इतिहास / History

इटली के एकीकरण की पृष्ठभूमि | इटली के एकीकरण के लिए प्रमुख विचारधाराएँ | इटली के एकीकरण में बाधाएँ | इटली के एकीकरण का क्रमिक विकास

इटली के एकीकरण की पृष्ठभूमि | इटली के एकीकरण के लिए प्रमुख विचारधाराएँ | इटली के एकीकरण में बाधाएँ | इटली के एकीकरण का क्रमिक विकास

इटली के एकीकरण की पृष्ठभूमि

(Background of the Italian Unification)

19वीं शताब्दी में इटली मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति था; क्योंकि इसमें अनेक राज्य थे जिनके शासकों का आपसी हित एक-दूसरे के विपरीत थे। ये शासक इटली की राजनीतिक एकता के विरुद्ध थे; क्योंकि एकता की हालत में अनेक शासकों को अपनी गद्दी से हाथ धोना पड़ता। फिर भी, 19वीं सदी में ही कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिनके कारण इटली में राष्ट्रवाद का उदय हुआ और बहुत सी क्रांतिकारी संस्थाओं का जन्म हुआ जिन्होंने इटली के एकीकरण में हाथ बंटाया और अंततः इटली 1870 ई० में एक राष्ट्र के रूप में उदित हुआ।

एकीकरण के सहायक तत्त्व- इटली में अनेक राज्य थे और इनके शासकों का आपसी हित एक-दूसरे से टकराता था, फिर भी इटली में कुछ ऐसी परिस्थितियां मौजूद थीं जिनके कारण इटली में एकीकरण की भावना मुखर होती गई। इटली में एक ही नस्ल के लोग थे और उनकी भाषा भी एक ही इतालवी थी। इसके अलावा उनका धर्म भी रोमन कैथोलिक था। उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण उनका सांस्कृतिक जीवन एक समान था। इटली के निवासी अनेक राज्यों में रहते हुए भी एकता महसूस करते थे और राष्ट्रीयता की बढ़ती लहर में राजनीतिक एकता प्राप्त कर वे एक बलशाली राष्ट्र के रूप में यूरोप में इटली को पेश करना चाहते थे।

इसके अलावा फ्रांस की सेना जब इटली में घुसी तो उसने क्रांतिकारी नारों-‘समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व-का सहारा लिया। पद्दलित् इटलीवासी इन नारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी सहानुभूति क्रांतिकारी सेना के साथ दिखाई। लेकिन, इटलीवालों का भ्रम शीघ्र ही टूट गया, जब उन पर विदेशी शासक नेपोलियन का शासन शुरू हुआ। शासन की सुविधा के लिए नेलोलियन ने इटली के बहुसंख्यक राज्यों की संख्या घटा दी और इस तरह इटली के एकीकरण के लिए भौतिक पृष्ठभूमि तैयार की। इसके अलावा उसने शासन की सुविधा के लिए एक ही तरह का कानून पूरे इटली पर लागू किए, जो फ्रांसीसी क्रांति की उपज थे। ये कानून निश्चित रूप से इटली के कानूनों से उदार थे। नेपोलियन के इस कार्य ने भी इटली को प्रशासनिक एकता प्रदान की। लेकिन, नेपोलियन को इटली के एकीकरण के प्रति सबसे महत्वपूर्ण देन राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारना था। नेपोलियन के शासन का इटली में विरोध होने लगा और इस प्रतिरोध में इटलीवासियों ने एक साथ मिलकर फ्रांसीसी सेना का सामना किया। इसके परिणामस्वरूप उनमें भावनात्मक एकता का संचार हुआ।

1815 ई. के वियना काँग्रेस ने इटली को पूनः विभाजित कर दिया और उस पर आस्ट्रिया का आधिपत्य स्थापित कर दिया। फिर भी, इटली के राज्यों की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी की फ्रांसीसी क्रांति के पूर्व पी। इटलीवासी 1815 ई० की वियना व्यवस्था का विरोध करते थे। इस विरोध के फलस्वरूप कई संस्थाओं का जन्म हुआ-कार्योनरी, युवा इटली-जिन्होंने इटली के एकीकरण के लिए प्रयास किया।

इटलीवासी एकीकर्ण के लिए आर्थिक समृद्धि आवश्यक समझते थे। उनके विचार में राजनीतिक एकीकरण के पहले देश का आर्थिक एकीकरण आवश्यक था। इटली के व्यवसाय, कृषि और उद्योग पिछड़े हुए थे। इनकी तरक्की के लिए कई सफल प्रयास किए गए और तदनुसार सार्डिनिया में नए कानून बनाए गए।

इटली के एकीकरण के लिए प्रमुख विचारधाराएँ-

इटली के एकीकरण के लिए तीन तरह की विचारधाराओं का उदय हुआ-

  1. गणतंत्रवादी सिद्धांत- मेजिनी इटली का एक देशभक्त था। वह इटली की राष्ट्रीय एकता हेतु गणतंत्र स्थापित कर करना चाहता था।
  2. जीयोबर्टी (Gioberti) का संघीय राज्य का सिद्धांत- जीयोबर्टी पोप के अंतराष्ट्रीय रूप से फायदा उठाकर उसी अधीन इटली के सभी राज्यों के संघ का समर्थक था।
  3. सांविधानिक राजतंत्र के सिद्धांत- कावूर सांविधानिक राजतंत्र में विश्वास करता था और उसका विश्वास था फिर भी वह निरंकुश राजतंत्र का आलोचक था और आम जनता की सहमति से सांविधानिक राजतत्र का समर्थक था। वास्तव में उसका विचार तत्कालीन परिस्थिति में व्यवहार कुशल था; क्योंकि उसका प्रमुख मकसद इटली का एकीकरण था।

इटली के एकीकरण में बाधाएँ-

इटली के एकीकरण का मार्ग अनेक बाधाओं से भरा हुआ था। वास्तव में इटली के प्रबुद्ध तथा व्यापारी वर्ग के लोग राष्ट्रीय एकता के लिए बेताब थे; क्योंकि उन्हें इससे लाभ की आशा थी। लेकिन, देश को अधिकांश जनता अशिक्षित और गरीब थी, जिसको राष्ट्रीय एकता से कुछ लेना-देना नहीं था। ऐसी हालत में बिना आम जनता की सहायता के कोई आंदोलन सफलतापूर्वक चलाना संभव नहीं था। इसके अतिरिक्त तत्कालीन इटली में अनेक छोटे-छोटे राजा राज्य कर रहे थे। इन राजाओं को भय था कि किसी तरह की उदारवादी राष्ट्रीय एकता के लिए चलाए गए आंदोलन में उनके निरंकुश राजतंत्र की समाप्ति के साथ ही उनकी अपनी राजगद्दी भी नहीं रहेगी; क्योंकि एकीकृत इटली का एक ही राजा हो सकता था।

इटली के एकीकरण में आस्ट्रिया सबसे बड़ा बाधा उपस्थित कर रहा था। वास्तव में आस्ट्रिया के अधीन इटली के दो प्रांत-लोम्बार्डी और वेनेशिया थे, फलतः इटली में उसका प्रत्यक्ष और सीधा स्वार्थ था और इसके चलते वह इटली में चल रहे किसी आंदोलन को दबाने के लिए अपने को नैतिक रूप से जिम्मेवार मानता था। इतना ही नहीं, यूरोपीय व्यवस्था के अनुसार आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिख यूरोप का पुलिस था और इस हैसियत से वह किसी भी यूरोपीय देश में उदारवादी एवं राष्ट्रवादी आंदोलन को कुचलना अपना पवित्र कर्तव्य समझता था। कमजोर एवं विभाजित इटली आस्ट्रिया के शक्तिशाली हस्तक्षेप को अपने क्षेत्र से अलग रखने में सक्षम नहीं था।

इटली के एकीकरण में पोप भी अडंगा डालता था। वास्तव में पोप को भय था कि इटली के एकीकरण की अवस्था में उसका अन्य छोटे-छोटे राज्यों में हस्तक्षेप का अधिकार समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत एकीकृत इटली पोप के धार्मिक अधिकार को चुनौती दे सकता था।

इटली के एकीकरण में विदेशी शक्तियां भी बहुत चाव नहीं ले रही थीं। उदारवादी देशः यथा-फ्रांस और इंगलैण्ड-इटली की आस्ट्रिया से स्वतन्त्रा चाहते थे, लेकिन इटली के एकीकरण के प्रति उनमें कोई खास उत्साह नहीं था। ईसाई जगत का प्रमुख पोप इटली में ही रहता था, अतः यूरोप का प्रत्येक देश मध्य युग से ही किसी-न-किसी रूप में इटली में अपना प्रभाव कायम रखना चाहता था और यह इटली के राष्ट्रीय एकता प्राप्त करने के बाद संभव नहीं था।

आंतरिक बाधाओं में राजतंत्र का विरोध तो था ही, साथ ही उस कुलीनवर्ग का भी विरोध था जो अपने-आपको चर्च, धर्मसंघ और शक्ति का रक्षक मानता था और इन सबका संरक्षक आस्ट्रिया था। राजनीतिक विषमताएं आर्थिक कारणों से और भी उप हो गई; क्योंकि दक्षिणी इटली अविकसित और पामीण था तथा उत्तरी इटली अर्द-औद्योगिक।

इटली के एकीकरण के मार्ग में सामंत्वर्ग और कुलीनवर्ग भी बाधक थे, जो सामंतवादी तथा जागीरदारी प्रथा को और मजबूत करके अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। उनकी शक्ति उनकी जागीरें तथा राजनीतिक प्रभुती थी। इटली में औद्योगिक क्रांति भी अपने चरण नहीं रख पाई थी। ऐसी हालत में जमीन के मालिकों, अर्थात सामंतों की समाज में पूछ थी और ये सामंत राष्ट्रीय एकता के पक्ष में नहीं थे; क्योंकि इन्हें भय था कि राष्ट्रीय एकता हासिल करने में इटली में उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पहले वाली नहीं रह जाएगी।

इटली के एकीकरण का क्रमिक विकास

(Gradual Development of Italian Unification)

नेपोलियन की इटली विजय और फ्रांस की क्रांतिजनित शक्तियों ने इटली के एकीकरण के मार्ग को प्रशस्त किया। नेपोलियन की पराजय के पश्चात यूरोप में प्रतिक्रिया का राज्य व्याप्त हो गया और इटली को पुनः विभाजित कर दिया गया, जहाँ आस्ट्रिया का बोलबाला कायम हुआ। फिर भी इटली के देशभक्त राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयास करते रहे। कुछ राष्ट्रभक्तों ने कार्बोनरी’ नामक एक गुप्त संस्था की स्थापना की, जो नेपल्स के अलावा देश के अन्य भागों में फैल गई। इस संस्था ने गुप्त रूप से कई विद्रोहों का आयोजन किया और क्रांतिकारी भावना का प्रचार आरंभ किया। 1820 ई. के नेपल्स के विद्रोह में कार्बोनरी का हाथ था, फलतः मेटरनिख ने इसके सदस्यों को कुचलने का हर संभव प्रयास किया।

1830 ई० की फ्रांसीसी क्रांति के परिणामस्वरूप इटली में भी क्रांति हुई। पोप की रियासतों तथा पर्मा और मोडेना में भी विद्रोह हुए। विद्रोहियों को लुई फिलिप से सहायता को आशा थी, लेकिन उनकी यह आशा पूरी नहीं हुई और अंत में मेटरनिख ने एक बार फिर विद्रोहियों का दमन किया।

मेजिनी और ‘युवा इटली’ की स्थापना- 1815 से 1831 ई. तक इटली के एकीकरण के लिए किए गए सार प्रयल विफल हो चुके थे और घोर निराशा का वातावरण छा गया था। ऐसी ही निराशाजनक परिस्थिति में इटली में राष्ट्रीय आंदोलन के नेता मेजिनी (Giuseppe Mamini) का प्रादुर्भाव हुआ। उसके दिमाग में संयुक्त इटली का स्वरूप जितना स्पष्ट और निश्चित था उतना किसी अन्य व्यक्ति के दिमाग में नहीं था। उसने इटली की दुर्दशा का वर्णन इन शब्दों में किया है, “हमारे पास न राष्ट्रीय झंडा है, न राजनीतिक नाम है और न यूरोपीय राष्ट्रों में हमारी कोई प्रतिष्ठा है। किसी भी रियासत में प्रेस की आजादी नहीं है, न कोई सभा कर सकता है और न भाषण की स्वतंत्रता है। सब लोग मिलकर कोई प्रार्थनापत्र नहीं दे सकते। विदेशों से पुस्तकें नहीं मँगाई जा सकतीं। शिक्षा के विषय में कोई स्वतंत्रता नहीं है।” मेजिनी का काम था लोगों को शिक्षा देकर यह अनुभव कुराना कि कृत्रिम राजनीतिक सीमाओं के बावजूद इटली में सजीव एकता है। उनकी परम्पराएं एवं ऐतिहासिक स्मृतियाँ एक हैं। वे एक राष्ट्र के नागरिक हैं और एक ही भाषा बोलते हैं। मेजिनी ने 1830 ई. की क्रान्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी-कार्बोनरी संस्था का सदस्य होने के कारण उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।

कारागार में मेजिनी को अनुभव हुआ कि इटली का एकीकरण कार्बोनरी की योजना के अनुसार नहीं हो सकता। 1831 ई० में उसने ‘युवा इटली’ (Young Italy) नामक संस्था की स्थापना की, जिसने नवीन इटली के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘युवाशक्ति में मेजिनी का अटूट विश्वास था। वह कहा करता था, “यदि समाज में क्रांति लानी है तो विद्रोह का नेतृत्व युवकों के हाथ में दे दो। युवकों के हृदय में असीम शक्ति छिपी हुई। जनसाधारण पर उनकी आवाज का जादू के समान असर होता है।” ‘युवा इटली’ संस्था का मुख्य उद्देश्य था- इटली की एकता एवं स्वतंत्रता की प्राप्ति तथा स्वतंत्रता, समानता और जनकल्याण के सिद्धान्त पर आधृत राज्य की स्थापना। मेजिनी के विचार का प्रभाव इतना व्यापक हुआ कि दो वर्षों के भीतर ही ‘युवा इटली’ के सदस्यों की संख्या साठ हजार तक पहुंच गई। इस प्रकार, मेजिनी के प्रयासों के परिणामस्वरूप इटली के निवासियों का राजनीतिक क्षितिज और विस्तृत हो गया एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए वहाँ एक शक्तिशाली जनमत तैयार हो गया।

मेजिनी के जीवन का एक ही धर्म था-इटली का एकीकरण । वह कहा करता था कि यह धर्म मनुष्य की उच्चतम भावनाओं को स्पंदित करता है, इसके लिए पूर्ण आत्मोत्सर्ग और तल्लीनता की आवश्यकता है। उसने युवकों को कहना प्रारंभ किया, ‘तुम देश-देश और गांव-गाँव में स्वतंत्रता की मशाल लेकर जाओ, जन्ता को स्वतंत्रता के लाभ समझाओ और उसे एक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित करो, जिससे लोग उसकी पूजा करने लगे। उनके हृद्य में इतना साहस और सहन्-शक्ति भर दो कि स्वतंत्रता देवी की आराधना के लिए उन्हें जो यातनाएँ और कारागार के कष्ट भोगने पड़ें, उनसे वे नहीं घबड़ाएं।” इस संस्था के माध्यम से उसने यह समझाना प्रारंभ किया कि इटली भी एक देश है, यह भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है।

मेजिनी इटली का जननेता बन गया था। अनगिनत लोगों ने उत्साह के साथ उसके कार्यों एवं विचारों का अनुमोदन किया। उसकी संस्था ‘युवा इटली’ में सैकड़ों युवक भरती होने लगे। इटली के अनेक राज्यों में इस संस्था की अनेक शाखाएं खोली गई। दो वर्षों के अंतर्गत लगभग 60,000 युवक इसके सदस्य बन गए। 1848 ई. की क्रांति के समय मेजिनी इटली में गणतंत्र की स्थापना के लिए प्रयलशील हुआ, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। फिर भी उसका यह प्रयल बाद के समय के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा।

‘युवा इटली’ का एकमात्र उद्देश्य इटली को आस्ट्रिया के प्रभाव से मुक्त कर उसका एकीकरण करना था। मेजिनी कट्टर गणतंत्रवादी था और चाहता था कि एकीकरण का कार्य पूरा होने पर देश में गणतंत्रीय सरकार कायम हो। इटली के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए मेजिनी राष्ट्रीय मुक्ति का प्रतीक बना।

1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति और इटली- 1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव संपूर्ण यूरोप पर पड़ा। इस क्रांति के परिणामस्वरूप आस्ट्रिया में भी क्रांति हुई और मेटरनिख को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। मेटरनिख के पुलायन से इटलीवासी खुश हुए और इटली में आस्ट्रिया के विरुद्ध विद्रोह हो गया। पीडमौंट-सार्डिनिया के राजा चार्ल्स अल्बर्ट ने आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और इटली के सारे देशभक्तों ने सार्डिनिया की तरफ से आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया। लेकिन, आस्ट्रिया की सेना ने इस विद्रोह को शीघ्र ही दुवा दिया। चार्ल्स अल्बर्ट ने हताश होकर गद्दी अपने पुत्र विक्टर इमैनुएल द्वितीय को सौंप दी। फिर भी, चार्ल्स अल्बर्ट का यह युद्ध व्यर्थ नहीं गया। पूरे इटली के लोगों को यह विश्वास हो गया कि बिना आस्ट्रिया को पराजित किए हुए इटली का एकीकरण नहीं हो सकता और पूरे इटली के राज्यों में सुार्डिनिया-पीड्मौंट ही आस्ट्रिया का मुकाबला कर सकता है। इसके लिए सैनिक तैयारी और जन-सहयोग भी आवश्यक समझा जाने लगा। आस्ट्रिया से मुकाबला करने के लिए अकेला सार्डिनिया सक्षम नहीं था, अत: यह भी महसूस किया गया विदेशी सहायता प्राप्त कर ही इटली का एकीकरण हो सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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