अर्थशास्त्र / Economics

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त को प्रभावित करने वाले कारण | माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की सत्यता

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त को प्रभावित करने वाले कारण | माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की सत्यता

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त को प्रभावित करने वाले कारण

माल्थस की रुचि व्यापक थी। वे अपने समय की आर्थिक तथा सामाजिक विवादात्मक समस्याओं पर अपने विचार खुले रूप से व्यक्त करते थे। अपने समय में होने वाले परिवर्तनों तथा  सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर उन्होंने जनसंख्या सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। माल्थस को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं-

  1. जनसंख्या (Population)-

माल्थस के विचारों को सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि ने प्रभावित किया था। 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इंग्लैण्ड में कृषि के उन्नतिशील होने के बावजूद भी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इतना घना आर्थिक संकट पैदा हो गया था कि देश की जनसंख्या अधिक मालूम पड़ने लगी थी। गेहूँ का मूल्य प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा था। माल्थस के विचारों से सहमत थामस ग्रीन आयरलैण्ड को स्थिति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, “आयरलैण्ड में कुशासन के अभिशाप के साथ साथ दरिद्रता का नंगा नाच भी था और यह दरिद्रता देश की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने के साथ-साथ बढ़ती गई थी जिसके फलस्वरूप दुर्भिक्षता ने देश को नरक बना दिया था।”

  1. औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution)-

माल्धस के कार्यकाल से कुछ समय पूर्व ही इंग्लैण्ड औद्योगिक क्रान्ति से गुजरा था जिसके कारण समाज में बेरोजगारी, दरिद्रता तथा झगड़ों का बोलबाला था। समाज दो वर्गो-पूँजीपति एवं श्रमिक में बंट गया था। पूँजीपति वर्ग दिन-प्रतिदिन पूँजीपति वर्ग की स्थिति मजबूत तथा श्रमिकों की हालत बदतर होती जा रही थी। एडम स्मिथ की विचारधारा में सभी जगह उन्नति और आशावाद की प्रधानता थी परन्तु माल्थस के समय इंग्लैण्ड के समाज की बुरी दशा के परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे थे। फ्रांस में स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुता पर आधारित राजनीतिक क्रान्ति का प्रादुर्भाव हो चुका था। इसलिये माल्थस के लेख आर्थिक संकट तथा निराशावादी विचारधारा से परिपूर्ण थे।

  1. वणिकवादी तथा प्रकृतिवादी विचारों का प्रभाव (Effects of Mercantilism and Physiocracy)-

वणिकवादी विचारधारा के अनुसार देश की शक्ति तथा सम्पदा को बढ़ाने के लिये अधिक जनसंख्या का होना आवश्यक समझा जाता था। प्रकृतिवादी भी जनसंख्या वृद्धि को प्राकृतिक व्यवस्था का अंग मानते थे किन्तु देश की शक्ति और सम्पत्ति को बढ़ाने के लिये जनसंख्या की अधिकता ही एकमात्र कारण नहीं थी। इसलिये यह जरूरी समझा गया कि जनसंख्या वृद्धि को रोककर शक्ति और सम्पत्ति बढ़ाने के और कारण मालूम किये जायें।

  1. समकालीन विचारकों का प्रभाव-

माल्थस से पूर्व जनसंख्या सम्बन्धी विचारधारा ने दो रूप धारण कर लिये थे एक ओर हॉब्स को विचारधारा थी कि मनुष्य के प्रयास सीमित तथा उसकी भूख असीमित थी। हॉब्स समझते थे कि मनुष्य तभी शक्ति से रह सकते हैं जब एक सामान्य शक्ति उन सबको काबू में रखे तथा आवश्यकता और तुष्टि के मध्य सन्तुलन रहे।

इसके विपरीत जॉन लॉक, विलियम गॉडविन तथा कान्डरसेंट के विचार थे। जॉन लॉक ने हितों को प्राकृतिक अनुरूपता का सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। विलियम गॉडविन के अनुसार स्वार्थ तथा सदाचार परस्पर विरोधी थे। स्वार्थ का स्थान परोपकारिता ले सकती थी जिससे संचयी प्रगति सम्भव हो सकेगी और मानव के सुखों में वृद्धि होगी जो कि उस समय के ढांचे में सम्भव नहीं था।

माल्थस गॉडविन के विचारों से कदापि सहमत नहीं थे अतः उन्होंने अपने विचारों को निबन्ध के रूप में लिखकर प्रतिपादित करने का निश्चय किया और माल्थस का जनसंख्या का सिद्धान्त बन गया।

माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की सत्यता

(Reality of the Theory)

माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त वर्तमान समय में भी सत्य है और समय के परीक्षण में सफल उतरा है। इस सत्य को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता कि मनुष्य तथा अन्य प्राणियों में अत्यन्त तीब्रगति से स्वयं की जनसंख्या में वृद्धि करने की शक्ति होती है। इसके विपरीत औद्योगिक उत्पादन भूमि, कच्चा माल, श्रम तथा पूँजी आदि उत्पादन के साधनों को स्थगित पूर्ति द्वारा सीमित होता है जबकि वर्तमान समय में एशिया तथा अफ्रीका के अनेक देश जनाधिस्य के उदाहरण है। अल्प विकसित देशों में बढ़ती हुई जनसंख्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है। भारत, चीन तथा संसार के अन्य अद्धविकसित देश जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिये युद्ध स्तर पर किये गये प्रयत्न इस बात के साक्षी हैं कि वहाँ जनसंख्या वृद्धि सुरसा जैसा मुँह खोले खड़ी है। बढ़ती हुई जनसंख्या ने इन देशों में योजना के लाभों को निष्क्रिय कर दिया है। यदि जनसंख्या इसी प्रकार बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब इसके दुष्परिणाम हमें हरेक क्षेत्र में देखने को मिलेंगे। माल्थस के सिद्धान्त को सत्यता की पुष्टि इस बात से भी होती है कि यदि हम विश्व की कुल जनसंख्या और कुल खाद्य सामग्री के कुल उत्पादन की तुलना करें तो निश्चय ही यह ज्ञात होगा कि खाद्य सामग्री का उत्पादन कुल जनसंख्या के पोषण के लिये पर्याप्त नहीं। आज भी विश्व के बहुत से देश ऐसे हैं जहाँ लोगों को दो वक्त भोजन भी नसीब नहीं होता है। शायद यदि जनसंख्या की वृद्धि सोमित मात्रा में हुई होती तो लोग अच्छा जीवन स्तर व्यतीत करते और जीवन को सारी सुख-सुविधाओं का उपयोग कर सकने में समर्थ हुए होते। पॉल ए० सैम्युकलसन का कथन सर्वथा सत्य प्रतीत होता है कि भारत, चीन तथा संसार के अन्य क्षेत्रों में खाद्य सामग्री की शर्त और जनसंख्या की बढ़ोत्तरी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जनसंख्या का व्यवहार समझने के लिये माल्थस के सिद्धान्त आज भी सत्यता के तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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