अर्थशास्त्र / Economics

औद्योगिक नीति 1991 की प्रमुख विशेषताएँ | औद्योगिक नीति 1991 का मूल्यांकन | भारत की वर्तमान औद्योगिक नीति | भारत की वर्तमान औद्योगिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ

औद्योगिक नीति 1991 की प्रमुख विशेषताएँ | औद्योगिक नीति 1991 का मूल्यांकन | भारत की वर्तमान औद्योगिक नीति | भारत की वर्तमान औद्योगिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ | Salient Features of Industrial Policy 1991 in Hindi | Evaluation of Industrial Policy 1991 in Hindi | Current Industrial Policy of India in Hindi | Salient Features of India’s Present Industrial Policy in Hindi

औद्योगिक नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ

औद्योगिक नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) उदार औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति- इस नीति के द्वारा केवल 18 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यव्था समाप्त कर दी गयी है। जिन 18 उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को अनिवार्य रखा गया है उनके कारणों में सुरक्षा एवं सामरिक नीति, सामाजिक नीति, सामाजिक कारण, वनों की सुरक्षा, पर्यावरण समस्याएँ, हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन एवं धनी वर्ग के उपयोग की वस्तुएँ मुख्य हैं। सरकार ने आशा व्यक्त की है कि 18 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों के लाइसेंसिंग व्यवस्था की समाप्ति से देश में लघु, मध्यस्तरीय एवं दीर्घस्तरीय उद्यमियों को प्रोत्साहित करेगी और देश की औद्योगिक अर्थव्यवस्था अधिकाधिक प्रतियोगी, कुशल एवं आधुनिक बन सकेगी।

14 अप्रैल, 1993 ई0 से मोटरकार, खालें व चमड़ा तथा रेफ्रीजरेटर उद्योगों को लाइसेंसिंग प्रणाली से मुक्त कर दिया गया है। इस प्रकार अब केवल 15 उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग प्रणाली लागू है।

(2) विदेशी विनियोग को प्रोत्साहन- इस नीति में अधिक पूंजी विनियोग और उच्चस्तरीय तकनीक की आवश्यकता वाले उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में विदेशी पूँजी विनियोग को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से ऐसे उद्योगों (जिनकी संख्या 34 है) में बिना किसी रोक-टोक एवं लाल फीताशाही के 51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी के विनियोग की अनुमति दी जायेगी।

(3) विदेशी तकनीक-‌ उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में एक बार में एक करोड़ रूपये तक की विदेशी तकनीक की जानकारी प्राप्त करने के लिए तकनीकी समझौतों को स्वतः स्वीकृति की सुविधा दी जायेगी। इस प्रकार की स्वतः स्वीकृति की व्यवस्था घरेलू बिक्री पर दिये जाने वाले 5 प्रतिशत कमीशन और निर्यात पर दिये जाने वाले 8 प्रतिशत पर भी लागू होगी। यह भुगतान समझौते के 10 वर्ष बाद और उत्पादन शुरू होने के 7 वर्ष बाद तक किया जा सकता है।

(4) सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका- इस नीति के अन्तर्गत ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों को अधिक वित्तीय सहायता दी जायेगी जो औद्योगिक अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए अति आवश्यक है। जो सार्वजनिक उपक्रम वर्तमान समय में ठीक से नहीं चल रहे हैं, लेकिन जिनमें पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं, उन्हें पुनः संगठित किया जायेगा। इस नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या घटाकर केवल 8 कर दी गयी है। सार्वजनिक उपक्रमों में समता पूँजी में सरकारी विनियोग के कुछ भाग का गैर विनियोग अर्थात् अंश पूँजी का कुछ भाग वित्तीय संस्थाएँ, पारस्परिक कोषों, सामान्य जनता एवं कर्मचारियों को निर्गमित किया जायेगा। लगातार वित्तीय संकट में रहने वाले सार्वजनिक उपक्रमों की जाँच औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निमाण बोर्ड (Board for Industrial and financial Reconstruction) या अन्य कोई विशेष संस्थान करेगा। छँटनी किये गये कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना बनायी जायेगी।

(5) एकाधिकारी एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम में संशोधन- इस नीति में घोषणा की गयी कि बड़ी कम्पनियाँ और औद्योगिक घरानों पर एकाधिकारी एवं प्रतिबन्धात्मक बड़े औद्योगिक घरानों और कम्पनियों को नये उपक्रम लगाने, उत्पादन क्षमता बढ़ाने, कम्पनियों का संविलियन या अवशोषण करने अथवा कुछ परिस्थितियों में संचालकों की नियुक्ति करने के लिए केन्द्रीय सरकार की स्वीकृति नहीं लेनी पड़ेगी। सरकार भविष्य में एकाधिकारी, प्रतिबन्धात्मक तथा अनुचित औद्योगिक एवं व्यापारिक प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करने पर अधिक महत्व देगी।

(6) विद्यमान पंजीकरण योजनाओं की समाप्ति- औद्योगिक इकाइयों के पंजीयन के सम्बन्ध में अब विद्यमान सभी योजनाएँ समाप्त कर दी गयी है। अब नयी परियोजनाओं एवं पर्याप्त विस्तार कार्यक्रमों के सम्बन्ध में उद्यमियों को सूचना ज्ञापन (Information Memorandum) ही जमा करना होगा।

(7) स्थानीयकरण नीति- निज उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है, उन्हें 10 लाख से कम जनसंख्या वाले नगरों में किसी भी उद्योग के लिए औद्योगिक अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों के सम्बन्ध में इलेक्ट्रानिक्स एवं अन्य गैर प्रदुषणकारी उद्योगों को छोड़कर सभी औद्योगिक इकाइयाँ ऐसे नगर की सीमा से 25 किलोमीटर के बाहर लगेंगी।

(8) विद्यमान औद्योगिक इकाइयों का विस्तार एवं विविधीकरण- विद्यमान औद्योगिक इकाइयों को नयी विस्तृत पट्टी (Broad Banding) की सुविधा दी गयी है, जिसके अन्तर्गत बिना अतिरिक्त विनियोग के ने किसी भी वस्तु का उत्पादन कर सकती हैं। विद्यमान औद्योगिक इकाइयों का पर्याप्त विस्तार भी लाइसेंसिंग से मुक्त रहेगा।

(9) व्यापारिक कम्पनियों में विदेशी समता अंश पूँजी- अन्तरर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय माल की पहुंच बनाने की दृष्टि से निर्यात करने वाली व्यापारिक कम्पनियों में 51 प्रतिशत विदेशी पूंजी के विनियोग की अनुमति दी जायेगी लेकिन इस प्रकार की कम्पनियों पर भी देश के सामान्य आयात-निर्यात की नीति लागू होगी।

(10) विदेशों से पूँजीगत साज-सामान का आयात- विदेशी पूँजी के विनियोग वाली औद्योगिक इकाइयों पर पुर्ज, कच्चे माल और तकनीकी जानकारी के आयात के सम्बन्ध में सातान्य नियम लागू होंगे लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक विदेशों में भेजे गये लाभांश पर नजर रखेगा जिससे कि बाहर भेजी गयी विदेशी मुद्रा और उस उपक्रम की निर्यात की आय के मध्य सन्तुलन बना रहे।

औद्योगिक नीति, 1991 का मूल्यांकन

भारत सरकार ने औद्योगिक नीति, 1991 ई. को ‘खुली औद्योगिक नीति’ की संज्ञा दी है क्योंकि इसमें अनेक क्रान्तिकारी नीतियों एवं पहलुओं को सम्मिलित किया गया है। पूर्व प्रधानमन्त्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने 7 अगस्त, 1991 ई. को राज्य सभा में इस नीति के सन्दर्भ में कहा था कि “भारतीय उद्योगों की कार्य-कुशलता, विकास तथा तकनीकी स्तर को ऊँचा करने  और विश्व बाजार में उनकी प्रतियोगिता बनाने की दृष्टि से इस उदारीकृत औद्योगिक नीति का निर्माण किया गया है।”

यदि हम औद्योगिक नीति, 1991 ई. की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि इस नीति में अनेक आधारभूत परिवर्तन किये गये हैं, जैसे-(1) औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली का उदारीकरण, (2) MRIPAct में महत्वपूर्ण संशोधन (3) सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका में सुधार, (4) औद्योगिक स्थानीकरण की नीति का पुनः निर्धारण, (5) विदेशी पूँजी का स्वागत; (6) तकनीकी जानकारी के आयात की सुविधा, (7) औद्योगिक संरचना को अनावश्यक एवं कष्टकारी सरकारी नियन्त्रणों से मुक्ति; (8) भारतीय उद्योगों को राष्ट्रीय एवं अन्तरर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतियोगी बनाने का लक्ष्य; (9) श्रमिकों के हितों का संरक्षण; (10) क्षेत्रीय औद्योगिक विषमताओं को दूर करना।

वामपन्थी राजनीतिक दलों ने ‘बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के समर्पण’ के आधार पर इस नीति की आलोचना की है। भारतीय जनता पार्टी ने कम्पनियों में 51 प्रतिशत विदेशी पूँजी की अनुमति देने की व्यवस्था पर सन्देह व्यक्त किया है। श्रम संघों ने इस नीति के परिणामस्वरूप श्रमिकों की छँटनी होने की समस्या पर जोर दिया है, लेकिन उद्योगपतियों ने इस नीति का स्वागत किया है। कुछ आलोचकों ने इस नीति का विरोध किया है क्योंकि बड़ी औद्योगिक कम्पनियों और बड़े औद्योगिक घरानों के विस्तार, कम्पनियों के संविलियन और एकीकरण करने पर जोर देकर सरकार ने आर्थिक सत्ता के संकेन्द्रण को रोकने का लक्ष्य के सन्दर्भ में उचित निर्णय नहीं लिया है। कुछ आलोचकों का मत है कि विदेशी पूँजी एवं तकनीक के सहकार्य के स्वागतपूर्ण आगमन से घरेलू उद्योगों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

सार रूप में कहा जा सकता है कि यदि विदेशी पूंजी और तकनीक के सहकार्य पर सावधानीपूर्ण निगरानी रखी जाये तो यह नीति भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था को आधुनिक कार्य-कुशल, गुणवत्ता प्रधान और विश्व बाजार में प्रतियोगी बनाने में सफल हो सकती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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