अर्थशास्त्र / Economics

अल्पविकसित अर्थव्यवस्था | अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की परिभाषायें | अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के मूलभूत लक्षण | विकासशील देश की विशेषताएँ

अल्पविकसित अर्थव्यवस्था | अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की परिभाषायें | अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के मूलभूत लक्षण | विकासशील देश की विशेषताएँ | Underdeveloped economy in Hindi | Definitions of underdeveloped economy in Hindi | Basic Characteristics of an Underdeveloped Economy in Hindi | Characteristics of a developing country in Hindi

अल्पविकसित अर्थव्यवस्था

सिंगर (Singer) ने दो कारणों से अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की निश्चित परिभाषा देना कठिन बताया है- 1. अल्पविकसित देशों को अनेक नामों से पुकारा जाता है जैसे- कम आय वाले देश, गरीब देश, पूर्व औद्योगिक अवस्था वाले देश, अविकसित देश, पिछड़े हुये देश, विकासशील देश आदि। 2. प्रचलित साहित्य में अल्पविकास के अनेक मापदण्ड हैं, जैसे- भूमि और जनसंख्या का अनुपात, कुल उत्पादन में औद्योगिक उत्पादन का अनुपात, प्रति व्यक्ति पूँजी का कम अनुपात, निर्धनता, प्रति व्यक्ति नीची आय आदि। स्पष्टतः अल्पविकसित ‘अर्थव्यवस्था के अर्थ के बारे में प्रम उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इसलिये सिंगर ने अल्पविकसित  अर्थव्यवस्था को ‘जिर्राफ’ की भाँति बताया है। जिसका वर्णन करना तो कठिन है, किन्तु जिसे देखकर जाना जा सकता है। हाँ इतना अवश्य है कि कुछ सामान्य लक्षणों के अधार पर इनकी पहचान की जा सकती है।

अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की परिभाषायें

(Definitions of Underdeveloped Economy)

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रकाशन के अनुसार “जिन देशों में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और पश्चिमी यूरोप में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय से कम हैं, वे सभी ‘अल्पविकसित देश’ हैं। बौर एवं यामी के अनुसार, “अल्पविकसित देशों की धारणा का सम्बन्ध उन क्षेत्रों से हैं, जहाँ प्रति व्यक्ति वास्तविक आय और पूँजी की मात्रा उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और आस्ट्रेलिया के स्तरों से नीची है।” यूजीन-स्टैल के शब्दों में, “अल्पविकसित देश वह है, जहाँ जनसाधारण में चिरस्थायी दरिद्रता व्याप्त है।” ऑस्कर लैंज के शब्दों में, “एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वह है, जिसमें उत्पादन की आधुनिक तकनीक केक्षआधार पर उपलब्ध पूँजीगत वस्तुओं का स्टॉक कुल उपलब्ध श्रमशक्ति को काम पर लगाने के लिये अपर्याप्त होता है।” रागनर नर्क्स के शब्दों में, “अल्पविकसित देश वे हैं, जिनकी यदि विकसित देशों से तुलना की जाये, तब वे अपनी जनसंख्या और प्राकृतिक साधनों के सन्दर्भ में स्वल्प पूँजी वाले सिद्ध होते हैं।” मैकलॉयड के शब्दों में, “एक अलपविकसित देश वह है, जहाँ उत्पत्ति के अन्य साधनों की तुलना में उद्यम एवं पूँजी का अनुपात अपेक्षाकृत नीचा है, किन्तु जहाँ अतिरिक्त पूँजी के लाभप्रद निवेश की सम्भावनायें विद्यमान है।” हिक्श के शब्दों में, “एक अल्पविकसित देश वह हैं, जिसमें तकनीकी एवं मौद्रिक साधनों की सीमायें उत्पादन एवं बचत के वास्तविक स्तर के सदृश्य ही नीची होती है।” भारतीय योजना आयोग के अनुसार, “एक अल्पविकसित देश वह है, जिसमें एक ओर अप्रयुक्त या अल्पप्रयुक्त जनशक्ति तथा दूसरी ओर अशोषित साधनों का न्यूनाधिक सह-अस्तित्व पाया जाता है।” वैकव वाइनर के अनुसार, “एक अल्पविकसित देश वह है, जिसमें अधिक श्रम या अधिक पूँजी या अधिक उपलब्ध प्राकृतिक साधनों या इन सभी का प्रयोग करने की अच्छी सम्भावनायें विद्यमान हों, ताकि वर्तमान जनसंख्या के रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठाया जा सके अथवा यदि प्रति व्यक्ति आय का स्तर पहले से ही ऊँचा है, तब रहन-सहन के स्तर में अवनति लाये बिना अधिक जनसंख्या का निर्वाह किया जा सके।” उचित परिभाषा- “अल्पविकसित देश वह है, जहाँ जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक हो, प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय कम हो, प्राकृतिक साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, लेकिन उनका पूर्ण रूप से विदोहन न हुआ हो, निवासियों का जीवन स्तर अत्यधिक निम्न हो, पूँजी निर्माण की गति अत्यन्त धीमी हो, फिर भी वहाँ के निवासी जनसंख्या के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि करने के लिये प्रयत्नशील अथवा प्रगतिशील हों।”

अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के मूलभूत लक्षण

(Basic Features of Underdeveloped Economy)

अल्पविकसित अर्थव्यस्था के मूलभूत लक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर- विकसित देशों की अपेक्षा अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत नीचा होता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से अधिक देश तथा यूरोप के कुछ देश अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में आते है। इन देशों में संसार की तीन-चौथाई जनसंख्या निवास करती है, किन्तु इनके हिस्से में संसार की तीन-चौथाई जसंख्या निवास करती है, किन्तु इनके हिस्से में संसार का 20 प्रतिशत से भी कम सकल राष्ट्रीय उत्पाद आता है। विगत दो दशकों में अल्पविकसित देशों की अपेक्षा विकसित देशों में विकास की दर ऊँची रहीं है। इससे आय के स्तरों में असमानता की खाई अधिक गहरी हुई है। समान्यतः दरिद्रता की उपस्थिति के कारण की केयर्नक्रॉस (Cairncross) ने अल्पविकसित देशों को ‘विश्व अर्थव्यवस्था की गन्दी बस्तियाँ’ कहा है।
  2. कृषि क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता- अॅल्पविकसित अर्थव्यवस्था प्राथमिक वस्तुओं (खाद्यान्न एवं कच्चा माल) की उत्पादनर्त्ता होती है। कार्यशील जनसंख्या का ऊँचा अनुपात कृषि क्षेत्र में संलग्न होता है। भारत, पाकिस्तान, चीन, बांगला देश आदि देशों में 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि व्यवसाय में अपनी जीविका का उपार्जन करती है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा राष्ट्रीय आय में कृषि- क्षेत्र का अंशदान अधिक रहता है। एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा मध्य पूर्व के देशों में दो- तिहाई से तीन-चौथाई तथा इससे भी अधिक जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये कृषि क्षेत्र पर आश्रित है। इसके विपरीत, विकसित देशों की 4 से 6 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही कृषि क्षेत्र में संलग्न है। समस्त अल्पविकसित देशों की राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा रोजगार में इस क्षेत्र के हिस्से में बहुत कम है, जिसका प्रमुख कारण कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति निम्न उत्पादकता है।
  3. बेरोजगारी एवं अल्प-रोजगार की विद्यमानता- विकसित देशों में बेरोजगारी ‘चक्रीय’ प्रकृति की (अल्पकालीन) होती है, यह प्रभावपूर्ण माँग की न्यूवता के कारण उपस्थित होती है। परन्तु अल्पविकसित देशों में बेरोजगारी संरचनात्मक प्रकृति की (दीर्घस्थायी) होती है। इन देशों में अल्प रोजगार अथवा छिपी हुई बेरोजगारी एक प्रमुख विशेषता दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार अल्परोजगार से पीड़ित जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत करती है। इन देशों में अल्प रोजगार अथवा छिपी बेरोजगारी धीमे विकास एवं पूँजी की स्वल्पता का परिणाम होती है। पूँजी के अभाव में ये देश अपने उद्योगों का उस सीमा तक विस्तार नहीं कर पाते हैं कि समूची श्रमशक्ति को खपाया जा सके। इन देशों के कृषि क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक श्रमशक्ति संलग्न होने के कारण ‘अदृश्य बेरोजगारी पाई जाती है। रागनर नक्से (Ranger Nurksce) ने अल्पविकसित देशों में अदृश्य बेरोजगारी की सीमा 25-30 प्रतिशत आँकी है। अदृश्य बेरोजगारी सीमित भूमि पर जनसंख्या के भारी दबाव तथा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के वैकल्पिक अवसरों की अनुपस्थिति का परिणाम होती है। प्रोफेसर नक्से ने छिपे हुये रूप से वेरोजगार व्यक्तियों को अन्यत्र हस्तान्तरण करके पूँजी संचय को बढ़ाने की सिफारिश की, जिससे कि कृषि कार्य में लगे फालतू श्रमिकों को समुचित रोजगार मिल सके।
  4. पूँजी-निर्माण की नीची दर- अल्पविकसित देशों में पूजी की न्यूनता दो प्रकार से दिखाई पड़ती है- 1. प्रति व्यक्ति न्यून पूंजी की उपलब्धता और 2. पूँजी-निर्माण की नीची दर। इस्पात और ऊर्जा का उत्पादन अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति न्यून पूँजी की उपलब्धता के दो महत्वपूर्ण सूचक हैं। प्रति व्यक्ति इस्पात का उत्पादन जहा यू. एस. ए. में 446 किलोग्राम, यू. के. में 202 किलोग्राम, सोवियत रूस में 557 किलोग्राम और जापान में 951 किलोग्राम है, वहीं चीन में 37 किलोग्राम और भारत में 14 किलोग्राम है। प्रति व्यक्ति ऊर्जा का उपभोग चीन में संयुक्त राज्य अमेरिका का 19 प्रतिशत और भारत में 5 प्रतिशत है।
  5. मानवीय पूँजी का निम्न स्तर- अल्पविकसित अर्थव्यवस्था का एक दैदीप्यमान लक्षण मानवीय पूँजी का निम्न स्तर होता है। जहाँ आस्ट्रेलिया, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में निरक्षरता का स्तर 5 प्रतिशत से भी कम है, वहीं अधिकांश अल्पविकसित देशों में निरक्षरता अनुपात बहुत ऊँचा है। उदाहरण के लिये भारत में 35.2 प्रतिशत व्यक्ति निरक्षर हैं। निरक्षरता विकास में अवरोध उपस्थित करती है। व्यापक निरक्षरता के कारण अल्पविकसित देशों के ग्रामीण क्षेत्र अन्धविश्वासों और रूढ़िवादिता के गढ़ होते हैं। अपने भाग्यवादी विचारों के कारण व्यक्ति प्रत्येक किस्म के परिवर्तन का विरोध करते हैं।
  6. जनांकिकीय विशेषतायें- अल्पविकसित देशों में जनसंख्या के आकार और घनत्व में भिन्नता के बावजूद तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या की सामान्य विशेषता पाई जाती है। घटती हुई मृत्यु दर और ऊँची जन्म-दर के कारण इन देशों में जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि दर बहुत ऊँची है। जनसंख्या का 40 प्रतिशत अर्थात् एक बड़ा माग 15 वर्ष तक की आयु समूह का है। कार्यशील जनसंख्या का अनुपात नीचा है। जीवन की औसत प्रत्याशा कम हैं तथा बाल-मृत्यु दर ऊँची है। आश्रितता का अधिक भार अल्प-विकसित देशों की अनोखी विशेषता है। यह भार उत्पादन के प्रतिकूल तथा उपभोग के अनुकूल कार्य करता है, जबकि विकासशील देशों में ‘उपभोग’ से अधिक ‘उत्पादन’ की आवश्यकता होती है। इन देशों की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण है, जो अपनी आजीविका के लिये प्राथमिक क्रियाओं पर आश्रित है। कुपोषण या अल्प-पोषण, दुर्बल स्वास्थ्य और निरक्षरता के कारण जनसंख्या का गुणात्मक स्तर बहुत नीचा है। आम मेहनत करने वाले व्यक्ति को 2000 से 3000 कैलोरी युक्त भोजन की आवश्यकता होती है परन्तु वास्तव में 1500 से 1800 कैलोरी युक्त भोजन ही उपलब्ध हो पाता है। अतः भोजन में पौष्टिक तत्वों का नितांत अभाव जनसंख्या को अनेक बीमारियों का शिकार बनाये हुये है तथा कार्यक्षमता का स्तर भी निम्न रहता है। पौष्टिक भोजन न मिलने का कारण आय का निम्न स्तर है। अल्पविकसित देशों में नागरिकों की औसत आयु भी कम रहती है। भारत में सामान्यतया एक व्यक्ति औसतन 57 वर्ष तक जीवित रहता है। जबकि विकसित देशों में औसत आयु 70 से 75 वर्ष के बीच है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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