर में 2003 के अन्त तक 546.29 लाख बेरोजगार दर्ज थे।
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शिक्षा का निम्न स्तर-
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति का मादण्ड होती है। भारत का दुर्भाग्य ही है कि स्वतन्त्रता के 64 वर्ष पश्चात् भी देश की लगभग 35% जनसंख्या निरक्षर है। यद्यपि देश में साक्षरता कार्यक्रम लागू किये गये हैं किन्तु वह केवल अधिकारियों व राजनेताओं की आय का स्रोत ही सिद्ध हुए हैं।
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आवश्यक वस्तुओं की कम उपलब्धि-
भारतवर्ष में जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि काफी कम है। अधिकांश विकसित देशों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 3.000 से अधिक कैलोरी का उपभोग किया जाता है जबकि भारत में प्रतिदिन 2,000 कैलोरी का ही उपभोग है।
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आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ-
भारत में सम्पत्ति एवं आय के वितरण में काफी असमानता है। NCAER के सर्वेक्षण के अनुसार, “देश में कुल परिवारों में उच्च स्तरीय एक प्रतिशत परिवारों के पास देश की कुल सम्पत्ति का 14% भाग है जबकि निचले स्तर के 50% परिवारों के पास 7% से भी कम सम्पत्ति है।”
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निम्न स्वास्थ्य स्तर-
भारत की निर्धनता यहाँ के निम्न स्वास्थ्य स्तर में दिखाई देती है। भारत में औसत जीवन आयु 66 वर्ष है, जबकि श्रीलंका, इजराइल, हाँगकाँग सिंगापुर इत्यादि देशों में यह औसत 70 से 72 वर्ष और स्वीडन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, अमेरिका इत्यादि में 80 वर्ष से अधिक है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत एक धनी देश है किन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् सरकार नियोजन के आधार पर देश के विकास के निरन्तर प्रयत्नशील है। अब देश के प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन किया जाने लगा है, देश के उत्पादन में वृद्धि हुई है, नवीन उद्योग-धन्धों की स्थापना हुई है, यातायात के साधनों का तीव्र गति से विकास हुआ है, विद्युत उत्पादन में वृद्धि हुई है। सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार हुआ है। शिक्षा का प्रसार हुआ है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि यदि जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण रखा जा सका तो निश्चित ही भारत एक समृद्धिशाली विकसित राष्ट्र होगा।
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