समाज शास्‍त्र / Sociology

हिन्दू विवाह का अर्थ | भारतीय ग्रामीण विवाह की मुख्य विशेषताएं | Meaning of Hindu marriage in Hindi | Key Features of Indian Rural Marriage in Hindi

हिन्दू विवाह का अर्थ | भारतीय ग्रामीण विवाह की मुख्य विशेषताएं | Meaning of Hindu marriage in Hindi | Key Features of Indian Rural Marriage in Hindi

हिन्दू विवाह का अर्थ

मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “योनि सम्बन्ध मानव समाज में बनने वाला प्रथम सामाजिक सम्बन्ध रहा होगा। इस योनि सम्बन्ध को व्यवस्थित एवं नियंत्रित करने के लिए ही कालान्तर में विवाह संस्था का विकास किया गया। वैसे तो विवाह संस्था एक सार्वजनिक संस्था है। किन्तु देश काल के अन्तर से इसके अर्थ, उद्देश्य एवं स्वरूपों में निरन्तर अन्तर आता जा रहा है। उदाहरणस्वरूप पाश्चात्य देशों में विवाह को स्त्री एवं पुरुष के बीच होने वाले एक समझौते के रूप में देखा जाता है, जबकि भारतीय संदर्भ में विवाह को एक संविदा न मानकर एक धार्मिक संस्कार के रूप में मान्यता दी गई है। स्वरूप में अन्तर होने के पश्चात् भी हिन्दू विवाह, विवाह संस्था से पूर्णतया भिन्न होकर उसी का एक प्रकार है।”

वेस्टर मार्क के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों के साथ होने वाली प्रथा या कानून द्वारा स्वीकृत सम्बन्ध है जिसमें विवाह करने वालों और उनसे उत्पन्न  बच्चों के अधिकार व कर्तव्य का समावेश रहता है।”

वोगार्डस का कथन है, “विवाह स्त्री एवं पुरुषों के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की एक संस्था है।“

“Marriage is an institution admitting men and women to fainily life.”

गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “विवाह एक प्रजनन-मूलक परिवार की संस्थापना की स्वीकृति विधि है।“

लावी ने विवाह का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, “विवाह उन स्पष्टतः स्वीकृति संगठनों को प्रकट करता है जो इन्द्रिय सम्बन्धी सन्तोष के उपरान्त भी स्थिर रहता है तथा पारिवारिक जीवन की आधारशिला बनाता है।” .

ग्रामीण विवाह की विशेषता-

अधिकतर विवाह माता-पिता द्वारा ही तय किए जाते हैं। बहुत कम विवाह ऐसे होते हैं, जहाँ लड़का या लड़की विवाह से पहले एक दूसरे को देख लेते हैं। लड़की का पिता जब किसी वर से अपनी पुत्री के विवाह का निश्चय कर लेता है तो इसकी तिथि निर्धारित करने के लिए किसी पण्डित या कुल पुरोहित की सलाह ली जाती है। लड़की के पिता की ओर से लगन भेजी जाती है। विवाह के कुछ दिन पहले ‘बान’ लगाये जाते हैं। विवाह के एक दिन पहले लड़के के पिता के यहाँ ‘मँढा’ मनाया जाता है। दावत होती है और न्यौता दिया जाता है, जिसका उद्देश्य यह है कि नाते-रिश्तेदार प्रस्तुत विवाह में अपनी ओर से भी कुछ योगदान कर सकें। हालांकि कम से कम इतना ही योगदान इन नाते-रिश्तेदारों के यहाँ विवाह होने पर लौटा दिया जाता है।

निश्चित ‘चढ़त’ के पश्चात् वर बारात लेकर अपने होने वाले ससुर के यहाँ पहुँच जाता है। बारात का द्वार पर स्वागत किया जाता है। विशेष मुहूर्त पर अग्नि के सामने बैठकर संस्कार होता है, मन्त्रों का उच्चारण होता है और ‘कन्यादान’ और ‘गौदान’ की रस्में होती हैं। बारातियों को अच्छा खाना खिलाया जाता है और खातिर की जाती है। कुछ लोगों के यहाँ बारात तीन दिन तक ठहरती है। इस अवसर पर प्रायः ‘नाई’ विचौलियों एवं सेवक का काम करता है। कुम्हारी मिट्टी के बर्तन देता है, धोबी कपड़े धोता है तथा बैठने के लिए कपड़ा बिछाता है।

विवाह संस्कार की आखिरी रस्म ‘विदाई’ होती है। इस समय लड़की के पिता की ओर से लड़के एवं उसके सम्बन्धियों की ‘मिलानी’ या ‘मिलाई’ की जाती है। इसके पश्चात् लड़की को लड़के वालों को कार, रथ, ताँगा, पालकी आदि में बैठा दिया जाता है। इस अवसर पर लड़की की माता, सहेलियाँ या गाँव की औरतें ऐसे गीत गाती हैं जिनमें ‘लड़की’ के लिए अपनत्व एवं प्रेम की अनुभूति होती है तथा विछोह के कारण होने वाला दुख प्रकट हो जाता है।

बाबुल के घर छोड़के गोरी हो गई आज पराई है।

डोली देख जियरा डोले, आँख नीर भर लाई है।।

जब लड़की अपने सास के घर पहुँच जाती है तो यहाँ भी कुछ रस्में ‘कंगन खुलाई’, ‘चाक पुजाई’, ‘कुंआ पुजाई’ आदि होती है। पाँच से आठ दिन तक लड़की जब अपने पति के घर रह लेती है तो उसका भाई या अन्य कोई सम्बन्धी उसे उसके पिता के घर लिवा ले जाता है।

कुछ दिन पश्चात् गौने की रस्म होती है। जिस समय पति अपनी पत्नी को फिर से लिवा जाता है। फिर वह कभी-कभी त्योहार या किसी शादी आदि के अवसर पर पिता या भाई के घर जाती रहती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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