समाज शास्‍त्र / Sociology

लोक विधि विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषाएँ | नृजाति-पद्धति-शास्त्र की विशेषताएँ | लोक विधि विज्ञान की अध्ययन पद्धतियाँ

लोक विधि विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषाएँ | नृजाति-पद्धति-शास्त्र की विशेषताएँ | लोक विधि विज्ञान की अध्ययन पद्धतियाँ | Meaning and definitions of folk law science in Hindi | Features of ethnomethodology in Hindi | Study methods of public law science in Hindi

लोक विधि विज्ञान

लोक विधि विज्ञान अथवा नृजाति-पद्धति शास्त्र एक आधुनिक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है जिसकी रचना को अभी चार दशक भी नहीं बीते हैं। यद्यपि इस उपागम का नामकरण अमेरिकन समाजशास्त्रीय हेरॉल्ड गारफिंकल द्वारा सन् 1967 में किया गया और उसके पश्चात् अनेक समाजशास्त्रियों ने इसके संवर्द्धन एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, किंतु यह उपागम चर्चा में इससे पहले ही आ चुका था। अमेरिका की अनेक यूनीवर्सिटीज में चलने वाले सेमिनारों एवं कक्षाओं में नृजाति-पद्धति-शास्त्र पर चर्चा की जाती थी। नृजाति-पद्धति शास्त्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ, गारफिंकल द्वारा लिखी गई पुस्तक “Studies in Ethnomethology” है।

वास्तव में नृजाति-पद्धति शास्त्र का उदय अनेक क्लासिकल समाजशास्त्रीय सिद्धांतों विशेषकर संरचनात्मक प्रकार्यवाद के विरोध स्वरूप हुआ है। ये क्लासिकल सिद्धांत महावृत्तांतों (Meta Narratives) के रूप में हैं जो मानव जीवन का बढ़ा-चढ़ाकर अध्ययन करते हैं। साथ ही ये अध्ययन केवल आनुभाविकता अर्थात् अवलोकन को ही महत्व देते हैं। किंतु नृजाति-पद्धति-शास्त्र मनुष्य की उन सभी दैनिक क्रियाओं का अध्ययन करने पर बल देता है जिन्हें इन महावृत्तान्तों ने अभी तक अनदेखा किया है। अपनी सामाजिक संरचना को बनाये रखने के लिए मनुष्य जिन नियमों एवं विधियों का प्रयोग करता है, उन नियमों एवं विधियों का अध्ययन ही नृजाति-पद्धति शास्त्र है।

लोक विधि विज्ञान अर्थ एवं परिभाषाएँ –

रेन्बाल कालिंस ने नृजाति-पद्धति-शास्त्र को सामाजिक प्रघटना- विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण संस्करण माना है। इस उपागम के प्रवर्तक अमेरिकन समाजशास्त्रीय  हेरॉल्ड गारफिंकल है तथा अल्फ्रेड शूदूज, एडमंड ह्यूसर्ल, सिकोरल, लैडिस चर्चिल, मैक्एंड्रयू मॉरमैन तथा जिम्मरमैन इत्यादि समाजशासियों ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यद्यपि यह उपागम अपने विकास के प्रारंभिक चरण में ही है किंतु यह विश्वास, श्रद्धा अथवा फैशन के कारण लोकप्रिय हो जाने वाले उपागमों से ऊपर उठ चुका है अर्थात नृजाति-पद्धति-शास्त्र ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली है। अर्थ के लिए शाब्दिक रूप से देखें तो ‘Ethnomethodology’ दो शब्दों से बना है- Ethno + Methodology. Ethno का अर्थ है- व्यक्ति एवं Methodology का अर्थ है -पद्धति विज्ञान। इस रूप में Ethomethodology का अर्थ है- ‘व्यक्तियों का अध्ययन करने वाला पद्धति विज्ञान। वास्तव में यह विज्ञान व्यक्तियों की दैनिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। इसे और अधिक रूप में स्पष्ट करते हुए गारफिंकल कहते हैं कि Ethno शब्द अपनी प्राकृतिक अवस्था में विद्यमान कुछ घटनाओं का अध्ययन करने वाली ‘Ethnography’ की ओर संकेत करता है। जिस प्रकार मनाव विज्ञानी ‘Ethnography’ शब्द का अध्ययन करते हैं जो कि अनेक संस्कृतियों (विशेषकर जनजातीय संस्कृति) द्वारा अपने आस-पास के संसार की वनस्पतियों की पहचान से संबंधित है या ‘Ethnomedicine’ शब्द का प्रयोग करते हैं जो कि इन संस्कृतियों का औषधियों के प्रति लोक विश्वास एवं व्यवहार है उसी प्रकार ‘Ethnomethodology’ व्यक्तियों के दैनिक व्यवहार का अध्ययन करने से संबंधित है। नृजाति-पद्धति शास्त्र को स्पष्ट करते हुए अब्राहम लिखते हैं- “नृजाति-पद्धति-शास्त्र, व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त ज्ञान की सामान्य विधियाँ हैं, जिनके माध्यम से दैनिक क्रियाओं को अर्थ दिया जाता है तथा सामाजिक यथार्थता को निर्मित किया एवं बनाए रखा जाता है।”

लैण्डिस चर्चिल के अनुसार, “नृजाति-पद्धति-शास्त्र मुख्यतया मानव व्यवहार के उन पक्षों के अध्ययन पर बल देता है जो किसी व्यक्ति की सामान्य एवं व्यावहारिक दैनिक क्रियाओं से संबंधित हैं।”

लोग अपनी दैनिक क्रियाओं के प्रति सहज बौद्धिक ज्ञान रखते हैं। ये क्रियाएँ सरल होती हैं और इनका अर्थ निकालने की कोई आवश्यकता लोग नहीं समझते। इन दैनिक क्रियाओं को महत्व देकर इनका अध्ययन करने वाला उपागम ही नृजाति-पद्धति शास्त्र है। नृजाति-पद्धति शास्त्र अपने अध्ययन में तीन तथ्यों को महत्व देता है-

(1) मनुष्य की दैनिक क्रियाएँ ।

(2) दैनिक क्रियाओं की भाषा एवं उसका सामाजिक पक्ष।

(3) स्थितियों के मापदंड वाले पक्ष तथा व्यक्तियों के द्वारा विशिष्ट संदर्भ स्थितियों में मापदंडों के पालन की क्रियाओं की वास्तविकता।

नृजाति-पद्धति-शास्त्र की विशेषताएँ

नृजाति-पद्धति-शास्त्र के परिचय, अर्थ एवं परिभाषाओं के आधार पर इसकी कुछ विशेषताएँ हमारे सामने आती हैं-

(1) यह सिद्धांत वास्तविकता को स्थायी न मानकर परिवर्तनशील मानता है।

(2) नृजाति-पद्धति-शास्त्र के अध्ययन की वे पद्धतियाँ काम में लायी जाती हैं जिनके द्वारा घटनाओं की वास्तविकता का प्रत्यक्ष अवलोकन संभव हो।

(3) इस सिद्धांत में व्यक्ति महत्वपूर्ण है। अर्थात् किसी भी घटना के प्रति व्यक्तियों के दृष्टिकोण को यह सिद्धांत महत्व देता है।

(4) इस उपागम में वास्तविकता का निर्माण अंतःक्रिया की प्रक्रिया के अंतर्गत होता है।

(5) यह उपागम व्यक्तियों की दैनिक क्रियाओं को विशिष्ट महत्व देता है।

(6) नृजाति-पद्धति-शास्त्र सामाजिक मूल्यों एवं प्रतिमानों को स्वीकार नहीं करता।

(7) यह सिद्धांत मानदंण्डात्मक प्रारूप को महत्व नहीं देता।

(8) नृजाति-पद्धति-शास्त्र संख्यात्मक अध्ययन के स्थान पर व्याख्यात्मक अध्ययन को महत्व देता है।

(9) यह उपागम घटना के स्थान एवं संदर्भ तथा व्यक्तियों की भाषा को पर्याप्त महत्व देता है।

(10) नृजाति-पद्धति-शास्त्र विज्ञानवाद का विरोधी है किंतु अपने अध्ययनों में अवलोकन को स्वीकार करता है।

(11) मनुष्य सांस्कृतिक पर्यावरण में ढला हुआ व्यक्ति नहीं अपितु सामान्य रूप से क्रियाशील रहकर अंतःक्रिया करने वाला प्राणी है, यह इस उपागम की आधारभूत मान्यता है।

(12) नृजाति-पद्धति-शास्त्र का जन्म क्लासिकल समाजशास्त्र के विरोध में हुआ है तथा वह उपागम सृजनात्मक समाजशास्त्र के रूप में सामने आया है।

लोक विधि विज्ञान की अध्ययन पद्धतियाँ

(1) प्रथम अध्ययन बेकर द्वारा किया गया है। वेकर ने साक्षात्कार प्रविधि के माध्यम से मादक द्रव्य व्यसन का अध्ययन किया। उन्होंने पचास उत्तरदाताओं में मादक द्रव्य व्यवसन की स्थिति का परिचय प्राप्त किया। उत्तरदाताओं ने इस स्थिति के तीन चरण बताये-

(i) प्रथम चरण व स्थिति जिसमें उसने मादक द्रव्य व्यसन प्रारंभ किया।

(ii) द्वितीय चरण जिसमें वह मादक द्रव्यों के प्रभाव को समझने लगता है।

(iii) तीसरे चरण में व्यक्ति इन मादक द्रव्यों का आनंद लेना सीख जाता है।

(2) द्वितीय अध्ययन बाहर का है। इसमें शोधकर्ता अध्ययन क्षेत्र में जाकर उत्तरदाताओं के मध्य रहकर सहभागी अवलोकन के माध्यम से तथ्य एकत्रित करते हैं।

उपरोक्त दोनों ही अध्ययन विषय परक समझ पर आधारित हैं तथा इन दोनों अध्ययनों की प्रतिकृति संभव नहीं है।

ये वेबर की वर्सथन पद्धति की भी विशेषता है तथा नृजाति-पद्धति शास्त्र की भी ।

नृजाति-पद्धति-शास्त्र में अध्ययन की दो पद्धतियाँ उपयोग में लायी जाती हैं-

(1) अवलोकन पद्धति- यद्यपि नृजाति-पद्धति शास्त्र आनुभाविकता का विरोधी है किंतु ये उपागम अवलोकन का प्रयोग अपने अध्ययनों में करता है। अवलोकन घटनाओं का प्रत्यक्ष एवं यथार्थ अध्ययन करने की विधि है। नृजाति-पद्धति-शास्त्र की घटनाओं के यथार्थ अध्ययन को स्वीकार करता है। यह उपागम अवलोकन के रूप में सहभागी अवलोकन को अधिक महत्व देता है। अध्ययन क्षेत्र में अध्ययन की इकाईयों के मध्य रहकर गुपचुप रूप से एकत्रित की गयी सामग्री वास्तविक एवं गहन होती है, इस उपागम की ऐसी मान्यता है।

(2) अनुभवाक्षितता- नृजाति-पद्धति-शास्त्र अपने अध्ययनों में अनुभवों को पर्याप्त महत्व देता है। शोधकर्ता अपने इंद्रियगत अनुभव के माध्यम से जो तथ्य एकत्रित करता है, वे महत्वपूर्ण होते हैं। अनुभव प्राथमिक भी हो सकता है तथा द्वैतीयक भी। प्राथमिक अनुभव स्वयं घटना स्थल पर पहुँचकर प्राप्त किया जाता है जबकि द्वैतीयक अनुभव किसी अन्य साधन के माध्यम से प्राप्त सूचना के आधार पर प्राप्त होता है। तर्सथन पद्धति प्राथमिक अनुभव का उदाहरण है। नृजाति-पद्धति-शास्त्र के प्रवर्तक गारफिंकल ने इस उपागम की दो अन्य पद्धतियों की और चर्चा की है-

(3) प्रलेखीय पद्धति- इस पद्धति द्वारा एकत्रित तथ्यों में एक तथ्य दूसरे की व्याख्या के लिए आधार बनता है। इस पद्धाति में अवलोकन के आधार पर तथ्यों को वर्गीकृत किया जाता है। सभी घटनाओं को उनके घटित होने के साथ के आधार पर क्रमबद्ध कर दिया जाता है। इस पद्धति के अंतर्गत विभिन्न अर्थों के माध्यम से एकरूपता वाले प्रतिमानों का खोया जाता है। समुदाय के अध्ययन में ही प्रायः इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है। गारफिंकल ने इस पद्धति के अंतर्गत कार्ल मानहीम के विचारों को आधार बनाया है।

(4) प्रयोगात्मक पद्धति- नृजाति-पद्धति-शास्त्र सामाजिक वास्तविकता को परिवर्तनशील मानता है। हमारा दैनिक जीवन एक निश्चित ढर्रे पर चलता रहता है। हमें नहीं पता होता कि, हमारे जीवन की व्यवस्था किस प्रकार निर्मित हुई है। इसी संदर्भ में गारफिंकल का मानना है कि हम अपने दैनिक जीवन के प्रतिमानों में परिवर्तन लाकर इस वास्तविकता का पता लगा सकते हैं। किसी संदर्भ में गारफिंकल ने अपने विद्यार्थियों के माध्यम से एक प्रयोग भी किया था। जिसके माध्यम से उन्होंने पता लगाया कि दैनिक जीवन की स्वीकृत एवं व्यवस्थित क्रियाओं का निर्माण किस प्रकार हुआ है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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