अनुसंधान क्रियाविधि / Research Methodology

सहभागी अनुसंधान के दोष (sahbhagi anusandhan ke dosh)

सहभागी अनुसंधान के दोष (sahbhagi anusandhan ke dosh)

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सहभागी अनुसंधान के दोष

हालांकि सहभागी अनुसंधान तकनीक को मानवशास्त्रीय शोध की आत्मा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है, लेकिन सहभागी अनुसंधान तकनीक की भी अपनी कुछ सीमायें हैं जिसके कारण सभी प्रकार के अध्ययन एवं सभी प्रकार की सूचना पाने के लिए सहभागी अनुसंधान तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। सहभागी अनुसंधान तकनीक के निम्नलिखित दोष प्रकट होते हैं-

  1. भावनात्मक संबंध के कारण सूचना प्रभावित

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता अपने सूचनादाताओं के समूह के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। उसके तथा सूचनादाताओं के बीच भावनात्मक संबंध का विकास हो जाता है। भावनात्मक संबंध के कारण एक सहभागी अनुसंधान कर्ता दृष्टि दोष का शिकार हो जाता है। इसके कारण बह सच्चाई जानने में वह विफल हो जाता है। इस प्रकार शोधकर्ता तथा सूचनादाता के बीच भावनात्मक संबंध के विकास के कारण सूचनाएं प्रभावित हो जाती हैं ।

  1. पक्षपातपूर्ण निर्णय

एक मानवशास्त्री को सामातिक मूल्य निर्धारण में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। सामाजिक मूल्य निर्धारण में उसे सांस्कृतिक सापेक्षवाद की अवधारणा में आचारशास्त्रीय नियम के रूप में पालन करना पड़ता है। वह किसी समाज की संस्कृति का वर्णन पक्षपात रहित ढंग से प्रस्तुत करता है। वह अपनी सांस्कृतिक मूल्यों के साथ तुलना नहीं करता है तथा उस संस्कृति को ऊँच-नीच, विकसित-अविकसित, अमीर- गरीब इत्यादि सापेक्षिक शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं करता है। लेकिन जब एक सहभागी अनुसंधान कर्ता अपने सूचनादाताओं से भावनात्मक संबंध काज विकास कर लेता है, तब वह सूचनादाताओं का पक्ष लेना शुरू कर देता है जिसके कारण उसके द्वारा संकलित तथ्य पक्षपात पूर्ण हो जाते हैं। वह सही मूल्य निर्धारण में विफल हो जाता है।

  1. अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं की अनदेखी

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता सूचनादाताओं के बीच हमेशा रहता है तथा सूचनादाताओं तथा उस अनुसंधानकर्ता के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है। एक सहभागी अनुसंधान कर्ता उस समाज का सदस्य बन जाता है। सूचनादाताओं एवं अनुसंधानकर्ता के बीच इतनी घनिष्टता बढ़ जाती है कि अनुसंधानकर्ता अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं को नजर अंदाज कर देता है। वह उन सूचनाओं की महत्ता को भूल जाता है। इस प्रकार एक सहभागी अनुसंधान कर्ता द्वारा अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं की अनदेखी कर दी जाती है।

सहभागी अनुसंधान क्या है (What is participatory research in Hindi) सहभागी अनुसंधान के प्रकार

4. मूल्य निर्धारण में पक्षपात की संभावना

सूचनादाताओं तथा एक सहभागी अनुसंधान कर्ता के बीच ऐसे भावनात्मक संबंध विकसित हो जाते हैं जिसके कारण अनुसंधानकर्ता की दृष्टि प्रभावित हो जाती है। उसकी दृष्टि तटस्थ नहीं रह पाती। उसकी दृष्टि सूचनादाताओं का पक्ष लेना शुरू कर देती है। इसके कारण मूल्य निर्धारण में पक्षपात की संभावना बढ़ जाती है।

  1. संकीर्ण अनुभव

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता का अनुभव संकीर्ण हो जाता है। उसका अनुभव उन्हीं लोगों तक सीमित हो जाता है जिनके बीच रहकर वह अपना अध्ययन करता है। उसी स्थान पर निवास करने वाले अन्य लोगों के ऊपर वह ध्यान नहीं देता हैं। अतः एक सहभागी अनुसंधान कर्ता अपना संकीर्ण अनुभव लेकर वापस लौटता है।

  1. सहभागिता की अनुमति नहीं मिलने पर विफलता

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता को अगर सूचनदाताओं द्वारा सहभागिता की अनुमति नहीं मिलती है, तब उसे अपने लक्ष्य में विफल होना पड़ता है। सहभागी अनुसंधान के लिये सहभागिता की अनुमति अनिवार्य होती है, क्योंकि बिना अनुमति के एक सहभागी अनुसंधान कर्ता अपनी सहभागिता नहीं दिखा सकता है। कुछ ऐसे सामाजिक क्रियाकलाप होते हैं जिनमें बाहरी व्यक्तियों की उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। उन क्रियाकलापों में केवल समाज के लोग ही भाग ले सकते हैं। उदाहरण के लिये गर्भधारण अनुष्ठान, नामकरण अनुष्ठान, अन्न प्रासन अनुष्ठान, मुंडन इत्यादि। इन कियाकलापों में भाग लेने के लिये एक अनुसंधानकर्ता को सामाजिक अनुमति नहीं मिल पाती है अतः वह इस प्रकार के सामाजिक कियाकलापों का अनुसंधान अपनी सहभागिता के आधार पर नहीं कर पाता है।

  1. सामाजिक निषेधों के कारण अध्ययन सम्भव नहीं

प्रत्येक समाज में कुछ ऐसे नियम होते हैं जिन्हें निषेध के रूप में पालन किया जाता है । उदाहरण के लिये प्रसवगृह में प्रवेश वर्जित होता है, देवता घर में बाहरी लोगों का प्रवेश निषेध होता है, जादू करते समय किसी का होना वर्जित होता है, नामकरण के समय बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित होता है। इसी प्रकार समाज में कई निषेधात्मक नियम प्रचलित रहते हैं। हालांकि एक सहभागी अनुसंधान कर्ता को उस समाज के सदस्य के रूप में मान्यता प्राप्त होती है तथा उसके एवं सूचनादाताओं के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है, लेकिन एक सामाजिक सदस्य के रूप में उसे भी उन सभी निषेधात्मक नियमों का पालन करना पड़ता है। अतः निषेधात्मक नियमों के पालन के कारण एक सहभागी अनुसंधान कर्ता को अपनी सहभागिता नहीं दर्शाने के लिये बाध्य होना पड़ता है।

  1. व्यक्तिगत सम्बन्ध का अध्ययन सम्भव नहीं

समाज में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कुछ गुप्त सम्बन्ध होते हैं। उन गुप्त सम्बन्धों का अध्ययन सहभागी अनुसंधान द्वारा सम्भव नहीं है, क्योंकि दो व्यक्तियों के गुप्त सम्बन्धों के बीच तीसरे व्यक्ति की सहभागिता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। अत: व्यक्तिगत सम्बन्धों का अध्ययन सहभागी अनुसंधान द्वारा सम्भव नहीं है।

  1. सामाजिक सहमति पर निर्भरता

सहभागी अनुसंधान की सफलता समाज की सहमति पर निर्भर करती है। मान लिया जाये कि एक अनुसंधानकर्ता किसी समाज के विवाह सम्बंधी रीति-रिवाजों का अपनी सहभागिता द्वारा अध्ययन करना चाहता है, लेकिन समाज ने न तो एसे रीति-रिवाजों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है आ र न ही एसे समाज ने भाग लेने की अनुमति प्रदान की है, इस परिस्थिति में एक अनुसंधान कर्ता सहभागी अनुसंधान तकनीक के आधार पर सूचना संकलित कर सकता है। अत: एक सहभागी अनुसंधान की सुफलता सामाजिक आमंत्रण या सहमति पर निर्भर करता है।

  1. अतीत की घटनाओं के अध्ययन में विफल

मान लिया जाये कि कोई घटना पहले ही घटित हो गई है, तब उस स्थिति में उस घटना का अध्ययन सहभागी अनुसंधान द्वारा सम्भव नहीं है। अतः अतीत की घटनाओं के अध्ययन में सहभागी अनुसंधान तकनीक को विफलता का सामना करता पड़ता है।

  1. यौन जीवन का अध्ययन सम्भव नहीं

यौन जीवन एक सामाजिक सच्चाई है। यौन जीवन जीने के लिए समाज में विवाह नामक प्रथा प्रचलित है लेकिन साथ ही समाज में कुछ अवैध यौन सम्बन्ध की घटना भी प्रकाश में आती हैं। वैध यौन सम्बन्ध दो व्यक्ति तक ही सीमित होते हैं। यौन जीवन को प्रत्येक व्यक्ति अपने तक सीमित रखना चाहता है। इस गुप्त व्यवहार में किसी तीसरे व्यक्ति की सहभागिता सम्भव नहीं है। अतः सहभागी अनुसंधान तकनीक द्वारा यौन जीवन से सम्बंधित सूचनाओं को संकलित नहीं किया जा सकता है।

  1. वेश्यावृत्ति का अध्ययन सम्भव नहीं

वेश्यावृत्ति एक सामाजिक रोग है। कोई भी समाज वेश्यावृत्ति को मान्यता नहीं देता है। लेकिन वेश्यावृत्ति गुप्त रूप से एक व्यवसाय के रूप में प्रचलित रहती है। समाज में अवैध यौन सम्बन्ध में लिप्त महिलाओं को वेश्या, छिनार, रखनी, रखैल इत्यादि नामों से जाना जाता है। ऐसी महिलायें अपनी यौन सेवा के माध्यम से पुरुष ग्राहकों को संतुष्ट कर पैसा कमाती हैं। समाज में इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है। चूँकि समाज में वेश्यावृत्ति गुप्त दैहिक धंधा के रूप में प्रचलित है तथा वेश्यागामी पुरुषों को भी हेय दृष्टि से देखा जाता है, अतः वेश्यावृत्ति का अध्ययन सहभागी अनुसंधान तकनीक से सम्भव नहीं है।

  1. अपराधियों के अध्ययन में असफल

अपराधियों के कृत्य समाज विरोधी होते हैं, यही कारण है कि समाज अपराधियों को हेय दृष्टि देखता है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार, आगजनी, दंगा इत्यादि में शामिल व्यक्तियों को अपराधी कहा जाता है। अपराधियों तथा आपराधिक घटनाओं का सहभागी शोध तकनीक के आधार पर अध्ययन नहीं किया जा सकता है।

सहभागी अनुसंधान तकनीक के गुण – इन 21 गुणों के बारे में जाने (Properties of participatory research techniques in Hindi)

  1. सामाजिक राजनीति में निर्लिप्तता

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता के ऊपर यह आरोप लगाया जाता है कि वह उस समाज की राजनीति तथा गुटबाजी में शामिल हो जाता है। जिसका वह अध्ययन करता है। ऐसी स्थिति में वह निष्पक्ष नहीं रह जाता हैं। वह किसी गुट से प्रभावित होकर उसका पक्ष लेने लगता है। कभी-कभी गुटबाजी के कारण एक सहभागी अनुसंधान कर्ता को अपमानित भी होना पड़ता है।

  1. गुप्त व्यवहारों के अध्ययन में विफल

प्रत्येक समाज में कुछ संकेतों के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है तथा कई प्रकार के सामाजिक किया-कलाप सम्पन्न होते हैं। गुप्त व्यवहारों में किसी वाह्य व्यक्ति का हसक्षे बर्दाश्त नहीं किया जाता है। हालाँकि एक सहभागी अनुसंधान कर्ता को समाज के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है, फिर भी अनेक प्रकार के गुप्त व्यवहारों में उसे सहभागी नहीं बनाया जाता है। अतः गुप्त व्यवहारों का अध्ययन सहभागी अनुसंधान तकनीक से सम्भव नहीं है।

  1. काला जादू के अध्ययन में असफल

काला जादू का सम्बन्ध हानि पहुँचाने वाली जादुई क्रियाओं से है। काला जादू करने वालों को डायन, कमाईन इत्यादि नामों से जाना जाता है। काला जादुई क्रियाएं सुनसान स्थान में सम्पन्न की जाती हैं । वहाँ किसी अन्य व्यक्ति की सहमागिता सम्मव नहीं है। अत: काला जादू का अध्ययन सहभागी अनुसंधान कर्ता द्वारा सम्भव नहीं है।

  1. पत्रकारिता दृष्टिकोण

एक सहभागी अनुसंधान कर्ता के ऊपर पत्रकारिता का दृष्टिकोण अपनाने के कारण आलोचना की जाती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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