समाज शास्‍त्र / Sociology

जजमानी व्यवस्था | जजमानी व्यवस्था के संगठन तथा कार्य प्रणाली | जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें | जजमानी प्रथा की हानियाँ/दोष

जजमानी व्यवस्था | जजमानी व्यवस्था के संगठन तथा कार्य प्रणाली | जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें | जजमानी प्रथा की हानियाँ/दोष | Jajmani system in Hindi | Organization and working system of Jajmani system in Hindi | Main features of Jajmani system in Hindi | Disadvantages/demerits of Jajmani system in Hindi

जजमानी व्यवस्था

ग्रामीण समाज में प्रत्येक जाति के सदस्यों में अपने कुछ जजमान होते हैं जो उन्हें अपना विशिष्ट सेवा प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ, धोबी कपड़े धोता है। ब्राह्मण पुरोहित का काम करता है, नाई बाल काटता है तथा अन्य ऐसी अनेक प्रकार की सेवायें प्रत्येक जाति के सदस्य अपने जनमानों को प्रदान करते हैं। इन सेवाओं को प्राप्त करने के लिए जजमानों को प्रजा पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि विभिन्न जातियों के सदस्यों से सेवा प्राप्त करने वाला परिवार या उसका ‘जजमान’ कहलाता है और जो कार्य या सेवा प्रदान करता है, ‘प्रजा’ या ‘कमीन’ कहलाता है। अतः विभिन्न जातियों के सदस्यों में आपस में सेवा प्रदान करने और प्राप्त करने के फलस्वरूप जो सम्बन्ध विकसित होते हैं, उसे ‘जजमानी प्रथा’ कहते हैं।

विलियम वाइजर वह प्रथम विद्वान थे जिन्होंने ग्रामीण भारत की जजमानी प्रथा का अध्ययन किया। उनके अनुसार, “जजमानी प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक जाति का कोई निश्चित कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। इस कार्य पर उसका एकाधिकार होता है। इसमें एक जाति दूसरी जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।” जिन लोगों के लिए कार्य किया जाता है, वे जजमान कहलाते हैं। जो सेवा कार्य करते हैं, उन प्रजा या परजन कहा जाता है।

जजमानी प्रथा की प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

एन.एस. रेड्डी- “जजगानी प्रथा में परम्परागत रूप से एक जाति का सदस्य दूसरी जाति को अपनी सेवायें प्रदान करता है। ये सेवा सम्बन्ध, जो परम्परागत रूप से शामिल होते हैं, जजमान (कमीन) सम्बन्ध कहलाते हैं।”

आंस्कर लेविस- “परम्परागत प्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को द्रव्यीकरण के स्थान पर अन्तर्जातीय सम्बन्धों की विशेष प्रथा पायी जाती है। सेवा या काम करने वाली जातियों को सालाना कुछ अनाज तथा कपड़ा, भोजन, चारा, आवास आदि भी दिया जाता है। यह सेवा जातियाँ (मेहतर, कुम्हार, धोबी, ब्राह्मण, कहार आदि) जन्म, मृत्यु, विवाह तथा अन्य संस्कारों के समय कुछ अतिरिक्त सेवायें प्रदान करती हैं जिनके बदले उन्हें अतिरिक्त वस्तुयें एवं सुविधायें जजमान द्वारा प्रदान की जाती हैं।” परम्परागत ग्रामीण भारत में प्रायः सभी राज्यों में जजमानी प्रथा पाई जाती थी। एक ओर जहाँ जजमानी प्रथा के कुछ लाभ थे, वहीं कुछ हानियाँ भी थीं। अब यह प्रथा लगभग समाप्ति की ओर है।

जजमानी व्यवस्था के संगठन तथा कार्य प्रणाली

भारतीय गाँवों की आर्थिक पहलू काफी हद तक जजमानी व्यवस्था से भी संचालित होती थी। जजमानी व्यवस्था के अन्तर्गत कई जातियाँ अपना-अपना संगठन बनाये रखे थीं। जैसे नाई का संगठन, धोबियों का संगठन, बढ़ई का संगठन आदि। ये संगठन अपने जाति के कार्यों को तो करते ही थे दूसरी जातियों के लोगों की सेवा भी करते थे। इनमें नाई का मुख्य कार्य बाल काटना था। इसके अतिरिक्त नाई गाँवों में शादी, पूजा एवं अन्य कार्यक्रमों में अपने जजमानों के यहाँ सेवा कार्य में लगा रहता था जिसके एवज में उसे अन्न या रुपया, वर्तन आदि प्रदान किया जाता था। धोबी का मुख्य कार्य कपड़े धोना था जिसके बदले में उसे अपने जजमानों से आर्थिक मदद मिलती थी। बढ़ई सभी जाति के किसानों के औजार बनाता है जबकि सफाईकर्मी झाडू, पोछा या साफ-सफाई का कार्य करता था। ये प्रत्येक संगठन से जुड़े परिवार के लोग एक-एक विशेष परिवार या परिवारों के समूहों के लिए, जिनके साथ उनके पुस्तैनी सम्बन्ध हैं उन्हें जजमान समझकर उनकी सेवा करते हैं।

मुक्त बाजार की व्यवस्था न होने के कारण जजमान और छोटे के सम्बन्ध मालिक और मजदूर के समान नहीं हैं। जजमान अपने कमीनों से कराये गये काम के लिए निर्धारित अनाज, कभी-कभी नकद रुपये भी, कमीन के घर में विवाह के समय सहायता के रूप में रुपया, अपने यहाँ विवाह आदि के समय कमीन को मुक्त रहना, पुराना कपड़ा, औजार खरीदने के लिए आर्थिक सहायता तथा कभी-कभी उधार रुपया भी देता है। यह रियायतें इस चिर प्रचलित प्रणाली की शक्ति की द्योतक हैं और नगद भुगतान से अधिक महत्वपूर्ण हैं। इस प्रणाली का मुख्य कार्य एक विशेष क्षेत्र में विशेषकर कृषि कार्य में सहायता देने वाली निम्न जातियों की गतिशीलता को सीमित कर प्रभुता सम्पन्न कृषक जाति के लिए पर्याप्त श्रमिकों की पूर्ति को सुनिश्चित करना है। कुछ गाँवों में यहाँ तक की यदि कोई कमीन गाँव छोड़ता है तो उसे अपने स्थान पर कोई आदमी उन लोगों की सेवा करने के लिए देना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त ग्राम समाज भी उसे ठहरने पर ध्यान करता है। इस प्रथा में परिवर्तन आ रहा है।

जहाँ छोटे गाँव हैं वहाँ एक ही गाँव में पर्याप्त जजमान न मिलने के कारण एक कमीन को कोई गाँव में काम करना पड़ता है। जजमानी अधिकार, जो एक व्यक्ति को कुछ परिवार से संयुक्त कराते हैं, वे एक प्रकार की सम्पत्ति समझे जाते हैं, जो पिता से पुत्र को मिलते हैं। जमीन की भाँति भाइयों में जजमानों का भी बँटवारा होता है और कमीन लोग भी जजमानों तक गिरवी रख कर आपस में रुपया उधार ले लेते हैं या बेच भी देते हैं।

जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें

जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं –

(a) जजमानी व्यवस्था जाति प्रथा के अन्तर्गत पायी जाती है। प्रत्येक जाति का परम्परागत व्यवसाय होता है। उसे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित किया जाता है। जब एक जाति का एक निश्चित व्यवसाय है, तो अन्य आवश्यकताओं के लिए अन्य जातियों की सेवायें लेनी ही पड़ेंगी।

(b) जजमानी प्रथा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती है। एक जाति में जन्में सदस्यों को भी वही काम करना पड़ेगा। पीढ़ियाँ परिवर्तित होती रहती, पर जंजमान तथा कमीन का सम्बन्ध वैसा ही बना रहेगा। कोई भी जजमान बिना गम्भीर अपराध के कमीन को बदल नहीं सकता तथा न ही दूसरे किसी व्यक्ति से वह सेवा ले सकता है।

(c) जजमानी व्यवस्था एक सम्पत्ति के रूप में भी है। प्रजा के लिए जजमान एक सम्पत्ति है जिस पर उसका हक होता है।

(d) जजमानी प्रथा सेवाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था है। जजमानी प्रथा में भुगतान मुद्रा के रूप में नहीं होता है।

(e) जजमानी व्यवस्था परम्परात्मक आर्थिक व्यवस्था पर आधारित है न कि खुले बाजार आर्थिक व्यवस्था पर जजमानी व्यवस्था में सम्बन्ध प्राथमिक होते हैं। परजन तथा जजमान में सम्बन्ध भावात्मक होते हैं।

जजमानी प्रथा की हानियाँ/दोष

जजमानी प्रथा के दोष निम्नलिखित हैं-

(a) जजमानी प्रथा सामाजिक विकास में बाधक है क्योंकि यह नये परिवर्तनों को आने से रोकती है। जजमानी प्रथा रूढ़िवादी है जो समाज का विकास नहीं होने देती है।

(b) जजमानी व्यवस्था स्थिर, अपरिवर्तनशील तथा अप्रगतिशील है। इसके कारण समाज भी अपरिवर्तित रहता है।

(c) जजमानी व्यवस्था के फलस्वरूप राष्ट्रीय एकता तथा एकीकरण में बाधा उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि ये (ग्राम समुदाय) स्वयं को दूसरे से पृथक मानते हैं। जैसा कि सेण्डरसन ने लिखा है, “ग्राम समुदाय के कृषक में राष्ट्रीयता की उत्कृष्ट भावना का अभाव था। उनकी स्वामिभक्ति अपने नातेदारों एवं समुदाय के लिए प्रथम होती है।”

(d) जजमानी व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति मात्र अपनी जाति के परम्परागत व्यवसाय को ही करता है। उसका कार्य जजमानों की सेवा है जिससे पृथक वह कोई कार्य नहीं कर सकता है। इस प्रकार जजमानी व्यवस्था नये व्यवसायों तथा उद्योगों की प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है।

(e) जजमानी व्यवस्था में व्यक्ति का कोई महत्व नहीं रह जाता है। व्यक्ति को पूर्व निश्चित कार्य को ही करना होता है। इस व्यवस्था में व्यक्तिगत रुचि तथा योग्यता का कोई स्थान नहीं है।

समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!