फर्डीनण्ड वॉन रिचथोफेन

फर्डीनण्ड वॉन रिचथोफेन – जर्मन भूगोलवेदत्ता (Ferdinand Von Richthofen)

फर्डिनेण्ड वॉन रिचथोफेन – जर्मन भूगोलवेदत्ता (Ferdinand Von Richthofen)

जीवन परिचय- रिचथोपेन (1833-1905) का जन्म जर्मनी के साइलेशिया राज्य के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। अपनी अभिरुचि के अनुसार रिचथोफेन ने भूगर्भ शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही आल्पस पर्वतीय क्षेत्र की भूरचना पर शोध कार्य किया था। 1860 में रिचरथोफेन के नेतृत्व में पूर्वी एशिया (चीन) में भूमि और खनिज संसाधनों के अन्वेषण के लिए एक अन्वेषण दल भेजा गया था। चीन में विस्तृत क्षेत्र-अध्ययन करके उन्होंने पर्याप्त भौगोलिक सामग्री एकत्रित की उन्होंने 1862 में चीन से चलकर प्रशांत महासागर को पार करके संयुक्त राज्य के पश्चिमी तटीय राज्य कैलिफोर्निया की यात्रा की और वहाँ स्वर्ण भण्डारों का पता लगाया। रिचरथोफेन ने स्वर्ण खदानों के सर्वेक्षण में 6 वर्ष का समय कैलिफोर्निया में व्यतीत किया। रिचथोफेन कैलिफोर्निया बैंक की वित्तीय सहायता से खनिज संसाधनों की खोज के लिए पुनः चीन लौट गये। रिचथोफेन ने चीन में गहन भूगर्भिक सर्वेक्षण के पश्चात् कई विस्तृत कोयला क्षेत्रों की खोज किया और उनका मानचित्र भी तैयार किया। उन्होंने गोबी मरुस्थल के पूर्वी भाग में लोएस मिट्टी के विस्तार का भी अध्ययन किया 12 वर्ष के प्रवास के पश्चात् 1872 में रिचरथोफेन स्वदेश जर्मनी लौट आये और चीन के संसाधन सम्बंधी अपनी रिपोर्ट जर्मन व्यापार मण्डल को सौंप दी। वे चीन में भू-विज्ञानी के रूप में गये थे और एक भूगोलवेत्ता बनकर लौटे थे।

1875 में रिचरथोफेन को बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त किया गया। दो वर्ष पश्चात् 1877 में उनकी नियुक्ति बोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं संस्थापक अध्यक्ष पद पर हो गयी। 1883 में वे लीपजिग विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस बीच रिचथोफेन के शोध लेख प्रकाशित होते रहे। 1886 में इनको बर्लिन विश्वविद्यालय में भौतिक भूगोल का प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया जहाँ वे मृत्यु पर्यंत (1905) लगभग 20 वर्षों तक सेवारत रहे। वे कई वर्षों तक ‘बर्लिन भौगोलिक समिति’ (Berlin Geographical Society) के अध्यक्ष रहे।

प्रमुख योगदान

रिचथोफेन का प्रमुख योगदान भौतिक भूगोल विशेषरूप से भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र में है। भौगोलिक चिन्तन और प्रादेशिक भूगोल के क्षेत्र,में भी रिचरथोफेन का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वे भौमिकी (Geology) और भूगोल को एक-दूसरे का अभिन्न अंग मानते थे। उनकी अध्ययन पद्धति तत्वों के प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित थी। रिचथोफेन की प्रमुख रचनाएं निम्नांकित हैं-

(1) चीन का भूगोल- इसमें चीन की यात्राओं पर आधारित अध्ययनों का वर्णन है जिसका प्रकाशन पाँच खण्डों में 1877 से 1912 तक हुआ था। प्रथम तीन खण्डों में क्रमशः मध्य एशिया, उत्तरी चीन और दक्षिणी चीन के भौतिक स्वरूप और मानव क्रिया-कलापों पर उनके प्रभाव की व्याख्या की गयी है। चौथे और पाँचवे खण्ड का प्रकाशन रिचरथोफेन की मृत्यु (1905) के पश्चात् हुआ जिसमें चीन की यात्रा पर आधारित भौगोलिक वर्णन हैं।

(2) भूगोल की समस्याएं एवं विधियाँ- विधितंत्र से सम्बंधित यह पुस्तक 1883 में प्रकाशित हुई थी।

(3) शोध यात्रियों की निर्देशिका नामक पुस्तक का प्रकाशन 1886 में हुआ था। यह रिचरथोफेन द्वारा चीन में किये गये सर्वेक्षण और अध्ययन पर आधारित है।

(4) चीन की मानचित्रावली 1902 में प्रकाशित हुई थी।

रिचथोफेन की मौलिक विचारधारा भूगोल में क्षेत्रीय भिन्नता से सम्बंधित थी। उन्होंने भूगोल को क्षेत्रवर्णनी विज्ञान (Chorological science) बताया था। उनके अनुसार भूगोल में भूतल के क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन होता है। भूगोल को क्षेत्रीय विज्ञान (Spatial science) का स्वरूप प्रदान करने में रिचरथोफेन का महत्वपूर्ण योगदान है।

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