अर्थशास्त्र / Economics

खाद्य सुरक्षा का अर्थ | खाद्य सुरक्षा की समस्या | Meaning of food security in Hindi | Food safety problem in Hindi

खाद्य सुरक्षा का अर्थ | खाद्य सुरक्षा की समस्या | Meaning of food security in Hindi | Food safety problem in Hindi

खाद्य सुरक्षा का अर्थ

“खाद्य सुरक्षा का अर्थ है सभी लोगों को सभी समयों पर पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न ( भोजन) उपलब्ध कराना ताकि वे सक्रिय व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें।” जैसा कि पी.वी. श्रीनिवासन का कथन है कि इसके लिए यह आवश्यक है कि न केवल समग्र स्तर पर (aggregate level) पर खाद्यान्नों (भोजन) की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो बल्कि व्यक्तियों / परिवारों के पास उपयुक्त क्रय शक्ति भी हो ताकि वे आवश्यकता-अनुसार खाद्यान्न (भोजन) खरीद सकें। जहाँ तक ‘पर्याप्त मात्रा का संबंध है, इसके दो पहलू है- (1) मात्रात्मक पहलू (इस रूप में कि अर्थव्यवस्था में खाद्य-उपलब्धि इतनी हो कि मांग की पूर्ति कर सके); तथा (2) गुणात्मक पहलू (इस रूप में जनसंख्या की पोषण आवश्यकताएं (nutritional requirements) पूरी तरह की जा सकें। जहाँ तक उपयुक्त क्रय शाक्ति का प्रश्न है, इसके लिए आवश्यक है कि रोजगार सृजन के कार्यक्रम शुरू किए जाएं ताकि लोगों की आय एवं क्रय शक्ति में वृद्धि की जा सके। खाद्य सुरक्षा के मात्रात्मक एवं गुणात्मक पहलुओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने तीन खाद्य-आधारित सुरक्षा (od-based safety nets) अपनाए हैं- (1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली,  (2) समेकित बाल विकास सेवाएं (integrated child development service जिसे ICDS कहा जाता है), तथा (3) दोपहर भोजन कार्यक्रम (mid-day meals program)। जहाँ तक लोगों की क्रय-शक्ति में वृद्धि का प्रश्न है, समय-समय पर रोजगार कार्यक्रम शुरू किए जाते रहे हैं।

खाद्य सुरक्षा की समस्या का स्वरूप (Nature of the Problem)

मात्रात्मक पहलू (The Quantitative Aspect)-

स्वतंत्रता के बाद के वर्षा खाद्यान्नों की अत्यधिक कमी के परिणामस्वरूप सरकार की खाद्य नीति का उद्देश्य खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता (self-sufficiency) प्राप्त करना था।

इससे अर्थव्यवस्था अब खाद्यान्नों की समग्र कमी की समस्या का सामना कर पान में सफल हो सकी है तथा सूखे जैसे विपत्तियों का सामना करने के लिए सरकार के पास खाद्यान्न के पर्याप्त भंडार हैं। वस्तुतः, जैसाकि आर. राधाकृष्ण ने कहा है, भारत 1970 के दशक में ही खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता की स्थिति पा चुका था तथा इस स्थिति को लगातार बनाए रखने में सफल रहा है।

सरकार ने काफी बड़ी मात्रा में, भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) की मदद से, खाद्यान्नों के भंडार जमा किए हैं और इन भंडारों में से लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्रों की आपूर्ति की जाती है। हाल के कुछ वर्षों में तो ये भंडार (इन्हें बफर भंडार या buffer stocks कहा जाता है) न्यूनतम मानदंडों (minimum norms) को तुलना में काफी अधिक रहे हैं, जिससे अतिरिक्त भंडार (excess stocks) की समस्या पैदा हुई। 1 जनवरी, 2015 को खाद्यान्नों के भंडार 61.6 मिलियन टन थे (23.5 मिलियन टन चावल तथा 37.3 मिलियन टन गेहूँ के भंडार) जबकि 1 जनवरी को न्यूनतम भंडारों की आवश्यक मात्रा केवल 21.41 मिलियन टन चावल व गेहूँ होती है।

B.A. – 1/Economics /Paper – I

गुणात्मक पहलू (The Qualitative Aspect)-

मात्रात्मक पहलू से भी अधिक गंभीर गुणात्मक पहलू है। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाएगी-

  1. विश्व भुखमरी सूचकांक 2014 (Global Hunger Index 2014) के अनुसार, कुल 76 विकासशील देशों में भारत कर 55 वां स्थान था। चीन का पाचवा तथा श्रीलंका का 39वां स्थान था। नेपाल का 44वां स्थान था और इस प्रकार वह भी भारत से ऊपर था।
  2. 2014 में भारत का भूख सूचकांक मान (Hunger Index Score) 17.8 था जो एक गम्भीर (serious) स्थिति का द्योतक है (10 से 19.9 के बीच भूख सूचकाक मान वाल देशों की गणना गंभीर स्थिति वाले देशों में की जाती है)।
  3. 2011 13 में भारत में जनसंख्या का 17.0 प्रतिशत अल्पपोषित (undernourished) था (अर्थात् हर छः में से एक व्यक्ति)।
  4. 2009 13 की अवधि में पाँच वर्ष से कम आयु के 30.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के शिकार थे।
  5. 2012 में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (mortality rate) 5.6 थी।
  6. NSSO के 66वें दौर के अनुसार, कैलोरी के रूप में व्यक्त पोषण 1993-94 में 2,153 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन रह गया।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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