अर्थशास्त्र / Economics

उत्तर प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास | पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास दर | औद्योगीकरण की दिशा में सरकार द्वारा किये गये प्रयास

उत्तर प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास | पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास दर | औद्योगीकरण की दिशा में सरकार द्वारा किये गये प्रयास | Industrial Development in Uttar Pradesh during Five Year Plans in Hindi | Industrial Growth Rate during Five Year Plans in Hindi | Efforts made by the government towards industrialization in Hindi

उत्तर प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास

उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास के द्वारा आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की अपेक्षाएँ यहाँ योजना काल के प्रारम्भ से ही मौजूद हैं। प्रदेश में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा औद्योगिक विकास को सदैव तीव्र करने की बात कही जाती है। तालिका-1 से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास की यात्रा सुस्त रही है और साथ ही साथ यह प्रायः व्यापक उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रही है। औद्योगिक विकास की सुस्त रफ्तार तथा व्यापक उतार- चढ़ाव के कारण औद्योगिक क्षेत्र का सीमित आधार एवं कमजोर संरचना रही है। योजनाकाल के लगभग प्रथम ढाई दशकों तक अर्थात् चौथी पंचवर्षीय योजना के अन्त तक प्रदेश में औद्योगिक विकास दर से काफी निराशा मिली है। इस दौरान प्रदेश में औद्योगिक विकास दर का औसत 3.0 प्रतिशत से ऊपर उठ पाया। प्रदेश में औद्योगिक विकास का आरम्भ एक संकीर्ण आधार के साथ शुरू हुआ। इसके बावजूद प्रथम योजना में औद्योगिक विकास दर मात्र 2.3 प्रतिशत वार्षिक तथा दूसरी योजना में 1.7 प्रतिशत वार्षिक ही हो पायी। तीसरी योजना में कुछ वृद्धि प्रारम्भ तो हुई। किन्तु यह अधिक समय तक टिक नहीं पायी क्योंकि तीन वार्षिक योजनाओं (1966-69) के दौरान औसत वृद्धि दर 5.7 औद्योगिक प्रतिशत वार्षिक से गिरकर 1.2 प्रतिशत रह गयी।

तालिका- 1 : पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास दर

पंचवर्षीय योजना

अवधि

प्रतिशत वार्षिक दर

प्रथम पंचवर्षीय योजना

1951-56

2.3

द्वितीय पंचवर्षीय योजना

1956-61

1.7

तृतीय पंचवर्षीय योजना

1961-66

5.7

तीन पंचवर्षीय योजना

1966-69

1.2

चौथी पंचवर्षीय योजना

1969-74

3.4

पांचवी पंचवर्षीय योजना

1974-79

9.4

छठीं पंचवर्षीय योजना

1980-85

11.8

सातवीं पंचवर्षीय योजना

1985-90

10.9

आठवीं पंचवर्षीय योजना

1992-97

4.2

नवीं पंचवर्षीय योजना

1997-02

-4.3

दसवीं पंचवर्षीय योजना

2002-07

7.3

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना

2007-12

12.0

बारहवीं पंचवर्षीय योजना

2012-17

10.01

स्त्रोत : (Uttar Pradesh Twelve Five Yers plan 2012-17 and Annual Plan (Part-II)

तालिका से पता चलता है कि पाँचवी पंचवर्षीय योजना से सातवीं पंचवर्षीय योजना तक प्रदेश में औद्योगिक विकास दर का औसत 10 प्रतिशत वार्षिक से अधिक हो गया था और इस  अवधि में प्रदेश अर्थव्यवस्था में औसत वार्षिक वृद्धि दर के तीव्र विकास के अंश झलकने लगे थे। किन्तु निराशा की बात यह है कि सातवीं पंचवर्षीय योजना के बाद प्रदेश अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में पुनः शिथिलता आ गई। इसी कारण से जहाँ आठवीं पंचवर्षीय योजना में वृद्धि दर घटकर 4.9 प्रतिशत रह गयी वहीं नवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास दर (-) 4.3 प्रतिशत तक गिर गयी। दसवीं पंचवर्षीय योजना में पुनः सुधार के लक्षण दिख रहे हैं और इसी को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेश सरकार ने औद्योगिक विकास दर का महत्वपूर्ण लक्ष्य 12.0 प्रतिशत ग्यारहवीं योजना के लिए निर्धारित किया है। देखना यह है कि सरकार इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त करेगी?

औद्योगिक विकास एवं सरकारी प्रयास

किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए यह आवश्यक है कि वह औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करे तथा औद्योगिक विकास के लिए उपयुक्त नीतिगत वातावरण तैयार करे ताकि अर्थव्यवस्था में औद्योगिक विकास के लिए उचित वातावरण बन सके। उत्तर प्रदेश में भी योजनाकाल के प्रारम्भ से ही औद्योगीकरण को बढ़ाने की बातें मुख्य रूप से कही गई हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) में ऐसी अपेक्षा की गई थी कि विनिर्माण क्षेत्र का राज्य आय में भाग दसवीं योजना के अन्त तक अर्थात् 2006-07 में 26.01 प्रतिशत हो जायेगा जबकि यह 1991-92 में 14.40 प्रतिशत था। और माध्यमिक खण्ड की हिस्सेदारी बढ़कर 2006-07 में 31.81 प्रतिशत हो जायेगी। दरअसल आठवीं योजना की शुरूआत देश में नई आर्थिक नीतियों के आरम्भ होने के बाद हुई थी। यह हमने पहले ही देखा कि विनिर्माण क्षेत्र की राज्य आय में हिस्सेदारी 2006-07 में मात्र 10.1 प्रतिशत ही थी जबकि माध्यमिक खण्ड की हिस्सेदारी 22.2 प्रतिशत थी। इन परिस्थितियों में जबकि लक्ष्य व प्राप्ति के बीच में बहुत ज्यादा अन्तर आ चुका है, राज्य अर्थव्यवस्था में एक प्रभावशाली एवं प्रेरक आर्थिक नीतियों की अपरिहार्यता और अधिक बढ़ जाती है।

राज्य में दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के दौरान प्रदेश में गिरती औद्योगिक विकास की स्थिति से निबटारा पाने के लिए और भी कई कदम उठाये गये। इनमें से कुछ नीतिगत रणनीतियाँ थीं और यह निम्नवत् हैं-

(1) औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र निवेश नीति

(2) ऊर्जा नीति-2003

(3) सूचना प्रौद्योगिक नीति

(4) उच्च तकनीकी नगरीय विकास नीति

(5) जैव प्रौद्योगिकी (Bio-Technology) नीति

(6) चीनी नीति

(7) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से सम्बन्धित रणनीति।

उपर्युक्त सभी नीतियों का उद्देश्य प्रदेश में निजी निवेश के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना था जिससे निजी क्षेत्र के उद्योग प्रदेश में निवेश के लिये आकर्षित हों। इन नीतियों के अन्तर्गत राज्य सरकार ने और भी कई प्रकार की छूट एवं अनुदान देने की बात कही है जिनमें से कुछ को हम निम्नवत् तरीके से दर्शा सकते हैं-

(1) कुछ विशेष प्रायोजन हेतु ब्याज रहित दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराना।

(2) कच्चे माल के यातायात पर सहायकी (Subsidy) प्रदान करना।

(3) भूमि अधिग्रहण के दौरान कई प्रदान की छूट देना।

(4) रू.100 करोड़ एवं रू. 200 करोड़ के निवेश वाले उद्योगों को क्रमशः 10 प्रतिशत एवं 20 प्रतिशत पूँजी सहायकी देना।

(5) मूलभूत संरचना सृजन करने में होने वाले वास्तविक व्यय की प्रतिपूर्ति राज्य सरकार द्वारा करना व इसकी अधिकतम सीमा कुल स्थिर पूँजी का 10 प्रतिशत निर्धारित की गई है।

(6) रू. 200 करोड़ से अधिक निवेश वाले उद्योगों को 15 वर्ष की बजाय 17 वर्ष तक ब्याज रहित ऋण सुविधा उपलब्ध कराना।

इसके अतिरिक्त दसवीं योजना के तहत और भी अनेक प्रकार से औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई गयी थी जो इस प्रकार है-

व्यापार कर में छूट के बदले व्याज रहित ऋण सुविधा उपलब्ध कराना, राज्य की वित्तीय संस्थाओं द्वारा औद्योगीकरण को प्रेरित करना एवं सहायता प्रदान करना विकास, केन्द्र परियोजनाओं (Growth Center Project) की स्थापना करना, कृषि पार्क परियोजना (Agro park Project)  स्थापित करना, विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) की स्थापना करना।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में भी औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए जोर दिया गया है। इस योजना के दौरान राज्य में माध्यमिक क्षेत्र का विस्तार दर 10.5 प्रतिशत तथा विनिर्माण खण्ड के विकास का लक्ष्य 11.5 प्रतिशत वार्षिक निर्धारित किया गया है। जिससे प्रदेश में औसत 10 प्रतिशत वार्षिक की वृद्धि दर प्राप्त हो सके। दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक क्षेत्र को वृद्धि दर का लक्ष्य 12.36 प्रतिशत वार्षिक था और उपलब्धि 9.16 प्रतिशत वार्षिक रही है। इस कारण से भी ग्यारहवीं योजना के लक्ष्य निर्धारण में उत्साह देखने को मिलता है। प्रदेश की ग्यारहवीं योजना प्रदेश में आर्थिक उदारीकरण को तर्कसंगत एवं ज्यादा उपयोगी बनाने के हित में है। इसके लिए इस महत्वाकांक्षी योजना ने कुछ रणनीतियाँ बनायी हैं. उनमें से कुछ प्रमुख नीतियों का उल्लेख निम्नलिखित है-

(1) प्रदूषण से सम्बन्धित कानूनों का सरल करना और ज्यादा पारदर्शी बनाना।

(2) कुछ प्रमुख उद्योगों जैसे कि खाद एवं चीनी पर से वर्तमान नियंत्रण को शिथिल करना।

(3) खनन एवं खनिज से सम्बन्धित गतिविधियों को ज्यादा उदार बनाना जिससे इस क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।

(4) लघु उद्योगों की श्रेणी में आरक्षित कुछ उद्योगों को अनारक्षित करके बड़े एवं विस्तृत उद्योगों के लिए अवसर उपलब्ध कराना।

(5) वृहद् उद्योगों में निवेश को आकर्षित करने में पुलिसबाजी अर्थात् इंस्पेक्टर राज खत्म करना और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त बनाना।

(6) श्रम कानूनों को और अधिक लचीला बनाना।

(7) लघु उद्योगों की सहायता

प्रदेश में सन्तुलित क्षेत्रीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना तथा औद्योगीकरण एवं रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना।

(8) ग्यारहवीं योजना के अन्त तक प्रदेश से 40,000 करोड़ के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करना। इसके लिए उपयुक्त रणनीतियों को प्रोत्साहित करना।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में अब तक औद्योगीकरण संतोषजनक रूप से प्रगति नहीं कर पाया है। जिसके कारण प्रदेश में न केवल औद्योगिक विकास दर सुस्त एवं  उतार-चढ़ाव से ग्रसित थी बल्कि इसका राज्य के आर्थिक विकास पर भी व्यापक असर देखने को मिलता है। अतः जब तक राज्य में एक सटीक औद्योगिक वातावरण का निर्माण राज्य सरकार द्वारा नहीं किया जाता तब तक प्रदेश में तीव्र एवं सतत् औद्योगिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना एक चुनौती ही होगी। किन्तु यदि यह लक्ष्य प्राप्त करने में सरकार सफल हो जाती है तो यह नियोजन की एक बड़ी उपलब्धि होगी।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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