चार्टर एक्ट सन 1818 तथा 1833 का संक्षेप में वर्णन | सन् 1813 का चार्टर का आज्ञा पत्र | सन् 1833 का चार्टर का आज्ञा पत्र

चार्टर एक्ट सन 1818 तथा 1833 का संक्षेप में वर्णन | सन् 1813 का चार्टर का आज्ञा पत्र | सन् 1833 का चार्टर का आज्ञा पत्र
चार्टर एक्ट सन 1818 तथा 1833 का संक्षेप में वर्णन
Describe in brief the Charter Act 1813 AD and 1833 AD.
सन् 1813 का चार्टर का आज्ञा पत्र
(Charter Act, 1813 A.D.)
कम्पनी का आज्ञा पत्र प्रति 20 वर्ष बाद पुनरावर्तन हेतु ब्रिटिश पार्लियामैण्ट में प्रस्तुत होता था। सन् 1793 में जब कम्पनी का आज्ञा पत्र पुनरावर्तन के लिए ब्रिटिश पार्लियामैण्ट में प्रस्तुत हुआ था तब उसके सदस्य रॉबर्ट विल्वरफोर्स ने चाल्ल्स ग्राण्ट और ईसाई मिशनरियों के विचारों का समर्थन करते हुए यह प्रस्ताव रखा था कि आज्ञा पत्र में एक धारा इस आशय की जोड़ दी जाये ताकि यूरोपीय ईसाई मिशनरियों और स्कूल मास्टरों को भारत जाने और वहाँ ईसाई धर्म एवं शिक्षा के प्रसार की उन्मुक्ति प्राप्त हो। पार्लियामैण्ट के एक-दूसरे सदस्य रेंडल जेक्सन ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। वाद-विवाद के बाद रॉबर्ट विल्वरफोर्स का प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया गया। पर इंग्लैण्ड की मिशनरियाँ चाल्ल्स ग्रान्ट के नेतृत्व में यह माँग निरन्तर करती रहीं कि मिशनरियों को भारत जाने और वहाँ ईसाई धर्म और शिक्षा का प्रसार करने की खुली छूट दी जाए।
सन् 1793 के 20 वर्ष बाद जब सन् 1813 में कम्पनी का आज्ञा पत्र पुनरावर्तन हेतु ब्रिटिश पार्लियामैण्ट में प्रस्तुत हुआ तो इस बार अधिकतर सदस्यों ने मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन का समर्थन किया। परिणामस्वरूप इस चार्टर के आज्ञा पत्र (Charter Act, 1818) में तत्सम्बन्धी तीन धारायें जोड़ी गईं-
(1) यूरोपीय देशों की मिशनरियों को भारत में प्रवेश करने और वहाँ ईसाई धर्म एवं शिक्षा के प्रसार की पूरी छूट होगी।
(2) ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर अपने शासित प्रदेशों में शिक्षा की व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व होगा।
(3) प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख रुपयों की धनराशि का प्रयोग साहित्य के रख-रखाव एवं विकास
तथा भारतीय विद्वानों के प्रोत्साहन और भारत में त्रिटिश शासित क्षेत्र में रहने वालों को विज्ञान का ज्ञान कराने में किया जाए।
उपरोक्त आज्ञा पत्र में कुछ कमियाँ थीं–
(1) आज्ञा पत्र में शिक्षा के स्वरूप और माध्यम के विषय में कोई संकेत नहीं था।
(2) धारा 48 के सम्बन्ध में भी बड़ी भ्रान्ति थी। कुछ विद्वान साहित्य से अर्थ भारतीय साहित्य से ले रहे थे, कुछ पाश्चात्य साहित्य से।
(3) भारतीय साहित्य के विषय में भी भिन्न-भिन्न मत थे-कुछ संस्कृत, हिन्दी, अरबी और फारसी साहित्य से ले रहे थे और कुछ सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यों से ले रहे थे।
(4) कुछ सदस्य साहित्य से अर्थ लैटिन और अंग्रेजी साहित्य से ले रहे थे।
उपरोक्त भ्रान्तियों के परिणामस्वरूप कम्पनी एक लाख रुपये की धनराशि को व्यय करने के सम्बन्ध में कोई निश्चित नीति नहीं बना पाई और प्रतिवर्ष यह धनराशि भिन्न-भिन्न रूप में व्यय होती रही।
दो विचारधारायें (Two Ideologies)-
भारतीयों की शिक्षा का स्वरूप क्या हो, इसका माध्यम क्या हो और यह किस प्रकार व्यवस्थित की जाए इस सन्दर्भ में दो विचारधारायें उभरीं- एक प्राच्यवादी और दूसरी पाश्चात्यवादी।
इस सम्बन्ध में भारतीय भी दो खेमों में बँट गये-एक प्राच्यवादी और दूसरे पाश्चात्यवादी। इस प्रकार भारत और ब्रिटेन दोनों स्थानों पर प्राच्य-पाश्चात्य विवाद खड़ा हो गया।
सन् 1833 का चार्टर का आज्ञा पत्र
(Charter Act, 1833 A.D.)
सन् 1813 के 20 वर्ष बाद 1833 में ब्रिटिश पार्लियामैण्ट ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को नया आज्ञा पत्र (Charter Act, 1833) जारी किया। इस आज्ञा पत्र में कम्पनी पर अपने द्वारा शासित प्रदेशों में शिक्षा की उचित व्यवस्था करने का दायित्व निश्चित किया गया। इस आज्ञा पत्र की शिक्षा सम्बन्धी कुछ धारायें निम्न प्रकार हैं-
(1) बंगाल प्रान्त का गवर्नर, गवर्नर जनरल होगा और अन्य प्रान्तों के गवर्नर कुछ मामलों में उसके अधीन होंगे।
(2) गवर्नर जनरल की कौसिल में एक कानूनी सलाहकार होगा। वह गवर्नर जनरल को प्रत्येक मामले में कानून से अवगत कराएगा।
(3) शिक्षा के लिए 1813 के आज्ञा पत्र में स्वीकृत धनराशि जो एक लाख प्रतिवर्ष थी, अल्प होने के कारण अब 10 लाख रुपया प्रतिवर्ष निश्चित की जाती है।
(4) किसी भी भारतीय को जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर कम्पनी में नौकरी के लिए अयोग्य नहीं माना जाएगा। किसी भी पद पर नियुक्ति अभ्यर्थीं की शैक्षिक योग्यता और कार्यक्षमता के आधार पर की जाएगी।
(5) किसी भी देश की ईसाई मिशनरियों को भारत आने को उन्मुक्ति होगी पर वे भारतीयों की धर्म भावना को ठेस नहीं पहुँचाएगे।
आज्ञा पत्र की आलोचना
(Estimate of the Charter)
लाभ (Advantages)-उपरोक्त आज्ञा पत्र से अनेक लाभ हुए-
(1) गवर्नर जनरल द्वारा शिक्षा नीति के निर्धारण का कार्य प्रारम्भ हुआ।
(2) भारत ईसाई मिशनरियों का बड़ी संख्या में प्रवेश और शिक्षा के विकास में सहयोग का प्रारम्भ हुआ।
(3) शिक्षा पर व्यय की जाने वाली धनराशि के एकदम दस गुना हो जाने से शिक्षा का तीव्र विकास हुआ।
(4) भारतीयों के लिए नौकरी के द्वार खुलने से अंग्रेजी शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ा।
हानियाँ (Disadvantages)–
साथ ही कुछ हानियाँ भी हुई-
(1) शिक्षा की स्पष्ट नीति का अभाव हुआ।
(2) ईसाई मिशनरियों के अपवित्र इरादों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
(3) भारत पद्धति के स्कूलों के साथ सौतेला व्यवहार हुआ।
(4) अंग्रेजी के प्रति अति आकर्षण, वर्ग भेद प्रारम्भ हुआ।
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