अर्थशास्त्र / Economics

अभ्यंशों के प्रकार | अभ्यंश के प्रभाव | अभ्यंशों के आर्थिक प्रभाव | Effects of Quota in Hindi | Types of Quota in Hindi

अभ्यंशों के प्रकार | अभ्यंश के प्रभाव | अभ्यंशों के आर्थिक प्रभाव | Effects of Quota in Hindi | Types of Quota in Hindi

अभ्यंशों के प्रकार (Types of Quota)

(1) प्रशुल्क अभ्यंश (Tariff Quotas)- 

यह सबसे प्राचीन अभ्यंश प्रणली है जिसका चलन सन् 1850 से होने लगा था। इसके अन्तर्गत एवं निश्चित मात्रा तक कर मुक्त अथवा कम आयात कर लेकर माल का आयात किया जा सकता है। किन्तु यदि एक निश्चित मात्रा से आयात अधिक किया जाता है तो इसके लिए दण्ड के रूप में ऊंची दर से आयात कर देना पड़ता हैं। इस प्रकार इसके अन्तर्गत सीमा शुल्क तथा अभ्यंश दोनों प्रणालियों का समावेश होता है।

(2) एक पक्षीय आयात अभ्यंश (Unilateral import Quotas)- 

जब कोई देश दूसरे देश से बिना पत्र व्यवहार तथा समझौते के ही निश्चित अवधि में आयात संबंधी अभ्यंश का निर्धारण कर लेता है तो इसे एक पक्षीय आयात अभ्यंश अथवा स्वायत्त अभ्यंश (Autonomous Quotas) कहा जाता है। इस प्रकार के निश्चित अभ्यंश विश्वव्यापी अभ्यंश (Global Quotas) तथा आवण्टित अभ्यंश (Allocated Quotas) हो सकते हैं।

विश्वव्यापी अभ्यंश की मात्रा के बराबर किसी वस्तु का आयात किसी भी देश से किया जा सकता है जबकि आवण्टित अभ्यंश के अन्तर्गत कुल अभ्यंशों को विभिन्न पूर्तिकर्ता देशों में आवण्टित कर दिया जाता है। ऐसा करते समय पूर्वानुभाव का लाभ उठाया जाता है।

विश्वव्यापी अभ्यंश सामान्य ग्राह्यता की दृष्टि से एक पक्षीय आयात अभ्यंशों में सबसे पहले अपनाया गया था।

(3) आयात लाइसेंसिंग (Import Licensing)-

विश्वव्यापी अभ्यंश प्रणाली की व्यवस्था में आने वाली अनेक कठिनाइयों के निराकरण हेतु अनेक अवसरों पर आयात लाइसेंसिंग प्रणाली को अपनाया गया है। यह प्रणाली आयातों की भरमार (Rush to Import) को नियन्त्रित करती है जिसे नियन्त्रित करने में प्रत्यक्ष रूप से विश्वव्यापी अभ्यंश प्रणाली असफल रही है। इस प्रणाली के अन्तर्गत आयात करने का अधिकार केवल कुछ लाइसेन्सधारी आयातक संस्थाओं अथवा व्यक्तियों को ही दिया जाता है जो एक निर्धारित मात्रा तक ही वस्तु का आयात कर सकते हैं। पुराने आयातकर्ताओं को देश की कुल आयात मात्रा में उनके पूर्व व्यवसाय के हिस्से के आधार पर लाइसेन्स जारी कर दिये जाते हैं।

द्वितीय महायुद्ध के पूर्व इस प्रणाली का अधिक प्रचलन नहीं था लेकिन वर्तमान समय में यह प्रणाली काफी लोकप्रिय हो गई है।

(4) द्विपक्षीय अभ्यंश (Bilateral Quota)- 

इसके अन्तर्गत अभ्यंश आयातकर्ता और निर्यातकर्ता देश के विचार-विमर्श द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर निश्चित किये जाते हैं। दोनों पक्षों के आपसी समझौते के आधार पर अभ्यंश का निर्धारण किये जाने के कारण इसे द्विपक्षीय अभ्यंश कहा जाता है। दूसरे शब्दों में द्विपक्षीय व्यापार समझौते में निर्यात-आयात की मात्राएं ही द्विपक्षीय अभ्यंश हैं। इन अभ्यंशों के माध्यम से वस्तु-विशेष की पूर्ति में होने वाले उतार-चढ़ावों को कम किया जा सकता है तथा पारस्परिक सहमति से आयात-सीमा निर्धारित होने के कारण दोनों देशों में मधुर सम्बन्धों को प्रोत्साहन मिलता है। इसके अन्तर्गत कम विनिमय कोष वाले देश भी भुगतान सन्तुलन को आयात सीमा निर्धारित होने के कारण आवश्यकतओं के अनुरूप आयात करके बनाए रख सकते हैं।

(5) मिश्रित अभ्यंश (Mixed Quota)- 

यह एक नियमन व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह आयात किये गये कच्चे माल के साथ साथ कुछ मात्रा घरेलू कच्चे माल का भी प्रयोग करेगा और इस प्रकार इस व्यवस्था से विदेशी कच्चे माल की एक सीमा निश्चित कर दी जाती है। उदाहरणार्थ भारत अच्छी किस्म का सूती वस्त्र बनाने हेतु जापान तथा मिस्त्र से अच्छी कपास आयात करता है तो इस प्रणाली के अन्तर्गत यह नियम बना दिया जाता है कि देशी कपास के साथ विदेशी कपास मिश्रण करके कपड़े का उत्पादन किया जाए जिससे कपास का आयात कम मात्रा में ही किया जाए।

साधारणत: मिश्रित अभ्यंश प्रणाली प्राथमिक वस्तुओं के मामले में लागू होती है। जिसके अन्तर्गत सूती उद्योग, तेल-ईंधन, पेय, तम्बाकू तथा रबड़ आदि आते हैं।

अभ्यंश के प्रभाव (Effects of Quota)

सीमा प्रशुल्क की भांति अभ्यंशों का भी अर्थव्यवस्था के विभिन्न भागों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। अभ्यंश प्रणाली के अन्तर्गत देश के उपभोक्ताओं के लिए वस्तु की उपलब्धि को सीमित कर दिया जाता है। वस्तु की पूर्ति कम होने से कीमत में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप घरेलू उत्पादकों को अधिक उत्पादन करने की प्रेरणा मिलती है। अभ्यंश विभिन्न प्रभावों का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जाता है-

(1) कीमत प्रभाव (Price Effects)-  आयात अभ्यंश वस्तुओं की भौतिक मात्रा सीमित करके कीमतों में वृद्धि करते हैं। यद्यपि सीमा प्रशुल्क भी मूल्य वृद्धि करता है किन्तु उसका प्रभाव कर की दर तक ही सीमित रहता है। इसके विपरीत अभ्यंश प्रणाली का मूल्यों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। आयात अभ्यंशों के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तु की अधिकतम मात्रा को निश्चित रूप निर्धारित कर दिया जाता है। इसलिए ऐसी स्थिति में कीमतों में वृद्धि की कोई सीमा नहीं होती अर्थात् अभ्यंश प्रणाली के अन्तर्गत कीमतों में कितनी भी वृद्धि हो सकती है।

अभ्यंश का कीमत प्रभाव दो तत्त्वों पर आधारित होता है-

(1) आयातित वस्तु की पूर्ति, तथा (2) आयातित वस्तु की मांग।

आयात अभ्यंश के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तु की मात्रा निश्चित रहने के करण उस वस्तु की देश में जितनी अधिक मांग होगी, उस वस्तु की कीमत में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। इस प्रकार अभ्यंशों के परिणामस्वरूप कीमतों में होने वाले परिवर्तन अनिश्चित होते हैं।

चित्र से आयात अभ्यंशों के कीमत पर पड़ने वाले प्रभावों को प्रदर्शित किया गया है। चित्र में DD घरेलू मांग वक्र है। स्वतंत्र व्यापार की स्थिति में साम्य E बिन्दु पर है जहां मांग व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस बिन्दु पर कीमत EQ अथवा OP है और वस्तु की OQ मात्रा का व्यापार किया जाता है। अब मान लीजिए आयातकर्ता देश में आयात की जाने वाली वस्तु का अभ्यंश OQ1 निर्धारित कर देता है तो ऐसी स्थिति में आयात पूर्ति वक्र SNS1 हो जाता है। जो यह प्रदर्शित करता हैं कि OQ1 मात्रा के पश्चात् पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो जाता है। ऐसी स्थिति में मांग वक्र (DD) तथा पूर्ति वक्र (SNS1 ) एक-दूसरे को E1 बिन्दु पर काटते हैं। अत: कीमत EQ या OP से बढ़कर E1Q1 अथवा OP1 हो जाती है। पूर्ति स्थिति होने पर वृद्धि के साथ-साथ कीमतों में भी वृद्धि होगी। इससे स्पष्ट है कि मांग और पूर्ति की विभिन्न दशाओं के अन्तर्गत मूल्य वृद्धि की सीमा भिन्न होगी।

(2) व्यापार की शर्तों पर प्रभाव (Effects on the Term of Trade)- आयात अभ्यंश निर्धारित करने से एक देश की व्यापार की शर्ते में परिवर्तन हो जाता है। नयी व्यापार की शर्तों अभ्यंश का निर्धारण करने वाले देश के अनुकूल भी हो सकती है तथा प्रतिकूल भी। यदि वस्तु के निर्यात करने वाले देश संगठित हैं तथा प्रस्ताव वक्र (Offer Curve) कम लोचदार है तो व्यापार की शर्ते अभ्यंश निर्धारित करने वाले देश के प्रतिकूल होंगी इसके विपरीत विदेशी नियातकर्ता देश संगठित नहीं है तथा उनका प्रस्ताव वक्र (Offer Curve) लोचदार है तो व्यापार की शर्ते आयात अभ्यंश लगाने वाले देश के अनुकूल होगी। जितना विदेशी प्रस्ताव वक्र लोचदार होगा व्यापार की शर्ते अभ्यंश लगाने वाले देश के अनुकूल होती जायेगी। अभ्यंशों के व्यापार की शर्तों पर पड़ने वाले प्रभाव को चित्र से प्रदर्शित किया गया है।

व्यापार शर्तों पर पड़ने वाले प्रभाव को चित्र में मार्शलीय प्रस्ताव वक्रों (marshal lion Offer Curve) के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। माना कि दो देश जापान और भारत इस्पात तथा कपड़े का परस्पर व्यापार करते हैं। जापान का प्रस्ताव वक्र OA तथा भारत का प्रस्ताव वक्र (Offer Curve) OB है। दोनों वस्तुओं का दोनों देशों के मध्य सन्तुलन मूल्य OP रेखा के ढाल द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। जहां OA तथा OB एक-दूसरे को काटते हैं।

मान लीजिये भारत जापान से आयात किये जाने वाले इस्पात का अभ्यंश OS निर्धारित कर. देता है। इस आयात अभ्यंश पर इस्पात पर कपड़े के मध्य नई व्यापार-स्थिति OP1 अथवा OP2 दोनों के बीच कहीं भी निर्धारित हो सकती है। यह एक द्वैधिकार (Bilateral Monopoly)की स्थिति है। जिसके परिणाम सिद्धान्तत: अनिर्णीत रहते हैं।

भारत के लिए नयी व्यापार स्थिति पहले की तुलना में अनुकूल होगी अथवा प्रतिकूल, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जापान के प्रस्ताव वक्र की लोच अनन्त (Infinity) से कितनी कम है। यदि नई व्यापार स्थिति OP1 पर निर्धारित होती है तो इसका अर्थ यह हुआ कि अभ्यंश के फलस्वरूप भारत की व्यापार स्थिति का निर्धारण OP2 अथवा इसके समीप हो तो इससे भारत के लिए पहले की अपेक्षा प्रतिकूल व्यापार स्थिति होगी। स्पष्ट है कि OP1 व्यापार शर्ते भारत के अनुकूल तथा OP2 इसके प्रतिकूल होगी।

(3) भुगतान सन्तुलन पर प्रभाव (Balance of Payment Effect)-  अभ्यंश प्राणली के माध्यम से एक देश आयात पर मात्रात्मक प्रतिबन्ध लगाकर अपने भुगतान सन्तुलन में विद्यमान असाम्यता को दूर कर सकता है। चूंकि आयात-अभ्यंश के द्वारा आयात की मात्रा को नियन्त्रित किया जाता है इसलिए इसका प्रभाव सन्तुलन पर अनुकूल पड़ता है। कभी-कभी भुगतान सन्तुलन की स्थिति में सुधार करने हेतु मुद्रा संकुचन (Definition) तथा अवमूल्यन (Devalue- action) की विधियाँ अपनायी जाती हैं लेकिन आयात अभ्यंश प्रणाली इन दोनों विधियों से सरल तथा कम हानिकारक है। विकासशील देशों में यह प्रणाली उत्तम मानी जाती है।

लेकिन आयात अभ्यंश प्रणाली का भुगतान पर निम्न परिस्थितियों में अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है-

(1) यदि अभ्यंश लगाने पर निर्यातक देश भी प्रतिशोध की भावना में ऐसे प्रतिबंध लगा देते हैं तो अभ्यंश लगाने वाले देश को लाभ नहीं होगा।

(2) यदि अभ्यंश लगाने से निर्यातक देशों की आयात करने की क्षमता कम हो जाती है तो इससे निर्यात कम हो जायेंगे।

(3) यदि अभ्यंश लगाने से कच्चे माल का उपयोग होने वाली वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाती है तो इसके परिणामस्वरूप इस बिन्दु के निर्यात हतोत्साहित होंगे।

(4) उपभोग और उत्पादन पर प्रभाव (Effects on Consumption & Production)- अभ्यंशों का उपभोग और उत्पादन वस्तु की मांग और पूर्ति आकृतियों पर निर्भर करता है। यदि वस्तुओं की मांग अथवा पूर्ति अत्यन्त बेलोचदार है तो अभ्यंश तथा सीमा प्रशुल्क में कोई अन्तर नहीं रहेगा। अभ्यंश के उपयोग तथा उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को चित्र नं.18.3 से प्रदर्शित किया गया है। “

चित्र में अभ्यंश के पूर्व वस्तु की कीमत OP थी जिस पर उपभोक्ता OQ1 मात्रा का उपयोग करते थे। परन्तु देश में इस कीमत पर उत्पादन की मात्रा OQ ही होने के कारण QQ1 मात्रा का आयात किया जाता था। माना कि सरकार NN इकाइयों का आयात अभ्यंश निर्धारित कर देती है जिसके कारण वस्तु की उपलब्ध मात्रा घट जाती है और वस्तु का मूल्य OP से बढ़कर OP1 हो जाता है। कीमत बढ़ने से देश के उत्पादक वस्तु का उत्पादन OQ से बढ़ाकर ON कर देते हैं जबकि उपभोक्ताओं में इसकी मांग OQ1 से घटाकर ON1 कर देते हैं। इस प्रकार OP1 सन्तुलन मूल्य हो जाता है क्योंकि अभ्यंश के पश्चात् की कुल पूर्ति (ON + NN1 = ON1 ) इसकी कुल मांग के समान हो जाती है।

इससे स्पष्ट है कि अभ्यंश हो अथवा सीमा प्रशुल्क, वस्तु के मूल्य में वृद्धि के कारण उपभोक्ता वस्तु की मांग में कमी कर देते हैं और इसके फलस्वरूप वे स्थानापन्न वस्तु की अधिक मांग करने लगेंगे तथा उन वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होने लगेगी।

(5) अन्य प्रभाव (Other Effects)-  आयात अभ्यंशों के निम्नांकित प्रभाव भी पड़ते हैं-

(1) आय का पुनर्वितरण के रूप में भी आयात अभ्यंशों का प्रभाव पड़ता है। वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने के कारण उपभोक्ताओं से आय उत्पादकों की ओर हस्तान्तरित होती है और इस प्रकार आय का पुनर्वितरण होता है।

(2) अभ्यंश प्रणाली से देश को औद्योगिक संरक्षण (Industrial Protection)प्राप्त होता है जिसके परिणामस्वरूप घरेलू उत्पादन में वृद्धि होती है तथा घरेलू उद्योगों को अवसर मिलता है। इसके प्रभाव तुरन्त दृष्टिगोचर होने लगते हैं। इससे देश के भावी औद्योगिक विकास को एक सुदृढ़ आधार प्राप्त होता है।

(3) अभ्यंश प्रणाली से एकाधिकारी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। इसके अन्तर्गत घरेलू आयातकर्ता अथवा विदेशी प्रतियोगिता से स्वतंत्र रहते हैं और उपभोक्ताओं से ऊँची कीमत वसूल करके उनका शोषण करते हैं क्योंकि जानबूझ कर उत्पादन की मात्रा कम कर देते हैं।

(4) इसके अन्तर्गत आयात लाइसेन्स जारी किये जाते हैं। इससे पक्षपात, लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। विकासशील देश में जहां योग्य और ईमानदार प्रशासन का प्रायः अभाव पाया जाता है, इस प्रकार का भ्रष्टाचार और अधिक बढ़ जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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