शिक्षाशास्त्र / Education

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ | पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य | पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम

पर्यावरण शिक्षा का अर्थ | पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य | पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम

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पर्यावरण शिक्षा का अर्थ

साधारणतः पर्यावरणीय शिक्षा वह शिक्षा है जो पर्यावरण के माध्यम से, पर्यावरण के विषय में तथा पर्यावरण के लिए होती है। पर्यावरण जड़ और चेतन दोनों को शिक्षा देने वाला है। पर्यावरण से अनुकूलन न कर सकने के कारण निम्न वर्ग के प्राणी नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार, पर्यावरण व्यक्ति के उन्हीं कार्यों को प्रोत्साहित करता है, जो उसके अनुकूल होते हैं। पर्यावरण महान शिक्षक है, शिक्षा का कार्य है-छात्र को उस वातावरण के अनुकूल बनाना जिससे कि वह जीवित रह सके और अपनी मूल प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करने के लिए अधिक -से-अधिक सम्भव अवसर प्राप्त कर सके। शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण से अनुकूलन करना ही नहीं सिखाती है, वरन् उसे पर्यावरण को अपने अनुकूल बदलने के लिए भी प्रशिक्षित करती है। यह व्यक्ति को पर्यावरण पर नियन्त्रण रखने की क्षमता प्रदान करती है।

पर्यावरणीय शिक्षा के लक्ष्य (Objectives of Environmental Education)

बेलग्रेड में अक्टूबर, 1975 में पर्यावरणीय शिक्षा पर अन्तर्राष्ट्रीय वर्कशॉप का आयोजन हुआ। इस वर्कशाप के बेलग्रेड (Belgrade) घोषणा-पत्र में पर्यावरणीय शिक्षा के लक्ष्य तथा प्राप्त उद्देश्यों का निर्धारण किया गया| उनको संक्षेप में आगे दिया जा रहा है-

पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य (Objectives)-

पर्यावरणीय शिक्षा के निम्नलिखित प्राप्त उद्देश्य निर्धारित किये गये-

(1) अभिवृत्ति (Attitude)- व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में समाजिक मूल्यों, वातावरण के प्रति घनिष्ठ प्रेम भावना तथा उसके संरक्षण एवं सुधार के लिए प्रेरणा विकसित करने में सहायता प्रदान करना।

(2) ज्ञान (Knowledge)- व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में सम्पूर्ण वातावरण तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं के बारे में समझदारी प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।

(3) जागरूकता (Awareness)- व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में समग्र वातावरण तथा उसकी समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता तथा जागरूकता विकसित करने में सहायता प्रदान करना।

(4) सहभागिता (Participation)- व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों को पर्यावरणीय समस्याओं के उपयुक्त समाधान के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व की भावना तथा उपयुक्त कदम उठान के लिए तत्पर बनाने में सहायता प्रदान करना।

(5) मूल्यांकन योग्यता (Evaluation Ability)- व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहो में पर्यावरणीय तत्वों तथा शैक्षिक कार्यक्रमों को पारिस्थितिकीय (Ecological)राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सौन्दर्यात्मक तथा शैक्षिक कारकों के सन्दर्भ में मूल्यांकन करने की योग्यता के विकास में सहायता देना।

 (6) कौशल (Skills)- पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में कौशलों का विकास करना।

सामान्य रूप से पर्यावरणीय शिक्षा के प्राप्य उद्देश्यों को तीन क्षेत्रों-संज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) तथा क्रियात्मक (Psychomotor) में विभाजित किया जा सकता है। सज्ञानात्मक में व प्राप्त उद्देश्य आते हैं जो ज्ञान के पुनः स्मरण या पहचान (Recognition) से सम्बन्धित होते हैं। इसमें बौद्धिक कौशल तथा योग्यताएं भी आती हैं। मंज्ञानात्मक क्षेत्र में स्मरण करना, समस्या-समाधान, अवधारणा-निर्माण, सीमित क्षेत्र में सृजनात्मक चिन्तन नामक व्यवहार निहित हैं।

वस्तुतः भावात्मक क्षेत्र में वे प्राप्य उद्देश्य आते हैं जो रुचियों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों में आये परिवर्तनों का वर्णन करते हैं। क्रियात्मक या मनःप्रेरित क्रियात्मक पक्ष में शारीरिक अभ्यास करना, लेखन, योग करना, नृत्य आदि व्यवहर आते हैं। यह क्रियात्मक कौशलों से सम्बन्धित है। पर्यावरणीय शिक्षा के संज्ञानात्मक क्षेत्र से सम्बन्धित प्राप्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(1) प्रकृति की देनों की प्रशंसा करना।

(2) विभिन्न जातियों, प्रजातियों, धमों तथा संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता प्रदर्शित करना।

(3) समुदाय तथा समाज और उनके लोगों की समस्याओं में रुचि रखने के लिए तत्पर बनाना।

(4) समीपस्थ तथा दूरस्थ पर्यावरण की वानस्पतिक स्पीशीज तथा जीव-जन्तुओं में रुचि रखने में सहायता देना।

(5) तत्कालीन पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता देना।

(6) सामाजिक तनावों के कारणों की खोज में सहायता देना तथा उनको दूर करने के लिए उपयुक्त उपाय बनाना।

(7) भौतिक तथा मानवीय संसाधनों के विदोहन का मूल्यांकन करना तथा उपचारात्मक उपायों का सुझाव देना।

(৪) समानता, स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व, सत्य तथा न्याय को महत्व देना।

(9) जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों की जांच करना तथा देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उनकी व्याख्या करना।

पर्यावरणीय शिक्षा के क्रियात्मक पक्ष से सम्बन्धित प्राप्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(1) उन कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेना जिनसे वायु, जल तथा ध्वनि-प्रदूषण को कम-से-कम किया जा सकता है।

(2) खाद्य पदार्थों की मिलवट को दूर करने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना।

(3) नगरीय तथा ग्रामीण नियोजन में भाग लेना।

(4) पास -पड़ोस की सफाई के कार्यक्रम में भाग लेना।

पर्यावरणीय शिक्षा का पाठ्यक्रम

1976 वूरजेलबेचर (Wurzclabher) ने पर्यावरणीय शिक्षा का एक कोर्स तैयार किया जिसमें निम्नलिखित निर्माणक तत्वों को स्थान प्रदान किया-

(1) अर्थशास्त्र तथा पर्यावरण (Economic ad Environment),

(2) पारिस्थितिकी (Ecology),

(3) जनसंख्या तथा नागरीकरण (Population and Urbanization),

(4) मानव तथा पर्यावरण (Man and Environment),

(5) बाह्य मनोरंजन तथा नागरिको की भूमिका (Outdoor Recreation and Role of Citizens),

(6) वायु प्रदूषण (Air Pollution),

(7) वन्य जीवन संसाधन (Wildlife Resources),

(8) वृक्ष एवं जल संसाधन (Tree and Water Resources),

(9) सरकारी नीति तथा नागरिक (Government Policy and Citizen),

(10) सामाजिक संसाधन (Social Resources),

(11) नगरीय तथा क्षेत्रीय नियोजन (Urban and Regional Planning),

पर्यावरणीय शिक्षा को आधुनिक अध्ययनों तथा खोजों ने एक अन्तरविषयक (Interdisciplinary) क्षेत्र के रूप में प्रकट किया है। साथ ही इसका समग्र (Holistic) रूप में व्यक्त किया है। इसमें पारिस्थितिकीय (Ecological), सामाजिक सांस्कृतिक तथा अन्य क्षेत्रों की विशेष समस्याओं को स्थान प्रदान किया है। यह वास्तविक जीवन की व्यावहारिक समस्याओं से सम्बन्धित है, जिससे वह भावी नागरिकों को मूल्यों के निर्माण के लिए तत्पर बना सके।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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