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भाषा उत्पत्ति के सिद्धांत – 10 प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या के साथ

 भाषा उत्पत्ति के सिद्धांत – 10 प्रमुख सिद्धांतों की व्याख्या के साथ 

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 भाषा उत्पत्ति के सिद्धांत

भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न मानव की उत्पत्ति तथा उसकी भावाभिव्यक्ति से संबंधित है। इस प्रकार मानव की उत्पत्ति के स्पष्टीकरण पर भाषा-उत्पत्ति का प्रश्न स्वतः स्पष्ट हो जाएगा। इस संदर्भ की चिंतन-परंपरा में निम्नलिखित मंतव्य सामने आए हैं।

  1. दैवी-सिद्धांत

भाषा-उत्पत्ति के संदर्भ में यह प्राचीनतम सिद्धांत है। इस सिद्धांत के समर्थकों का विचार है कि भाषा मानव सृष्टि के साथ इंश्वरीय शक्ति से उत्पन्न हुई है, अर्थात् अन्य वस्तुओं के समान भाषा की भी रचना विधाता के द्वारा हुई है। ईश्वर में आस्था रखने वाले अधिकांश धर्मों के अनुयायी इसी सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि प्राय: सभी धर्मों के प्रणेताओं ने अपने-अपने धर्म ग्रंथों को ईश्वर- निर्मित कहा है । वैदिक धर्मावलंबी वेद को अनादि और ईश्वर निर्मित मानकर इसे नित्य कहते हैं-

देवी वाचमजनयन्त देवा:

तां विश्वरूपा पशवो वदन्ति।                 – ऋग्वेद 8-1090-11

अर्थात् देवों ने वाग्देवी को उत्पन्न किया। उसका प्रयोग सभी प्राणी करते हैं। बौद्ध मतावलंबी पाली भाषा को आदि भाषा मानते हैं। जैनियों के द्वारा अर्धमागधी को प्राचीनतम भाषा ही नहीं, प्राचीन काल में पशु पक्षियों द्वारा भी रसास्वादन की जाने वाली भाषा कहीं गई है।

समीक्षा- यह सिद्धांत पूर्णरूपेण श्रद्धा और संभावना पर आधारित है। इसलिए इसे वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं कहा जा सकता है। इस सिद्धांत को कुछ सीमाएँ इस प्रकार हैं।

(क) यदि भाषा ईंश्वर प्रदत्त होती तो विश्व की सभी भाषाओं में बहुत अधिक समानता होती, जबकि स्थिति इसके विपरीत है।

(ख) सृष्टि के सभी प्राणी, कम से कम मानव जाति के सभी सदस्य एक भाषा का प्रयोग करते, किंतु ऐसा नहीं है।

(ग) इस सिद्धांत की सत्यता पर मानव शैशव-काल से ही विकसित भाषा को प्रयोग करता, जबकि बह विकास क्रम में धीरे धीरे भाषा सीखता है।

  1. संकेत-सिद्धांत

इसे निर्णय सिद्धांत, प्रतीकवाद, स्वीकारवाद भी कहते हैं। मनुष्य प्रारंभ में हाथ, पैर और सिर आदि को विशेष प्रक्रिया से हिलाकर भावाभिव्यक्ति करता रहा होगा परवर्ती काल में जब इससे काम नहीं चला होगा, तो उसने सामाजिक समझौते के आधार पर विभिन्न भावों तथा वस्तुओं के लिए संकेत निश्चित किए होंगे। इस प्रकार पारस्परिक विचार विनिमय के द्वारा ध्वनि संकेतों के निश्चय से भाषा की उत्पत्ति हुई हैं।

समीक्षा- इस सिद्धांत-संदर्भ में निम्नलिखित सशक्त प्रश्न सामने आते हैं-

(क) यदि इससे पूर्व भाषा न थी, तो फिर लोग इकट्ठे कैसे हुए?

(ख) मानव ने एकत्र होकर शब्द का गठन कैसे किया?

(ग) जिन वस्तुओं के लिए चिहों का निर्धारण किया गया, उनको एक स्थान पर एकत्र कैसे किया गया?

(घ) यादि इससे पूर्व भाषा न थी, तो फिर उसकी आवश्यकता का अनुभव कैसे हुआ?

  1. धातु सिद्धांत

इसे रणन, अनुरणन, अनुरणन-मूलक, डिंग-डांग आदि नाम दिए गए हैं। इस सिद्धांत का संकेत

प्लेटो ने किया और प्रोफेसर हेस ने इसे व्यवस्थित रूप दिया है। इसके पल्लबन में मैक्समूलर का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस सिद्धांत के अनुसार सृष्टि की सभी वस्तुओं की अपनी ध्वनि होती है। प्रारंभ में मानव जब किन्हीं बाह्य वस्तुओं के संपर्क में आता, तो वह उनसे निकलने वाली ध्वनियों के आधार पर शब्द निर्माण कर लेता था। इस सिद्धांत के समर्थकों के अनुसार प्रारंभ में धातुओं की संख्या अधिक थी, किंतु भाषा उत्पत्ति के समय यह संख्या घटकर 400 -500 ही रह गई, जिनके आधार पर भाषा की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार मनुष्य जैसे जैसे नई वस्तुओं के संपर्क में आता था, वैसे-वैसे उनके लिए ध्वनि-संकेत बनाता जाता था जब मनुष्य को भाषा प्राप्त हो गई, तो यह प्रक्रिया पूर्ण हो गई।

समीक्षा- इस सिद्धांत पर उठने वाले प्रश्न इस प्रकार हैं।

(क) निराधार, मात्र कल्पना को वैज्ञानिक कैसे माना जाएगा?

(ख) इस सिद्धांत के अनुसार विश्व की सभी भाषाएँ धातु पर आधारित हैं, जबकि ऐसा नहीं है। चीनी भाषा इस सिद्धांत से पूर्ण भिन्न है।

(ग) भाषा मात्र धातु से ही नहीं बनती है, वरन् इसमें उपसर्ग-प्रत्यय की आवश्यकता होती है।

(घ) इस सिद्धांत के अनुसार भाषा पूर्ण है, जबकि भाषा का अंतिम रूप होता ही नहीं।

(ङ) इस सिद्धांत के अनुसार आदि मानव के पास पूर्ण भाषा के निर्माण की अपूर्व कल्पना शक्ति थी. फिर वह शक्ति अब क्यों नहीं दिखाई देती है।

  1. आवेग-सिद्धांत

इसे पूह पूहवाद’, मनोभावाभिव्यंजकतावाद और मनोभावाभिव्यक्तिबाद भी कहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का मनोभाव, हर्षं विषाद सुख दुःख तथा विस्मय- क्षोभ में इतना तीव्र हो जाता है कि मुँह से ध्वनि स्वतः ही निकल जाती है; यथा-हर्ष में बाह-बाहू, अहा, दुख में हाय, ओह; तिरस्कार और घृणा में छि:-छिः, धिक् आदि। इन्हीं ध्वनियों से भाषा-उत्पत्ति और विकास की कल्पना की गई है।

समीक्षा- इस सिद्धांत को सर्व सम्मति से सहमति नहीं मिल सकी, क्योंकि

(क) भावात्मक तीव्रता के आधार पर स्वाभाविक अभिव्यक्ति संभव नहीं है।

(ख) ऐसी ध्वनियों में सहज चिंतन और समूचित व्यवस्था का अभाव होता है, ज़ो भाषा के अनिवार्य तत्त्व हैं।

(ग) प्रत्येक भाषा में ऐसे शब्दों की संख्या अत्यंत सीमित होती है।

(घ) ऐसे शब्दों का प्रयोग भी बहुत ही कम होता है।

  1. यो-हे हो सिद्धांत

इसे श्रमपरिहरणमृलकताबाद भी कहते हैं। इस सिद्धांत के प्रतिपादक न्वायरे हैं । इस सिद्धांत का आधार यह है कि जब मनुष्य शारीरिक परिश्रम करता है, तो श्वास- प्रश्वास की गति तीव्र हो जाती है। ऐसे समय मांसपेशियों और स्वरतंत्री में संकोच विस्तार बढ़ जाने पर कुछ ध्वनियाँ अनायास निकलती हैं। इससे परिश्रम करनेवाले को कुछ आराम मिलता है। कपड़ा धोते समय धोबी “छियो-छियो” या “हियो-हियो” कहता है। मल्लाह (नाव चलाने वाला) थकान के समय ” हैया-हैया” कहता है।

समीक्षा- भाषा उत्पत्ति के संदर्ध में यह सिद्धांत भाषायी दृष्टि से सर्वाधिक शिथिल है। इस प्रक्रिया से निकले सभी शब्द श्रम-परिहरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु सहज भावाभिव्यक्ति में निरर्थक हैं। मात्र ऐसे शब्दों से भाषा की उत्पत्ति संभव नहीं है।

  1. अनुकरण-सिद्धांत

इसे ध्वनि-अनुकरण और भों- भों सिद्धांत भी कहते हैं मैक्समूलर ने उपहास के लिए कुत्ते की बोली के आधार पर बाठ बाउ सिद्धांत कहा, हिंदी में इसे “भों भों” बना लिया गया। इस सिद्धांत के अनुसार प्रकृति के पशु-पक्षी, नदी-नाले, बिजली-बादल के दृश्यात्मक और ध्वन्यात्मक अनुकरण के आधार पर भाषा की उत्पत्ति हुई है। सभी भाषाओं में ऐसे कुछ शब्द अवश्व मिल जाते हैं। हिंदी में काँब काँव, पी कहाँ, कू कृ. भौं भौं, झर-झर, चम-चम, गड़-गड़ आदि शब्दों के प्रयोग होते हैं।

समीक्षा- इस सिद्धांत के संदर्भ में कुछ आपत्तियाँ हैं।

(क) सभी भाषाओं में ऐसे शब्दों की संख्या अत्यंत सीमित है।

(ख) यदि मनुष्य के द्वारा निम्न प्राणियों की ध्वनियों के आधार पर भाषा का निर्माण हुआ तो उसने अपनी ध्वनियों पर भाषा का निर्माण क्यों नहीं किया?

(ग) भाषा के अभाव में ध्वनि का अनुकरण कैसे संभव हुआ?

  1. इंगित सिद्धांत

इसके प्रतिपादक डॉ. राय हैं। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य ने सर्वप्रथम विभिन्न संदर्भों की अपनी आंगिक-चेष्टाओं के अनुकरण पर भाषा का प्रयोग किया और इसी से भाषा की उत्पत्ति हुई। जैसे-मनुष्य जब पानी पीता है, तो बार बार होंठों के स्पर्श से ‘पा’ ‘पा’ की ध्वनि होती है। इसके ही अनुकरण पर ‘पीना’ शब्द बना लिया गया।

समीक्षा- अनुकरण के आधार पर भाषा उत्पति संभव नहीं हैं-

(क) ऐसे शब्दों की संख्या अत्यंत सीमित है।

(ख) विभिन्न अंगों से अन्य वस्तुओं के स्पर्श हारा कितने शब्दों की उत्पत्ति संभव है?

  1. संपर्क सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जी. रेवेज हैं। उनके अनुसार मानव समाज के निर्माण के समय संपर्क भावना से कुछ ध्वनियाँ सहज रूप से निकल पड़ी होंगी। इनके विकास से ही भाषा बनी होगी।

समीक्षा- आदिम मनुष्य के संदर्भ में यह सिद्धांत कुछ तर्कसंगत लगता है, किंतु संपर्क के मनोवैज्ञानिक आधार से सामान्य सिद्धांत का ही रूप सामने आता हैं। उसके विकसित तथा स्पष्ट रूपका ज्ञान नहीं होता है ।

  1. संगीत सिद्धांत

इस सिद्धांत को सामने लाने का श्रेय डार्विन, स्पेन्सर और येस्प्सन को जाता है। उनका कहना है कि प्रारंभ में मनुष्य संगीतप्रिय रहा होगा। समय -समय पर गुनगुनाते रहने से निरर्थक भ्वनियाँ धीरे-धीरे विकसित होकर सार्थक हो गई होंगी। इसी से भाषा की उत्पत्ति हुई होगी ।

समीक्षा- इस सिद्धांत पर कुछ आपत्तियाँ इस प्रकार हैं।

(क) यह सिद्धांत कल्पना पर आधारित है।

(ख) आदिमानव के प्रबल संगीत प्रेम का कोई प्रमाण नहीं है।

  1. समन्वय सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रवर्तक हेनरी स्वीट हैं। उन्होंने देखा कि ऊपर के किसी एक सिद्धांत से भाषा की उत्पत्ति संभव नहीं है, तो उन्होंने सभी सिद्धांतों के समन्वित रूप को स्वीकार किया। उन्होंने यह भी कहा है कि जिस प्रकार संसार की सभी वस्तुओं का विकास होता है, उसी प्रकार भाषा का भी विकास क्रमिक रूप में हुआ है। उन्होंने अनुकरणात्मक, मनोभावाभिव्यंजक तथा प्रतीकात्मक आदि रूपों में विकास-क्रम को रेखाकित किया है।

निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि भाषा की उत्पत्ति विभिन्न भ्वनियों के आधार पर निर्मित शब्दों के विकास क्रम में हुई है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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