पर्यावरण संरक्षण में प्राथमिक विद्यालयों की भूमिका

पर्यावरण संरक्षण में प्राथमिक विद्यालयों की भूमिका | Role of Primary Schools in Environmental Protection in Hindi

पर्यावरण संरक्षण में प्राथमिक विद्यालयों की भूमिका | Role of Primary Schools in Environmental Protection in Hindi

प्राकृतिक सम्पदाओं के संरक्षण के लिए विद्यालय की भूमिका-

प्राकृतिक सम्पदाओं के विनाश और पर्यावरण असन्तुलन के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। इनके संरक्षण की ओर ध्यान देना है।

  1. जल-सरक्षण।
  2. वायु-सरक्षण।
  3. मृदा-सरक्षण।
  4. वन-संरक्षण।
  5. खनिज सम्पदा सरक्षण।

जल संसाधनों का संरक्षण करने में विद्यालय की भूमिका-

भारत की नदियों में 164500 करोड़ घन मीटर जल है जिरसेमं 50 या 55 प्रतिशत जल का उपयोग हो पाता है। जल का उपयोग कृषि, उद्योग, यातायात, ऊर्जा तथा घरेलू कार्यों में किया जाता है। यदि जल  की कमी समुचित उपयोग किया जाय तो वह कभी कम नहीं होगा। परन्तु अनेक भागों में जल है। जो जल उपलब्ध है वह प्रदूषित है। अतः आवश्यकता है जल का उचित उपयोग करने की और दूसरे उसे स्वच्छ रखने की। अतः शिक्षक यह बतावें।

जल-संरक्षण के लिये आवश्यक है कि वर्षा के जल का संग्रहण झीलों, तालाबों में किया जाय। सिंचाई के लिये खेतों तक ले जाने के लिए पक्की नालियाँ बनाई जायें । नहरो के पक्का किया जाय। पानी को दुरुपयोग से बचाया जाय ।

जल-प्रदूषण की समस्या विकरास है। नदी, तालाब और कुंओं का पानी प्रदूषित हो रहा है। नदियों के जल में सीवेज पाइप, गन्दे नाले तथा नालियाँ गिरती हैं, उद्योगों का निकला गन्दा जहरीला पानी नदियों में छोड़ा जाता है। मरे जीव-जन्तु नदियों में फेंके जाते हैं। कूड़ा-करकट नदियों में फेंका जाता है। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो गया है। यह दूषित जल न केवल मानव के पीने के अयोग्य है वरन् उससे जल-जीवों का भी विनाश हो रहा है। प्रदूृषित जल पीने से लोगों को पीलिया, अतिसार, पेचिस, हैजा, टाइफाइड आदि रोग हो जाते हैं। जहाँ तक हो सके शुद्ध जल पीये और जल शुद्ध रखे।

अतः जल-प्रदूषण को रोकना, शुद्धीकरण करना और उसे पुनः उपयोग में लाना आवश्यक है। जल को दूषित होने से बचाने के लिये तीन प्रकार के उपाय काम में लाये जायें।

(1) नगरों का कूड़ा-करकट, गन्दे नाले, नालियाँ तथा सीवेज पाइप आबादी से दूर बड़े होजो या गड्ढों में डालें। कूड़ा करकट दूर फेके तथा उसे जला दे।

(2) गड्ढे में जो जल शेष बचे उसे पुनः फिल्टर करके शुद्ध किया जाय और उसे सिंचाई के काम में लाया जाय। छात्रों के अभिभावकों की सभा करके ये तरीके शिक्षक बतावें।

(3) शेष बचे हुए तलछट को रासायनिक विधि द्वारा सड़ाकर खाद के काम में लिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त नदी के जल में गन्दे कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना तथा मृत जीव जन्तु फेकने से मना किया जाय। नदी के जल को साफ रखने के लिये जन-साधारण में चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। स्कूल के शिक्षक छात्रों के साथ जनता के बीच जाकर ये बात बतावे। छात्रों से स्लोगन बनवाकर स्थान-स्थान पर लगवाय।।

वायु की अशुद्धता दूर करने के लिए विद्यालय की भूमिका- वायु जीवन का आधार प्राणद्यायिनी शक्ति है। अत: वाय की शद्धता पर हमारा स्वास्थ्य निर्भर है। वायु में कुछ प्राकृतिक अशुद्धतायें होती हैं। वायु प्रदुषण के लिये हम सभी जिम्मेदार है। ज्वालामुखी उद्गार से निकली राख और गैसें तथा आंधी तृफान से धूल कण वायु में मिल जाते हैं, इससे वायु प्रदूषित होती है। यह प्राकृतिक प्रदूषण हुआ। मनुष्य द्वारा वायु का प्रदूषण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। स्वचालित मशीनों और मोटर गाड़ियों में पेट्रोल डीजल जलता है। इससे सल्फर तथा नाइट्रोजन आक्साइड उत्पन्न होती है, लोहा गलाने की धवन भट्टियों में कोयला जलाया जाता है। जिससे वे धुंआ और कार्बन के कण फेंकती रहती हैं। नाभिकीय विकिरण से घातक विषैली गैसें वायुमण्डल में मिलती रहती है। इससे वायु-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है।

उपाय-

  1. औद्योगिक कल-कारखाने आबादी से दूर किये जायें।
  2. कल-कारखानों में ऊँची चिमनियाँ लगाई जायें ।
  3. चिमनियों में फिल्टर लगाया जाये।
  4. स्वचालित वाहनों तथा मशीनों में अच्छी किस्म पेट्रोल डीजल जलाया जाय।
  5. मशीनों के कल-पुजों की समय-समय पर मरम्मत हो उन्हें परिवर्तित किया जाय।
  6. शहरों और औद्योगिक बस्तियों के आस-पास वृक्षारोपण किया जाये। विद्यालय के आस-पास पेड़ लगावें।
  7. स्वचालित वाहनों में लगे धुआं फेकने वाले पाइपों में फिल्टर लगाया जाय जिससे वायु में हानिकारक तत्त्वों का विकीरण न हो। ये बातें जन जागरण में भ्रमण द्वारा शिक्षक और छात्र बतावें।
  8. छात्रों में पर्यावरण संरक्षण की चेतना जागृत की जाये।

मिट्टी या मृदा-संरक्षण-

भूमि की ऊपरी उपजाऊ परत मृदा (मिट्टी) कही जाती है। मृदा में अनेकों खनिज तत्त्व मिश्रित हैं। मृदा की गणना आजकल प्राकृतिक संसाधनों में की जाती है। मृदा विभिन्न प्रकार के प्राणियों का जीवन-आधार है।

मृदा प्रदृषण की समस्याओं में सर्वप्रमुख मृदाक्षरण की समस्या है। मृदा-क्षरण कई कारणों से होता है जैसे भूमि का ढाल, वर्षा की तीव्रता वायु वेग, हिमानी प्रवाह वनों का उन्मूलन, पशु चरण तथा कृषि में रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने से, भूमि-क्षरण होता है तथा मिट्टी की उत्पादन क्षमता घटती जाती है। अतः मृदा अपरदन को रोकने के लिये निम्नांकित उपाय करना चाहिए।

(क) अभिभावकों को प्रशिक्षित करें।

(ख) अभिभावकों को मिट्टी के बारे में बातयें

(ग) फसल चक्रीकरण विधि अपनाया जाय।

(घ) खादों का प्रयोग जो प्रदूषण न फैलावें।

(ङ) रक्षक मेखला- इसके अन्तर्गत खेतों के किनारे पवन दिशा में पंक्ति बद्ध पेड़-पौधे लगाये जाते हैं। इससे वायु-वेग का प्रभाव मिट्टी पर कम होता है।

(च) वृक्षों की पत्तियों, झाड़ियों तथा घासों को भूमि पर डालना, जिससे वर्षा की बौछार का प्रभाव मिट्टी में सीधे न हो। ढलान वाले क्षेत्रों में घासें तथा पेड़ उगाना।

(छ) सीढ़ीदार खेत बनाना।

(ज) बहते हुए जल को रोकना।

वन-संरक्षण करने में विद्यालय की भूमिका –

ये बातें समझावें- वनों का मानव जीवन में महत्त्व रहा है। वेदों की रचना वनो में की गई थी। वेदों की आरण्यक कहा जाता है। वनों में गाये गये गीत आदि मानव अपने भोजन, वस्त्र आवास हेतु वनों पर निर्भर था। सभ्यता के विकास के साथ मानव और वनी के सम्बन्धो में परिवर्तन आते गये वनों से हमें अमूल्य विविध वस्तुऐं प्राप्त होती हैं। वनों पर हमारे कई उद्योग निर्भर हैं। वन अप्रत्यक्ष रूप से मानव की सहायता करते हैं। वन कार्बन-डाई आक्साइड तथा सल्फर डाई-आक्साइड इत्यादि हानिकारक गैसों का वायुमण्डल से अवशषण कर पर्यावरण को स्वस्थ बनाये रखते हैं।

वनों का विनाश प्रत्यक्ष तथा परक्ष रूप से हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है। भूमि -क्षरण, भूस्खलन, बाढ़े, सूखा, वर्षा की कमी पर्यावरण प्रदूषण वन उन्मूलन के परिणाम हैं। हिमालय क्षेत्र में वनों की कटाई से भूस्खलन की संख्या बढ़ती हैं। वनोन्मूलन से होने वाली क्षति अपरमित है।

संरक्षण उपाय-

जहाँ वृक्ष काटे गये हैं वहाँ वृक्षारोपण किया जाय। इससे वन सम्पदा बढ़ेगी और मिट्टी का कटाव रुकेगा भूमिगत जल की आपूर्ति में वृद्धि होगी। इसके लिए विद्यालय के शिक्षकों का कार्य है कि वे-

  1. हर छात्र को उसके जन्म दिन पर उसके नाम से स्कूल या उसके घर पर पेड़ लगवायें।
  2. छात्र पौधों को न उखाड़े और न टहनियाँ तोड़ें।
  3. स्कूल के वृक्षों की देख-रेख करें।
  4. विद्यालय में हराभरा रखें। उससे समाज के लोग भी प्रेरणा लेंगे।

इस सन्दर्भ में अब यह विचार कि हर खाली स्थान पर वृहद् पौधारोपण किया जाये, कि हर स्तर पर पुनः नये वृक्षों के लिए पौधारोपण होने लगा है। स्कूल, चिकित्सालयों, बस- स्टैण्डों, सड़कों, गलियों मकान के अन्दर और बाहर व्यक्तिगत स्तर पर पौधारोपण हो रहा है। वन विभाग स्वयं अथवा स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से पौधारोपण में लगा हैं। हेलीकॉप्टर द्वारा बीज छिड़क कर पहाड़ियों और दुर्जन स्थानों पर वृक्ष उगाने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा समझा जाता है कि 20 (बीस) वर्षों में हम कम से कम उस स्तर तक तो पहुँच सकेंगे, जिससे हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता शुद्ध वायु की पूर्ति हो सकेगी।

  1. केवल परिपक्व वृक्ष ही काटे जायें। विकासशील वृक्षों को बढ़ने का अवसर मिलेगा।
  2. वन क्षेत्र का विस्तार नये वन लगाकर किया जाये।
  3. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को सफल बनाया जाये।
  4. वनों को सुरक्षित रखने के लिए जन-जागरण अभियान चलाया जाये।
  5. पादप रोगों से उनकी सुरक्षा की जाये।
  6. शीघ्र बढ़ने वाले और आर्थिक दृष्टि से उपयोगी जातियों के वृक्ष लगाये जायें ।

खनिज सम्पदा-संरक्षण में विद्यालय की भूमिका-

आधुनिक औद्योगिक सभ्यता में मनुष्य विभिन्न खनिज्जों का उत्खनन तीव्रता से कर रहा है। परन्तु वह यह भूल रहा है। कि खनजि पदार्थों का निर्माण भूगर्भ में अनेक आन्तरिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप करोड़ों वर्षों में होता है। मानव द्वारा जिस गति से निरन्तर खनिजों का शोषण किया जा रहा है उसके कारण खनिज भण्डार धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगा। भूगर्भ में प्रायः सभी खनिज एक सीमित मात्रा में हैं, यदि इनका समापन हो गया तो मानव कितना भी प्रयास करे इनकी क्षतिपूति नहीं कर सकता। प्रकृति भी सम्भवतः किसी खनिज विशेष को उसी स्थान पर पुनः निर्मित नहीं कर सकती।

खनिज उत्खनन से पर्यावरण असन्तुलित होता है, खदान श्रमिकों का स्वास्थ खराब होता है, भूमि की उत्पादन क्षमता घटती है। अतः खनिज सम्पदा का संरक्षण उसी प्रकार आवश्यक है जैसे अन्य प्राकृतिक संसाधनों का।

  1. उपलब्ध खनिजों का उपयोग आवश्यकतानुसार विवेक पूर्ण ढंग से करना जिससे उन्हें बर्बादी से बचायता जा सके।
  2. कोयला, पेट्रोल आदि खनिज ईंधनों के स्थानापन्न ईंधन्नों की खोज करना जैसे विद्युत, सौर उर्जा, नाभिकीय, ऊर्जा, गैसें।
  3. कम मात्रा में उपलब्ध खनिजों के स्थान पर विकल्पों की खोज की जाय।
  4. खानजो के प्रयोग के बाद स्क्रैप को व्यर्थ न फेंक कर उनका बार-बार उपयाग किया जाय।
  5. नये खनिज क्षेत्रों और नये खनिजों की खोज पर निरन्तर कार्य होना चाहिए। यद्यपि इस क्षेत्र को विद्यालय की परिधि से बाहर समझा जाता है। फिर भी इन बातों की अवधारणा सब को होनी चाहिए।
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