अभ्यंश | अभ्यंश का अर्थ | अभ्यंश के उद्देश्य | प्रशुल्क एवं अभ्यंश में अन्तर

अभ्यंश | अभ्यंश का अर्थ | अभ्यंश के उद्देश्य | प्रशुल्क एवं अभ्यंश में अन्तर

अभ्यंश (Quota)

व्यापार घाटे को कम करने के लिए प्रशुल्क प्रतिबन्धी (Non-Tariff Barriers) के रूप में कोटा एवं लाइसेंस को प्रभावशाली अस्त्र माना जाता है। विश्व बैंक की सन् 1985 की रिपोर्ट में कहा गया है, “यद्यपि ‘गैट’ (General Agreement on Tariff and trade) के अन्तर्गत प्रशुल्क  दरों में भारी कमी कर ली गयी है, तथापि प्रशुल्क इतर प्रतिबन्धों, विशेष रूप से कोटा तथा लाइसेंस प्रणालियों के प्रयोग को सीमित करना अब तक सम्भव नहीं हो पाया है। संक्षेप में, हाल के दशकों में, “प्रशुल्क स्तर संरक्षणवाद” की प्रवृत्ति बढ़ी है, हालांकि परम्परागत प्रशुल्क दरें कम की गयी हैं।’’

अभ्यंश का अर्थ-

अभ्यंश वह मात्रा है जिसका किसी देश में आयात-निर्यात किया जा सकता है। जब किसी देश की सरकार व्यापार घाटे को पूरा करने अथवा स्थानीय उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने अथवा उपलब्ध विदेशी विनिमय का सुसंगठित ढंग से प्रयोग करने के लिए कम से कम आयात करना चाहती है तो वह विदेशों से आयात की जाने वाली मात्रा का कोटा निर्धारित कर दी जाती है। देश के समस्त आयातक अपने लिए निर्धारित कोटा से अधिक मात्रा का आयात नहीं कर सकते इसके लिए विभिन्न आयातकर्ताओं को निर्धारित मात्रा तक वस्तु का आयात करने का लाइसेंस प्रदान कर दिया जाता है। इसी प्रकार देश में वस्तुओं की पूर्ति बनाये रखने के लिये निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को कोटा निर्धारित कर दिया जाता है। प्रो० हैबरलर के अनुसार, “आयात कोटा के अन्तर्गत, जिस निश्चित मात्रा का आयात किया जा सकता है, उसमें वृद्धि नहीं की जा सकती।”

व्यावहारिक रूप में या तो आयातित वस्तु की मात्रा निर्धारित कर दी जाती है या आयातों का कुल मूल्य निश्चित कर दिया जाता है। जब कोटा की भौतिक मात्रा निश्चित की जाती है तो उसे ‘प्रत्यक्ष कोटा’ कहते हैं। जबकि मौद्रिक राशि में कोटा निश्चित कर दिये जाने पर वह ‘अप्रत्यक्ष कोटा’ कहलाता है।

अभ्यंश के उद्देश्य-

कोटा अथवा अभ्यंश के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(1) आयात को तत्परता तथा प्रभावपूर्ण ढंग से नियमित करने हेतु,

(2) भुगतान सन्तुलन के असन्तुलन को दूर करने हेतु आयातों को प्रतिबन्धित करने हेतु,

(3) विदेशी प्रतिस्पर्धी-वस्तुओं के आयात को प्रतिबन्धित करने, घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने हेतु,

(4) आयातों के प्रवाह पर रोक लगाकर आन्तरिक मूल्य स्तर में स्थिरता बनाये रखने हेतु,

(5) जिन देशों ने हमारे माल के विरुद्ध अभ्यंश प्रणाली का प्रयोग किया हो उनसे प्रतिशोध लेने हेतु आयात अभ्यंश प्रणाली लागू करके आयात मांग कम करना तथा देश की सौदाकारी शक्ति में वृद्धि करना,

(6) आयात क्षेत्र में सट्टकारी प्रवृत्तियों पर रोक लगाना।

प्रशुल्क एवं अभ्यंश में अन्तर-

प्रशुल्क तथा अभ्यंश दोनों का उद्देश्य देश के उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना है। परन्तु अभ्यंश द्वारा आयात की भौतिक सीमा को निर्धारण होता है तथा प्रशुल्क से आयातित वस्तु की मूल्य वृद्धि करके आयातों को हतोत्साहित किया जाता है। आयात की जाने वाली वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी मांग घट जाती है और देश में ही उस वस्तु के उत्पादकों को उसके उत्पादन करने की प्रेरणा मिलती है। यद्यपि सीमा प्रशुल्क के कारण वस्तु की माँग और पूर्ति का साम्य एक सीमा तक असन्तुलित हो जाता है। लेकिन कुछ ही समय में उपभोक्ताओं की कुल मांग और वस्तु की पूर्ति माध्यम से सामन्जस्य होकर साम्य या सन्तुलित मूल्य की स्थापना हो जाती है। इसके विपरीत अभ्यंशों के अन्तर्गत वस्तु की पूर्ति में कमी करके कीमत को बढ़ने दिया जाता है। सीमा प्रशुल्क तथा अभ्यंशों की तुलना निम्न आधार पर की जाती है-

(1) सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत जहां वस्तु के मूल्य को प्रशुल्क द्वारा प्रत्यक्षतः प्रभावित  किया जाता है जबकि अभ्यंश के अन्तर्गत आयात की मात्रा को सीमित करके अप्रत्यक्ष रूप से मूल्य को प्रभावित किया जाता है।

(2) सीमा प्रशुल्क प्रणाली के अन्तर्गत आयातक फर्म तथा विदेशी उत्पादकों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। प्रशुल्क से विदेशी अकुशल उत्पादक प्रोत्साहित होता है जबकि अभ्यंश के अन्तर्गत विदेशी कुशल तथा अकुशल उत्पादों को समान रूप से प्रभावित किया जाता है।

(3) अभ्यंश प्रणाली के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तुओं की अधिकतम मात्रा को कठोरतापूर्वक निर्धारित की जाती है परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत ऐसा नहीं किया जाता है। यदि किसी कारणवश निर्यातक देश की निर्यात घटने लगती है तो सीमा प्रशुल्क में कमी की जाती है।

(4) सीमा प्रशुल्क से सरकार को पर्याप्त राजस्व की प्राप्ति होती है जबकि अभ्यंश के अन्तर्गत राजस्व प्राप्ति की कोई संभावना नहीं होती है। इसी कारण अभ्यंश प्रणाली अन्तर्गत प्रशासनिक कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं जबकि सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत इस प्रकार की प्रशासनिक कठिनाइयाँ उत्पन्न नहीं होती हैं।

(5) अभ्यंश प्रणाली से देश में एकाधिकारी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है जबकि सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत ऐसी संभावना नहीं रहती है।

(6) आयात अभ्यंश आयातक और निर्यातक देशों के बीच कीमतों में भारी अन्तर उत्पन हो जाता है परन्तु सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत लागत-कीमत संरचनाओं के मध्य सम्पर्क बना रहता है।

(7) अभ्यंश के अन्तर्गत ऊँचे लाभ प्राप्त होते हैं जबकि सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत यह संभव नहीं है। ऊँचे लाभ के कारण अभ्यंश के अन्तर्गत उत्पादन के साधन एक उद्योग से दूसरे उद्योग में स्थानान्तरित होते रहते हैं लेकिन ऐसी प्रवृत्ति सीमा प्रशुल्क के अन्तर्गत नहीं पाई जाती है। प्रो० हैबरलर के अनुसार,”आयात अभ्यंश आर्थिक प्रणाली को पूँजीवाद से नियोजन की ओर ले जाता है।”

(8) उपभोक्ताओं को आयात अभ्यंश के अन्तर्गत विभिन्न वस्तु की कीमत सीमा प्रशुल्क की तुलना में अधिक देने से हानि उठानी पड़ती है।

(9) सीमा प्रशुल्क की तुलना में अभ्यंशं अधिक लोचपूर्ण होते हैं क्योंकि आयात लाइसेंस सरकार द्वारा जारी किये जाते हैं जिसमें आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है, जबकि सीमा प्रशुल्क दरें सरकारी अधिनियमों द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जिनमें परिवर्तन एवं संशोधन करना आसान नहीं है।

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