अर्थशास्त्र / Economics

भारतीय कृषि में मशीनीकरण से लाभ | भारतीय कृषि में मशीनीकरण से हानि

भारतीय कृषि में मशीनीकरण से लाभ | भारतीय कृषि में मशीनीकरण से हानि

कृषि यंत्रीकरण का अर्थ कृषि क्षेत्र में यांत्रिक शक्ति से परिचालित मशीनों के प्रयोग से है जिसमें कृषि कार्य के लिए मशीनें पेट्रोल या बिजली से चलती हैं तो इसे कृषि का यंत्रीकरण कहते हैं। उदाहरणार्थ- खेतों की जुताई में डीजल से संचालित ट्रैक्टर की सिंचाई के लिए विद्युत से चालित ट्यूब-वैल्स आदि।

Table of Contents

भारतीय कृषि में मशीनीकरण से लाभ-

भारतीय कृषि में यंत्रीकरण का प्रयोग लाभदायक है। प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं-

(1) खेती योग्य भूमि का विस्तार (Expansion of Cultivable Land)-

कृषि के यंत्रीकरण से खेती योग्य भूमि का विस्तार हीता है, क्योंकि बड़ी मात्रा में खेती की आवश्यकता की पूर्ति ऊसर, बंजर, ऊबड़-खाबड़ एवं वनाच्छादित भूमि से पूर्ण की जाती है।

(2) उत्पादन में वृद्धि (Growth of Production)-

कृषि में यंत्रीकरण से उत्पादकता में वृद्धि होती है। जबकि परम्परागत ढंग से खेती में न्यूनतम वृद्धि सम्भव है। आँकड़ों से स्पष्ट है कि यंत्रीकरण भूमि में खाद्यान्न उत्पादकता तीन या चार गुनी तक बढ़ गई है।

(3) श्रम की बचत (Savings of Labour)-

भारतीय खेती में मानवीय श्रम व प्रश्न श्रम की प्रधानता है। लेकिन कृषि का यनंत्रीकरण ऐसे श्रम की बचत करता है। क्योंकिमानवीय श्रम एवं पशु श्रम मशीनों की अपेक्षा अत्यन्त महंगा है।

(4) लागत में कमी (Reducing of Cost Production)-

यदि भारतीय कृषि में यंत्रीकरण को प्रोत्साहित किया जाये तो निश्चित ही उत्पादन में कमी की जा सकती है। क्योंकि मशीनीकरण से न्यूनतम लागत पर अधिक काम किया सकता है। जैसे- ट्यूब-वैल्स से सिंचाई ढेकली अथवा रहट की सिंचाई की तुलना में कम लागत पर होती है।

(5) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific View) –

कृषि में यंत्रीकरण के पक्ष में तर्क देते हुए अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि यंत्रीकरण दृष्टिकोण का जनक है क्योंकि कृषकों में यंत्रीकरण से नवीन वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने की प्रेरणा ही नहीं मिलती है अपितु कृषि में यंत्रीकरण का ऊँचा से ऊँचा लाभदायक प्रयोग किया जाय जाए? इस प्रकार की सोच को भी जन्म मिलता है। अतः भारतीय कृषि में यंत्रीकरण का निश्चित ही प्रयोग होना चाहिए।

भारतीय कृषि में मशीनीकरण से हानि-

(1) खेतों का आकार छोटा होना (Decreasing Size of Farming Lands)-

भारतवर्ष में यंत्रीकरण सफल नहीं हो सकता है क्योंकि भारतीय कृषकों के स्वामित्व में औसत 2 हेक्टेयर भूमि आती है। जबकि यंत्रीकरण वाले विकसित देश जैसे अमेरिका में 123 हेक्टेयर कनाडा में 188 हेक्टेयर जोत का आकार औसतन है।

(2) विद्युत एवं शक्ति के अन्य साधनों का अभाव (Lack of Means of Electricity and Other Powers)-

भारत में यंत्रीकरण का स्वप्न असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण का अभाव है। इसी प्रकार शक्ति के अन्य साधनजैसे- पेट्रोल, डीजल, कोयला आदि का एक तरफ सीमित भण्डार है, तो दूसरी ओर वे महंगे भी हैं।

(3) बेरोजगारी (Unemployment)-

भारत में यंत्रीकरण अथवा आधुनिकीकरण का तीव्र विरोध है, चाहे वह उद्योग क्षेत्र में अथवा कृषि क्षेत्र में किया जा रहा हो। क्योंकि भारत में जनशक्ति का कोई अभाव नहीं है; अतः मशीनें जो वृत्तिहीनता की जन्मदायी हैं, कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम को काम दिया जा सकता है क्योंकि देश में रोजगार का प्रधान स्रोत खेती है।

(4) यंत्रीकरण से पशु धन की बबदी (Wastage of Live – Stock by Mechanization)-

कृषि में यंत्रीकरण पशु धन के लिये पूर्णतः अनुपयुक्त है। क्योंकि विश्व के सर्वाधिक पशु भारत में हैं। अतः पशु धन में भारत (43 करोड़) विश्व में सर्वप्रथम स्थान पर है। लेकिन यंत्रीकरण होने पर पशुओं की बर्बादी होने लगती है।

(5) आर्थिक विषमता का पोषक (Nourisher of Economic Inequality)-

कृषि का यंत्रीकरण ग्रामीण क्षेत्र के धनवान एवं बड़े कृषकों की आय को कई गुनी वृद्धि कर देता है जिससे कृषकों में गरीब एवं धनी वर्ग बन जाते हैं। अतः आर्थिक विषमता की दृष्टि से यंत्रीकरण अत्यन्त दोषपूर्ण है।

(6) कृषि यंत्रों की मरम्मत में कठिनाई (Difficulty in Maintenance of Agricultural Machines)-

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र यंत्रीकरण के लिये अत्यन्त अनुपयुक्त है क्योंकि कृषि यंत्रों के खराब हो जाने पर उनकी मरम्मत एक दुष्कर कार्य है। इसका मुख्य कारण यह है कि “कृषि यंत्रों के मरम्मत केन्द्र शहरों में स्थित होते हैं जिससे यंत्र की मरम्मत में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

(7) शिक्षा एवं प्रशिक्षण का अभाव (Lack of Education and Training)-

कृषि जगत में यंत्रीकरण करने से पूर्व शिक्षा के अनेक केन्द्र ग्रामों में स्थापित होने चाहिए ताकि ग्रामवासियों को मशीनों के संचालित करने का प्रशिक्षण प्राप्त हो। लेकिन भारत के गाँवों में प्रशिक्षण एवं शिक्षा का अभाव है जिससे यंत्रीकरण ऊँची लागत का कार्य हो गया है। चूँकि असावधानी व अव्यवस्था के कारण कृषि यंत्रों में टूट-फूट बढ़ जाने पर मरम्मत लागत ऊँची हो जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)-

भारतीय कृषि उत्पादन विधियों में सुधार एवं यंत्रीकरण हमें आदेश देता है कृषि उत्पादन तकनीक में परिवर्तन हमारा धर्म है। नवीन तकनीक के बिना कृषि को उन्नत अवस्था में नहीं पहुँचाया जा सकता है। अतः प्रायोगिक रूप में यंत्रीकरण को इस क्षेत्र में अपनाना चाहिए। इसके पश्चात् धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन वर्ग को यंत्रीकरण का प्रयोग करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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