औद्योगिक विकास | पूँजी निवेश के नवीन प्रस्ताव | अवस्थापना विकास | पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.)/आधार पर परियोजनाएँ | उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास
औद्योगिक विकास | पूँजी निवेश के नवीन प्रस्ताव | अवस्थापना विकास | पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.)/आधार पर परियोजनाएँ | उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास | industrial development in Hindi | New proposals for capital investment in Hindi | infrastructure development Projects on Public Private Partnership (PPP)/Based in Hindi | Industrial Development in Uttar Pradesh in Hindi
औद्योगिक विकास
वर्ष 1991 में वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हो जाने के कारण आर्थिक नीतियों के स्वरूप एवं गठन में पर्याप्त परिवर्तन हुआ। औद्योगिक प्रगति में योजना प्रक्रिया की सीधी भूमिका न होकर अप्रत्यक्ष और अधिकाधिक सुविधायें देने एवं अवस्थापना विकास में क्रान्तिकारी सुधार करते हुए निवेश का वातावरण तैयार करने में हो गयी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पदेश में निवेश की आदर्श स्थितियों के सृजन के लिए अनेक नीतियों का निर्धारण किया है, जिनमें से औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र निवेश नीति, हाईटेक टाउनशिप विकास नीति, सूचना प्रौद्योगिकी नीति, जैव प्रौद्योगिकी नीति, खाद्य प्रसंस्करण नीति, ऊर्जा नीति, चीनी उद्योग प्रोत्साहन नीति आदि प्रमुख हैं। इन सभी नीतियों का लक्ष्य निजी क्षेत्र की सहभागिता को प्रोत्साहन देना है। प्रदेश सरकार ने औद्योगिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों पूर्वान्चल एवं बुन्देलखण्ड में निजी क्षेत्र को आकर्षित करने के उद्देश्य से विशेष सुविधायें अनुमन्य की हैं।
प्रदेश में बहुमुखी विकास के दृष्टिकोण अवस्थापना सुविधाओं के विकास में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) की सहभागिता बढ़ाने के लिए निजी पूँजी निवेशकों के चयन के लिए तथा सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश हेतु पारदर्शी प्रक्रिया विषयक दिशा- निर्देश/गाइड-लाइंस के अन्तर्गत विभिन्न विभागों (यथा परिवहन, कर एवं निबन्धन प्राविधिक शिक्षा विभाग, पर्यटन, लोक निर्माण विभाग, आवास एवं शहरी नियोजन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा विभाग, चीनी एवं गन्ना विकास विभाग, नागरिक उड्डयन विभाग आदि) द्वारा पी.पी.पी./अवस्थापना/विनिवेश परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। पी.पी.पी. आधार पर जहाँ परियोजनाओं के क्रियान्वयन से प्रदेश के वित्तीय संसाधन पर भर नहीं पड़ेगा, वहीं प्रदेश का विकास भी तीव्र गति से होगा।
प्रदेश का समन्वित विकास किये जाने के उद्देश्य से उ.प्र. राज्य औद्योगिक विकास निगम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा एवं अन्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण तथा संस्थाओं द्वारा प्रदेश में औद्योगिक अवस्थापना सुविधाओं का विकास किया जा रहा है।
मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग, उ. प्र. का एक सेवा विभाग है जो बिना किसी लाभ- हानि के सेवा में कार्यरत है। आधुनिक कम्प्यूटराज्ड युग में मुद्रणालयों के मुद्रण कार्यों में गतिशीलता, गुणवत्ता एवं उत्कृष्टता लाने के उद्देश्य से अत्याधुनिक कम्प्यूटराइज्ड टेक्नोलॉजी एवं साज-सज्जा से युक्त करने हेतु राजकीय मुद्रणालयों का आधुनिकीकरण योजनान्तर्गत आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
वृहद् उद्योग
भारी एवं मध्यम उद्योगों के क्षेत्र में प्रदेश उत्तरोत्तर प्रगति पर है। 7वीं योजना के अन्त तक इस श्रेणी की 939 इकाइयों की स्थापना हो चुकी थी, जिसमें कुल पूंजी विनियोजन 7843 करोड़ तथा रोजगार सृजन 448938 व्यक्तियों का था। 9वीं योजना के अन्त तक कुल 3500 वृहद् एवं मध्यम स्तरीय उद्योग स्थापित हो चुके हैं, जिनमें पूँजी विनियोजन रू. 56629.32 करोड़ एवं 946982 व्यक्तियों को रोजगार के अवसर सुलभ हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि उद्योग मन्त्रालय, भारत सरकार की औद्योगिक शिथिलीकरण नीति, 1991 के तहत मध्यम एवं वृहत् उद्योगों की स्थापना हेतु मार्च, 2009 तक कुल 6884 इच्छा पत्र (आई.ई.एम.) व आशय पत्र (एल.ओ.आई.) उद्यमियों के पक्ष में जारी किये गये हैं, जिसमें 199729.91 करोड़ की पूंजी विनियोजन एवं 1520261 व्यक्तियों की योजना प्राप्ति प्रस्तावित है।
इन जारी इच्छा-पत्रों (आई.ई.एम.) के तहत उद्यमियों द्वारा स्थापना में अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों के निराकरण हेतु उद्योग निदेशालय/उद्योग-बन्धु ने ठोस एवं कार्यकारी नीति का प्रतिपादन किया है। औद्योगिक विकास की नयी नीति में उद्यमियों तथा औद्योगिक संगठनों के साथ निकट एवं निरन्तर सम्पर्क बनाये रखकर औद्योगिक प्रगति की मैत्रीपूर्ण एवं साझेदारी की व्यवस्था बनाये जाने का प्रयास किया गया है। त्वरित निर्णय, सरल प्रक्रिया, अविलम्ब समस्या निवारण तथा पारदर्शी प्रशासन के आधार पर मार्च, 2009 तक जारी 6884 इच्छा-पत्र (आई.ई.एम.) तथा आशय पत्र (एल.ओ.आई.) के विरूद्ध 2790 उद्योग प्रस्तावों से उद्योग स्थापित किये जा रहे हैं।
पूँजी निवेश के नवीन प्रस्ताव
औद्योगिक नीति में उल्लिखित प्राथमिकता वाले क्षेत्र को दृष्टिगत नगरीय पुनरूत्थान योजन द्वारा कृषि पर आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंसकरण, इलेक्ट्रानिक, पर्यटन, ऊर्जा निर्यात प्रोत्साहन आदि क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
शासन की नीति है की औद्योगिक नीति में उद्यमियों एवं औद्योगिक रंगों की महत्वपूर्ण भागीदारी हो, उक्तानुसार सभी योजनाओं एवं नीति निर्धारणों में निजी/क्षेत्र उद्यमियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए 06 नवम्बर, 2003 को औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन योजना के क्रियान्वयन का निर्णय भी शासन द्वारा लिया गया है। एकल मेज व्यवस्था, समयबद्ध स्वीकृतियों एवं समस्याओं के त्वरित निस्तारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जा रही है।
दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान निजी क्षेत्र को प्रदेश में विभिन्न उद्यम क्षेत्रों में उद्यम लगाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र निवेश नीति, 2004 चीनी उद्योग प्रोत्साहन नीति, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नीति, जैव प्रौद्योगिक नीति, ऊर्जा नीति आदि जारी करके, औद्योगिक विकास को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। इन सभी नीतियों का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य निजी क्षेत्र की सहभागिता (पी.पी.पी.) को प्रोत्साहन देना है। इसी के अन्तर्गत औद्योगिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों-पूर्वांचल एवं बुन्देलखण्ड में निजी पूंजी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने औद्योगिक व सेवा क्षेत्र निवेश नीति, 2004 के अन्तर्गत कतिपय विशेष सुविधायें तथा नई भारी एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों को 50 प्रतिशत स्टॉम्प शुल्क में छूट, पंजीकरण शुल्क में 50 प्रतिशत छूट आदि प्रदान की गयी है।
अवस्थापना विकास
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.)/आधार पर परियोजनाएँ
पी.पी.पी. आधार पर प्रदेश एक्सप्रेस-वे नगरीय परिवहन, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य, पर्यटन, आई. टी., चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग, एयरपोर्ट, आवास, नगरीय पुररूद्धार, तकनीकी शिक्षा, सड़क ऊर्जा आदि सेक्टर में लगभग रू. 152,338 करोड़ लागत की निम्नलिखित परियोजनाओं के क्रियान्वयन की कार्यवाही की जा रही हैं-
क्र.स परियोजनाएँ |
अनुमानित लागत (करोड़ में) |
1. गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना |
30,000 |
2. यमुना एक्सप्रेस-वे परियोजना |
9,935 |
3. अपर गंगा कैनाल एक्सप्रेस-वे परियोजना |
4,000 |
4. अन्य लिंक एक्सप्रेस-वे नेटवर्क |
40,553 |
5. नगरीय पुनरूत्थान योजना |
1,190 |
6. ऊर्जा सेक्टर की परियोजनाएँ |
54,317 |
7. सूचना प्रौद्योगिकी |
284 |
8. सड़क/आर.ओ.बी. नेटवर्क का उच्चीकरण |
2,500 |
9. तकनीकी शिक्षा की परियोजनाएँ |
2,634 |
10. परिवहन व्यवस्था |
1,600 |
11. पर्यटन आवास गृह |
554 |
12. पर्यटन इनीसिएटिव्स-कुशीनगर अन्तरर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट एवं बुद्धिस्ट सर्किट |
560 |
13. ताज इण्टरनेशनल एयरपोर्ट |
4,000 |
14. नगरीय विकास परियोजना |
211 |
योग |
152,338 |
औद्योगिक विकास निगम लि., कानपुर निगम का अभ्युदय एवं उद्देश्य
प्रदेश के योजनाबद्ध औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के उद्देश्य से मार्च, 1961 में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा कम्पनीज एक्ट, 1956 के अन्तर्गत की गयी है। निगम द्वारा प्रमुख रूप से औद्योगिक क्षेत्रों का विकास वे अवस्थापना सुविधाओं के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित कराने का कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में निगम प्रदेश के तीव्र सर्वांगीण औद्योगिक विकास के लिए मुख्य रूप से निम्न कार्यों को सम्पादित कर रहा है-
- प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अवस्थाना सुविधाओं से युक्त एकीकृत औद्योगिक नगरी एवं औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करके औद्योगिक एवं अन्य सम्बन्धित उपयोगों हेतु भू- खण्ड / भवन उपलब्ध कराना।
- औद्योगिक अवस्थापना सुविधाओं के विकास एवं इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए नोडल संस्था के रूप में कार्य करना।
- सार्वजनिक / अर्द्ध-सार्वजनिक संस्थानों के लिए निर्माण कार्य संचय आधार पर सम्पादित करना।
- बड़े उद्योगों/अवस्थापना परियोजनाओं हेतु भूमि अधिग्रहण।
औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिए उद्यमियों को उचित दर पर नियोजित औद्योगिक क्षेत्रों में उपलब्ध भूमि को उद्यमियों को नीतिगत व्यवस्था के अन्तर्गत सौंपी जाती है। उक्त योजना में निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति में योगदान मिला है-
- उद्यमियों को उचित दरों पर औद्योगिक भूखण्ड उपलब्ध कराना।
- प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक सम्भाव्यता का कुशलतम दोहन।
- प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों का समान व सन्तुलित औद्योगिक विकास।
प्रदेश में सन्तुलित औद्योगिक एवं आर्थिक विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए निगम ने पिछड़े एवं उद्योग शून्य जनपदों में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने पर समुचित बल दिया है। बदलते आर्थिक/औद्योगिक परिवेश में माँग आधारित औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।
महत्वपूर्ण योजना एवं विकास कार्य
- नोएडा क्षेत्र में जलापूर्ति व्यवस्था के सुदृढीकरण एवं गुणात्मक वृद्धि हेतु 35 सेक्टरों में गंगा जल की आपूर्ति आरम्भ की जा चुकी है।
- नोएडा में स्थित राजकीय जिला अस्पताल का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
- प्राधिकरण क्षेत्र में निरन्तर विद्युत आपूर्ति हेतु 33/10 केवीए के 05 सब-स्टेशनों का कार्य पूर्ण हो चुका है तथा शेष 05 नये सब-स्टेशनों का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
- सेक्टर-44 में महामाया बालिका इण्टर कॉलेज का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
- सेक्टर 18 के क्षेत्रफल 21397.50 वर्ग मीटर में प्राधिकरण द्वारा पार्किंग स्थल का निर्माण किया जाना है।
- सेक्टर 18 की पार्किंग समस्या को देखते हुए बहुमुखी पार्किंग का प्रावधान किया गया है।
- मुख्य चौराहों पर प्रकाश व्यवस्था में सुधार हेतु हाई मास्ट लगाये गये हैं।
- मूल कास्तकारों को अधिग्रहित भूमि के 5 प्रतिशत के बराबर विकसित भूमि आवंटन की कार्यवाही की जा रही हैं.
- सेक्टर-91 में पंचशील बालक इण्टर कॉलेज का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इस परियोजना हेतु धनराशि रू. 150.00 करोड़ का व्यय अनुमानित है। इस कार्य पर, 31 दिसम्बर, 2009 तक धनराशि रू. 82.97 करोड़ का व्यय किया जा चुका है। आगामी शैक्षिक सत्र से इस कॉलेज में शैक्षिक कार्य प्रारम्भ किया जायेगा।
- सेक्टर-62 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति छात्रावास के निर्माण का कार्य प्रगति पर है। इस कार्य पर 31 दिसम्बर, 2009 तक धनराशि रू. 10.68 करोड़ का व्यय किया जा चुका है। यह कार्य उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लि. द्वारा कराया जा रहा है तथा अप्रैल, 2010 में इस कार्य को पूर्ण कर लिया जायेगा।
- नोएडा में 15 किमी. लम्बी सी.एन.जी. पाइप लाइन बिछाने का कार्य पूर्ण हो गया है तथा एक सी.एन.जी. स्टेशन ने कार्य करना भी प्रारम्भ कर दिया है।
लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा)
लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) शासन की अत्यन्त महत्वाकांक्षी योजना है। प्रथम चरण में लीडा के अन्तर्गत अधिसूचित जिला लखनऊ के चार ग्राम-नंटकुर, कुरैनी, बन्थरा, सिकन्दरापुर तथा मीरानपुर पिनवट में लगभग 2000 एकड़ भूमि के अर्जन की कार्यवाही गतिमान है, जिसके सम्बन्ध में भू-अध्याप्ति अधियिम की धारा-4/14 व 6/17 की अधिसूचना निर्गत हो चुकी हैं। इन ग्रामों में प्रतिकार निर्धारण हेतु काश्तकारों से जिलाधिकारी लखनऊ के माध्यम से वार्ता का क्रम जारी है। आयुक्त लखनऊ मण्डल, लखनऊ द्वारा कुरैनी ग्राम हेतु रू. 9.00 लाख प्रति बीघा का प्रतिकार निर्धारण किया गया है। ग्राम कुरैनी हेतु अनिवार्य अर्जन की कार्यवाही पूर्ण कर ली गयी हैं। ग्राम कुरैनी के प्रभावित 335 काश्तकारों में से 139 काश्तकारों ने करार नियमावली के अन्तर्गत सहमति पत्र भरे हैं, जिन्हें रू. 9.00 लाख प्रति बीघा की दर से प्रतिकार वितरण कार्य गतिमान है। अवशेष काश्तकारों से करार हेतु कार्यवाही की जा रही है।
उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम
उ.प्र. वित्तीय निगम की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा पारित राज्य वित्तीय निगम अधिनियम, 1951 के अन्तर्गत वर्ष 1954 में की गयी थीं निगम का मुख्य उद्देश्य नई औद्योगिक इकाईयों को लगाने एवं वर्तमान इकाइयों के विस्तारीकरण एवं आधुनिकीकरण के लिए मध्यम एवं दीर्घकालीन उपलब्ध कराना है। निगम के वित्तीय संसाधनों की पूर्ति मुख्य रूप से भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक से पुनर्वित की प्राप्ति, बॉण्ड्स श्रृंखला जारी करके धन जुटाना एवं आन्तरिक स्रोतों से धन अर्जित करके होती है।
निगम द्वारा प्रदेश में लगभग 41000 इकाइयों की स्थापना हेतु रू. 3237.83 करोड़ से अधिक का ऋण वितरित किया गया है, जिससे निगम द्वारा प्रदेश के औद्योगिक विकास के साथ- साथ रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराये गये हैं। वर्तमान में निगम के 19 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिसमें 17 उत्तर प्रदेश में स्थित है, जिसके कारण प्रदेश के प्रत्येक जिले में निगम अपनी सेवायें प्रदान करने में सक्षम रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि निगम द्वारा प्रदेश के पिछड़े जिलों के विकास हेतु औद्योगिक इकाइयों को ऋण वितरित किया गया है। वर्तमान समय में निगम के दो क्षेत्रीय कार्यालय हल्द्वानी एवं देहरादून उत्तरांचल राज्य में है। राज्य सरकार ने प्राप्त आदेशों के अन्तर्गत वर्तमान में ऋण स्वीकृति तथा वितरण का कार्य बन्द है।
ऋण की सीमा
- प्रोपराइटरशिप व भागीदारी फर्मों के लिए रु. 800 लाख।
- निजी व सार्वजनिक लि. के. के लिए रु.2000 लाख।
- निर्माण (कन्स्ट्रक्शन) के. के लिए रु. 2000 लाख।
निर्माण (कन्स्ट्रक्शन) क्षेत्र के लिए सहायता
इस योजना में प्राइवेट बिल्डर्स तथा डेवलपर्स को व्यावसायिक परियाजनाओं के निर्माण में वित्तीय सहायता दी जाती है। इसने उनकी सुदृढ़ आर्थिक तथा पिछले तीन वर्षों का अच्छा ट्रैक रिकार्ड होना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें कम-से-कम एक बड़ा प्रोजेक्ट 50 प्रतिशत सफलतापूर्वक पूरा करने का अनुभव भी होना चाहिए।
- इसमें उद्यमी का न्यूनतम 50 प्रतिशत अंशदान होना चाहिए, जिसमें भूमि की कीमत तथा उस परर किये गये निर्माण की लागत सम्मिलित हो सकती है।
- ऋण पूंजी अनुपातः
- टैन्जीविल/कोलेटरल सिक्योरिटी पर प्रथम अधिकार के साथ-साथ प्रमोटर / डायरेक्टर की पर्सनल गारण्टी।
- न्यूनतम सिक्योरिटी ऋण अनुपात 2:01
- इसमें वित्तीय सहायता स्ट्रक्चरल/आब्लिगेटरी रूल के अन्तर्गत दी जायेगी, जिसके लिए उद्ययमी को स्क्रो एकाउन्ट खोलना होगा, जिसमें उद्यमी को उसके ग्राहकों से मिलने वाली राशियां जमा होगी।
- इसमें 12 माह की अनुग्रह अवधि सहित 36 से 60 माह की अवधि अदायगी के लिए होगी।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- कृषि के पिछड़ेपन का कारण | कृषि समस्याओं के समाधान का उपाय | कृषि की स्थिति को सुधारने हेतु सरकार के प्रयास | भारत में कृषि के पिछड़ेपन के कारण
- कृषि में तकनीकी परिवर्तन का अर्थ | कृषि में तकनीकी परिवर्तन के साधन | कृषि यन्त्रीकरण के लाभ | कृषि यन्त्रीकरण के पक्ष में तर्क | तकनीकी परिवर्तन एवं कृषि विकास |कृषि यन्त्रीकरण के दोष | कृषि यन्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क
- सार्वजनिक उपक्रमों की समस्याएं | सार्वजनिक उपक्रमों की समस्याओं के लिए सुझाव
- कृषि वित्त | कृषि वित्त की आवश्यकता | कृषि वित्त की प्रमुख एजेन्सियाँ | कृषि वित्त के प्रमुख स्त्रोत
- उत्तर प्रदेश में पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास | पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक विकास दर | औद्योगीकरण की दिशा में सरकार द्वारा किये गये प्रयास
- लघु उद्योगों का विकास | उत्तर प्रदेश में लघु औद्योगिक क्षेत्र एवं सम्पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र का वार्षिक वृद्धि दर | उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों की स्थिति | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक समस्याओं की व्याख्या | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास के समस्याओं की विवेचना
- योजना काल में भारत में औद्योगिक प्रगति या विकास | भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक क्रान्ति | भारत में योजना काल में हुए प्रमुख उद्योगों का विकास
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