अर्थशास्त्र / Economics

भारतीय कृषि की उत्पादकता की प्रवृत्ति | भारत में कृषि उत्पादकता न्यून होने के कारण

भारतीय कृषि की उत्पादकता की प्रवृत्ति | भारत में कृषि उत्पादकता न्यून होने के कारण

Table of Contents

भारतीय कृषि की उत्पादकता की प्रवृत्ति –

भारतीय कृषि की उत्पादकता दो भागों में विभाजित है-

(अ) कृषि उत्पादकता की संवृद्धि दर (Growth Rate of Agricultures Productivity)-

भारत वर्ष में कृषि की उत्पादकता अत्यल्प व अनिश्चित है, किन्तु कृषि उत्पादकता के लिए केवल हीन धारणा अन्यायपूर्ण है, क्योंकि भारतीय कृषि की उत्पादकता की संवृद्धि दर सिद्ध करती है कि भारतीय कृषि विकास की ओर अग्रसर है।

(ब) कृषि उत्पादकता का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study of Agricultural Productivity)-

यदि भारतीय कृषि की उत्पादकता की तुलना अन्य देशों से करें तो उत्पादन दर अत्यन्त असन्तोष जनक है। इसलिए भारतीय कृषि को पिछड़ा (Backward) व्यवसाय कहकर सम्बोधित करते हैं, क्योंकि गेहूँ, चावल, तम्बाकू, गन्ना, कपास आदि का उत्पादन अन्य देशों की तुलना में 1/3 या 1/ 4 भाग से भी कम है।

भारत में कृषि उत्पादकता न्यून होने के कारण

भारतीय कृषि की उत्पादकता अल्प/न्यून होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) प्राकृतिक कारण (Natural Factors) –

कृषि पूर्णरूपेण मानसून पर निर्भर है, जबकि मानसून प्रकृति है, तो कभी देर से वर्षा, वह भी अनिश्चित जो कृषि उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालती है। दूसरा प्राकृतिक कारण फसलों की बीमारी, टिड्डी दलों का गिरना, पशु-प्रक्षियों द्वारा फसल बर्बादी भी कृषि उत्पादकता के लिए हानिकारक है।

(2) परम्परागत कृषि उत्पादन पद्धति (Traditional Agricultural Production Method)-

भारतीय कृषि में स्वतंत्रता के 55 वर्षों के बाद भी लड़की का हल, बैल, फसल, कटाई व खाद्यान्न निकालने में 70% कृषक, प्राचीन पद्धति का प्रयोग कर रहे हैं। पूँजी के अभाव में नवीन उत्पादन पद्धति का प्रयोग करने में औसत कृषक असमर्थ हैं। इस दशा में कृषि उत्पादकता में वृद्धि संभव नहीं है।

(3) भू-स्वामित्व का दोषपूर्ण ढाँचा (Defective Structure of Land Ownership)-

भारतीय कृषि की न्यून उत्पादकता के पीछे दोषपूर्ण भू-स्वामित्व है क्योंकि देश में जिसके कंधे पर हल हे वह उस भूमि का मालिक नहीं, बल्कि एक गरीब कृषि श्रमिक है जिसे खून पसीना से फसलें को बाने व काटने के बाद उसे केवल 1/4 हिस्सा या मजदूरी ही मिलता है। यद्यपि स्वतंत्रता के पश्चात् भू-स्वामित्व में अनेक सुधार हुए हैं, जैसे-जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, वस्तु उत्पादन में वृद्धि निराधार है।

(4) अनार्थिक जोत (Uneconomic Holding)-

भारतवर्ष के कवि-जगत में खेतों का आकार अत्यन्त छोटा रहे गया है, क्योंकि उप-विभाजित व अपखण्डन के कारण अधिकतम भूमि अनार्थिक जोतों में परिवर्तित हो गई है।

(5) उन्नत बीज, खाद्य व सिंचाई सुविधाओं का अभाव (Lack of Advanced Seeds Fertilizer & Irrigation Facilities)-

भारतीय कृषकों की आर्थिक दशा खराब होने के कारण उन्नत बीजों व खाद का प्रयोग संभव नहीं है। वैज्ञानिकों का मत है कि 20% तक उत्पादकता में वृद्धि केवल उन्नत बीजों के प्रयोग से संभव नहीं है। लेकिन वित्तीय साधनों में कमी के कारण कृषक उन्नत बीजों का लगभग 2.57 करोड़ टन प्रयोग प्रतिवर्ष करते हैं।

(6) कृषकों को कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलना (Farmers do not get Reasonable Price of Agriculture Yield)-

कृषकों को कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलना एक समस्यात्मक पहलू है, क्योंकि फसल तैयार होने के बाद खाद्यान्न की कीमते अत्यन्त निम्न हो जाती हैं, जिससे कृषकों को खाद्यान्न की उचित कीमत नहीं मिल पाती है।

(7) साख सुविधाओं का अभाव (Lack of Credit Facilities) –

कृषि क्षेत्र की न्यून उत्पादकता का एक कारण वित्तीय सुविधाओं का अभाव है। किसानों की छोटी-छोटी आवश्यकताएँ साहूकार या परम्परागत ऋणदाता पूरी करते हैं, जो ब्याज की ऊँची दर वसूलते है।

(8) जनसंख्या का कृषि पर दबाव (Population Pressure of Agricultural)-

जनसंख्या का कृषि पर बढ़ता दबाव भी कृषि की उत्पादकता को घटा रहा है। इससे भूमि का उपविभाजन व अपखण्डन हो रहा है, दूसरी ओर कृषि पर आश्रित जनशक्ति का लाभकारी उपयोग नहीं हो रहा है।

(9) त्रुटिपूर्ण विपणन व्यवस्था (Defective Marketing System) –

कृषि क्षेत्र की उत्पादकता कम होने के पीछे त्रुटिपूर्ण विपणन व्यवस्था भी है। कृषकों में निर्धनता के कारण खाद्यान्न को एकत्र करने की क्षमता भी नहीं होती है, जिससे कृषकों को खाद्यान्न मध्यस्थों के हाथ न्यूनतम कीमत पर विक्रय करना पड़ता है।

(10) कृषकों की ऋण ग्रस्तता (Indebtedness of Farmers) –

“भारतीय किसान ऋण में जन्म लेता है, ऋण में ही फलता और ऋण में ही मर जाता है।” अतः ऋणग्रस्तता कृषकों की न्यून उत्पादकता का कारण व परिणाम दोनों है। श्रीमती वीरा एन्सटे (Vera Anstay) ने कहा है कि भारतवर्ष की कृषि पिछड़ी एवं निम्न उत्पादकता इसलिए रखती है, क्योंकि भारतीय किसान ऋणग्रस्तता व पूँजीगत साधनों के अभाव का सामना करते हैं। फलतः कृषक वर्ग उन्नत कृषि हेतु साधन नहीं जुटा पाते हैं।

कृषि उत्पादकता में वृद्धि हेतु सुझाव

(1) नई कृषि तकनीक (New Agricultural Technique)-

भारतीय कृषि के पिछड़ेपन या न्यून उत्पादकता को दूर करने के लिए नई कृषि तकनीक का प्रयोग प्रमुख सुझाव है। इसलिए नई कृषि तकनीक को कृषकों में शीघ्रता से पहुँचाया जाए। कृषि वैज्ञानिकों को खेती में आधुनिक ढंग की तकनीक जेसे- जोत का आकार, श्रम, जलवायु, पूँजी की मात्रा व बीज, खाद, पानी आदि का उचित मेल-जोल की खोज करनी चाहिए, ताकि कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सके।

(2) भूमि सुधार (Land Reform) –

कृषि क्षेत्र के विकास में भूमि सुधार एक आवश्यक प्रक्रिया है। अतः सरकार को भू-सुधार के अभीष्ट परिणाम के लिए चकबंदी, सुरक्षित काश्तकारी उचित लगान व भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण का कार्य करना चाहिए। जबकि भूमि -हीन कृषकों को भूमि आवंटित की जानी चाहिए।

(3) विपणन सुविधा (Marketing Facilitics)-

भारतीय कृषि की न्यून उत्पादकता के लिए विपणन की असुविधाएँ मुख्यतः दोषी हैं। इसलिए विपणन हेतु बाजार अथवा मण्डी की स्थापना आवश्यक है। कृषि मण्डी में विचोलिए या मध्यस्थों पर प्रतिबन्ध आवश्यक है।

(4) कृषि उत्पादनों की उचित मूल्य नीति (Reasonable Price Policy of Agricultural Productivity)-

कृषि उत्पादनों के लिए एक उचित मूल्य नीति घोषित होनी चाहिए, जिससे किसानों के उत्पादनों की न्यूनतम व उच्चतम कीमतें निर्धारित हों ताकि कृषक वर्ग खाद्यान्न की एक उचित कीमत प्राप्त कर सके।

(5) वित्तीय सुविधाओं की व्यापक व्यवस्था-

कृषि क्षेत्र में वित्तीय सुविधाएँ औद्योगिक क्षेत्र के समान होनी चाहिए, क्योंकि कृषि क्षेत्र में व्यापक वित्तीय सुविधाएँ उपलब्ध होने पर कृषक वर्ग को आधुनिक उपकरण यन्त्र, रासायनिक खाद्, उन्नत किस्म के बीच आदि के क्रय में सहायता प्राप्त होगी।

(6) सिंचाई सुविधाओं का विस्तार (Expansion of Irrigation Facilities)-

कृषि विकास के लिए सरकार को नहरें, ट्यूब-वेल्स व तालाबों का निर्माण करना चाहिए। जहाँ नहरें आसानी से निर्मित हो सकती हैं, वहाँ नहरें जहाँ जल स्तर पास में हो वहाँ निजी पम्पिंग सेट के लिए कम ब्याज पर ऋण, जहाँ स्तर नीचे हो, वहाँ सरकारी ट्यूब-वेल्स व जहाँ तालाबों द्वारा सिंचाई एक मात्र हल हो वहाँ तालाबों का निर्माण तेजी से किया जाना चाहिए, जिससे कृषि क्षेत्र की मानसून पर निर्भरता समाप्त हो सके। सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध होने पर कृषि उत्पादकता में गुणात्मक वृद्धि होगी।

(7) कृषि अनुसंधान (Agricultural Research) –

कृषि उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि के लिए कृषि-अनुसंधान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सरकार को कृषि वैज्ञानिकों पर नवीन खोज हेतु ऊँचे व्यय करने चाहिए, जिससे न्यून लागत पर अधिकतम उत्पादन हो सके।

कृषि उत्पादकता में वृद्धि हेतु सरकार के प्रत्यत्न

भारत सरकार ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए अनेकों प्रयास किये हैं। सर्वप्रथम आर्थिक नियोजन के माध्यम से पंचवर्षीय योजनाओं पर आवंटित धनराशि से सरकार ने कृषि सुधार एवं सिंचाई पर विशेष बल दिया है। कृषि विकास हेतु प्रथम योजना की तुलना में तीसरी योजना में व्यय राशि बढ़कर ढाई गुनी हो गई, जबकि तीसरी योजना के अन्तर्गत निवेशित राशि पाँचवीं योजना में तीन गुनी अधिक हुई। इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि विकास हेतु एक कार्य नीति (Strategy) जिनमें भूमि सुधार, जमींदारी उन्मूलन, चकबन्दी, काश्तकारी सुधार, सहकारी खेती, भूमि का पुनः आवंटन आदि सम्मिलित हैं। मुख्य सहकारी प्रयत्न निम्नलिखित हैं-

(1) राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना (Establishment of National Seeds Corporation)-

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व राष्ट्रीय बीच निगम की सहायता से प्रजनक बीजों का उत्पादन करने पर बल दिया है। राष्ट्रीय बीज निगम में कृषि विश्वविद्यालयों ने 140 हेक्टेयर भूमि पर अधिक उपज देने वाले बीजों का उत्पादन किया है।

(2) सिंचाई सुविधाओं का विस्तार (Expansion of Irrigation Facilities) –

भारत में सरकार ने सिंचाई सुविधाओं के विस्तार हेतु नहरें ट्यूब-वेल्स वे तालाब निर्मित कराये हैं, जिनमें नदी घाटी परियोजनाएँ जैसे-भाखड़ा नांगल परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना, नागार्जुन सागर परियोजना, कोसी, गण्डक, मयूराक्षी व चम्बल परियोजना प्रमुख हैं। जहाँ नहरों का निर्माण संभव नहीं है वहाँ पर सरकारी नलकूप स्थापित किये हैं।

(3) खाद उत्पादक इकाइयों की स्थापना (Establishment Fertilizer Units) –

कृषि विकास हेतु सरकार ने रासायनिक खाद निर्माण की इकाइयाँ स्थापित की है। दुर्भाग्य की बात है कि गरीबी के कारण खाद का प्रयोग भारतीय किसान बहुत कम करता है, अतः सरकार ने खाद की वितरण एजेन्सी कस्बों व न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित करने के लाइसेंस प्रदान किये हैं, जिससे नाइट्रोजनी, फास्फेटिक व पोटाशी खादों का उचित उपयोग किया जा सके।

(4) भूमि सुधार (Land Reform) –

सरकार ने भूमि सुधार कार्यक्रम अपनाये हैं, जिसमें जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, भूदान आन्दोलन, भूमिहीनों को भूमि का आवंटन, चकबंदी, सहकारी एवं सामूहिक खेती आदि कार्यक्रम प्रमुख हैं।

(5) ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएँ (Banking Facilities to Rural Sector)-

ग्रामीण क्षेत्रों की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सरकार ने बेंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में शाखायें स्थापित करने हेतु बाध्य किया है । इसी कारण ग्रामीण अंचलों में राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखायें व सहकारी संस्थायें स्थापित हुई हैं।

(6) ऋण माफी-

कृषकों के लिए ऋ्टणग्रस्तता एक अभिशाप है। इसका कुप्रभाव कृषि उत्पादनों पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है। अतः सरकार ने पुराने ऋणों को एक अधिनियम से माफ कर दिया है, जिससे कृषक साहूकारों व बड़े किसानों के चंगुल से मुक्त हो गये है।

(7) कृषि विपणन हेतु नियमित बाजार की स्थापना (Establishment of Regular Markets for Agricultural Marketing) –

कृषि के विकास की आधार शिला मण्डी व कृषि बाजार है। अतः सरकार ने कृषि विपणन में सहायता हेतु नियमित बाजार 6,052 व प्रत्येक जिले में सहकारी विपणन केन्द्र स्थापित किये हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने चुंगी व्यवस्था भी समाप्त कर दी है।

(8) प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training Programme)-

कृषकों को नवीन उत्पादन तकनीक से परिचित कराने के लिए सरकार ने प्रशिक्षण कार्यक्रम पर बल दिया है। सरकार ने फसलों को रोगों से कैंसे बचाया जाए? उन्नत किस्म के बीजों की प्रयोग विधि, फसल में पानी कब व कितना दिया जाए आदि के सम्बन्ध में ब्लाक स्तर पर गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही है। इसी प्रकार अच्छे बीजों के उत्पादन हेतु प्रशिक्षित प्रजनकों को तैयार किया जा रहा है।

अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!