समाज शास्‍त्र / Sociology

परिवार का अर्थ | परिवार की परिभाषा | परिवार की विशेषतायें | भारतीय ग्रामीण परिवारों की मुख्य विशेषतायें

परिवार का अर्थ | परिवार की परिभाषा | परिवार की विशेषतायें | भारतीय ग्रामीण परिवारों की मुख्य विशेषतायें | Meaning of Family in Hindi | Definition of family in Hindi | Characteristics of Family in Hindi | Main features of Indian rural family in Hindi

परिवार (Family)

परिवार एक सार्वभौमिक (Universal) संस्था है तथा इसका अस्तित्व प्रत्येक स्थान, युग एवं मानव जीवन के क्षेत्र में मिलता है। विश्व का प्रत्येक व्यक्ति आधारभूत रूप में किसी न किसी परिवार का सदस्य होता है। कदाचित ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसका किसी न किसी परिवार से सम्बन्ध न रहा हो। समाज को त्यागकर, भस्म लगाकर तपस्या में मग्न योगी भी, जो कि विश्व के कोलाहल से दूर मनन एवं चिन्तन में लीन रहते हैं, जीवन के प्रारम्भिक काल में परिवार से सम्बन्धित था। कुछ विद्वान तो परिवार को विवाह की संस्था से भी पहले की संस्था मानते हैं। मैकाइवर और पेज ने तो अपना मत व्यक्त करते हुए कहा है कि “समाज में सबसे पहले बनने वाला सामाजिक सम्बन्ध यौन सम्बन्ध रहा होगा एवं उससे बनने वाला परिवार समाज का प्राचीनतम रूप माना जा सकता है। व्यक्ति के समाजीकरण में अर्थात् एक मांस मज्जा के लोथड़े मात्र व्यक्ति को पालित-पोषित कर एक कुशल सामाजिक प्राणी के रूप में गढ़ने का कार्य करना, व्यक्ति को सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं, परम्पराओं एवं व्यवहार प्रतिमानों का सही ज्ञान कराने, व्यक्ति के स्व (Self) अथवा अहं (Ego) का विकास करने में परिवार ही मुख्य भूमिका अदा करता है। वह व्यक्ति का समाज में परिचय कराता एवं प्रस्थिति एवं भूमिका अदा करता है। मानव समाज की अनूठी धरोहर अर्थात् संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित करने में परिवार का ही मुख्य हाथ रहता है किन्तु परिवार के सही अर्थ एवं उसके द्वारा सम्पन्न कार्यों का सही मूल्यांकन करने के लिए यह आवश्यक है कि हम सबसे पहले शब्द को वैज्ञानिक ढंग से परिभाषित कर लें।

परिवार का अर्थ

(Meaning of Family)

परिवार शब्द अंग्रेजी में ‘फेमिली’ शब्द का समानार्थक है। फेमिली (Family) लैटिन में ‘फेमुलस’ (Famulas) शब्द से निकला है। लैटिन में ‘फेमुलस’ का अर्थ होता है नौकर। लैटिन के ‘फेमुलस’ शब्द के अन्तर्गत माता-पिता आता था। आधुनिक युग में परिवार शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। पाश्चात्य संस्कृति में परिवार से आशय केवल माता-पिता एवं उसके अविवाहित बच्चों से है। परिवार को व्यक्ति की काम इच्छा पूर्ति करने वाला तथा बच्चों का पालन- पोषण करने वाला एक औपचारिक, द्वतीयक एवं व्यक्तिवादी संगठन माना जाता है। भारतवर्ष में परिवार से अर्थ एक ऐसे संगठन से लगाया जाता रहा है जिसमें पति-पत्नी एवं बच्चों के अतिरिक्त चाचा, चाची, भाई, भतीजा, दादा-दादी ही नहीं बल्कि कई पीढ़ी के लोगों को सम्मिलित किया जाता रहा है। हमारे यहाँ परिवार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की पूर्ति करने वाला एक साधन के रूप में माना जाता रहा है। यही कारण है कि भारतवर्ष में परिवार का अर्थ संयुक्त परिवार से लगाया जाता रहा है। यद्यपि आधुनिक युग में पाश्चात्य सभ्यता के बहाव में बहकर अब धीरे-धीरे एकाकी परिवारों का जन्म ही रहा है जो कि आकार में कहीं छोटे होते हैं तथा पति पत्नी और उसके बच्चों को ही अपने में शामिल करते हैं जैसे कि पाश्चात्य में स्वीकार किया जाता है। परिवार प्रायः दो प्रकार के होते हैं – मातृसत्तात्मक परिवार (Matriarchal famly) तथा पितृसतात्मक परिवार (Patriarchal family) | प्रथम में वंश का नाम माता के नाम से चलता है तथा माता ही परिवार की मुखिया स्वरूप मानी जाती है। जबकि द्वितीय प्रकार के परिवारों में देश का नाम पिता के नाम से चलता है तथा पिता ही परिवार का सर्वेसर्वा माना जाता है। कुछ जनजातीय समाजों को छोड़कर आज अधिकतर समाजों में पितृसत्तात्मक परिवार का ही अस्तित्व मिलता है।

परिवार की परिभाषा

(Definition of family)

  1. आगवर्न एवं निमकाफ (Ogurn and Nimkoff) लिखते हैं, “परिवार एक पति-पत्नी का थोड़ा बहुत स्थाई संघ है जिसमें बच्चे हों या न हों अथवा जिसमें केवल पति या पत्नी तथा उसके बच्चे हों।”

“Family is a more or less durable association of husband and wife with or without children or a man or a woman alone with children.”

– Oghurm and Nimkoff, A Hand Book of Sociology.

  1. वर्गस एवं लाक (Burgess and Lock) लिखते हैं, “परिवार विवाह, रक्त सम्बन्ध या गोद लेने के सम्बन्धों में जकड़े हुए व्यक्तियों का एक समूह है जो कि एक गृहस्थ को बनाते हैं तथा जो कि पति-पत्नी, माता-पिता, पुत्र और पुत्रो, भाई एवं बहन के अपने सामाजिक कार्यों के रूप में एक दूसरे के साथ अन्तः क्रियाओं और अन्तःसन्देशों को कहते हैं और एक सामान्य संस्कृति का निर्माण एवं उसकी रक्षा करते हैं।”
  2. मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) ने परिवार की परिभाषा देते हुए कहा है,“कुटुम्ब लिंग सम्बन्धों पर आधारित एक समूह है तथा जो इतना छोटा और स्थाई है कि उनमें बच्चों की उत्पत्ति एवं पालन-पोषण हो सकता है।”

“The family is a group defined by a sex-relationship sufficiently recise and enduring to provide for the procreation and upbringing of children.”

-Maclver and Page, Society

  1. इलिएट और मेरिल (Elliot and Merrill) ने कहा है, “परिवार एक जैविकीय सामाजिक इकाई जो पति-पत्नी और उनके बच्चों से मिलकर बनता है। परिवार को एक सामाजिक संस्था या समाज द्वारा मान्य संघ भी माना जा सकता है जिससे निश्चित मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।”

“The family may be defined as the biological social unit composed of husband, wife their children, the family may siso be considered as social institution, is socially approved organization for meeting definte human needs.”

-Elliott and merrill

  1. टी.एच. क्लेयर (T.H. Clare) ने परिवार की बड़ी सूक्ष्म परिभाषा दी है। आप लिखते हैं, “परिवार से हमारा आशय सम्बन्धों की एक व्यवस्था से है जो कि बच्चों एवं माँ-बाप के बीच पाई जाती है।”

“By family we mean system of a relationship existing between parents and children.

– T.H. Clare

परिवार की विशेषतायें

(Characteristics of Family)

परिवार की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम उसकी निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख कर सकते हैं

  1. यौन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति होना।
  2. पति-पत्नी और बच्चों का होना अथवा पति अथवा पत्नी और बच्चे का होना।
  3. वैवाहिक सम्बन्ध के द्वारा यौन सम्बन्धों का नियन्त्रण होना।
  4. वंशावली का होना चाहे मातृसत्तात्मक हो अथवा पितृसत्तात्मक।
  5. सामान्य निवास की व्यवस्था होना।
  6. बच्चों के लालन-पालन का प्रबन्ध होना।
  7. पारिवारिक सदस्यों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पारिवारिक सम्पत्ति का होना।
  8. परिवार एक सार्वभौमिक संगठन है।
  9. परिवार संस्था के रूप में अपेक्षाकृत स्थाई होता है किन्तु समिति के रूप में इसका स्वरूप अत्यन्त स्थाई है। पति या पत्नी की मृत्यु या तलाक की स्थिति में यह भंग हो जाता है।
  10. परिवार के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का उचित विभाजन होता है।
  11. परिवार संस्कृति के हस्तान्तरण में मुख्य है।
  12. परिवार समाजीकरण एवं सामाजिक नियंत्रण का मुख्य अभिकरण है।
  13. परिवार का आकार भिन्न-भिन्न समाजों में अलग-अलग होता है।
  14. परिवार सभी सामाजिक संगठनों का केन्द्र एवं गूल इकाई होता है। –

मजूमदार और मदान (Majumdar amd Madan) ने परिवार की चार आधारभूत विशेषताओं का उल्लेख किया है-

  1. विवाह के द्वारा यौनाचार को संस्थात्मक रूप देना।
  2. बच्चों के नामकरण द्वारा वंश का निर्धारण
  3. परिवार का आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करना।
  4. सदस्यों का संयुक्त निवास।

इसी प्रकार मैकाइबर और पेज (Maclver and Page) ने परिवार की निम्न आठ विशेषताओं का उल्लेख किया है-

  1. परिवार एक सार्वगामिक संस्था है।
  2. परिवार के सदस्य भावत्मक आधार पर आपस में जुड़े होते हैं।
  3. परिवार समाजीकरण की आधारभूत संस्था है।
  4. यह सबसे छोटा समूह है।
  5. परिवार के सदस्यों में आपसी उत्तरदायित्व की भावना होती है।
  6. परिवार सामाजिक जीवन की केन्द्रीय इकाई है।
  7. परिवार एक संस्था होते हुए भी एक परिवर्तनशील समिति भी है।
  8. परिवार का नवजात शिशु पर रचनात्मक प्रभाव है।

इसी आधार पर इन विद्वानों ने लिखा है, “परिवार एक सदा प्रवाही प्रक्रिया है। इसकी निविघ्न निरन्तरता एवं स्थायित्व पर ही समाज की निरन्तरता निर्भर करती है।”

मैकाइवर एवं पेज पुनः स्पष्ट करते हैं, “परिवार समाज का ही छोटा स्वरूप है।” (family is society in its miniature) ।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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