अनुसंधान क्रियाविधि / Research Methodology

सांख्यिकी की सीमाएं (Statistic limits in Hindi)

सांख्यिकी की सीमाएं (Statistic limits in Hindi)

सांख्यिकी की सीमाएं

यद्यपि सांख्यिकी वैज्ञानिक महत्व युक्त है, परन्तु इसके प्रयोग की सीमाएं भी हैं । तथ्यों का संकलन, विश्लेषण तथा विवेचन प्रविधियों में सीमाओं का ध्यान रखना नितान्त आवश्यक होता है, अन्यथा निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण हो सकते हैं। सांख्यिकी की प्रमुख सीमाओं को निम्नानुसार समझा जा सकता है-

  • संख्यात्मक अध्ययन की सीमितता

सांख्यिकी का उपयोग केवल उन्ही अध्ययनों में किया जा सकता है जिनमें तथ्यों को संख्याओं के रूप में स्पष्ट करना सम्भव होता है। अधिकांशतः सामाजिक घटनाये गुणात्मक होती हैं, यथा-जनसमुदाय की सांस्कृतिक विशेषताओं, नैतिकता तथा चरित्र को ऑकड़ों में नहीं मापा जा सकता है।

  • व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन का अभाव

सांख्यिकी का प्रयोग मात्र वर्गों के अध्ययन हेतु किया पा सकता है न कि व्यक्तिगत मूल्यों के संदर्भ में । सांख्यिकी द्वारा व्यक्तिगत इकाइयों के संदर्भ में नहीं दिये जा सकते हैं और न ही अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

सांख्यिकी की उपयोगिता एवं महत्व (Usefulness and importance of statistics in hindi)

  • भ्रमपूर्ण निष्कर्ष प्राप्ति की सम्भावना

सांख्यिकी के आधार पर जो निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं उनकी विश्वसनीयता बहुत अधिक नहीं होती है। इस प्रकार के निष्कर्ष अथवा परिणाम अपूर्ण तथा अस्पष्ट होते हैं जो वास्तविकता से पृथक एक सामान्य दशा को व्यक्त करते है।

  • सांख्यिकी परिणाम औसत के सूचक होते है

सांख्यिकी की यह सीमितता यह इंगित करती है। कि सांख्यिकी द्वारा जो भी परिणाम प्राप्त होते हैं वो प्रायः औसतन मान के रूप में ही रहते हैं। जहाँ एक ओर सांख्यिकी औसत को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान देती है, वहीं दूसरी तरफ औसत मान दीर्घकाल में उपयोगी नहीं रह पाते हैं। औसत मान सदैव परिवर्तित होता रहता है, साथ ही यह एक सामान्य प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है।

  • उपयोग हेतु विशेष ज्ञान की आवश्यकता

अनुसंधान कार्य में सांख्यिकी का कुशल प्रयोग करने के लिए विशेष ज्ञान आवश्यक होता है। सांख्यिकी आधार पर तथ्यों के संकलन, सारणीयन, विश्लेषण तथा विवेचना आदि का समुचित ज्ञान होना नितान्त जरूरी है।

  • गहन अध्ययन हेतु उपयुक्त

गहन अध्ययन की शोध पद्धतियाँ में सांख्यिकी का प्रयोग करना लाभदायक नहीं होता है क्योंकि गहन अध्ययन विषयों में जीवन की सूक्ष्म घटनाओं के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष प्राप्त नहीं किये पा सकते हैं। इस प्रकार की अध्ययन शैली के अन्तर्गत वैयक्तिक अध्ययन तथा सहभागी अवलोकन पद्धतियाँ ही प्रभावी हो सकती हैं जो वास्तविक दशाओं को स्पष्ट करती हैं।

  • पद्धति की अपूर्णता

सांख्यिकी एक सम्पूर्ण पद्धति नहीं है अर्थात सांख्यिकी का उपयोग करके प्राप्त परिणामों को तभी सच माना जा सकता है जब अन्य पत्तियों द्वारा उनकी प्रामाणिकता की पुष्टि कर ली जाए।

  • आँकड़ों में सजातीयता एवं एकरूपता की अनिवार्यता

इस सीमितता के अन्तर्गत आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करके उपयोगी निष्कर्ष निरूपित किये जाते हैं, परन्तु तुलना के लिए आँकड़ों का समान प्रवृत्ति का होना अनिवार्य होता है। समंकों की समानता की दशा को सजातीयता अथवा एकरूपता कहते हैं। आँकड़ों के सजातीयता होने पर ही निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं । तथ्यों में भिन्नता की दशा में त्रुटिपूर्ण परिणाम प्राप्त होते हैं।

  • सांख्यिकी साधन प्रस्तुत करती है उसका समाधान नहीं

प्रो० बाउले का विचार है कि सांख्यिकी का कार्य समंको को संकलित कर प्रस्तुत करना होता है न कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचना। सांख्यिकी के द्वारा हमें मात्र कुछ तथ्य प्राप्त होते हैं, जिनके आधार पर समस्या समाधान का कार्य शोधकर्ता का होता है। यदि शोधकर्ता स्वयं योग्य और कुशल नहीं होगा तो वह किसी उपयोगी निष्कर्ष पर नही पहुँच सकता है। कोई व्यक्ति चाहे तो इनको परिणाम रूप में उपयोग कर सकता है। अतः उपरोक्तानुसार स्पष्ट होता है कि सांख्यिकी एक साधन एक मात्र है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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