इतिहास / History

भारत छोड़ो आन्दोलन | भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण | भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम और महत्व

भारत छोड़ो आन्दोलन | भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण | भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम और महत्व

भारत छोड़ो आन्दोलन

सन् 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन स्वाधीनता संग्राम की महानतम् अहिंसात्मक क्रान्ति थी। इस क्रान्ति ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींव हिला दी। इस आन्दोलन के फलस्वरूप हमारी स्वाधीनता निकट आई और राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रहार शक्ति तीव्रतम हुई।

यह आन्दोलन आकस्मिक न था वरन् इसके अनेक पूर्ववर्ती कारण परिलक्षित होते थे जो निम्नलिखित थे-

(1) क्रिप्स मिशन की असफलता- क्रिप्स मिशन की असफता के कारण सारे देश में असन्तोष की भावना फैली हुई थी। भारतीयों को ऐसा विश्वास हो गया था कि ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स को अमेरिका तथा चीन के दबाव के कारण भेजा था क्योंकि चर्चिल के मन में भारत को स्वतन्त्र करने की कोई इच्छा नहीं थी। दूसरी ओर जापान बड़ी तेजी से भारत के निकट आता जा रहा था। भारत में इसका मुकाबला करने के लिए कोई तैयारी न थी। इन समस्याओं ने कांग्रेसी नेताओं को चिन्तित कर दिया। इस विचित्र स्थिति में गाँधीजी ने अत्यन्त दुःखी मन से इस प्रकार लिखा, “भारत को भगवान के भरोसे छोड़ दो और यदि यह असम्भव हो तो उसे अराजकता के भँवर में ही छोड़ दो।” अपने एक दूसरे लेख में उन्होंने लिखा, “भारत के लिये उसके परिणाम कुछ भी क्यों न हो, भारत और ब्रिटेन की वास्तविक सुरक्षा समय रहते इंगलैण्ड को भारत छोड देने में ही है।”

(2) युद्ध में ब्रिटिश सरकार की शोचनीय स्थिति- युद्ध में ब्रिटिश सरकार जापान का सफलतापूर्वक सामना नहीं कर पा रही थी। भारतीयों को विश्वास हो गया कि ब्रिटेन भारत की रक्षा नहीं कर पायेगा, क्योंकि मलाया, सिंगापुर वर्मा आदि देशों में ब्रिटिश सेनाओं को पीछे हटना पड़ा था, अनेक भारतीय नेताओं का यह मत था कि जापान भारत के विरुद्ध नहीं अपितु साम्राज्यवादी ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा है। अतः यदि ब्रिटेन भारत को मुक्त कर देता है तो युद्ध की समस्या सरलता से हल हो जायेगी। श्री नेहरू के अनुसार, “युद्ध ने भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान किया है। हमें केवल वचन पर निर्भर रहकर इसे खोना नहीं चाहिए।”

(3) अंग्रेजों का घृणास्पद व्यवहार- युद्ध के नाम पर लज्जास्पद कानून बनाये गए, देश में भ्रष्टाचार और चोर बाजारी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी। मँहगाई के कारण जनता में असन्तोष बढ़ रहा था और अंग्रेजों के कुटिल व्यवहार के कारण भारतीय नेता क्षुब्ध थे।

(4) कांग्रेस का वर्धा प्रस्ताव-14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्य-समिति की बैठक हुई। इस बैठक में गाँधी जी के विचारों का समर्थन किया गया कि भारत को अंग्रेज छोड़कर चले जायें। समस्या का समाधान केवल ब्रिटिश राज्य समाप्ति में ही समझा गया और इस हेतु यह . निर्णय किया गया कि कांग्रेस एक व्यापक आन्दोलन चलाएगी।

(5) गाँधी जी की विचारधारा में परिवर्तन- जनता में असन्तोष और निराशा की भावना को देखते हुए गाँधी जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारत की रक्षा का एकमात्र उपाय भारत की स्वाधीनता है। अब वे मानने लगे कि अन्याय सहना कायरता है और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना ही शूरता है।

भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव- 7 अगस्त 1942 को बम्बई में कांग्रेस का अधिवेशन आरम्भ हुआ तथा 8 अगस्त को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया गया। अधिक वाद विवाद के उपरान्त यह प्रस्ताव पारित हुआ। इस प्रस्ताव का पारित होना ही 1942 के प्रसिद्ध भारत छोडो आन्दोलन का श्रीगणेश था। प्रस्ताव में निम्नलिखित तथ्य थे-

(1) भारत से ब्रिटिश शासन का शीघ्र अन्त होना चाहिये।

(2) कांग्रेस यह नहीं चाहती थी कि मलाया, सिंगापुर तथा बर्मा पर जो बीती, वह भारत पर भी बीते । अतः वह चाहती है कि आक्रमण के विरुद्ध प्रतिरोध की शक्ति का संगठन किया जाए।

(3) यदि ब्रिटिश सरकार स्वतन्त्रता की माँग को स्वीकार न करे तो अहिंसात्मक प्रणाली से अधिक से अधिक विशाल पैमाने पर एक ऐसा आन्दोलन प्रारम्भ किया जाए जो अन्त में भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ही दम ले।

(4) अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का आश्वासन दिया गया।

(5) जब स्वाधीनता मिलेगी और सत्ता भारतीय के हाथों में आयेगी तो वह सारे देशवासियों के लिये होगी न कि केवल कांग्रेस के लिये।

(6) महात्मा गाँधी को आन्दोलन का संचालक बनाया गया।

महात्मा गाँधी ने कांग्रेस महासमिति में आन्दोलन की निम्न विशेषताएँ बतलाई-

(1) यह संघर्ष ‘करो या मरो’ संघर्ष होगा।

(2) यह स्वाधीनता का अन्तिम आन्दोलन होगा।

(3) यह खुला तथा अहिंसात्मक आन्दोलन होगा।

क्रान्ति का विस्फोट- यद्यपि ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ शीघ्र ही प्रारम्भ नहीं होना था; प्रस्ताव में यह कहा गया था कि गाँधी जी वायसराय से समझौता वार्ता करेंगे और उसके बाद कोई कार्यवाही की जायेगी। परन्तु 9 अगस्त को ही सरकार ने कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। अन्य नेताओं को भी जेल में डाल दिया गया। नेताओं के बन्दी हो जाने से जनता नेतृत्व विहीन हो गई। जनता ने सरकार की नीति के विरुद्ध जुलूसों, सभाओं और हड़तालों का आयोजन किया। शासन ने उन्हें कुचला, गोलियां चलाईं और अश्रु गैस के प्रयोग किया। जनता की भावनाएँ उबल पड़ी और फिर से जनता और पुलिस, भीड़ और फौज में खुली लड़ाई छिड़ गई।

क्रान्ति का दमन- जनता की हिंसात्मक उत्तेजना को अब कोई रोकने का व्यवस्था। लगभग सभी बड़े-बड़े नगरों में जनता ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किये। विद्यार्थी, मजदुर, दुकानदार और यहाँ तक कि अनपढ़ स्त्रियों ने भी बाजारों और गलियों में जुलूस निकाले और गाँधी जी तथा अन्य नेताओं की रिहाई की मांग की।

धीरे-धीरे इस शान्तिपूर्ण आन्दोलन ने हिंसक रूप धारण कर लिया परन्तु इसका समस्त उत्तरदायित्व सरकार पर था। जिस रूप में प्रारम्भ में ही सरकार ने दमन नीति अपनाई, उसने भारतीयों के हदय में पेट्रोल का काम किया। दमन से जनता दबी नहीं अपितु उसके हृदय में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध जो आग भड़क रही थी उसने और जोर पकड़ लिया। 11, 12 अगस्त को दिल्ली में पुलिस ने 47 बार गोलियां चलाई और 9 अगस्त से 21 अगस्त के बीच उत्तर प्रदेश में 29 बार गोली चली। दूसरे प्रान्तों में भी इसी प्रकार की घटनायें घटीं। भारत मंत्री के मतानुसार 9 अगस्त से 30 नवम्बर तक 1028 व्यक्ति मारे गये और 3215 घायल हुए परन्तु यह आँकड़ें विश्वसनीय नही हैं। इसी समय नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जो पहले ही सरकार की आँखों से ओझल हो गये थे, बर्मा में आजाद हिन्द फौज़ का संगठन करके भारत की तरफ बढ़ रहे थे। वह निरन्तर अपने रेडियो ब्राड कास्ट द्वारा जनता को सरकार के विरुद्ध क्रान्ति करने का आदेश दे रहे थे।

सरकार के दमन का परिणाम यह हुआ कि भारत के विभिन्न भागों में रेलगाड़ी चलनी बन्द हो गई तथा टेलीफोन और टेलीग्राफ विभाग भी बन्द हो गये। मैसूर राज्य में दो सप्ताह तक 32,000 मजदूर तथा कर्मचारी हड़ताल पर रहे,80 प्रतिशत छात्रों ने स्कूलों का बहिष्कार किया। पटियाला राज्य में सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयत्न करते हुए 8 छात्र मारे गये और मैसूर राज्य में लगभग 100 विद्यार्थी गोली के शिकार हुए। सबसे दुःखद घटना बंगाल के चाँदा जिले में घटी, जहाँ सरकारी अफसरों की मृत्यु का बदला लेने के लिये यहाँ की स्त्रियों का अपमान किया गया। स्वतन्त्रता की बलवती भावना को दबाने के लिये सरकार ने दमनपूर्ण नीति का आश्रय लिया और देश में एक प्रकार से पुलिस राज्य स्थापित हो गया। दमन कार्यों के सम्बन्ध में पं० नेहरू लिखते हैं, “सभी परम्परायें और छल कपट जो साधारण शासन के कार्यों को ढंके रहते हैं, दूर कर दिये गये और केवल नग्न शक्ति सत्ता की प्रतीक बन गई। सरकार के दमन ने खुले विद्रोह को तो कुछ काल के लिये दबा दिया परन्तु यह आन्दोलन कई महीने तक चलता रहा तथा श्रीमती अरुणा आसफ अली, श्री राम मनोहर लोहिया और श्री जयप्रकाश नारायण आदि समाजवादी नेताओं ने छिपकर आन्दोलन का निर्देशन किया।

विभिन्न दलों का रुख- भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों को इस आन्दोलन के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। समाजवादी नेताओं ने तो इस आन्दोलन में पूर्णतः कांग्रेस का साथ दिया परन्तु अन्य दलों का रुख इसके विपरीत था। कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी पर मुस्लिम लीग बहुत प्रसन्न थी और उसने युद्ध सम्बन्धी प्रयत्नों में थोड़ी बहुत सहायता देने की नीति जारी रखी। साम्यवादी दल के समर्थकों ने जो नीति अपनी, वह देश के लिये अत्यन्त घातक सिद्ध हुई। साम्यवादियों ने लीग के साथ सम्पर्क करके उनकी पाकिस्तान सम्बन्धी योजना के पक्ष में विचार प्रकट किये तथा कांग्रेस को आन्दोलन समाप्त करने की सलाह दी। यद्यपि हिन्दू महासभा ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का समर्थन किया किन्तु इसके नेता इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये जेल जाने के पक्ष में न थे।

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण-

भारत छोडो आन्दोलन जनता ने जिस उत्साह के साथ प्रारभ किया, सरकार के दमन चक्र के कारण वह सफल न हो सका। आन्दोलन की असफलता के निम्नलिखित कारण थे-

(1) क्रान्ति के संगठन और आयोजन की कमियाँ- डॉ० अम्बा प्रसाद ने इस विषय में लिखा है यह जन-आन्दोलन था इसलिए यह आवश्यक था कि पहले आन्दोलन की अपेक्षा इसमें कुछ भिन्न कार्य पद्धति हो। यह आवश्यक था कि नेताओं को पहले से ही सारी रणनीति का ज्ञान हो और इससे पूर्व की सरकार उनको जेल में बन्द करे उनको अज्ञात स्थान पर चला जाना चाहिए था। आन्दोलन का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी को यह पता नहीं था कि क्या करना है?

गाँधी जी इस धारणा पर कार्य कर रहे थे कि यदि इस संकट के समय अंग्रेजों को जन- आन्दोलन की धमकी दी गई तो वे पत्र-व्यवहार या बातचीत करेंगे, क्योंकि अंग्रेज वास्तविक स्थिति को पहचानते हैं। दूसरा, उनका यह विचार था कि सन् 1930 के आन्दोलन की तरह सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी परन्तु यह दोनों धारणायें गलत निकली। स्मर्तव्य है कि आन्दोलन को सुचारु रूप से संगठित नहीं किया गया था। मुख्य कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आन्दोलन नेतृत्वहीन हो गया।

(2) सरकारी सेवाओं की सरकार के प्रति वफादारी-दूसरी इस आन्दोलन की असफलता का मुख्य कारण यह था कि सरकारी सेवक सरकार के प्रति वफादार रहे। इसलिए सरकार का कार्य बिना किसी असुविधा के चलता रहा।

(3) सरकार की कई गुनी शक्ति- इस आन्दोलन का दमन करने के लिये सरकार के पास इतने अधिक साधन थे कि आन्दोलन को सरलतापूर्वक क्षीण कर दिया गया।

भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम और महत्व

(Result and Significance of the Revolution)

इस आन्दोलन की कई आधारों पर आलोचना की जाती है-प्रथम आन्दोलन असफल रहा। द्वितीय, आन्दोलन में अहिंसा का त्याग कर दिया गया और क्रान्तिकारी पद्धति अपनाई गई। तृतीय भारत के साम्यवादियों ने आन्दोलन का साथ नहीं दिया। चतुर्थ, मुस्लिम लीग तथा हैभारत के मुसलमान आन्दोलन से दूर रहे।

इन आलोचनाओं के बाद भी भारत छोड़ो आन्दोलन भारतीय स्वाधीनता का संग्राम था। यह सच्चे अर्थों में स्वचालित जन-आन्दोलन था। इसने सन् 1947 में मिली स्वतन्त्रत के लिये भूमि तैयार की। पं० जवाहरलाल नेहरू जब जेल से मुक्त हुए तो उन्होने कहा, “सन् 1942 में जो कुछ हुआ उसका मुझे अवश्य गर्व है…..मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं उनकी निन्दा नहीं कर सकता जिन्होंने 1942 के आन्दोलन में भाग लिया।” डॉ० कश्यप के अनुसार, “1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन सचमुच 1857 की असफल क्रान्ति के बाद भारत में अंग्रेजी राज्य की समाप्ति के लिये किया गया सबसे बड़ा प्रयास था।” डॉ० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “अगस्त क्रान्ति अत्याचार और दमन के विरुद्ध भारतीय जनता का विद्रोह था और इसकी तुलना फ्रांस के इतिहास में बेस्टिले के पतन या सोवियत रूस की अक्टूबर क्रान्ति से की जा सकती है। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि “आन्दोलन के कारण लोगों में सरकार का मुकाबला करने की हिम्मत तथा शक्ति बढ़ गई।”

“इस विद्रोह की आग में औपनिवेशिक स्वराज्य की सारी बात जल गई। भारत अब पूर्ण स्वतन्त्रता से कुछ कम नहीं चाहता था। अंग्रेजों का भारत छोड़ना निश्चित हो गया। यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद को बड़ा भारी धका था।”

“All talk of Dominion status was consumed in the fires of revolt. India could have nothing short of independence. Quit India had come to stay. It was terrific blow to the Imperial India.” –Dr. Ishwari Prasad

इस क्रान्ति से भारतीय जनता के अपूर्व साहस और धैर्य का परिचय मिलता है। अब यह स्पष्ट हो गया कि भारत में ब्रिटिश राज्य का बना रहना संदिग्ध पूर्ण है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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