अर्थशास्त्र / Economics

कृषि में तकनीकी परिवर्तन का अर्थ | कृषि में तकनीकी परिवर्तन के साधन | कृषि यन्त्रीकरण के लाभ | कृषि यन्त्रीकरण के पक्ष में तर्क | तकनीकी परिवर्तन एवं कृषि विकास |कृषि यन्त्रीकरण के दोष | कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क

कृषि में तकनीकी परिवर्तन का अर्थ | कृषि में तकनीकी परिवर्तन के साधन | कृषि यन्त्रीकरण के लाभ | कृषि यन्त्रीकरण के पक्ष में तर्क | तकनीकी परिवर्तन एवं कृषि विकास |कृषि यन्त्रीकरण के दोष | कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क | Meaning of technological change in agriculture in Hindi | Instruments of technological change in agriculture in Hindi | Benefits of Agricultural Mechanization in Hindi | Arguments in favor of agricultural mechanization in Hindi | Technological change and agricultural development in Hindi | Defects of agricultural mechanization in Hindi | Arguments Against Agricultural Mechanization in Hindi

कृषि में तकनीकी परिवर्तन से अर्थ तथा इसके साधन

(Meaning of Technical Change in Agriculture and Its means)

भारत में स्वतन्त्रता- प्राप्ति के समय से कृषि में भारी परिवर्तन हुए हैं। पहले भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता बहुत अधिक थी, लेकिन आज ऐसी बात नहीं है। यहां ट्यूबवैल, नहरों व कुओं, आदि से सिंचाई का प्रतिशत बढ़ा है। पहले गोबर की खाद ही कृषि के काम में ली जाती थी, लेकिन आज कृत्रिम खादें भारी मात्रा में काम में लायी जा रही हैं। पौध संरक्षण की पहले कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन अब इसके लिए केन्द्रीय सरकार में कृषि मन्त्रालय में अलग से एक सैल है जो फसलों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने का कार्य करता है। पहले लकड़ी के हल व बैल से खेती होती थी, लेकिन आज ट्रैक्टरों से होती है। इसी प्रकार पहले बालों से अन्न बैलों की दायें चलाकर निकाला जाता था, लेकिन आज थ्रेसर से यह कार्य किया जाता है। यह सब क्या है ? यह सब कृषि मे परिवर्तन कहलाता है। इसी को दूसरे शब्दों में कृषि तकनीकी परिवर्तन कहते हैं।

कृषि में जो तकनीकी परिवर्तन आय है उसके वैसे तो अनेक साधन हैं, लेकिन उनमें प्रमुख हैं-

(1) सिंचाई, (2) उर्वरक, (3) पौध संरक्षण, (4) कृषि यन्त्र एवं उपकरण।

अब हम इन साधनों की विस्तृत व्याख्या करेंगे:

(1) सिंचाई- कृषि पर मानसून की निर्भरता आज भी है, लेकिन उतनी नहीं है जितनी आज से 50 वर्ष पूर्व थी। 1950-51 में कुछ सिंचित क्षेत्र 2.26 करोड़ हेक्टेअर था, लेकिन आज यह 8.47 करोड़ हेक्टेअर है। इसमें ट्यूबवैल का महत्त्वपूर्ण योगदान है जो कुल सिंचित क्षेत्र का 31.6 प्रतिशत से भी अधिक बैठता है।

(2) उर्वरक- कृषि में दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन उर्वरक है। पहले भारतीय कृषक गोबर की खाद पर ही निर्भर रहते थे, लेकिन आज उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन हो गया है और वे रासायनिक खादों को काम में लाने लगे हैं। खेतों को उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक मिलने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है और विद्वानों का मत है कि पर्याप्त मात्रा में खाद व उर्वरकों का प्रयोग करने से कृषि उत्पादन की मात्रा तिगुनी की जा सकती है।

प्रथम पंचवर्षीय योजना के शुरू होने के समय रासायनिक खादों का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में होता था, लेकिन बाद में इसमें धीरे-धीरे वृद्धि होती चली गयी। इसी का परिणाम है कि रासायनिक खादों की खपत जो 1952-53 में 0.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर थी वह अब बढ़कर 96 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर हो गयी। इस प्रकार देश में रासायनिक खादों की खपत जो 1960- 60 में 2 लाख टन थी वह 2000-2001 में बढ़कर 194 लाख टन हो गयी है। कि भारत में कीड़े- मकोड़े व चूहों द्वारा फसल को 2,000 करोड़ रुपये से लेकर 5,000 करोड़ रुपये तक की हानि  की जीत है। अतः पौध संरक्षण के लिए कीटनाशक दवाओं को काम में लाया जाता है। अब किसान इनके महत्व को समझ गया है और इनका उपभोग भी बराबर बढ़ रहा है। केन्द्रीय सरकार की हवाई सतही दवाइयों के छिड़काव से खेतों की रक्षा करती है। इसके लिए केन्द्रीय सरकार के कृषि एवं सिंचाई मन्त्रालय के अन्तर्गत कीट निगरानी एवं वनस्पति रक्षण यूनिट हैं। जिनका काम टिड्डियों व फसलों के रोगों से खेतों को बचाना है।

(3) कृषि यन्त्र एंव उपकरण- कृषि यन्त्र एवं उपकरणों से अर्थ उन यन्त्रों व उपकरणों से है जो कृषि के काम में आते हैं। जब कृषि परम्परागत तकनीकों के स्थान पर यन्त्र व उपकरणों से होती है तो इसकों कृषि यन्त्रीकरण भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में, “कृषि यन्त्रीकरण से अर्थ भूमि पर यान्त्रिक शक्ति द्वारा उन क्रियाओं के सम्पन्न करने से है जो सामान्यतया बैलों, घोड़ों एवं अन्य पशुओं या मानवीय श्रम द्वारा सम्पन्न की जाती हैं।” जैसे खेत की जुताई व बुवाई हल के स्थान पर ट्रैक्टर से करना, फसल काटने व देवेनी का काम हार्वेस्टर थ्रेसर से करना, सिंचाई कुओं व बैलों से न करके पम्प सेटों से करना, आदि। इसी पुराने ढंग से कृषि औजारों जैसे हलों, दरान्ती, खुरपी, फावड़ा, आदि के स्थान पर आधुनिक मशीनों व उपकरणों का उपयोग करना।

पिछले वर्षों में कृषि यन्त्रों व उपकरणों का उपयोग काफी बढ़ा है, जैसे 1956 में 21 हजार ट्रैक्टर थे, लेकिन आज इनकी संख्या 12 लाख से अधिक है। इसी प्रकार 1956 में बिजली से चलने वाले पम्प सेटों की संख्या 47 हजार थी, लेकिन आज 1 करोड़ 24 लाख 45 हजार से अधिक है। डीजल व मिट्टी के तेल से चलने वाले पम्प सेटों की संख्या 1956 में 1.23 लाख थी, लेकिन आज 52 लाख से भी अधिक है। यहीं नहीं, लकड़ी के हल केस्थान पर अब लोहे का हल, बैलों से चलने वाले कोल्हू के स्थान पर शक्ति से चलने वाले कोल्हू हैं।

कृषि यन्त्रीकरण के लाभ अथवा पक्ष में तर्क | तकनीकी परिवर्तन एवं कृषि विकास

कृषि यन्त्रीकरण के लाभ निम्न प्रकार हैं जिन्हें कृषि यन्त्रीकरण के पक्ष में तर्क भी कहते हैं। इन्हीं बातों को तकनीकी परिवर्तन एवं कृषि विकास के रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है:

(1) प्रति हेक्टेअर उत्पादन में वृद्धि- यन्त्रीकरण प्रति हेक्टेअर उत्पादन में वृद्धि करता है। उदाहरण के लिए, ट्रैक्टर द्वारा गहरी जुताई करने से ज्वार व धान की उपज 20 से 25. प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यह वृद्धि सभी प्रकार के कृषि उत्पादन पर लागू होती है।

(2) कार्य शीघ्रता एंव समय की बचत- कृषि यन्त्रों के उपभोग करने से कार्य शीघ्रता से होता है तथा समय की बचत होती है। जो कार्य एक जोड़ी बैल व हल से 10-12 दिन में किया जाता है वह कार्य ट्रैक्टर द्वारा एक दिन में ही किया जा सकता है। इस प्रकार किसान अपने खाली समय का उपयोग अन्य आय कमाने वाले कार्यों के लिए कर सकता है।

(3) उत्पादन लागत में कमी- कृषि यन्त्रीकरण उत्पादन लागत में कमी करता है यह बात कई अनुसन्धानों से निष्कर्ष के रूप में कही गयी है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ट्रैक्टर से खेती करने की लागत प्रति एकड़ 100 रूपये आती है, जबकि वही कार्य यदि बैलों से किया जाता है तो लागत 160 रुपये आती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कृषि यन्त्रीकरण उत्पादन लागत में कमी करता है।

(4) किसानों की आय में वृद्धि- यन्त्रीकरण से किसानों की प्रति एकड़ लागत कम आती है तथा उत्पादन प्रति एकड़ बढ़ता है। इससे किसानों को लाभ होता है और उनकी आय में वृद्धि होती है जो उनकों पूंजी-निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

(5) भारी कार्यों में उपयोगी- कृषि यन्त्रों से भारी कार्य जैसे पथरीली भूमि, ऊंची- नीची भूमि बंजर भूमि व टीलों, आदि को आसानी से साफ किया जा सकता है और उनको खेती योग्य बनाया जा सकता है। यदि यह कार्य मानव श्रम से कराया जाता है तो इसमें काफी समय लगता है और लागत भी अधिक आती है।

(6) व्यापारिक खेती का विस्तार- कृषि यन्त्रों के प्रयोग करने से व्यापारिक खेती का विस्तार किया जा सकता है। उद्योगों को कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में मिल सकता है। वे अपनी पूरी क्षमता से कार्य कर सकते हैं और देश की माँग की पूर्ति कर सकते हैं।

(7) पशु सम्बन्धी व्ययों में कमी- यन्त्रों की सहायता से खेती करने में पशु सम्बन्धी व्ययों में कमी हो जाती है। पशुओं को बिना काम के भी खिलाने की व्यवस्था करनी पड़ती है। बड़े खेत वालों को बड़ी संख्या में पशु रखने पड़ते हैं। पशुओं की देखभाल पर व्यय करना पड़ता है और उनके चारे के लिए मूल्यवान भूमि पर चारे की खेती करनी पड़ती है। यन्त्रों की सहायता से खेती करने में इन व्ययों में कम हो जाती है।

(8) श्रम की कुशलता में वृद्धि- कृषि यन्त्रों को काम में लेने से श्रम की कुशलता में वृद्धि होती है।

(9) उपभोक्ताओं को लाभ- जब कृषि उत्पादन यन्त्रों व उपकरणों की सहायता से किया जाता है तो कृषि उत्पादन की लागत कम हो जाती है जिसका परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को उसका मूल्य भी कम ही देना पड़ता है।

कृषि यन्त्रीकरण के दोष अथवा विपक्ष में तर्क

कृषि यन्त्रीकरण के दोष निम्न हैं जिन्हें कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क भी कह सकते हैं:

(1) कृषि जोतों का छोटा आकार- कृषि यन्त्रीकरण उन्हीं स्थानों पर लाभप्रद होता है जहाँ खेतों का आकार बड़ा होता है। भारत में कृषि जोतों का आकार बहुत ही छोटा है। यहाँ 78 प्रतिशत जोतें 2 हेक्टेअर से छोटी हैं तथा औसत आकार 1.55 हेक्टेअर है, जबकि अमरीका में औसत आकार 158 हेक्टेअर, कनाडा में 188 हेक्टेअर है। अतः यहाँ यन्त्रीकरण लाभकारी नहीं हो सकता है। यह ठीक है कि छोटे खेतों में ट्रैक्टर लाभकारी नहीं है, लेकिन ऐसे खेतों में पम्पिंग सेट लगाकर सिंचाई की व्यवस्था तो की ही जा सकती है या छोटे-मोटे आधुनिक कृषि उपकरण काम में लाये जा सकते हैं।

(2) बेरोजगारी की भय- कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि यन्त्रीकरण होने से ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि होती है। अभी हाल ही में श्री एच. एल. लाल ने पंजाब में यन्त्रीकरण के बारे में कुछ अनुसन्धान किया था जिसका निष्कर्ष यह है कि सिर्फ सिंचाई के लिए पम्पिंग सेट लगाने से 16.5 प्रतिशत मानव श्रम की कमी हो जाती है, लेकिन जब ट्रैक्टर को काम में लिया जाता है तो मानव श्रम में लगभग 8 प्रतिशत की कमी हो जाती है। इस प्रकार इस आशंका की पुष्टि इस अनुसंधान से हो जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कृषि यन्त्रीकरण होने से बेरोजगारी में वृद्धि होती है, लेकिन यदि यन्त्रीकरण नियोजित ढंग से दीर्घ काल में किया जाता है तो इससे रोजगार वृद्धि की सम्भावनाएँ हो सकती हैं।’

(3) पूंजी का अभाव- भारत में सामान्य कृषक गरीब है। उसके पास इतने वित्तीय साधन नहीं हैं कि वह बड़े-बड़े कृषि यन्त्र एवं उपकरण भारी मूल्य देकर क्रम कर सके। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार भी कह सकते हैं कि उसके पास पूंजी का अभाव है। डवास्तव में यह भी कृषि यन्त्रीकरण में एक कठिनाई है, लेकिन इसका समाधान सहकारी समितियों व साख संस्थाओं जैसे बैंक, आदि की सहायता से हो सकता है।

(4) पशु शक्ति का आधिक्य- भारत में पशु शक्ति बड़ी भारी मात्रा में पायी जाती है। यदि कृषि का यन्त्रीकरण किया जाता है तो करोड़ों पशु बेकार हो जायेंगे और उनको बिना काम में लिये ही जीवित रखने की व्यवस्था करनी पड़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव। यह समस्या अवश्य ही सामने आयेगी, लेकिन कुछ समय के उपरान्त पशु शक्ति का उचित नियोजन करने से यह समस्या हल हो जायेगी।

(5) कृषकों की अशिक्षा- कृषि यन्त्रीकरण में कृषकों की शिक्षा एक महान रुकावट है। वे रूढ़िवादी एंव परम्परावदी हैं। अतः ऐसी स्थिति में कृषि यन्त्रीकरण को सफलता मिल सकेगी इसमें सन्देह है। डइस सम्बन्ध में कृषकों को शिक्षित किया जा सकता है और उनसे सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।

(6) डीजल, पेट्रोल व तेल का अभाव- यन्त्रीकरण के लिए अधिकारिक डीजल व तेल चाहिए, जिसका पहले से ही देश में अभाव है। अतः कृषि यन्त्रीकरण करना उचित नहीं है। इस तथ्य में सच्चाई है, लेकिन जब अन्य कार्य के लिए इनका आयात हो रहा है तो इस कार्य के लिए और आयात किया जा सकता है।.

(7) अन्य बाधाएं- भारत में कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में उपर्युक्त तथ्य तो हैं ही, बल्कि कुछ अन्य तथ्य भी हैं जो इस प्रकार हैं- (i) भारत में यन्त्रों व उपकरणों की मरम्मत की सुविधा गाँव स्तर पर मिलना कठिन प्रतीत होता है। किसान को थोड़ी-सी खराबी होने पर बार- बार शहर भागना पड़ेगा जो उसकी क्षमता के परे हैं। (ii) सही किस्म के औजारों व यन्त्रों के सम्बन्ध में उचित सलाह देने वाली संस्थाएं यहाँ नहीं हैं। डयह दोनों आपत्तियाँ भी कारगर नहीं हैं। यदि गांव-गांव में यन्त्रीकरण हो जायेगा तो मरम्मत की सुविधा तो स्वतः ही गांव स्तर पर हो जाएगी तथा सलाहकार संस्थाएं भी स्थापित हो जायेगी।

योजनाओं में यन्त्रीकरण

पाँचवी योजना में चयनात्मक यन्त्रीकरण अपनाने की बात कही गयी थी जिससे की खेतों में उपज बढ़े और कई फसलें की जा सकें तथा रोजगार अवसरों मे कमी न हो। छठवीं योजना में चुनींदा  यन्त्रीकरण की नीति अपनाने की बात कही गयी जिससे कि ग्रामीण बेरोजगारी न फैले। सातवीं योजना में उन्नत उपकरणों को लोकप्रिय बनाने के लिए विशेष प्रयास करने की बात कही गयी है। इस योजना में दो नवीन कृषि मशीनरी प्रशिक्षण संस्थान भी स्थापित किये जाने का प्रावधान था।

भारत में कृषि यन्त्रों व उपकरणों का उपयोग बढ़ रहा है। इस समय 12 लाख से अधिक ट्रैक्टर हैं, जबकि 1956 में इनकी संख्या 21 हजार थी। इसी प्रकार वर्तमान में बिजली से चलने वाले पम्प सेटों की संख्या 1 करोड़ 24 लाख 45 हजार से अधिक है, जबकि 1956 में इनकी संख्या केवल 47 हजार थी। इसी प्रकार डीजल या मिट्टी के तेल से चलने वाले पम्प सेटों की संख्या भी जो 1956 में 1.23 लाख थी जो वर्तमान में 52 लाख से भी अधिक हो गयी है। इसके साथ-साथ लोहे के हल व गन्ने के कोल्हू, आदि की संख्या में भी कई गुनी वृद्धि हुई है।

उपसंहार-

वर्तमान परिस्थितियों में एक साथ कृषि यन्त्रीकरण कर देना न तो सम्भव है और न ही उपयोगी। इससे तो समस्याएं ही बढ़ेगी। अतः यह सुझाव दिया जाता है कि यन्त्रीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे अपनायी जाय जिससे कि समस्याएँ उग्र रूप न ले सकें और जिन्हें धीरे-धीरे हल किया जा सके। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कृषि में यन्त्रीकरण करने से ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि होती है, लेकिन इस वृद्धि को यन्त्र बनाने वाले उद्योगों, मरम्मत करने वाले केन्द्रों, गहन खेती व अन्य कार्यों में लगाया जा सकता है और इस प्रकार इसको हल किया जा सकता है।  यन्त्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि यह खाद्यानों व अन्य कृषि उत्पादनों में आत्मनिर्भर हो सकेंगे और उनके आयात को बन्द करके इससे बची हुई विदेशी मुद्रा को अन्य उपयोगी कार्यों में लगा सकेंगे।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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