राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का आलोचनात्मक मूल्यांकन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 | राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का आलोचनात्मक मूल्यांकन
राष्ट्रीय खांद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (National Food Security Act, 2013) (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 )-
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 22 दिसम्बर 2011 को लोक सभा में पेश किया गया। इस विधेयक में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन 75 प्रतिशत ग्रामीण जनता को तथा 50 प्रतिशत शहरी जनता को संस्ती (subsidized) कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की तथा स्त्रियों एवं बच्चों को पोषण सहायता (nutritional support) प्रदान करने की व्यवस्था है। विधेयक को पेश करने के बाद उसे एक विशिष्ट कमेटी को सौंपा गया ताकि उसकी विभिन्न धाराओं पर पुनः विचार किया जा सके। कई सुझावों के प्रकाश में इस विधेयक में संशोधन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2013 में पेश किया गया।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पर 12 सितंबर, 2015 को हस्ताक्षर किए गए और यह कानून बन गया। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
- राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 75 प्रतिशत ग्रामीण तथा 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को (जिनकी कुल संख्या लगभग 80 करोड़ है तथा जो कुल जनसंख्या का 67 प्रतिशत या दो- तिहाई है) TPDS के माध्यम से सस्ती (subsidized) कीमतों पर खाद्यान्न प्राप्त करने का कानूनी अधिकार देता है।
- लाभभोगी को एक मास में 5 किलोग्राम चावल, गेहूँ या मोटे अनाज की आपूर्ति क्रमशः 3 रुपए, 2 रुपए तथा 1 रुपया प्रति किलोग्राम की दर पर की जाएगी। लाभभोगियों का चयन राज्य सरकारों द्वारा, केन्द्र सरकारों द्वारा, केन्द्र सरकार के निर्धारित मानदंडों के आधार पर किया जाएगा (इस प्रकार परिवारों के स्थान पर व्यक्ति अनुसार खाद्यान्नों का हक स्थापित किया जाएगा)।
- खाद्यान्नों की कीमतें आरम्भ में तीन वरषों तक लागू रहेंगी और उसके पश्चात् केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर उनका निर्धारण इस प्रकार किया जाएगा कि वे न्यूनतम समर्थन कीमतों से अधिक न हों।
- यद्यपि अधिनियम में खाद्यान्न की मात्रा को पूर्व विधेयक में निर्धारित मात्रा 7 किलो से घटाकर 5 किलो कर दिया गया है तथापि अंत्योदय अन्न योजना के अधीन 2.43 करोड़ निर्धनतम परिवारों को दिए जाने वाले अनाज में कोई कमी नहीं की गई है (अर्थात् इन परिवारों को 35 किलोग्राम प्रति परिवार के हिसाब से खाद्यान्न मिलते रहेंगे)।
- अधिनियम के अधीन पात्र परिवारों की शिनाख्त (या निर्धारण) राज्य सरकारें करेंगी और यह काम 365 दिन के भीतर करना अनिवार्य होगा।
- छः मास से 6 वर्ष के बच्चों के लिए अधिनियम में आयु-अनुसार समुचित भोजन (age-appropriate meal) की गारण्टी दी गई है, जिसे स्थानीय आंगनबाड़ी के माध्यम से मुफ्त प्रदान किया जाएगा। 6-14 आयु वर्ग के बच्चों को प्रतिदिन (स्कूल में छुट्टी के दिनों के अलावा) एक बार मुफ्त दोपहर का भोजन दिया जाएगा। सरकारी, सरकारी-सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों द्वारा चलाए जाने वाले सभी स्कूलों के कक्षा VIII तक के बच्चों के लिए यह योजना लागू होगी। 6 मास से कम आयु वाले बच्चों के लिए ‘पूरी तरह से स्तनपान पर निर्भरता को प्रोत्साहन किया जाएगा।
- प्रत्येक गर्भवती महिला तथा स्तनपान कराने वाली माता को स्थानीय आंगनबाड़ी से मुफ्त भोजन दिया जाएगा (गर्भ के दौरान तथा बच्चा पैदा होने से 6 मास तक) तथा किश्तों में 6,000 रुपए का मातृत्व लाभ (maternity benefit) दिया जाएगा।
- विधेयक में राज्य खाद्य कमीशन (State Food Commission) स्थापित करने की बात की गई है। प्रत्येक कमीशन में एक अध्यक्ष, पांच अन्य सदस्य तथा एक सदस्य सचिव (member secretary) होगा। इनमें से कम-से-कम दो महिलाएं तथा एक सदस्य अनुसूचित जाति या जनजाति का होना अनिवार्य होगा। राज्य कमीशन का मुख्य काम विधेयक के कार्यान्वयन पर नजर रखना, राज्य सरकारों तथा उनकी संस्थानों को सलाह देना तथा विधेयक के उल्लंघनों की जाँच करना होगा।
- अधिनियम के अधीन जिन लोगों को खाद्यान्न प्राप्त करने का हक दिया गया उन्हें, खाद्यान्न न मिलने की स्थिति में, संबंधित राज्य सरकार से खाद्य सुरक्षा भत्ता (food security allowance) प्राप्त करने का हक है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का आलोचनात्मक मूल्यांकन (A Critical Appraisal of NFSA)-
-
लागू करने की लागत (Cost of Implementation)-
खाद्य मंत्री द्वारा दिए गए विभिन्न साक्षात्कारों में तथा संसद में दिए गए बयान में यह अनुमान लगाया गया है कि NFSA को लागू करने के परिणामस्वरूप वार्षिक खाद्य सहायता 1.30 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच जाएगी। NFSA के समर्थकों के अनुसार, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कि 2012-13 में खाद्य सहायता 85,000 करीड़ रुपये तक पहुँच चुकी थी, बाकी के 45, 000 करोड़ रुपये की व्यवस्था कर पाना बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए। परन्तु कुछ आलोचकों के अनुसार 45,000* करोड़ रुपए से कहीं अधिक राशि का प्रबन्ध करना होगा।
उदाहरण के लिए राज्य स्तर पर खाद्य कमीशन स्थापित करने पर; राज्यों के बीच खाद्यान्नों की आवाजाही पर; लाभभोगियों के चयन की प्रक्रिया पर; कार्यान्वयन की देख-रेख की प्रशासनिक व्यवस्था पर; गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को नकद सहायता देने पर: खाद्यान्न आपूर्ति न प्राप्त होने वाली लाभभागियां को नकद मुआवजा देने पर; तथा अन्य कई अन्य प्रकार के खर्चा के लिए भारी राशि का इंतजाम करना होगा।
अशोक गुलाटी तथा उनके सहयोगियां द्वारा कृषि लागत व कीमत कमीशन (Commission for Agricultural Costs and Prices) के लिए तैयार किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि तीन वर्षा की अवधि (2013-14 से 2015-16) में खाद्य सहायता की लागत 6.8 लाख कराड़ रुपए तक पहुँच सकती है।
-
रिसाव तथा चोरी का डर (The risk of Leakage)-
इस अध्याय में हम PDS तथा TPDS में भारी रिसाव व चोरी की बात कर चुके हैं। यह निश्चय ही एक चिन्ता का विषय है। परन्तु हाल में किए गए कुछ अध्ययनों से उम्मीद बंधती है कि स्थिति में कुछ सुधार हो रहा है। NSSO के आंकड़ों के अनुसार, PDS से रिसाव जो 2004-05 में 54 प्रतिशत था, 2007 -08 में कम होकर 44 प्रतिशत तथा 2011-12 में 35 प्रतिशत रह गया यद्यपि 35 प्रतिशत रिसाव भी अत्यधिक है तथापि जिन राज्यों में PDS सुधार किए जा रहे हैं (जैसे घर पर ही अनाज की आपूर्ति, कंप्यूटरीकरण, प्रभावी शिकायत निदान व्यवस्था इत्यादि) वहाँ रिसाव में कमी दिख रही है। इस बात से भविष्य के लिए आशा पैदा होती है।
-
लाभभोगियों की शिनाख्त (Identification of beneficiaries) –
NFSA को लागू करने में सबसे बड़ी कठिनाई लाभभोगियों की शिनाख्त करना है- अर्थात् किन व्यक्तियों को लाभभोगियों की श्रेणी में शामिल किया जाए? यद्यपि अधिनियम में 67 प्रतिशत जनसंख्या को लाभभोगियों की श्रेणी में शामिल करने की बात की गई है तथापि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इनका चयन कैसे हो। इस संदर्भ में दीपा सिन्हा का यह सुझाव सही है कि लाभभोगियों में किन लोगों को शामिल किया जाए, यह जानने के स्थान पर इस बात का निर्णय लिया जाना चाहिए कि किन लोगों को लाभभोगियों में शामिल नहीं किया जाना है। इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपनाई गई विधि जैसी कोई विधि अपनाई जा सकती है।
छत्तीगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम में लाभभोगियों की श्रेणी में निम्न लोगों को शामिल नहीं किया गया है-
(i) जो व्यक्ति आय कर देते हैं;
(ii) शहरी क्षेत्र में रहने वाले वे लोग जिनमें पास 1,000 वर्ग फीट से अधिक क्षेत्र का घर है;
(iii) जो संपत्तिकर का भुगतान करते हैं;
(iv) ऐसे परिवार जिनके पास 4 हेक्टयर से अधिक सिंचित भूमि या 8 हेक्टयर से अधिक असिंचित भूमि है।
इस प्रकार की कसौटियां अन्य सरकारों द्वारा भी बनाई जा सकती हैं। जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि किन लोगों को NFSA में शामिल नहीं किया जाना है तो स्वतः उन लोगों की जानकारी मिल जाएगी, जिन्हें NFSA में शामिल करना है।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व | भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ
- कृषि वित्त प्रणाली में सुधार के सुझाव | Suggestions for improvement in agricultural finance system in Hindi
- भारतीय कृषि की उत्पादकता की प्रवृत्ति | भारत में कृषि उत्पादकता न्यून होने के कारण
- भारतीय कृषि में मशीनीकरण से लाभ | भारतीय कृषि में मशीनीकरण से हानि
- कृषि वित्त का अर्थ | भारत में कृषि वित्त के स्रोत | Meaning of agricultural finance in Hindi | Sources of agricultural finance in India in Hindi
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com