अर्थशास्त्र / Economics

एडम स्मिथ का श्रम-विभाजन का सिद्धान्त | श्रम-विभाजन के लाभ | श्रम-विभाजन के दोष | एडम स्मिथ के श्रम विभाजन के सिद्धान्त की आलोचनात्मक

एडम स्मिथ का श्रम-विभाजन का सिद्धान्त | श्रम-विभाजन के लाभ | श्रम-विभाजन के दोष | एडम स्मिथ के श्रम विभाजन के सिद्धान्त की आलोचनात्मक

एडम स्मिथ का श्रम-विभाजन का सिद्धान्त

(Smith’s Theory of Division of Labor)

एडम स्मिथ से पूर्व वणिकवादियों ने धन को तथा प्रकृतिवादियों ने भूमि को अत्यधिक महत्त्व दिया तथा श्रम को अनुत्पादक मानते हुए इसकी उपेक्षा की। परन्तु स्मिथ ने श्रम के महत्त्व को समझा तथा अपनी महान् पुस्तक ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ के पहले ही वाक्य में इसे स्पष्ट किया, “प्रत्येक राष्ट्र का वार्षिक प्रम ही वह कोष है, जो मूल रूप में उसकी समस्त आवश्यक एवं सुविधाजनक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और जिसका उपभोग राष्ट्र द्वारा सारे वर्ष किया जाता है।”

स्मिथ के विचारानुसार प्रतिवर्ष उपभोग की जाने वाली सामग्री का उत्पादन मानव अथवा श्रम द्वारा किया जाता है। यह उत्पादन पारस्परिक सहयोग का परिणाम है न कि प्राकृतिक शक्तियों का। उत्पादन मुख्य रूप से श्रमिक की कार्य-कुशलता (दक्षता) आदि पर निर्भर करता है।

श्रम-विभाजन सामाजिक सहकारिता का एक रूप

श्रम विभाजन सामाजिक सहकारिता का एक स्वरूप है जो एक विशेष प्रकार के सामाजिक सहयोग का स्वयं आभास हो जाने के कारण उत्पन्न हुआ है। मानवीय स्वभाव के अनुरूप मनुष्य उस कार्य को करना अधिक उपयुक्त समझता है जिसे वह अधिक भलो प्रकार कर सकता है। सामाजिक विकास के साथ श्रम विभाजन का विचार और अधिक मुखरित होता है। व्यक्तियों ने अपनी-अपनी रुचियों के कार्य करने प्रारम्भ किये और उसमें दक्षता प्राप्त करते-करते अधिकतम उत्पादन करने लगे। एक-दूसरे के सहयोग से सभी को आवश्यकताओं की पूर्ति होने लगी।

श्रम-विभाजन का विनिमय से निकट सम्बन्ध

त्रम-विभाजन का विनिमय से निकट का सम्बन्ध है। श्रम-विभाजन एवं विनिमय से समाज के विभिन्न अंगों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित होता है। श्रम-विभाजन के लाभों को स्पष्ट करते हुए एडम स्मिथ ने पिन बनाने वाली कम्पनी का विवरण देते हुए लिखा-मैंने स्वयं पिन बनाने वाला एक छोटा सा कारखाना देखा जहाँ 10 व्यक्ति काम पर लगे थे। इनमें से कुछ श्रमिक दो या तीन कार्य करते थे। यद्यपि वे अत्यधिक निर्धन थे तथा उनके पास अच्छे औजार आदि भी नहीं थे परन्तु वे फिर भी आपस में मिलकर लगभग 12 पौण्ड पिनों का निर्माण कर लेते थे। एक पौण्ड में सामान्यतया 4,000 से अधिक पिन होते हैं। इस प्रकार 10 व्यक्ति 48,000 पिन बना लेते थे। इस तरह से एक व्यक्ति के हिस्से में 4800 पिन आये अर्थात् उसने एक दिन में 4800 पिनों का निर्माण किया। परन्तु यदि प्रत्येक श्रमिक अलग-अलग पिन बनाता तो सम्भवतया एक श्रमिक एक दिन में 20 पिन भी नहीं बना पाता।”

श्रम-विभाजन के लाभ

श्रम-विभाजन एडम स्मिथ का प्रारम्भिक तथा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है जो बाद में चलकर मूल्य सिद्धान्त तथा मार्क्सवाद का आधार बना इसके प्रमुख लाभ निमलिखित हैं-

  1. कुल उत्पादन में वृद्धि- श्रम-विभाजन में प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुरूप वही कार्य करता है, जो उसे पसन्द होता है। इसलिए वह अपनी क्षमता का अधिकतम उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पादन करता है। इसके परिणामस्वरूप कुल उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।
  2. कार्यकुशलता में वृद्धि- एक ही कार्य करते-करते व्यक्ति को उस कार्य में दक्षता प्राप्त हो जाती है तथा मनुष्य की कार्यकुशलता बढ़ जाती है।
  3. समय की बचत- चूँकि प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना कार्य ही करता है इसलिए सारा कार्य एक क्रमबद्ध रूप से कम समय में सम्पन्न होता रहता है। इसके विपरीत, यदि एक ही व्यक्ति को सारे कार्य करने पड़े तो निश्चित रूप से अधिक समय लगेगा।
  4. 4. आविष्कार की जननी- श्रम-विभाजन आविष्कार की जननी है। जब किसी व्यक्ति को लगातार एक हा कार्य करना पड़ता है ऐसे में उसका यही प्रयास रहता है कि वह कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य किस प्रकार करें। इस प्रक्रिया में उसकी कार्यविधि के दौरान ही कभी-कभी उसके हाथ कोई ऐसी विधि लग जाती है, जिससे कार्य आसानीपूर्वक होता रहता है।

श्रम-विभाजन के दोष

ब्रम-विभाजन के उपर्युक्त वर्णित लाभों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

  1. काम से अरुचि- मानव स्वभाव प्रकृति से परिवर्तनशील है। वह नित नये परिवर्तन की अपेक्षा करता है। इस स्वभाव के विरुद्ध यदि किसी व्यक्ति को लगातार एक ही कार्य करना पड़ता है तो उसे उस कार्य से अरुचि हो जाती है, जिसका प्रभाव उसकी कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता पर पड़ता है।
  2. लघुस्तरीय उत्पादन के लिए असम्भव- श्रम-विभाजन अधिक भली प्रकार से वहीं लागू हो सकता है जहाँ कि उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है तथा वस्तु का बाजार विस्तृत है। इसके विपरीत संकुचित बाजार वाली वस्तुओं जिनका कि उत्पादन प्रायः निम्न स्तर पर किया जाता है, के उत्पादन के लिए श्रम विभाजन अनुपयुक्त है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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