अर्थशास्त्र / Economics

विदेशी पूँजी से आशय | विदेशी पूंजी के प्रकार | विदेशी पूँजी की आवश्यकता | विदेशी पूँजी से हानि

विदेशी पूँजी से आशय | विदेशी पूंजी के प्रकार | विदेशी पूँजी की आवश्यकता | विदेशी पूँजी से हानि | Meaning of foreign capital in Hindi | Types of Foreign Capital in Hindi | Foreign Capital Requirement in Hindi | loss from foreign capital in Hindi

विदेशी पूँजी से आशय

विदेशी पूँजी से आशय उस पूंजी से होता है जो पूँजी विदेशी सरकार द्वारा किसी उद्योग में लगायी जाती है। इन उद्योगों में यह पूँजी विदेशी सरकार, संस्था अथवा समुदाय द्वारा विदेशी मशीनों, विदेशी मुद्रा तथ विदेशी तकनीकी ज्ञान के आधार पर लगायी जा सकती जा सकती है। यह पूंजी में हिस्सा बांटने विदेशी सहयोग या विदेशी मुद्रा के ऋण आदि के रूप में हो सकती है।  विदेशी सरकारें या कुछ. संस्थाएं यह पूंजी कभी-कभी ऋण प्रदान करने के साथ-साथ कुछ अनुदान प्रदान करती हैं। इस अनुदान को ये संस्थाएं वापस नहीं लेती हैं। विदेशी सरकारों अथवा संस्थाओं द्वारा जो अनुदान दिया जाता है उसे ‘विदेशी सहायता’ कहा जाता है। वर्तमान में विदेशी सहायता के अन्तर्गत विदेशी पूँजी, विदेशी ऋण, विदेशी अनुदान सम्मिलित हैं।

विदेशी पूंजी के प्रकार

विदेशी पूँजी निम्नलिखित तीन प्रकार की होते है-

  1. प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग- प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग एक देश से दूसरे देश की निजी अथवा सार्वजनिक संस्थाओं में उस देश की निजी विदेशी संस्थाओं द्वारा किया जाता है। प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग को विदेशी उद्यमी विनियोग के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्यक्ष निजी विदेशी विनियोग के अन्तर्गत प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग तथा पोर्टफोलिया विनियोग (Portfolio Investment) दो प्रकार का विनियोग होता है। विदेशी पूँजीपतियों की कम्पनियों पर स्वामित्व तथा प्रबन्धकीय नियन्त्रण भी प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग के अन्तर्गत होता है विदेशी पूँजीपतियों का पोर्टफोलियो विनियोग पर स्वामित्व तथा नियन्त्रण नहीं होता है क्योंकि जिस देश में कम्पनी स्थापित की जाती है उसी देश पर उसका प्रभुत्व एवं उसका नियन्त्रण छोड़ देते हैं। अतः विनियोगकर्ता ऐसे विनियोग में अपने ऊपर जोखिम नहीं उठाते हैं, न ही विनियोगकर्ता प्रबन्ध पर ही नियन्त्रण रखते हैं।
  2. एक सरकार से दूसरी सरकार को ऋण- किसी देश के उद्यमों में विदेशी पूंजी लगाने की यह दूसरी विधि है। इस विधि के अन्तर्गत एक देश की सरकार दूसरे देश की सरकार को ऋण प्रदान करती है। ये ऋण भी दो प्रकार के दिये जाते हैं- उदार ऋण (Soft Loans) तथा अनुदार ऋण (Hard Loans)। इस प्रकार जो भी ऋण दीर्घ अवधि के लिए कम ब्याज दर पर दिये जाते हैं उदार ऋण कहलाते हैं तथा जो ऋण कम अवधि के लिए अधिक व्याज दर पर दिये जाते हैं अनुदार ऋण कहलाते हैं। पुनः अनुदार ऋणों को दो भागों में बांटते हैं। प्रथम प्रोजेक्ट ऋण जो किसी विशेष कार्य के लिए नहीं देते हैं।
  3. अन्तरर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा ऋण- विदेशी पूँजी को अन्तरर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा भी ऋणों के रूप में प्रदान किया जाता है। यह ऋण निजी तथा सार्वजनिक दोनों प्रकार के क्षेत्रों में प्रदान किये जाते हैं। अन्तरर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अन्तर्गत अन्तरर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Development Organization) तथा एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank) द्वारा ऋण प्रदान किया जाता है।

विदेशी पूँजी की आवश्यकता

भारत एक विकासशील देश है, अतः भारत में पूँजी का अभाव, प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन नहीं हो पा रहा है, आन्तरिक बचते भी कम हैं, तकनीकी ज्ञान का अभाव है, पूँजीगत मशीनो के अभव के साथ-साथ जोखिम सहन करने की क्षमता भी कम है। अतः इन सभी की कमी को पूरा करने के लिए विदेशी पूंजी तथा विदेशी संहायता की आवश्यकता पड़ती है। विदेशी पूंजी की आवश्यकता निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट की जा सकती है-

  1. प्राकृतिक साधनों का भली प्रकार विदोहन- भारत में पर्याप्त पूँजी तथा तकनीकी ज्ञान के अभाव में पर्याप्त प्राकृतिक साधनों के होने के बावजूद इनका उचित विदोहन नहीं हो पा रहा है। अतः विदेशी पूँजी की आवश्यकता इन साधनों के समुचित विदोहन एवं उपयोग करने के लिए होती है। जिसके माध्यम से आद्योगीकरण की गति को तीव्रता प्रदान कर सकते हैं।
  2. आधारभूत उद्योगों को स्थापित करना- भारत में पर्याप्त आधारभूत उद्योगों का अभाव है, अतः इस प्रकार और उद्योगों की स्थापना के लिए भारी मात्रा में पूंजी को विनियोजित करके स्थापित किये जा सकते हैं जिन्हें विदेशी सरकारें या संस्थाएं विदेशी पूंजी प्रदान कर सहायता पहुंचाती हैं।
  3. विदेशी तकनीकी ज्ञान का लाभ- भारत एक विकासशील देश है जिसे और अधिक विकास के लिए उच्च तकनीक तथा उच्च ज्ञान की आवश्कता है जो कि विदेशी पूंजी तथा सहायता द्वारा पूंजी तथा सहायता द्वारा विदेशी तकनीक का लाभ उठाया जा सकता है। उच्च तकनीकी प्राप्त करके औद्योगिक कुशलता में वृद्धि, उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। जिससे उपभोक्ताओं को सस्ती तथा टिकाऊ वस्तु उपलब्ध करायी जा सकती है तथा इस तरह से निर्यात को भी प्रोत्साहन मिलता है।
  4. आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति- आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति हेतु विदेशी पूँजी की सहायता द्वारा आयात के लिए पूँजी प्राप्त होती है। जिससे विदेशी मुद्रा कोष पर प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके लिए विदेशी पूंजी की आवश्कता पड़ती है।
  5. बचतों एवं विनियोग को प्रोत्साहन- भारत में विदेशी पूँजी एवं सहायता के द्वारा बचत एंव विनियोग को प्रोत्साहन प्राप्त होता है जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार होता है।
  6. आर्थिक नियोजन- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् से ही भारत में आर्थिक नियोजन कार्यक्रम चल रहे हैं। इन कार्यक्रमों को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध है लेकिन पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता है जो इनकी सफलता का आधार होती है। अतः विदेशी पूँजी की आवश्यकता है जो इनकी सफलता के लिए आवश्यक है।
  7. बेरोजगारी में कमी- भारत में विदेशी पूँजी और सहायता द्वारा अनेकानेक उद्योग स्थापित किये गये हैं जिसके कारण भारत में इन उद्योगों में लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त करने के अवसर मिलते हैं जिससे बेरोजगारी में कभी की जा सकती है।
  8. व्यावसायिक जोखिम में कमी- किसी भी आधारभूत उद्योग एवं पूँजीगत उद्योगों को स्थापित करने में भारी मात्रा में पूँजी लगाने का जोखिम उठाना पड़ता है। लेकिन विदेशी पूँजी एवं सहायता द्वारा इन उद्योगों को स्थापित करने के लिए पूँजी प्रदान की जाती है। जिससे जोखिम बंट जाता है तथा व्यावसायिक जोखिम में कमी आ जाती है।
  9. भुगतान असन्तुलन में सहायता- भारत में वेदशी व्यापार विगत वर्षों में असन्तुलन की स्थिति में रहा है तथा आर्थिक आयात भी नियोजन के कारण अधिक होने की सम्भावना व्यक्त की जाती है। अतः भुगतान असन्तुलन को कम करने में, विदेशी पूँजी तथा विदेशी सहायता सहायक सिद्ध हुई है जिससे स्पष्ट होता है कि भारत में विदेशी पूंजी एवं सहायता की आवश्यकता है।
  10. मुद्रा स्फीति की कम सम्भावना- अनेक विद्वानों का विचार है कि विदेशी पूँजी व सहायता के द्वारा मुझ स्फीति जैसी स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती है, अगर होती भी है तो इसकी बहुत कम सम्भावना होती है।

विदेशी पूँजी से हानि

विदेशी पूंजी से होने वाली हानि निम्न है-

  1. स्वतन्त्र आर्थिक नीति अपनाने में कठिनाई- अधिकांश ऐसा पाया जाता है कि विदेशी पूँजी व सहायता प्राप्त करने से विदेशी नीति के अनुकूल कर नीति, औद्योगिक नीति तथा प्रशुल्क नीति अपनाने के कारण अपने देश को स्वतन्त्र आर्थिक नीति अपनाने में कठिनाई होती है। यदि ऐसा न किया जाए तो विदेशी पूंजी व सहायता मिलने की सम्भावना कम हो जाती है। विदेशी पूँजी व सहायता से हानियों के बारे में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री नानावती तथा अन्जीरिया का कथन है कि “विदेशी सहायता ने भारत की आर्थिक नीतियों को परोक्ष रूप से प्रभावित किया है।”
  2. राजनीतिक पराधीनता- विदेशी पूँजी व सहायता से सबसे बड़ी हानि यह होती है कि इससे देश में राजनीतिक पराधीनका आती है तथा विदेशी सरकार द्वारा राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है। देश में विदेशी पूँजी व सहायता से आर्थिक निर्भरता बढ़ती है तथा देश की सुरक्षा में संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  3. आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण- आर्थिक शक्ति का विदेशी पूंजी व सहायता द्वारा केन्द्रीकरण होता है जिससे अर्थव्यवस्था में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।
  4. राष्ट्रीय उत्पादकों के लिए हानिकारक- राष्ट्रीय उत्पादकों को भी विदेशी पूँजी व सहायता द्वारा स्थापित उद्योगों से इन उद्योगों के क्षेत्र में प्रतियोगिता करनी पड़ती है। इन उद्योगों के अधिक पूँजी वाले तथा शक्तिशाली होने के कारण प्रतियोगी इनके सामने टिक नहीं पाते हैं। जिससे उनको कभी-कभी लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है। अथवा अधिक हानि की स्थिति में इनको अपना व्यवसाय भी बन्द करना पड़त है। जिसके फलस्वरूप देश में राष्ट्रीय उत्पादकों को बहुत हानि होती है जो देश के हित में नहीं है।
  5. भुगतान के समय कठिनाइयाँ- देश की विदेशी पूंजी व सहायता से लाभ होता है परन्तु यह पूँजी या सहायता जब लौटानी होती है तो अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। यह असर और अधिक बुरा उस समय होता है जब यह पूँजी व सहायता किसी अनुत्पादक कार्य में लगायी गयी होती है।
  6. लाभों का निर्यात- विदशी पूँजी से लगाये गये उद्योगों द्वारा जो लाभ प्राप्त होता है उसका निर्यात किया जाता है जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है जो देश के हित में नहीं होता है।
  7. विदेशी निर्भरता- देश में विदेशी पूँजी व सहायता प्राप्त होने से विदेशी निर्भरता बढ़ती है और देश के आत्म सम्मान को आघात पहुंचाता है। विदेशी पूँजी से उपर्युक्त होने वाली हानियाँ देश की अर्थव्यवस्था पर गम्भीर प्रभाव डालती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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