शिक्षाशास्त्र / Education

दूरवर्ती शिक्षक प्रशिक्षण की विधि | दूरवर्ती शिक्षक प्रशिक्षण के प्रकार

दूरवर्ती शिक्षक प्रशिक्षण की विधि | दूरवर्ती शिक्षक प्रशिक्षण के प्रकार

दूरवर्ती शिक्षक प्रशिक्षण की विधि

परम्परागत शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत स्टाफ विकास हेतु प्रयुक्त की जाने वाली अधिकांश व्यूह रचनाओं को दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली में भी प्रयुक्त किया जाता है। इन विधियों का प्रयोग दूरवर्ती शिक्षा क्षेत्र की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। इन्हें हम दूरवर्ती शिक्षक-प्रशिक्षण के प्रकार भी कहते हैं। प्रशिक्षण के ये प्रकार निम्नांकित हैं-

(i) कार्यशाला (Workshops)

(ii) फील्ड स्टाफ कार्यक्रम (Field Staff programme)

(iii) हस्त पुस्तिकायें (Manuals)

(iv) व्यावसायिक संघ (Professional Associations)

(v) कार्यरत प्रशिक्षण (In-house Training Programme)

(vi) स्त्रोत संस्थानों/देशों से सहायता (Assistance from Resource Institutes/

Countries)

इन विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् हैं-

(i) कार्यशाला (Workshops) –

दूरवर्ती शिक्षा के क्षेत्र के कार्मिकों/शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की एक प्रमुख विधि कार्यशालाओं का आयोजन है। कार्यशाला की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार होती हैं-

  1. इसके स्पष्ट लक्ष्य एवं उद्देश्य होते हैं जिनकी ओर सभी क्रियाएँ निर्देशित होती हैं।
  2. इसके सहभागियों का एक समांग समूह होता है तथा सामान्यतया उनका इस प्रणाली से सम्बन्ध एक ही स्तर का होता है।
  3. कार्यशालाओं की सामान्य अवधि एक सपताह (8-10 दिन) की होती है।
  4. यह कार्यक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु लक्षित क्रियाओं एवं भागीदारी पर बल प्रदान करता है।
  5. कार्यशालाओं का स्वरूप संस्थानिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का हो सकता है।
  6. स्तर के अनुसार, बाहरी आपूर्ति (External Output) के रूप में यह संस्थानिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की सेवायें प्राप्त कर सकता है।
  7. इसके अन्तर्गत सृजनात्मक कार्यों की भी पर्याप्त सम्भावनायें होती हैं तथा इसके लिए कुछ सहभागियों को छूट एवं उदारता भी प्रदान की जा सकती है। किन्तु सम्भावनायें एवं अनुभवों का कार्यशाला के लक्ष्यों के साथ टकराव नहीं होना चाहिए।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कार्यशाला दूरवर्ती शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करने का एक प्रमुख साधन है तथा निकट भविष्य में भी इसका महत्व कम होने की सम्भावना नहीं है।

(ii) फील्ड स्टाफ कार्यक्रम (Field Staff programme)-

प्रशिक्षण की यह प्रविधि दूरवरती शिक्षा के वास्तविक क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्मिकों के लिए अपनाई जाती है। इसकी प्रकृति भी कार्यशाला जैसी ही होती है किन्तु ये बहुत छोटी अवधि (2-3, दिन) के कार्यक्रम होते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रमों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार की होती है-

  1. ये कार्यक्रम स्थानीय या जिला स्तरीय स्टाफ, क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय स्टाफ, स्थानीय अधिकारियों, राजनैतिक एवं धार्मिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं अभिभावकोंबीआदि के लिए आयोजित किये जाते हैं।
  2. ये कार्यक्रम स्थानीय सहभागियों की सुविधा तथा स्थानीय परिस्थितियों को कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु बनाने के उद्देश्य से स्थानीय क्षेत्रों में ही आयोजित किये जाते हैं।
  3. इस प्रकार के कार्यक्रमों से दो प्रमुख उद्देश्यों की पूर्ति होती है-

(क) स्थानीय लोग अपनी भूमिका का अनुभव करते हुए उसे स्वीकार करते हैं, तथा

(ख) दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली का व्यावसायिक स्टाफ शिक्षार्थियों एवं कार्यकर्ताओं की समस्याओं को उन्हीं के द्वारा अर्थात् प्राथमिक स्त्रोत से ही जान एवं समझ सकता है।

  1. इस प्रकार के कार्यक्रम दूरवर्ती शिक्षा को समुदाय से जोड़ने तथा उसे तद्नुकूल बनाने में सहायक होते हैं।

(iii) हस्त पुस्तिकायें संदर्शिकायें (Manuals)-

दूरवर्ती शिक्षा कार्यक्रम के विभिन्न पक्षों की सूचनाओं से युक्त हस्त पुस्तिकारयें शिक्षार्थियों, इस व्यवसाय के नव-प्रवेशार्थियोंबीतथा वरिष्ठ एवं अनुभवी कार्मिकों सभी के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। इस व्यवसाय के नव प्रवेशार्थियों को इनके माध्यम से स्थापित प्रचलनों, नियमों एवं प्रक्रियाओं, कौशलों एवं तकनीकों आदि की जानकारी प्राप्त होती है।

वरिष्ठ एवं अनुभवी कार्मिकों को इनके माध्यम से दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली के अपरिचित पक्षों का पता चलता है तथा साथ ही ये पुस्तिकाएँ कई प्रकार की नई चुनौतियाँ एवं समस्याओं की ओर भी ध्यान आकर्षित करती हैं। इसके अतिरिक्त कार्यशालाओं एवं फील्ड स्टाफ कार्यक्रमों के आयोजन एवं संचालन में भी ये मार्गदर्शन करती हैं। इस प्रकार हस्त पुस्तिकाएँ स्वयं एक प्रशिक्षण प्रविधि का कार्य करती हैं।

(iv) व्यावसायिक संघ (Professional Associations) –

दूरवर्ती शिक्षा से सम्बन्धित कई व्यावसायिक संघों द्वारा भी विविध ढंगों एवं साधनों से इसके कार्यकर्त्ताओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। इन संघो द्वारा क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों एवं कार्यशालाओं का आयोजन, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन, सर्वेक्षणों एवं शोध निष्कर्षों के प्रकाशन आदि क्रियाकलाप किये जाते हैं। इनका उद्देश्य दूरवर्ती शिक्षा को प्रोत्साहित करना, इसकी तकनकी का विकास करना, विशेषज्ञों के माध्यम से इसके विभिन्न पक्षों की जानकारी प्रदान करना आदि होता है।

इस प्रकार के विकासात्मक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख व्यावसायिक संघों में दूरवर्ती शिक्षा की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद (International Council for Distance Education) तथा अनेक क्षेत्रीय संघ सम्मिलित हैं। कुछ दूसरे संघों जैसे- ‘शिक्षा तकनीकी विशेषज्ञ संघ’, ‘जन संचार संघ’, ‘सतत् एवं प्रसार शिक्षा संघ आदि के अन्तर्गत भी दूरवर्ती शिक्षा को महत्व प्रदान किया जाता है। इस प्रकार व्यावसायिक संघ दूरवर्ती शिक्षकों एवं प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने में एक प्रविधि के रूप में सहायक होते हैं।

(v) कार्यरत प्रशिक्षण (In-house Training Programme)-

इस प्रकार के कार्यक्रम में दूरवर्ती शिक्षा संस्थानों के कार्मिकों को संस्था के अन्दर ही कार्य करते हुए कार्य- कुशलता में वृद्धि हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। वास्तव में यह दिन-प्रतिदिन की संस्थानिक गतिविधियों का ही एक रूप होता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों में स्टाफ के सदस्यों के अनुभवों को जानने, नई तकनीकों के सम्बन्ध में चर्चा करने तथा उन्हें लागू करने हेतु प्रयास करने । विशेषज्ञों को सुनने आदि के लिए स्टाफ बैठकों को आयोजित किया जाता है। कुछ विशिष्ट प्रशिक्षणों के उद्देश्य से इस प्रकार की लम्बी बैठकें स्टाफ की कार्य कुशलता में वृद्धि करती है।

कार्यरत प्रशिक्षण की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें नियमित समीक्षा, निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण के द्वारा कार्मिकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को जानने-समझने का अवसर मिलता है जिससे कमजोरियां कॉ दूर करने हेतु प्रशिक्षण सत्रों की व्यवस्था की जाती है।

इस प्रशिक्षण की तीसरी विशेषता यह है कि इसमें दूरवर्ती शिक्षा संस्थान में कार्यरत विविध क्षेत्रों के व्यावसायिक विशेषज्ञ एक साथ मिलते हैं तथा ऐसी परिस्थितियों की विशेष रूप से चर्चा करते हैं जिनके समाधान हेतु सामूहिक व्यावसायिक सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार विभिन्न सह-कर्मियों द्वारा एक-दूसरे को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इससे जिन विचारों, तकनीकों एवं उपागमों का विकास होता है, उन्हें दूसरी बैठकों में नव-नियुक्त कार्मिकों को भी बताया जाता है। इस प्रकार संस्थान के अन्दर ही कार्यरत कार्मिकों को आवश्यक प्रशिक्षण मिलता रहता है।

(vi) स्त्रोत संस्थानों/देशों से सहायता (Assistance from Resource Institutes/Countries)-

किसी भी नवीन उद्यम हेतु प्रशिक्षण की यह प्रारम्भिक प्रविधि मानी जा सकती है। जो भी देश या संस्था किसी उद्यम को पहले से ही करते हुए उसमें दक्षता प्राप्त कर चुके होते हैं, वे दूसरों को इसके प्रारम्भ के लिए स्रोत या संसाधन का कार्य कर सकते हैं। नव प्रारम्भकत्त्ता इस प्रकार के स्रोतों से चार तरीके से सहायता प्राप्त कर सकते हैं-

(अ) परामर्श द्वारा (Through Consultation)- किसी भी नये दूरवर्ती शिक्षा संस्थान को स्थापित करने अथवा वर्तमान संस्थान में किसी नये कार्यक्रम की शुरुआत करने हेतु देश अथवा विदेश के दूसरे संस्थानों से उस कार्यक्रम के विशेषज्ञों को बुलाकर परामर्श एवं आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है।

(ब) प्रशिक्षुओं को सम्बद्ध करना (Attachment of Trainees) – जिन कार्मिकों को नवीन कार्य दिया जाना है, उन्हें स्रोत संस्थानों में उस कार्य हेतु आवश्यक ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करने हेतु कुछ समय के लिए सम्बद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार ये कार्मिक स्रोत संस्थान के विशेषज्ञों से प्रशिक्षण भी प्रापत करते हैं तथा उस संस्थान के कार्यों में सहायक भी होते हैं।

(स) सम्बन्धित यात्राएँ (Related Visits)- प्रशिक्षिओं द्वारा स्नरोत संस्थानों/ देशों की कार्यक्रम की जानकारी से सम्बन्धित यात्राएँ भी सीमित रूप में सम्बद्धता के समान ही होती है। इसीलिए इन यात्राओं के लाभ भी समिति ही होते हैं। किन्तु नियोजनकर्ताओं, प्रशासकों, निर्देशकों, उच्च पदस्थ शिक्षकों एवं तकनीकी विशेषज्ञो के लिए यह प्रविधि बहुत उपयोगी होती है। इन यात्राओं से आवश्यक जानकारियों का आदान-प्रदान तो होता ही. है, साथ ही कभी-कभी नवीन संयुक्त परियोजनाओं का शुभारम्भ भी हो जाता है।

(द) संस्थाओं को दत्तक बनाना (Adaptions of Institutions)- कुछ सुव्यवस्थित दूरवर्ती स्रोत संस्थाएँ अपने देश अथवा दूसरे देश की किसी स्थापित संस्था में किसी नवीन कार्य का प्रारम्भ करने के लिए उस संस्था को दत्तक बना सकता है अर्थात् तदर्थ गोद ले सकती हैं। स्रोत संस्था इस नवीन कार्य के संचालन हेतु अपने अनुभवी कार्मिकों एवं विशेषज्ञों की सहायता प्रदान करती हैं। इस प्रविधि या उपागम में विशेषज्ञों का यात्राएँ, उनका आदान प्रदान, उपकरणों की सहायता तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था आदि सन्निहित होते हैं।

शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!