अर्थशास्त्र / Economics

अल्पाधिकार में कीमत जड़ता | चैम्बरलिन का अल्पाधिकार मॉडल | गठबन्धनहीन अल्पाधिकार

अल्पाधिकार में कीमत जड़ता | चैम्बरलिन का अल्पाधिकार मॉडल | गठबन्धनहीन अल्पाधिकार

अल्पाधिकार में कीमत जड़ता

गठबंधनहीन अल्पाधिकार में फर्मे स्वतन्त्रत रूप से गुप्त या स्पष्ट गठबन्धन में नहीं होती फिर भी स्वतन्त्र रूप से वस्तु की एक कीमत निर्धारित हो सकती है। परन्तु यह तभी हो सकता है जब सब फर्मों के मध्य बाजार का विभाजन बराबर है तथा सभी फर्मों के लागत वक्र समरूप हैं। परन्तु यह भी सम्भव हो सकता है कि फर्म का माँग वक्र निश्चित न हो। इसके फलस्वरूप अनिश्चितता का वातावरण उत्पन्न होगा और उत्पादन मात्रा तथा कीमत अनिश्चित होंगी। इस प्रकार के उदाहरण में बहुत सी सम्भावनाएँ हैं। सबसे पहले, विभिन्न प्रतिद्वन्द्वी फर्मों में लगातार मूल्य वृद्धि होने के कारण मूल्यों में अधिक अस्थिरता आ सकती है। दूसरे किसी अनिश्चित स्तर पर मूल्य स्थिर हो सकता है। तीसरे, उचित तथा संतोषजनक स्तर पर पहुँचने के पश्चात् मूल्यों में परिवर्तन करना अस्वीकार किया जा सकता है। यह नीति विशेष रूप से अपनाई जाती है क्योंकि इसमें अनिश्चितता न्यूनतम होती है। अल्पाधिकारी फर्म इस मूल्य को स्वीकार कर सकती है और इस कीमत पर प्राप्त लाभ तथा बिक्री की मात्रा से सन्तुष्ट हो सकती है। इस प्रकार की कीमत जो लाभ की दृष्टि से फर्म के लिए संतोषजनक होती है, माँग तथा लागत में कम अथवा अधिक परिवर्तनों के होते हुए भी बहुत समय तक स्थिर रखी जा सकती है। इस प्रकार की परिस्थिति व कीमत स्थिरता की संज्ञा दी जाती है।

दृढ़ता कीमत

(Price Rigidity)

गठबन्धनहीन अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता कीमत-स्थिरता है। कीमत स्थिरता का तात्पर्य उस परिस्थिति से होता है जिसमें कीमत एक स्तर पर बनी रहती है। भले ही माँग तथा पूर्ति को निर्धारित करने वाली परिस्थितियों में पर्याप्त परिवर्तन हो गया हो। कीमत स्थिरता अल्पाधिकार बाजार में अधिकतर पायी जाती है। इसके निम्नांकित कारण हैं-

(1) प्रथम समझौते के अभाव में अल्पाधिकार उद्योग में अनिश्चितता विद्यमान होती है प्रत्येक अल्पाधिकारी फर्म के समक्ष एक अनिश्चित पौंग वक्र होता है और इसलिए उसकी कीमत तथा उत्पादन मात्रा भी अनिश्चित होती है अनिश्चितताओं के कारण अल्पाधिकारी फर्म के सामने एक उपर्युक्त कीमत का पता लगाने की समस्या होती है और इस प्रकार कीमत ज्ञात हो जाने के पश्चात् फर्म को इस कीमत में परिवर्तन अस्वीकार करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में अल्पाधिकारी फर्म प्रचलित कीमत और उत्पादन नीतियों का तब तक पालन करती रहती है जब तक इसे लाभ प्राप्त होता रहता है। यह अपने प्रतिद्वन्दियों की प्रतिक्रियाओं की सम्भावना के कारण अपनी कीमत नीति में बार-बार परिवर्तन करके नये प्रयोग करना पसन्द नहीं करती है। अल्पाधिकारी फर्मों की इस प्रवृत्ति के कारण अल्पाधिकार में कीमत स्थिरता सम्भव होती है।

(2) गिरती हुई माँग की दशा में अल्पाधिकार फर्म उसी कीमत पर अपने बिक्री उपायों को अधिक प्रभावशाली बनाकर बिक्री को स्थिर रख सकती है।

(3) अल्पाधिकारी फर्मे कुछ परिस्थितियों में कीमतों में परविर्तन करना पसन्द नहीं कर सकती हैं। यह सम्भव है कि उन्होंने वस्तु विज्ञापन द्वारा प्रचलित कीमत पर ग्राहकों को उस वस्तु को खरीदने के लिए तैयार करने पर पर्याप्त धनराशि खर्च की हो। ऐसी दशा में स्वभावत: वे कीमत में परिवर्तन के द्वारा ग्राहकों की प्रवृत्ति को नहीं बिगाड़ना चाहेंगी और इसलिए कीमत परिवर्तन के सम्बन्ध में विचार नहीं करेगी।

(4) यह सम्भव है कि प्रचलित कीमत प्रतिद्वन्द्वियों के मध्य अधिक समझौतों, परामर्श वाद- विवाद तथा तिकड़म के पश्चात् निर्धारित की गई हो। इस दशा में कोई भी अल्पाधिकारी फर्म अपनी कीमत में परिवर्तन करके कठिन समस्याओं का पुनः सामना करना पसन्द नहीं करेगी।

(5) यह सम्भव है कि संघ के अन्तर्गत अल्पाधिकार कीमत निम्न स्तर पर इसलिए निर्धारित की गई हो कि नये प्रतिद्वन्द्वी उद्योग में प्रवेश न कर सकें। इस प्रकार की कीमत दीर्घकाल में अधिक लाभ प्राप्त करने में सहायक होती है और इसलिए जब माँग तथा पूर्ति में अधिक परिवर्तन नहीं होगा, अल्पाधिकारी फर्म अपनी कीमत में परिवर्तन करना पसन्द नहीं करेगी।

चैम्बरलिन का अल्पाधिकार मॉडल

(Chamberlin’s oligopoly Model)

प्रोफेसर चैम्बरलिन ने कोर्नो के समाधान में संशोधन करके यह व्यक्त किया है कि द्वयाधिकार तथा अल्पाधिकार में कीमत-स्थिरता सम्भव है। चैम्बरलिन की यह मान्यता है कि प्रतिद्वन्द्वी अत्यधिक व्यवहार-कुशल होते हैं तथा वे वास्तविकता को समझकर कार्य करते हैं। चैम्बरलिन के विश्लेषण को चित्र द्वारा समझाया जा सकता है।

चित्र में DD1 सोते के पानी का माँग वक्र है तथा बिन्दुकित DD2 रेखीय माँग-वक्र के तदनुरूप सीमान्त आय वक्र है। आरम्भ में A बाजार में प्रवेश करता है तथा 0Q मात्रा का उत्पादन करता है। वह इस मात्रा को OP (=OR) कीमत पर बेचकर OQPR अधिकतम लाभ राशि प्राप्त करता है। अब B बाजार में प्रवेश करता है तथा यह मानता है कि माँग वक्र PD1 है। इसलिए वह OQ1 मात्रा का उत्पादन करके इसे P1Q1 कीमत पर बेचता है। परन्तु वस्तु समरूप होने के कारण कीमत Q1P1 (=OR1 ) होगी तथा दोनों फर्मों को कुल OQ1P1R1 लाभ राशि प्राप्त होगी। B के प्रवेश करने के पश्चात् A को यह ज्ञात होता है कि दोनों परस्पर आश्रित हैं तथा दोनों के सर्वोत्तम हितों में यही है कि दोनों कुल एकाधिकार लाभ राशि OOPR को समान मात्रा में आपस में विभाजित कर लें। इसलिए A अपनी उत्पादन मात्रा को 0Q से घटा कर OQ2 कर देता है | B अपनी उत्पादन मात्रा को OQ1 ही रखता है। इस प्रकार दोनों की सम्मिलित उत्पादन मात्रा OQ2+OQ1 (=Q2Q) एकाधिकार उत्पादन मात्रा OQ के बराबर होगी। इस उत्पादन मात्रा को दोनों एकाधिकार कीमत QP (FOR) पर बेचकर कुल एकाधिकार लाभ राशि OQPR को प्राप्त करेंगे। कुल लाभ को A तथा B आपस में बराबर-बराबर मात्रा में बाँट लेंगे। A को OQ2MR तथा B को QQPM लाभ राशि प्राप्त होगी। इस प्रकार कीमत तथा कुल उत्पादन मात्रा स्थिर हो जाएगी। जबकि कोनों के विश्लेषण में अस्थिरता निहित थी चैम्बरलिन के विश्लेषण में स्थिरता प्राप्त हो जाती है। चैम्बरलिन का विश्लेषण अधिक वास्तविक है तथा द्वयाधिकार व अल्पाधिकार का स्थितियों का वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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