ग्रामीण समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव | पश्चिमीकरण के ग्रामीण समाज पर प्रभाव की विवेचना

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ग्रामीण समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव | पश्चिमीकरण के ग्रामीण समाज पर प्रभाव की विवेचना | Impact of westernization on rural society in Hindi | Analysis of the impact of westernization on rural society in Hindi

ग्रामीण समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव

ग्रामीण समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव

पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप ग्रामीण समाज पर निम्न प्रभाव बाह्य स्तर पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं-

(1) जाति व्यवस्था में परिवर्तन-

परिचमीकरण की प्रक्रिया ने धार्मिक रूढ़िवादिता पर कुठाराघात करके जाति की वंशानुगत व्यवसाय की परम्परा, अन्तर्विवाही नियम की कठोरता, अस्पृश्यता तथा जाति संघर्ष को काफी हद तक प्रभावित किया।

पश्चिमीकरण के प्रभाव से प्रभावित होकर सवर्ण कहे जाने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों ने भी अपनी जातीय सीमाएँ लाँघ कर सभी सामाजिक सुधारों को अपनाया जो पूर्व में केवल निम्न जातियों की सांस्कृतिक धरोहर थे। इसी के कारण आज ग्रामीण समाज में छुआ-छूत की प्रथा लगभग समाप्त हो गयी।

(2) सामाजिक विघटन-

पश्चिमीकरण के प्रभाव ने विकास तथा उत्थान की ही स्थितियों को जन्म नहीं दिया अपितु अनेक पदों में संगठनात्मक व्यवस्था को भंग किया है। पश्चिमीकरण के कारण जाति प्रथा, वैवाहिक स्थायित्व, संयुक्त परिवार, संस्कार की मान्यता, धार्मिक कर्मकाण्ड, वर्णाश्रम व्यवस्था तथा पीढ़ियों के समंजन इत्यादि वे मान्यताएं हैं जो विघटित होकर ग्रामीण समाज में अनियंत्रण का कारण बनीं। समस्त प्राचीन संस्थाएँ उपयोगिता से परिपूर्ण थीं, यह कहना उचित नहीं है कि तथापि इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यक्तिवादिता, एकाकी परिवार, नास्तिकता आदि पश्चिमीकरण के द्वार ही जन्म ले सकीं।

(3) हिन्दुत्व की नवीन धारणा-

पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण हिन्दू धर्म की पुरातनपंथी तथा रूढ़िवादी मान्यताओं का स्थान सुधार कार्यों ने ले लिया। कट्टरता के स्थान पर हिन्दुत्व में समझौता, सहिष्णुता तथा अनुकूलन का समावेश हुआ। जाति-भेद तथा छुआ-छूत के कट्टर नियम शिथिल हुए। समाज-सुधारकों का महत्व बढ़ गया। आर्य समाज, ब्रह्म समाज, थियोसोफिकल सोसायटी आदि संस्थाओं ने पश्चिमीकरण को अपनाकर समता-भाव का प्रसार किया।

अस्पृश्यता-उन्मूलन, दहेज प्रथा का विरोध, सती प्रथा की समाप्ति, विधवा पुनर्विवाह पर अनुमति का विचार भी पश्चिमीकरण की ही देन थी।

इसका अर्थ यह नहीं कि ये संस्थाएँ पश्चिमी थीं बल्कि इनकी विचारधारा की स्वतन्त्रता पश्चिमी संस्कृति से प्रेरित थीं।

(4) साक्षरता का प्रसार-

पश्चिमीकरण का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव आधुनिक शिक्षा पद्धति का जन्म तथा शिक्षा का प्रसार रहा है।

अंग्रेजी भाषा के प्रति उच्चता की भावना के कारण ग्रामीण समाज में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के प्रति आकर्षण जागृत हुआ। जहाँ जातीय आधारों पर शिक्षा केवल गिने चुने लोगों का अधिकार था, वहीं पश्चिमीकरण के प्रभाव ने शिक्षा को जन-जन तक पहुँचा दिया। पाश्चात्य शिक्षा ने सोचने के तरीकों और पारम्परिक शिक्षा पद्धति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये। घटनाओं तथा समस्याओं के प्रति सामान्य जनमानस में तार्किक एवं आलोचनात्मक मानसिकता का विकास हुआ। पाश्चात्य शिक्षा ने भाषा पर ही नहीं बल्कि साहित्य, विज्ञान, संगीत तथा ललित कलाओं के पक्ष को भी सीमित दायरों से निकालकर सामान्य जनता तक पहुँचाया।

(5) सांस्कृतिक प्रतिमानों में क्रांतिकारी परिवर्तन –

पश्चिम के प्रमुख प्रभावों के अन्तर्गत परिवार संस्था प्रभावित हुई, संयुक्त परिवार टूटे तथा एकाकी परिवारों का जन्म हुआ। परिवार के पुरुष की शक्ति शिथिल तो नहीं हुई किन्तु स्त्रियों की शक्ति में सुधार हुआ। परिवार में अनौपचारिक नियन्त्रण का ह्रास हुआ, विवाह का धार्मिक रूप परिवर्तित हुआ। अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिला, बेमेल तथा बाल विवाह अपवाद बन गये। विवाह पूर्व प्रेम की मान्यता को स्वीकृति मिली तथा खान-पान की छुआछूत’ भी अत्यन्त सीमित रह गयी। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ फैशन, सिनेमा तथा सौन्दर्य प्रसाधनों के प्रति पूर्वाग्रह टूटे।

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