समाज शास्‍त्र / Sociology

ग्रामीण परिवारों में आधुनिक परिवर्तन के कारण | भारत में परिवार की परम्परागत व्यवस्था में उत्तरदायी कारकों की भूमिका

ग्रामीण परिवारों में आधुनिक परिवर्तन के कारण | भारत में परिवार की परम्परागत व्यवस्था में उत्तरदायी कारकों की भूमिका | Reasons for modern changes in rural families in Hindi | Role of responsible factors in traditional family system in India in Hindi

ग्रामीण परिवारों में आधुनिक परिवर्तन के कारण –

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। ऐसी कोई भी संस्था नहीं है जिसके समय के साथ परिवर्तन न हुआ हो। आधुनिक समय में ग्रामीण संयुक्त परिवारों की संरचना में भी परिवर्तन हो रहे हैं। इसके पीछे अनेकों कारण विद्यमान है जो इस प्रकार हैं-

  1. नगरीकरण –

नगर के आकर्षण ने जहाँ व्यक्ति को अपने परिवार को छोड़ने के लिए प्रेरित किया वहीं उसे यहाँ काम ढूंढकर रहने के लिए भी विवश किया है। उसने नगर की आदतों रीति-रिवाजों और व्यवहार करने के ढंग को अपनाया है। नगर के प्रगतिशील विचारों ने उसके परम्परात्मक सोच के ढाँचे को परिवर्तित कर दिया। इसलिए आज व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के

साथ रहना अधिक उचित समझता है क्योंकि वह संयुक्त परिवार के बन्धन से मुक्त होना चाहता है। 1991 में भारत में 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले 25 महानगर थे और 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले वृहद आकार के नगर हैं जो क्रमशः मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली व चेन्नई हैं।

  1. औद्योगीकरण

औद्योगिक क्रान्ति ने देश के आर्थिक ढाँचे में क्रान्ति उत्पन्न की है। इस देश में कृषि व्यवसाय और कुटीर उद्योग धन्धों के अतिरिक्त कुछ नहीं था। औद्योगीकरण ने जीविका के असंख्य विकल्प प्रस्तुत किए। दूसरी तरफ संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है पर उनके सीमित साधनों से उनकी आवश्यकताएं पूर्ण नहीं हो पाती हैं। अस्तु वह भिन्न-भित्र नगरों में काम की खोज में जाता है और काम मिलने पर उसी नगर में बसने भी लगता है। इससे संयुक्त परिवार टूटने लगे हैं।

  1. कुटीर उद्योग-धन्धों के ह्रास-

औद्योगिक क्रान्ति ने बड़ी-बड़ी मशीनों का आविष्कार कर कुटीर उद्योग धन्धे के व्यवसाय को लगभग नष्ट सा कर दिया है। हाथ से तैयार भाल मशीनों द्वारा बनाए हुए माल के सामने बाजार में टिक नहीं पाते हैं- मशीनों द्वारा तैयार माल क्योंकि व्यापक पैमाने पर बनाया जाता है, बाजार में सस्ता बिकता है, जबकि हाथ द्वारा तैयार माल कहीं महंगा बिकता है। इसका परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण व्यक्ति, जो कुटीर उद्योग धन्धों से जुड़ा था, उसे अपने परम्परात्मक कार्य को त्यागना पड़ा है।

  1. मकान की समस्या –

नगरों में जिस तीव्र गति से व्यवसाय और उद्योग में प्रगति हो रही है उस अनुपात में आवास समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है। इसका परिणाम यह हुआ कि नगरों में जनसंख्या के दबाव में निरन्तर वृद्धि हो रही है किन्तु व्यक्तियों के रहने के लिए मकान उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए नगरों में संयुक्त परिवार का रहना सम्भव नहीं है। नगरों में संयुक्त परिवार की रहने के बात बहुत दूर है, यहाँ हजारों व्यक्ति होटल और धर्मशालाओं में रहते हैं और लाखों व्यक्ति मलिन बस्तियों में।

  1. नये उद्योग का जन्म-

औद्योगीकरण ने व्यक्ति के लिए अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धों की स्थापनायें की हैं। हजारों की संख्या में मिल, कारखाने, फैक्टरी स्थापित होने लगे हैं जिसमें कुशल, अकुशल दोनों तरह के श्रमिक कार्य करते हैं। लाखों की संख्या में ग्रामीण श्रमिक इन कारखानों में आज कार्य कर रहे हैं। गाँव की अपेक्षा यहाँ इनकी आय भी अधिक है। अस्तु वे यहाँ रहने भी लगे और साथ ही उनकी आय में भी काफी वृद्धि हुई है।

  1. व्यक्तिवादी दृष्टिकोण-

नगरीय प्रभाव के कारण अब व्यक्ति का संपूर्ण जीवन धन के चारों ओर ही सीमित होकर रह गया है। इच्छाओं, स्वार्थों और महात्वाकांक्षाओं ने उसे सामूहिक भावना से सम्बन्ध तोड़ने के लिए विवश कर दिया। ‘मैं’ की भावना ने उसे पूर्णरूप से व्यक्तिवादी बना दिया। व्यक्ति आज सर्वप्रथम अपनी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देता है। फिर अन्य रिश्तेदारों को इस मावना ने परिवार के सभी सम्बन्धों के जाल को तोड़ दिया है।

  1. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन

औद्योगिक क्रान्ति ने स्त्रियों की आर्थिक सामाजिक स्थिति में परिवर्तन सम्भव किया है। घर की चारदीवारी से बाहर कार्य करने निकली है। आज वे बड़े-बड़े पदों पर विराजमान हैं। ये अन्धविश्वास और परम्परात्मक ढोग से उबर रही है। नगर की शिक्षा-दीक्षा ने स्त्रियों के सम्पूर्ण जीवन दर्शन को ही बदल दिया है। अब ये स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर होना पसन्द करती हैं बजाए इसके कि वह परिवार में दासी की तरह जीवन यापन करें।

  1. पाश्चात्य संस्कृति और शिक्षा का प्रभाव-

संस्कृति और शिक्षा का प्रभाव व्यक्ति पर इतना अधिक पड़ा कि वे अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगने लगे। पाश्चात्य संस्कृति और शिक्षा का इतना अधिक प्रभाव समाज पर पड़ा कि यहाँ की अनेक सामाजिक कुरीतियाँ समाप्त हुई जैसे बाल-विवाह, सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा, और विधवा पुनिर्विवाह को मान्यता प्राप्त हुई। व्यक्ति अन्धविश्वासों की कटु आलोचना करने लगा। इन सबका परिणाम यह हुआ कि संयुक्त परिवार की मान्यताएँ और मूल्यों में परिवर्तन हुए। व्यक्ति प्रेम विवाह और अन्तरजातीय विवाह भी करने लगा। इन सब कारणों से संयुक्त परिवार के ढाँचे में परिवर्तन हो रहे हैं।

  1. ग्रामीण समाज की जनसंख्या में वृद्धि-

इस समाज में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है, जबकि सीमित-साधनों से उनकी आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं होती। अस्तु व्यक्ति परिवार छोड़कर नगरों में काम करने आता है और यहीं बस जाता है। इस प्रवृत्ति ने भी संयुक्त परिवार को विघटित करने में सहायता दी है।

  1. निर्धनता और बेकारी-

ग्रामीण समाज निर्धनता और बेकारी से अभिशप्त है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं भी पूर्ण करने में असमर्थ है, बच्चों के अच्छे खाने और शिक्षा-दीक्षा की बात तो दूर रही। इसलिए अधिक व्यक्ति नगरों में काम की खोज में आ रहा है। यहाँ छोटा-मोटा कार्य करके वह अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है।

  1. स्त्रियों में परस्पर कलह और द्वेष-

संयुक्त परिवार की स्त्रियाँ साथ-साथ रहती हैं। परिवार में जिस स्त्री का स्थिति ऊंची है, उसका उतना ही बड़ा एकाधिकार परिवार पर होता है और वह घर का काम भी उतना ही कम करती है जैसे सास, जेठानी और ननंद ये परिवार की अन्य बहुओं को यातनाएं भी देती हैं और अनावश्यक परेशान भी करती हैं। इससे अन्दर ही अन्दर परिवार की स्त्रियां में तनाव बना रहता है। इससे परस्पर कलह और द्वेष की भावना में भी वृद्धि हुई। इन सब कारणों से अब स्त्री संयुक्त परिवार में रहना नहीं चाहती है।

  1. यातायात के साधनों में उन्नति-

अंग्रेजी शासन काल में यातायात के साधनों में काफी प्रगति हुई। इसका मुख्य कारण था कि वे अधिक से अधिक माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना चाहते थे। इन साधनों की प्रगति से उद्योग-धन्धों में प्रगति हुई। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि व्यक्ति कारखानों और मिलों में कार्य करने लगा और उसका सम्बन्ध संयुक्त परिवार से दिन-प्रतिदिन कम होता गया।

  1. राजनैतिक चेतना और आन्दोलन-

राजनैतिक नेताओं और समाज सुधारकों ने समय- समय पर देश के व्यक्तियों को प्रगतिशील बनने की प्रेरणा दी है। गाँधी जी ने स्त्रियों को कर्म-भूमि और स्वतन्त्रता आन्दोलन में लाकर खड़ा कर दिया था। विवेकानन्द ने स्त्रियों को घर से बाहर निकलकर काम करने की प्रेरणा दी थी। इसलिए व्यक्ति आज प्राचीन मान्यताओं को तोड़कर नये समाज की स्थापना करना चाहता है। आज स्त्री और पुरुष सभी क्षेत्रों में साथ-साथ देखे जा सकते हैं। इस प्रगतिशील दृष्टिकोण में संयुक्त परिवार में अनेक प्रकार के परिवर्तन किए हैं।

उपर्युक्त कारणों से संयुक्त परिवार की परम्परा समाप्त हो हो रही है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। व्यक्तिवादी संस्कृति हावी हो रही है। समूह से व्यक्ति का सम्बन्ध टूट रहा है। इसलिए व्यक्ति एकाकी परिवार में अपनी पत्नी एवं बच्चों के साथ रह रहा है। इस माहौल में व्यक्ति के अहम की संतुष्टि हो रही है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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