अर्थशास्त्र / Economics

जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव | जनसंख्या नियन्त्रण सम्बन्धी सुझाव

जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव | जनसंख्या नियन्त्रण सम्बन्धी सुझाव

जनसंख्या की दृष्टि से भारत आज दुनिया का दूसरा प्रमुख देश है। यहां की जनसंख्या 1991 में जहां 84.63 करोड़ थी वहीं 2001 में यह जनसंख्या बढ़कर 102.70 करोड़ हो गयी। इसमें पुरुषों की संख्या 53.13 करोड़ तथा स्त्रियों की जनसंख्या 49.57 करोड़ थी। 1991 से 2001 की अवधि में भारत की जनसंख्या में 23.41 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कुल साक्षरता प्रतिशत 65.38 है, जिसमें पुरुषों का प्रतिशत 75.85 तथा स्त्रियों का प्रतिशत 54.16 है।

जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव

  1. कृषि व औद्योगिक विकास में बाधा-

जनसंख्या वृद्धि से लोगों के लिये रहने की समस्या, कृषि क्षेत्र सीमित हैं लेकिन फिर भी उप विभाजन और उपखण्डन होना जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन घटता है और कृषि का क्षेत्रफल भी घटता जा रहा है। अब भारत में प्रति व्यक्ति औसत कृषि योग्य भूमि 0.38 हेक्टेयर है जबकि 1991 में यह औसत 1.11 हेक्टेयर था। जनसंख्या वृद्धि से आय, बचत, विनियोग आदि की दर घटती है जिससे पूंजी निर्माण नहीं होता है जिससे उद्योगों का विकास नहीं हो पाता है।

2. आश्रितता में वृद्धि-

किसी देश में जनसंख्या वृद्धि होने पर उस देश के आश्रितता के भार में वृद्धि होती है, जिसके लिए खाद्यान्न आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुओं, रहने के लिए मकान, रोजगार, परिवहन व्यवस्था, स्वास्थ्य कल्याण व्यवस्था इत्यादि के लिए अत्यधिक व्यय भार में वृद्धि हो जाती है। भारत में आश्रित जनसंख्या 1961 की गणना के अनुसार 57.30 प्रतिशत थी जो बढ़कर 66.02 प्रतिशत तक हो गई हैं।

3. श्रम शक्ति में वृद्धि-

जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ कार्यशील जनसंख्या में भी बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन इस कार्यशील जनसंख्या के लिए रोजगार के साधन इतनी तीव्र गति से नहीं बढ़ते हैं जिससे देश में रोजगार की समस्या और पहले से भी ज्यादा गम्भीर हो जाती हैं। भारत में लगभग 6 करोड़ 41 लाख लोग बेरोजगार हैं जबकि 1956 में 70 लाख लोग ही बेरोजगार थे। बेरोजगारी की समस्या देश के विकास में बाधा पहुँचाती है।

4. खाद्यान्न पूर्ति की समस्या-

जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों के लिए खाद्यान्न की समस्या उत्पन्न होती है। जिससे बाहर से खाद्यान्न को आयात करना पड़ता है जिस पर काफी व्यय होता हैं। यदि यह व्यय अन्य विकास कार्यों पर लगाया जाता तो आर्थिक विकास में प्रगति होती है।

5. उत्पादन तकनीक का प्रभाव-

उत्पादन तकनीक पर भी जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव पड़ता है क्योंकि श्रम-प्रधान तकनीकी प्रयोग बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए किया जाता है तथा पूंजी प्रधान तकनीकों को त्याग दिया जाता है। श्रम-प्रधान तकनीक अपनाने से प्रति वस्तु उत्पादन लागत में वृद्धि होती हैं जिससे अधिक पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। धीरे-धीरे पूंजी में कमी होती है जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

6. आय, बचत व विनियोग की दरों में कमी

बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय कर देना पड़ता हैं तथा अन्य कर देने पड़ते हैं, जिससे पूंजी के निर्माण में कमी आती हैं। प्रति व्यक्ति आय में कमी आती हैं। बचत नहीं हो पाती है, जिससे विनियोग दर में भी कमी आती हैं। जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

7. जनोपयोगी सेवाओं के भार में वृद्धि-

जनसंख्या वृद्धि के कारण जनापयागीबीसेवाओं से सम्बन्धित समस्याएं उदाहरणार्थ- परिवहन, साधन, अस्पताल, रेल परिवहन, विद्युत, जल, मकान इत्यादि पर दबाव पड़ता हैं। इसके साथ ही साथ सरकार को बढ़ती जनसंख्या के लिए कानून व व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था भी करनी पड़ती हैं जिस पर काफी व्यय होता हैं जिसके परिणामस्वरूप सरकारी आय का अधिकांश भाग इन्हीं से सम्बन्धित कार्यों में व्यय हो जाता हैं। इस प्रकार का व्यय करने पर सरकार के पास उचित विकास कर पाने के लिए समुचित धन का अभाव हो जाता है जिससे देश का आर्थिक विकास नहीं होने पाता हैं।

जनसंख्या नियन्त्रण सम्बन्धी सुझाव

  1. परिवार कल्याण एवं नियोजन कार्यक्रमों का विस्तार-

परिवार कल्याण एवं परिवार नियोजन कार्यक्रमों को विभिन्न प्रसार माध्यमों जैसे-प्रेस, टी0वी0 सिनेमा, नुमाइशों आदि द्वारा आकर्षक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए, जिससे जनसाधारण परिवार नियोजन की महत्ता को समझ सरकें।

गाँवों एवं अन्य पिछड़े क्षेत्रों में बन्ध्याकरण के लिये सचल चिकित्सालयों की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि ये क्षेत्र भी इस सुविधा का समुचित लाभ उठा सके।

गर्भ निरोधक साधनों का उचित रूप से प्रसार व मुफ्त वितरण किया जाना चाहिए, जिससे देश की अधिकांश गरीब व अशिक्षित जनता भी इन साधनों की सुविधा का लाभ उठा सकें।

इसके अतिरिक्त परिवार नियोजन के साधनों को अपनाने वाले दम्पतियों को विशेष प्रोत्साहन देना चाहिए जिससे प्रभावित होकर अन्य लोग भी परिवार नियोजन के साधनों को अपनायें।

2. साक्षरता का प्रसार-

जनसंख्या के विश्लेषण से ज्ञात होता हैं कि वे क्षेत्र जहाँ साक्षरता कम हैं, वहाँ जनसंख्या बेतहाशा बढ़ रही है। अतः जनसंख्या नियन्त्रण हेतु ऐसे क्षेत्रों में साक्षरता का प्रसार आवश्यक हैं, जिससे कि वे परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को अपनाकर परिवार की सदस्य संख्या सीमित रखें।

3. सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि-

भारतवर्ष के ग्रामीण व अशिक्षित क्षेत्रों में बच्चों का जन्म ईश्वर द्वारा दी गयी देन समझा जाता है जो वृद्धावस्था में उन्हें सहयोग देगा। सरकार वृद्धों के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में वृद्धि करके इस प्रवृत्ति पर कुछ हद तक अंकुश लगा सकती हैं।

4. नये कर लगाना-

कुछ विद्वानों ने यह सुझाव भी दिया हैं कि उन परिवारों में जहाँ दो से अधिक बच्चे हो, नये कर लगाकर तथा उनके अभिभावकों को कुछ स्थानों के लिए अयोग्य घोषित कर जनसंख्या वृद्धि को हतात्साहित किया जा सकता हैं।

5. नियम-कानूनों का कड़ाई से पालन-

भारत में विवाह के लिये स्त्री की न्यूनतम आयु 18 तथा पुरुषों का 2। वर्ष है। परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों या अशिक्षित क्षेत्रों में अधिकांशतः नियम का पालन नही हाता है। सरकार को इस नियम का कठोरता से पालन करवाना चाएँ जिससे जनसंख्या वृद्ध में कमी हो सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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