व्यापार चक्र सिद्धान्त | सैम्युल्सन का व्यापार चक्र सिद्धान्त | सैम्युल्सन के व्यापार चक्र सिद्धान्त की मान्यताएँ
व्यापार चक्र सिद्धान्त | सैम्युल्सन का व्यापार चक्र सिद्धान्त | सैम्युल्सन के व्यापार चक्र सिद्धान्त की मान्यताएँ
व्यापार चक्र सिद्धान्त
प्रो० पी० ए० सैम्युल्सन ने 1939 में अपने सुप्रसिद्ध लेख “Interaction between the Multiplier Analysis and Principle of Acceleration” में व्यापार-चक्र गुणक-त्वरक अन्तर्प्रक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
उसके मतानुसार गुणक एवं त्वरक की पारस्परिक क्रियाशीलता के परिणामस्वरूप व्यापार चक्र घटित होते हैं । गुणक एवं त्वरक मौद्रिक तथा वास्तविक तत्व दोनों हैं। अत: इसे मौद्रिक तथा गैर- मौद्रिक दोनों प्रकार के सिद्धान्तों में समाविष्ट किया जा सकता है।
सैम्युल्सन ने व्यापार चक्रों में त्वरक की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण मानी है। त्वरक की क्रियात्मकता के कारण समय विशेष पर शुद्ध निवेश राशि में अन्तर आता है। इससे आय के स्तर में परिवर्तन होता है। आगे आय स्तर में परिवर्तन के कारण निवेश के स्तर में परिवर्तन होता है और इन परिवर्तनों के कारण व्यापार चक्र घटित होते हैं। दो समय इकाइयों में यदि निवेश स्तर में परिवर्तन आता है तब आय प्रसारण की मात्रा में भी परिवर्तन स्वाभाविक है। साथ-साथ यदि आय प्रसारण की मात्राओं में परिवर्तन है तब उपभोग स्तर और प्रेरित निवेश मात्राओं में परिवर्तन भी स्वाभाविक है। ये कुल परिवर्तन ही व्यापार चक्रों के लिए कारक तत्व होते हैं। इसीलिए सैम्युल्सन के सिद्धान्त को व्यापार चक्र का गुणक त्वरक सिद्धान्त या गुणक त्वरक मॉडल कहते हैं। त्वरक का सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि एक समय विशेष पर शुद्ध विनियोग-वरक के मूल्य एवं आय स्तर में परिवर्तन की मात्रा पर निर्भर होता है। आय स्तर में परिवर्तन से विनियोग स्तर में परिवर्तन होता है।
त्वरक सिद्धान्त यह बताता है कि किसी दी हुई समय अवधि में कुल विशुद्ध निवेश I2 त्वरक के मूल्य b एवं उस समय अवधि में कुल आय में हुए परिवर्तन पर निर्भर करता है, अर्थात् It = b∆Yt = b (Yt -Yt –1)। यह मानते हुए कि कुल आय Y में परिवर्तन हुआ है, समय अवधि t में कुल निवेश का परिमाण पूर्व समय अवधि t-1 में कुल निवेश के परिमाण से भिन्न होगा। यह हमें त्वरक सिद्धान्त से ज्ञात होता है। परन्तु हमें यह भी ज्ञात है कि गुणक (multiplier) सिद्धान्त के अनुसार निवेश में कमी अथवा वृद्धि होने पर पश्चावर्ती समय अवधियों में आय के स्तर में परिवर्तन होने पर निवेश का स्तर भी त्वरक के कारण प्रभावित होगा तथा जो गुणक के माध्यम से आय के स्तर को प्रभावित करेगा और इस प्रकार गुणक तथा त्वरक की पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप यह क्रिया अनन्त काल तक चलती रहेगी।
सैम्युल्सन के सिद्धान्त की मान्यताएँ-
(1) उपभोग की सीमान्त-प्रवृत्ति स्थिर है- वर्तमान उपभोग विगत सत्र की कुल आय का एक स्थिर फलन होता है।
अर्थात्-Ct = Ca+ bYt–1
(2) पूँजी उत्पाद का अनुपात एक स्थिरांक है- पूँजीगत वस्तुओं में किया जाने वाला विनियोग उपभोग माँग में उत्पन्न वृद्धि का एक निश्चित अनुपात होता है।
अर्थात्-I = la + v ( Ct – Ct–1)
(3) पूँजीगत वस्तुओं की अतिरिक्त उत्पादन क्षमता शून्य है।
(4) श्रम शक्ति की पर्याप्त उपलब्धि है।
(5) उत्पादन कीमतें स्थिर हैं।
(6) सरकारी व्यय (Gt) आय परिवर्तनों से स्वतन्त्र है।
सैम्युल्सन के मॉडल में गुणक एवं त्वरक की पारस्परिक क्रिया एक अर्न्तजात शक्ति है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्रों का जन्म होता है। सैम्युल्सन के अनुसार किसी दी हुई समय
अवधि t में राष्ट्रीय आय Yt की कुल सरकारी व्यय Gt जिसका निर्धारण स्वायत्त रूप में होता है कुल उपभोग व्यय Ct तथा कुल प्रेरित निवेश It के योग द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार,
Yt = Gt + Ct + It
Ct = bYt–1
It = v(Ct – Ct –1)
Ct एवं It के स्थान पर प्रथम समीकरण में इनके समीकरण मूल्यों को प्रतिस्थापित करने पर साम्य राष्ट्रीय आय के समीकरण को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
Yt = Gt bYt –1 + v (Ct – Ct–1)
= Gt + bYt –1 + bv (Yt –1 – Yt –2)
उपरोक्त समीकरण यह बताता है कि किसी दी हुई समय अवधि में t में कुल साम्य आय कुल स्वायत्त सरकारी व्यय Gt कुल उपभोग व्यय Ct जो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति b तथा पूर्व समय अवधि t – 1 में प्राप्त कुल आय Yt – 1 पर निर्भर करता है तथा कुल निवेश व्यय, जो पूँजी-उत्पादन अनुपात अथवा त्वरक के मूल्य v एवं समय अवधि t में हुए कुल उपभोग व्यय में परिवर्तन ∆Ct = Ct – Ct –1 पर निर्भर करता है का योग है। अन्य शब्दों में, b तथा v के मूल्य, स्वायत्त सरकारी व्यय की राशि तथा उस समय अवधि में कल उपभोग व्यय में हुए परिवर्तन की राशि ज्ञात होने पर हम कुल साम्य आय Y के उपरोक्त समीकरण के आधार पर उस समय अवधि की साम्य आय को ज्ञात कर सकते हैं।
अपने व्यापार चक्र के गुणक-त्वरक मॉडल में सैम्युल्सन ने कुल निवेश को कुल उपभोग व्यय में हए परिवर्तनों से सम्बन्धित किया है। परन्तु विगत कुछ वर्षों में हिक्स का मॉडल अधिक उपयोगी माना जाने लगा है जिसमें कुल निवेश का सम्बन्ध कुल आय में होने वाले परिवर्तन से जोड़ दिया गया है।
एक प्रारम्भिक उत्कर्ष के बाद कुल आय Y के साम्य स्तर के आस-पास जो उतार-चढ़ाव होंगे उन्हें चित्र में दर्शाया गया है। कुल आय Y का समय मार्ग (time path) क्रमश: सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति b त्वरक v के अंकीय मूल्यों पर निर्भर करेगा। साधारणतयाः v त्वरक का मूल्य जितना अधिक होगा,Y का समय मार्ग उत्तना ही विस्फोटक होगा। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति b का मूल्य जितना अधिक होगा, उतार-चढ़ावों की सम्भावना उतनी ही कम होगी। यह विश्लेषण इस मान्यता पर आधारित है कि b का स्थिर अंकीय मूल्य धनात्मक परन्तु एक से कम है तथा v का अंकीय मूल्य धनात्मक है अर्थात् O<b<1 तथा >0 है।
इस मॉडल में अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र का प्रारम्भ केवल त्वरक संबंध के कारण एवं प्रथम का अन्तराल (first order lag) की अनुपस्थिति में होता है। इस प्रकार, त्वरक तथा द्वितीयघाती अन्तराल, दोनों को ही व्यापार चक्र के लिए आवश्यकता होती है। अर्थव्यवस्था में केवल गुणक किसी व्यापार चक्र की व्युत्पत्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। वास्तव में, जैसे-जैसे सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति b का मूल्य बढ़ता है वैसे-वैसे व्यापार चक्र प्रारम्भ होने की सम्भावना घटती जाती है। निम्नलिखित समीकरणों में वर्णित मॉडल
Tt = v (Yt –1–t–2), तथा
Yt = Ct + It + Gt
त्वरक का शून्य एवं 4 के बीच कोई भी आंकिक मूल्य होने पर अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र को जन्म देना। परन्तु व्यापार चक्र सम्बन्धी उक्त मॉडल गुणक को सम्मिलित कर लेने पर अधिक वास्तविक बन जाता है एवं अर्थव्यवस्था में बहुधा घटित होने वाले व्यापार चक्रों में अनुरूप व्यापार चक्र को जन्म देता है।
इस मॉडल में उपभोग फलन को सम्मिलित किया जाय अथवा नहीं, एक बहिर्जात चर-कुल स्वायत्त सरकारी व्यय में प्रारम्भिक वृद्धि होने से दो समय अवधियों के पश्चात् यद्यपि कुल आय Y में वृद्धि हो चुकती है परन्तु ऋणात्मक पद Yt –2 का निवेश पर ऋणात्मक प्रभाव होगा। जब तक त्वरक काफी प्रबल नहीं होगा, अथवा जब तक सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति b इकाई के काफी समीप नहीं होगी तब तक vYt –2 ऋणात्मक प्रभाव के कारण निवेश में मामूली सी कमी आएगी और इससे आय में वृद्धि की गति भी धीमी हो जाएगी। साधारणतया यह कुल निवेश (I) एवं कुल आय की वृद्धि दर (∆Y) में कमी लाने हेतु पर्याप्त होगा। शीघ्र ही अर्थव्यवस्था एक ऐसे परावर्तन बिन्दु पर पहुँच जाएगी जहाँ पर आय में कमी होने लगती है, अर्थात् जहां ∆Y<O, जब ऐसा होता है तो व्युत्क्रम (उल्टी दिशा में घुमाव) की शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। आय के उत्तरोत्तर नीचे स्तर के कारण vYt –2 के ऋणात्मक प्रभाव में कमी होगी तथा इसके फलस्वरूप निवेश में हास की गति भी कम हो जाएगी। इसके फलस्वरूप आय में वृद्धि प्रारम्भ हो जाएगी, अर्थात् ∆Y>O तथा निवेश में भी वृद्धि होगी। अस्तु, अर्थव्यवस्था ऊपर की ओर प्रवृत्त होने लगेगी। यह प्रक्रिया तब तक दुहराई जाती रहेगी जब तक अर्थव्यवस्था या तो एक नई साम्य स्थिति पर नहीं पहुँच जाती है अथवा इसमें इतने अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होने लगते हैं कि आय में कमी होना (∆Y<O) प्रारम्भ हो जाता है। परन्तु वास्तविक जगत में इतने विस्फोटक व्यापार-चक्र घटित नहीं होते हैं क्योंकि अर्थव्यवस्थाnकी प्रवृत्ति सदैव साम्य की ओर लौटने की होती है। चित्र यह बताती है कि b तथा v के विभिन्न मूल्यों पर गुणक तथा त्वरक की पारस्परिक क्रिया से अर्थव्यवस्था में कुल आय में उतार- चढ़ाव की भिन्न शैलियां प्राप्त होती हैं।
Boundaries of Regions Yielding Different Income Patterns
जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है, शून्य एवं इकाई के बीच MPC (b) के आंकिक मूल्यों का शून्य एवं 5 के बीच त्वरक के आंकिक मूल्यों के साथ संयोग हमें आय की चार शैलियाँ (Patterns) प्रदान करता है। b एवं v के जो संयोग चित्र के A क्षेत्र में हैं वे कुल आय में अवमंदित (Damped) तथा अचक्रीय (non-oscillatory) परिवर्तन उत्पन्न करेंगे, जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है, इसी प्रकार B क्षेत्र में b तथा v के जो विभिन्न संयोग है कि वे भी आय में अवमंदित परन्तु दोलायमान परिवर्तन उत्पन्न करेंगे। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। चित्र में C क्षेत्र b एवं v के उन संयोगों को प्रस्तुत करता है जो आय में विस्फोटक उतार-चढ़ाव उत्पन्न करेंगे जैसा कि चित्र 12.1 C में दर्शाया गया है। चित्र के D क्षेत्र में b एवं v के उन संयोगों को प्रस्तुत किया गया है जिनसे आय में चित्र 12.1 D की भांति विस्फोटक अदीलायमान परिवर्तन उत्पन्न होंगे।
इस प्रकार MPC द्वारा निर्धारित गुणक के मान एवं त्वरक के मान से सम्बन्धित पृथक्-पृथक् समायोजनों पर भिन्न-भिन्न स्वरूप के व्यापार चक्र उत्पन्न होंगे उदाहरण हेतु इनका स्पष्टीकरण निम्नलिखित चार्ट द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है-
सीमा | गुणक-त्वरक समायोजन | व्यापार चक्र का स्वरूप |
A क्षेत्र | b= 0.5 = v<1.0 | चक्रहीन पथ अथवा सामान्य गुणक प्रक्रिया |
B क्षेत्र | b= 0.5 + v = 1.0 | अवमन्दित चक्रीय व्यापार चक्र (Damped Oscillatory trade cycle) |
C क्षेत्र | b = 0.5 = v = 2.0 | विनियमित चक्रीय व्यापार चक्र (Regular Oscillatory trade cycle) |
D क्षेत्र | b = 0.6 + v = 2.0 | विस्फोटक चक्रीय व्यापार चक्र (Explosive Oscillatory trade cycle) |
E क्षेत्र | b = 0.8 + v = 4.5 | विस्फोटक अचक्रीय व्यापार चक्र (Explosive- non oscillatory trade cycle) |
उपर्युक्त पाँच प्रकार के क्षेत्रों में गुणक त्वरक के भिन्न-भिन्न समायोजनों से उत्पन्न व्यापार चक्रों को निम्नांकित चित्रों में पृष्ठत किया गया है।
उपर्युक्त चारों मॉडल निम्न चित्र से प्रदर्शित किये गये हैं। जिसमें Xअक्ष पर समय एवं Y अक्ष पर राष्ट्रीय उत्पादन को प्रदर्शित किया गया है।
मॉडल या सिद्धान्त की समीक्षा-
सैम्युल्सन ने गुणक और त्वरक की पारस्परिक क्रियाशीलता स्पष्ट की और इससे स्पष्ट हुआ कि व्यापार चक्र कब तीव्र होते हैं और क्यों होते हैं? हिक्स (Hicks) ने इसे आगे और अधिक स्पष्ट किया।
गुणक और त्वरक की क्रियात्मकता समझने से आर्थिक स्थायीकरण या स्थिरीकरण (economic stablisation) प्राप्त करने में सहायता मिलती है। स्थिरीकरण हेतु राज्य अपने उपायों में उसके अनुसार परिवर्तन ला सकता है।
प्रो० कुरीहारा (Kurihara) के शब्दों में, “गुणक विश्लेषण के साथ-साथ, जो कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर है, त्वरक सिद्धान्त का स्पष्टीकरण व्यावसायिक चक्रों सम्बन्धी अनुकरण की जाने वाली नीतियों के लिए एक अच्छा एवं सहायक सुझाव सिद्ध होता है।” त्वरक का मान जितना अधिक होगा उतनी ही चक्र की विस्फोटकता की अधिक सम्भावना होती है। इसके विपरीत गुणक का मान जितना अधिक होगा उतना ही (चक्र की) चक्ररहित मार्ग की अधिक सम्भावना होती है।
(1) निवेश जनित स्वरूप पर अधिक बल- मुख्यतया यह सिद्धान्त व्यापार चक्र को उत्पादनकर्ताओं एवं निवेशकर्ताओं से सम्बन्धित व्यवहार का परिणाम मानता है।
(2) यत्रंवत बेलोचदार प्रस्तुतीकरण- यह सिद्धान्त अर्थव्यवस्था को एक यांत्रिक क्रिया बना देता हो जबकि अर्थतन्त्र में अत्यधिक लोचशीलता होती है।
(3) सीमान्त प्रवृत्तियों के मान में समरूपता- प्रो० हेन्सन के अनुसार गुणक तथा त्वरक के मान B तथा C क्षेत्रफल में लगभग समान होने के कारण नियमित चक्रीय परिवर्तन करते हैं। उनके अनुसार सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा त्वरक का मान 2 के लगभग पाया जाता है।
(4) पूँजी स्टाक में अवांछित परिवर्तन- यह अवधारणा की पूँजी स्टाक में हो रहे परिवर्तन वांछित दर से भिन्न भी हो सकते हैं क्योंकि ये अनिवेश पर आधारित होते हैं।
(5) प्राविधिक प्रवृत्ति की उपेक्षा- अर्थव्यवस्था में उत्पादन क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा गया।
(6) आय परिवर्तन की असीमित स्वरूप- इस सिद्धान्त में आय में वृद्धि या कमी को कोई सीमा निर्धारण नहीं है।
(7) मौद्रिक शक्तियों की उपेक्षा- यह सिद्धान्त केवल वास्तविक शक्तियों और उनकी अंतर्क्रिया की व्याख्या करता है मौद्रिक शक्तियों को महत्त्व नहीं देता।
(8) ब्याज संरचना उपेक्षा- इस सिद्धान्त में विनियोग पर पड़ने वाले ब्याज संरचना स्वभावों की पूर्ण उपेक्षा की गई है।
(9) मन्दीकालीन निवेश सम्बन्धी भ्रामक मान्यता- इस सिद्धान्त में मन्दीकाल में सकल निवेश को शून्य और निबल निवेशों को ऋणात्मक माना है परन्तु अमेरिका में 1930 में GNP में 30% की कमी होने के बावजूद भी सकल निवेश का स्तर शून्य से अधिक था।
उपरोक्त अच्छाइयों के बावजूद सैम्युल्सन के सिद्धान्त की निम्न कमजोरियाँ और सीमाएँ हैं-
(10) समय अवधि का विचार नहीं- सैम्युल्सन स्वयं गतिशील विश्लेषण के पक्षधर थे। फिर भी इस सिद्धान्त में चक्रों की घटना में समय तत्त्व का विचार भुला दिया गया है।
(11) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की स्थिरता- इस सिद्धान्त में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति स्थिर यानि MPC = 0.5 मानी गयी है। वास्तविकता यह है कि यह दीर्घकाल में परिवर्तनशील है और व्यावसायिक चक्रों की अवधारणा स्वयं एक दीर्घकालीन विचार है।
(12) त्वरक से विस्फोटक अवस्था का अस्पष्ट स्पष्टीकरण- जब त्वरक गुणांक – 4 है तब चक्र की विस्फोटक अवस्था है और चक्रहीन मार्ग को दर्शाती है। इसका आशय यह है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया अत्यन्त तेज है और उसकी कोई सुनिश्चित गति नहीं है। आर्थिक इतिहास में ऐसी अवस्था किसी भी विकसित देश की देखने को नहीं मिलती। सयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देश की भी अधिक विकास की दर 3% से 5% के मध्य रही है। अत: इस अवस्था का केवल बौद्धिक महत्त्व है।
सैम्युल्सन का गणितीय मॉडल गणित पर अधिक आश्रित होने से उसमें ये त्रुटियाँ हैं। फिर भी गुणक तथा त्वरक की पारस्परिक क्रिया में चक्रों के निर्माण की इसमें अच्छी व्याख्या की गयी है।
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