समाज शास्‍त्र / Sociology

ईथनो पद्धति में गारफिंकल का योगदान | लोक विधि विज्ञान में हेराल्ड गारफिन्कल का योगदान

ईथनो पद्धति में गारफिंकल का योगदान | लोक विधि विज्ञान में हेराल्ड गारफिन्कल का योगदान | Contribution of Garfinkel in Ethnomethodology in Hindi | Harald Garfinkel’s contribution to public law science in Hindi

ईथनो पद्धति में गारफिंकल का योगदान

(Contribution of Garfinkel in Ethnomethodology)

ईथनो पद्धति का नामकरण संस्कार गारफिंकल ने किया था उन्होंने इस उपागम की समृद्धि के लिये अनेक महत्वपूर्ण शोध कार्य किये तथा विभिन्न क्षेत्रों में इस विधि को लागू किया।

  1. गारफिंकल का मत है कि गतिविधियाँ, व्यावहारिक परिस्थितियाँ एवं व्यावहारिक समाजशास्त्रीय तर्क-वितर्क अनुभववादी अध्ययन के विषय हैं- दैनिक जीवन की पूर्णतः साधारण गतिविधियों पर असाधारण गतिविधियाँ, परिस्थितियाँ एवं व्यावहारिक समाजशास्त्रीय तर्क-वितर्क, अनुभववादी अध्ययन के विषय हैं। दैनिक जीवन की पूर्णतः साधारण गतिविधियों पर असाधारण गतिविधियाँ जितना ध्यान देने से एक नये आभास का ज्ञान होता है। नैत्यक कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करने की भावना से ही ईथनो पद्धतियों को यह प्रेरणा दी कि व्यावहारिक गतिविधियों के क्षेत्रों की परीक्षा करें जैसे जूरी के सदस्यों के निर्णय लेने की प्रक्रिया, वार्तालाप का रूप आदि।
  2. गारफिंकल ने व्यवहारिक तथा उत्तरदायी गतिविधियों को सामाजशास्त्रीय विश्लेषण का विषय बनायाः- गारफिंकल के लिए सामाजिक अंतःक्रिया मौखिक रूप से कुछ अधिक प्रतीत होती हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से प्रबंधित व्यावहारिक कार्य संपन्नता है। समाज के सदस्य दैनिक कार्य के साधारण क्रम की नैतिक व्यवस्था को जानते हैं। ईथनों पद्धतिवादी सामाजिक संपूर्ण का दृष्टिकोण सदस्यों के नैत्यक व्यवहारों द्वारा एकत्रित एवं संक्षिप्त सामूहिकता का है। गारफिकल के अनुसार इन व्यावहारिक गतिविधियों के तर्कशील गुणों का मूल्यांकन बाहर से प्राप्त नियम अथवा मापक का प्रयोग करके नहीं किया जा सकता। इसके स्थान पर सामाजिक संगठन के सभी प्रमाण पारस्परिक कलापूर्ण कार्यो की संदर्भयुक्त उपलब्धियाँ होते हैं।
  3. गारफिंकल के वैज्ञानिक तार्किकता के गुण की मुख्य आलोचना यह थी कि गुणों के उपयोगी कार्यों के अतिरिक्त कुछ बाधाओं का भी सामना करती हैं- तब वह उस व्यापक सामाजिक पर्यावरण का प्रयास करती जिसमें व्यावहारिक गतिविधियाँ और समूह के सदस्यों के कथन रहते हैं। किसी भी उल्लेखनीय ईथनो पद्धतिवादी ने समाज के संरचनात्मक गुणों के अस्तित्व एवं सदस्यों के व्यवहारों के लिए उनके महत्व पर प्रश्न नहीं किया। गारफिंकल ने पारसंस के सामाजिक अभिनेयता की धारणा को स्वीकार किया है। उनका कहना है कि जूरी के सदस्यों की लाइन में होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि परिस्थिति को सैद्धांतिक रुचि की वस्तु माना जाता है। इसमें वैधानिकता का मापदंड निष्पक्षता या अन्य दैनिक अवसर का अतिक्रमण कर देता है।
  4. गारफिंकल सामाजिक प्राणी और चेतना के बीच साहित्यिक एकरूपता को तब स्वीकार करता है जब वह सूचीपत्रीय अभिव्यक्तियों का उल्लेख करता है उसके मतानुसार जिन गतिविधियों के द्वारा समाज के सदस्य संगठित दैनिक ज्ञान की व्यवस्था को उत्पन्न और प्रतिबंधित करते हैं। वे इन व्यवस्थाओं को बनाने की सदस्यों की प्रक्रिया के साथ एक रूप होते हैं। प्रतिदिन के सामाजिक कार्य के नियम उनके उपयोग के अवसरों से मिलते हैं। गारफिकल का सामाजिक क्रिया एवं अर्थ का वर्णन विच और सैक्स से मिलता है। इनके अनुसार भाषा समाज के सदस्यों के विचारों का स्रोत है। गारफिंकल और विच का मत है कि किसी एक मित्र रिवाज का वर्णन करने का अर्थ है, उन सामाजिक संबंधों का उल्लेख करना जिसमें यह प्रविष्ट होती हैं। इस सामाजिक संबंधों को वह सामाजिक व्यवहार में आने से पूर्व अभिनेताओं द्वारा निर्मित अवधारणाओं के अनुरूप मानता है। उनके अनुसार सामाजिक संबंध वास्तविकता के बारे में विचारों की अभिव्यक्तियों है। इस दृष्टिकोण के अनुसार सामाजिक अंतःक्रिया भौतिक व्यवस्था में शक्तियों की अंतःक्रिया की अपेक्षा वार्तालाप में विचारों के विनिमय के साथ अधिक लाभदायक रूप से तुलना की जा सकती है। इस जगत में जॉब हेतु वस्तुएँ हैं जो कि सामाजिक क्रिया की उपज है किंतु उनका अपना अस्तित्व है।
  5. गारफिंकल ने ‘शब्द समूह अभ्यास’ की भी विवेचना की है कि आम बातचीत के अधिकांश शब्दों का प्रयोग ‘शब्द समूह अभ्यास’ के रूप में ही होता है। जिनके अर्थ को उस स्थिति विशेष में अंतःक्रिया करने वाले समझ लेते हैं, जैसे खाना-बाना, पानी वानी, आदि शब्दों में वाना, वानी आदि शब्द समूह अभ्यास के आधार पर प्रयुक्त होते हैं।
  6. ईथनो पद्धति समाजशास्त्र में एक नये परिप्रेक्ष्य का प्रतीक है यह विभिन्न सामाजिक व्यवहारों और समस्याओं को समझने के लिए सामाजिक संस्थाओं अथवा उनके व्यवहारों के अध्ययन की अपेक्षा मनुष्य के दैनिक व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है। लोगों के बात करने का ढंग, विभिन्न अवसरों पर उनकी पारस्परिक अंतःक्रियायें समाज को समझने का अधिक सार्थक व प्रभावशाली माध्यम हैं। ईयनों पद्धति के विकास से पूर्व मनुष्य के सामाजिक व्यवहार में जो तर्क- संगति देखी जाती थी वह कई बार गलत सिद्ध हुई थी। निर्धारित मापदंडों के आधार पर मानवीय व्यवहार की जब जाँच की जाती थी तो उनमें कई तार्किक और अतार्किक लक्षण मिलते थे। इसका कारण है कि मानवीय आचरण का मुख्य आधार ढूंढने में गलती की जाती थी। ईंधनों पद्धति ने एक नया आयाम प्रस्तुत किया है। इसकी सहायता से मनुष्य के सामाजिक आचरण को अधिक निकटता और वास्तविकता के साथ समझना संभव हो सका है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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