तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ | तुलसीदास की काव्यगत विशेषताओं पर आलोचनात्मक निबन्ध

तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ | तुलसीदास की काव्यगत विशेषताओं पर आलोचनात्मक निबन्ध तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएँ गोस्वामी तुलसीदास काव्य वह सागर है जो रत्नों से भरा पड़ा है, जिसमें चाहे जहाँ गोता लगाओं रत्न की हत्न हाथ में आते हैं उन्होंने पर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन एवं कार्यों को अपनी अनुभूति में इस प्रकार पचा…

तुलसीदास की भक्ति भावना | तुलसीदास की भक्ति पद्धति के स्वरूप का वर्णन | रामभक्त कवि के रूप में तुलसीदास की भक्ति का मूल्यांकन

तुलसीदास की भक्ति भावना | तुलसीदास की भक्ति पद्धति के स्वरूप का वर्णन | रामभक्त कवि के रूप में तुलसीदास की भक्ति का मूल्यांकन तुलसीदास की भक्ति भावना भक्ति-रस का पूर्ण परिपाक जैसा तुलसीदास में देखा जाता है वैसा अन्यत्र अप्रार्यप्त है। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलम्बन के महत्त्व व अपने दैन्य का अनुभव…

विद्यापति के अलंकार तथा प्रतीक योजना | ‘पदावली’ के आधार पर विद्यापति के अलंकार योजना | ‘पदावली’ के आधार पर विद्यापति के प्रतीक योजना

विद्यापति के अलंकार तथा प्रतीक योजना | ‘पदावली’ के आधार पर विद्यापति के अलंकार योजना | ‘पदावली’ के आधार पर विद्यापति के प्रतीक योजना विद्यापति के अलंकार तथा प्रतीक योजना विद्यापति की पदावली में अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। उनके काव्य में दोनों प्रकार के अलंकार मिलते हैं – मौलिक और परम्परा प्राप्त।…

बहिर्जगत् के चित्रण की विशेषताएं | विद्यापति ने बहिर्जगत् के चित्रण की विशेषताएं

बहिर्जगत् के चित्रण की विशेषताएं | विद्यापति ने बहिर्जगत् के चित्रण की विशेषताएं बहिर्जगत् के चित्रण की विशेषताएं विद्यापति ने अपने रूप-चित्रण में बहिरंग की विशेषताओं पर ही दृष्टि रखी है, अन्तरंग की ओर देखने की उनकी रुचि नहीं मालूम पड़ती है। उन्हें अन्तर्जगत् की सूक्ष्म वृत्तियाँ बहुत कम सूझी हैं। विद्यापति का काव्य प्रेम-काव्य…

विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का संयोग पक्ष | विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का वियोग-पक्ष

विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का संयोग पक्ष | विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का वियोग-पक्ष विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का संयोग पक्ष विद्यापति के काव्य में श्रृंगार का संयोग तथा वियोग-पक्ष विद्यापति की पदावली का प्रधान प्रतिपाद्य श्रृंगार रस है। कवि ने पदावली में श्रृंगार के दोनों पक्षों का अत्यन्त मार्मिक निरूपण प्रस्तुत…

विद्यापति के गति काव्य की विवेचना | विद्यापति के तीन प्रमुख तत्व | गीत काव्य परम्परा में विद्यापति की कविता | गीत काव्य परम्परा में विद्यापति की काव्य का महत्व

विद्यापति के गति काव्य की विवेचना | विद्यापति के तीन प्रमुख तत्व | गीत काव्य परम्परा में विद्यापति की कविता | गीत काव्य परम्परा में विद्यापति की काव्य का महत्व विद्यापति के गति काव्य की विवेचना विद्यापति ने समय-समय पर जो पद मैथिल भाषा में विविध विषयों पर बनाये थे, उन्हीं के संग्रह को ‘पदावली’…

विद्यापति के काव्य का भावपक्ष एवं कलापक्ष | विद्यापति के संयोग श्रृंगार की विशेषताएँ | विद्यापति की काव्य भाषा

विद्यापति के काव्य का भावपक्ष एवं कलापक्ष | विद्यापति के संयोग श्रृंगार की विशेषताएँ | विद्यापति की काव्य भाषा विद्यापति के काव्य का भावपक्ष एवं कलापक्ष विद्यापति की ख्याति उनकी पदावली के मुख्य तीन कारण निम्नलिखित है। (1) वंदना और नचारी, (2) राधा-कृष्ण की प्रणयलीला, (3) विविध-युद्ध, दृष्टिकूट, बाल- विवाह आदि। ‘पदावली‘ एक संकलन ग्रंथ…

विद्यापति सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि हैं | विद्यापति मुख्यतः यौवन और शृंगार के कवि हैं | विद्यापति मूलतः शृंगार के कवि हैं | विद्यापति के श्रृंगार चित्रण की विशेषताएँ | विद्यापति भक्ति और श्रृंगार के कवि है

विद्यापति सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि हैं | विद्यापति मुख्यतः यौवन और शृंगार के कवि हैं | विद्यापति मूलतः शृंगार के कवि हैं | विद्यापति के श्रृंगार चित्रण की विशेषताएँ | विद्यापति भक्ति और श्रृंगार के कवि है विद्यापति सौन्दर्य एवं प्रेम के कवि हैं विद्यापति पदावली का प्रतिपाच विद्वानों में विवादसद बना हुआ है।…

घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या | घनानन्द के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या

घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या | घनानन्द के निम्नलिखित पद्यांशों की संसदर्भ व्याख्या घनानन्द के पद्यांशों की व्याख्या पहिले घनआनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार पगी। अब लाय वियोग की लाय, बलाय बढ़ाय, बिसास-दगानि दगी। अखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहूँ लगै कौन घरी सु लगी। मति दौरि थकी, न लहै ढिक ठौर, अमोही…