अर्थशास्त्र / Economics

गरीबी क्या है | उ0प्र0 में गरीबी के कारण | उ0प्र0 में गरीबी को दूर करने के उपाय

गरीबी क्या है | उ0प्र0 में गरीबी के कारण | उ0प्र0 में गरीबी को दूर करने के उपाय

गरीबी क्या है

निर्धनता या गरीबी किसी भी अर्थव्यवस्था में व्याप्त आर्थिक विपन्नता को इंगित करता है। साथ ही यह मानव विकास को भी निर्धारित करती है। यह न केवल अर्थव्यवस्था में व्याप्त संख्यात्मक पिछड़ेपन तथा बुरी आर्थिक स्थिति को प्रकट करती है बल्कि यह मानव विकास के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित रहती है।

उत्तर प्रदेश में गरीबी-उत्तर प्रदेश जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में गरीबी का स्वरूप विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भिन्न होता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में गरीबी की समस्या मुख्यताः सापेक्षिक होती है, जबकि विकासशील देशों में यह समस्या निरपेक्ष होती है। जहाँ पर लोगों को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी कठिनाई होती है। पहले देश में गरीबी रेखा का निर्धारण केवल राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता था किन्तु 1993 में लकड़वाला समिति की सिफारिशों के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण राज्य स्तर पर किया जाने लगा है। अत: अब गरीबी निर्धारण के लिए राज्य स्तर की परिस्थितियों के अनुसार गरीबी रेखा निर्धारण के लिए शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग न्यूनतम आवश्यक मासिक आय निर्धारित की जाती है।

यदि किसी व्यक्ति की औसत आय इस निर्धारित सीमा से कम है तो वह गरीबी की श्रेणी में माना जाता है। रू0 365.84 तथा शहरी क्षेत्रों के लिए रू0 483.26 निर्धारित की गई। यदि किसी व्यक्ति का व्यय इस स्तर से कम था तो वह गरीबी की श्रेणी में शामिल किया गया है। वर्ष 1999-2000 में निर्धारित न्यूनतम प्रति व्यक्ति मासिक व्यय क्रमशः रू० 336.88 तथा रू0 416.29 था। गरीबी का आकलन प्राय: प्रत्येक पाँच वर्षों में राष्ट्रीय प्रतीक सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के द्वारा किया जाता है जोकि भारत सरकार की एक संस्था है।

गरीबी का उत्तर-प्रदेश में एक अन्य पहलू यह भी है कि इसका वितरण विभिन्न सामाजिक समूहों में समान रूप से नहीं है। कहने का अभिप्राय यह है कि गरीबी के स्वरूप में गांव तथा शहरों में अन्तर तो है ही साथ ही उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में गरीबी का प्रकोप कुल गरीबी के अनुपात से काफी अधिक है। अनुसूचित जाति आर्थिक एवं सामाजिक रूप से काफी पिछड़ी हुई प्रमुख सामाजिक समूह है। 2001 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या का 21.2 प्रतिशत भाग अनुसूचित जाति का था। तालिका- 7 में यह बताया गया है कि 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में 59.0 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 58.0 प्रतिशत योग अनुसृचित जाति के थे, जबकि उत्तर प्रदेश में कुल ग्ररीबी क्रमश: 42.3 तथा 35.0 प्रतिशत थी। 1999-2000 में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत गरीबी का आकार तीव्रता से घटा है फिर भी यह उत्तर प्रदेश के औसत से काफी ज्यादा है। इसमें कुछ महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्रदेश की कुल गरीबी में शहरी तथा ग्रामीण गरीबी में पर्याप्त अन्तर देखने में आता है। किन्तु यह अन्तर अनुसूचित जाति के विषय में नगण्य रहा है।

गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के लिए किये गये उपाय

भारत की सरकार एवं नीति निर्माता सदैव ही इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि उत्तर प्रदेश एवं भारतीय अर्थव्यवस्था को व्यापक गरीबी एवं बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्त करा सके और इस दिशा में अनेक कार्य किये गये हैं और सरकार इस दिशा में काफी धन खर्च कर रही है। यहीं वजह है कि जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के बावजूद भी देश में गरीबी एवं बेरोजगारी को कुछ सीमा तक अवश्य नियन्त्रित किया जा सकता है। सरकार ने इस दिशा में अनेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कार्य किए हैं। इनमें से कुछ रणनीतियों को निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है-

(1) गरीबी एवं बेराजगारी को दूर करने की प्रमुख रणनीतियाँ-

  1. गरीबी एवं बेराजगारी दूर करने के लिए सीधी कार्यवाही- प्रारम्भ में तो सरकार द्वारा गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष रणनीति नहीं बनाई गई किन्तु जब यह समस्या विकराल रूप धारण करती गई तब भारत सरकार एवं प्रदेश सरकार दोनों ने इन बुराइयों को कम करने के लिए प्रत्यक्ष प्रहार की रणनीति बनाई।

कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का उल्लेख किया जा सकता है जिनमें प्रमुख हैं-कार्य के बदले अनाज योजना, अम्बेडकर विकास योजना, राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (NREGA), सस्ते दरों पर गरीबों को खाद्यान्नों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, गरीबों को तमाम सुविधाएं देना, वृद्धावस्था पेन्शन, ग्राम विकास के कार्यक्रमों को चलाना, गरीबो के लिए इन्दिरा आवास योजना का लाभ देना, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विकास के लिए अनेक विकास के कार्यक्रमों को चलाना, आदि।

  1. कृषि तथा अन्य उत्पादन में सहायता- सरकार ने कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि हेतु तकनीकी जानकारी एवं अन्य सुविधा उपलब्ध कराने का सराहनीय कार्य किया है साथ ही इन उत्पादनों में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों आदि को उपयुक्त दर पर निम्न वर्ग के उत्पादक वर्ग को उपलब्ध कराकर लाभान्वित किया है। इसका प्रभाव गरीबी निवारण तथारोजगार सृजन के रूप में देखा जा सकता है।
  2. सामाजिक क्षेत्र का विकास- सामाजिक क्षेत्र के अन्तर्गत चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, आवास, पेयजल, महिला सशक्तीकरण जैसी मूलभूत सुविधायें शामिल की जाती है जिन्हें सरकार से जनता को उपलब्ध कराया जाता है। इनका प्रभाव दीर्घकाल में काफी सार्थक सिद्ध होता है।
  3. मूलभूत सरचनाओं में वृद्धि- मूलभूत संरचना के अन्तर्गत विद्युत, सड़क, परिवहन, जल, सिचाई, आदि सुविधाएं आती हैं और इनके विकास से न केवल आर्थिक वृद्धि तीव्र होती है। बल्कि यह अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी एवं बेराजगारी को कम करने में भी सहायक होता है।
  4. गैर कृषि क्षेत्रों का विकास- सरकार ने विकास प्रक्रिया प्रारम्भ करने के समय से ही अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन पर बल देना आरम्भ कर दिया और गैर-कृषि क्षेत्रों के लिए विकास पर जोर दिया ताकि औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों के विकास से प्रदेश में उत्पादन एवं आय में वृद्धि हो सके। इन क्षेत्रों के विकास से लोगों को रोजगार तो मिलता ही है साथ ही लोगों की आय में भी वृद्धि होती है।
  5. भूमि का वितरण- सरकार ने नियोजन के प्रारम्भिक दौर से ही जमींदारी उन्मूलन तथा कृषि भूमि का भूमिहीन कृषकों में वितरण की रणनीति बनाई जिससे उत्तर-प्रदेश तथा भारत के भूमिहीन तथा गरीब किसान लाभान्वित हुए। सरकार की इस रणनीति से कृषि उत्पादन को प्रोत्साहन मिला।

(2) ग्यारहीं पंचवर्षीय योजना की रणनीतियाँ- सरकार ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन के लिए निम्न लक्ष्य निर्धारित किये हैं-

  1. ग्यारहवीं योजना के अन्त तक गरीबी के स्तर को 15 प्रतिशत तक कम करना।
  2. योजना के दौरान सवा करोड़ रोजगार के अवसरों का निर्माण करना।
  3. श्रमिकों को और अधिक रोजगार परक बनाना।
  4. 2004-05 में गरीबों की संख्या 5-9 करोड़ थी जिसे घटाकर 2012 तक 3.0 करोड़ करना।
  5. प्रदेश में लोगों तक ज्यादा वित्तीय सुविधा पहुँचाना तथा इस प्रक्रिया में सूक्ष्म वित्त रणनीति का अधिक से अधिक उपयोग करना, जिससे लोगों की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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