इनपुट डिवाइसेस (Input Devices)
इनपुट डिवाइसेस (Input Devices)
परिचय ( Introduction)
कम्प्यूटर में स्टोरेज अथवा प्रोसेसिंग के लिए डाटा, इन्फॉर्मेशन तथा इन्स्ट्रक्शंस को कुछ विशेष डिवाइसेस के माध्यम से एण्टर (enter) किया जाता है। इन डिवाइसेस को इनपुट डिवाइस कहते हैं। इनपुट डिवाइस (Input Devices) कम्प्यूटर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। हम जानते हैं कि कम्प्यूटर मानव की भाषा को नहीं जानता है; यह केवल मशीनी भाषा अथवा बाइनरी कोड में इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स के पैटर्न को पहचानता है। अत: किसी कम्प्यूटर-यूजर द्वारा दिए जाने वाले इन्स्ट्रक्शंस, डाटा तथा इंफॉर्मेशन को कंप्यूटर को दिए जाने से पहले उन्हें कंप्यूटर के समझने योग्य भाषा/पैटर्न में परिवर्तित करना आवश्यक है। यह कार्य इनपुट डिवाइस करते हैं। इस प्रकार हम इनपुट डिवाइस को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं-
“वे डिवाइसेस जो यूजर से प्राप्त डाटा तथा इन्स्ट्रक्शंस को कम्प्यूटर की भाषा में परिवर्तित करने का कार्य करती हैं, इनपुट डिवाइसेस कहलाती हैं तथा इनपुट डिवाइसेस द्वारा भाषा-रूपान्तरण की यह प्रक्रिया डिजिटलाइजेशन (digitalization) कहलाती है।“
वर्तमान समय में अनेक प्रकार के इनपुट डिवाइस उपलब्ध हैं जो विभिन्न कार्यों को भिन्न-भिन्न कार्यविधि द्वारा सम्पन्न करते हैं। इनपुट डिवाइसेस को मुख्यतया दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i) ऑनलाइन इनपुट डिवाइसेंस (Online input devices)
(ii) ऑफलाइन इनपुट डिवाइसेंस (Offline input devices)
(i) ऑनलाइन इनपुट डिवाइसेस वे ठपकरण हैं जो कम्प्यूटर से सीधे सम्पर्क में रहते हैं। ये डिवाइसेस कम्प्यूटर के साथ ऐक्टिव (active) होकर इनपुट का कार्य सम्पन्न करते हैं। की-बोर्ड, माउस आदि ऑनलाइन इनपुट डिवाइसेस के उदाहरण हैं।
(ii) ऑफलाइन इनपुट डिवाइसेस वे उपकरण हैं जो कम्प्यूटर से सीधे सम्पर्क में नहीं रहते हैं तथा स्वयं अपने कण्ट्रोल में कार्य करते हैं। जॉयस्टिक, लाइन पैन आदि ऑफलाइन इनपुट डिवाइसेस के उदाहरण हैं।
- यहां हम सामान्य उपयोग की कुछ प्रमुख इनपुट डिवाइसेस का अध्ययन करेंगे।
की-बोर्ड (Keyboard)
की-बोर्ड एक मुख्य इनपुट डिवाइस है। वर्तमान में भी की-बोर्ड इनपुट डिवाइस के रूप में प्राथमिक डिवाइस है जो डाटा फीडिंग करने में प्रयोग किया जाता है। एक स्टैण्डर्ड की-बोर्ड ‘टाइपराइटर’ से मिलता-जुलता होता है, परन्तु इसमें टाइपराइटर की तुलना में कुछ अतिरिक्त कीज (Keys) होती हैं। इसके द्वारा कम्प्यूटर को आवश्यक कमाण्ड्स (commands) दिए जाते हैं। इसके द्वारा ही लगभग सभी सूचनाएँ व निर्देश कम्प्यूटर मैं फीड किए जाते हैं। पर्सनल कम्प्यूटर के लिए की-बोर्ड को सीरियल अथवा यू०एस०बी० पोर्ट से जोड़ा जाता है।
सामान्यत: एक स्टैण्डर्ड की-बोर्ड (Keyboard) में 105 Keys होती हैं तथा प्रत्येक ‘की’ एक विशेष संकेत का ट्रान्समिशन (transmission) करती है।
की-बोर्ड की संरचना (Structure of Keyboard)
की-बोर्ड में कीज के ले-आउट को क्वेरटी (QWERTY) डिजाइन के नाम से जाना जाता है। इसे की-बोर्ड के ऊपरी बाएं कोने पर लगी 6 कीज Q, W, E, R, T, Y से लिया गया है। की-बोर्ड की समस्त कीज को मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है-
(i) फंक्शन कीज (Function Keys),
(ii) न्यूमेरिक कीज व न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keys & Numeric Key-pad),
(iii) ऐल्फाबेट कीज (Alphabet Keys),
(iv) स्पेशल फंक्शन कीज (Special Function Keys),
(v) लॉजिकल साइन कीज (Logical Sign Keys),
(vi) अर्थमैटिक कीज (Arithmetic Keys),
(vii) ऐरो कीज (Arrow Keys) तथा
(vii) कर्सर कण्ट्रोल कीज (Cursor Control Keys)।
- उपर्युक्त कीज और इनके द्वारा सम्पादित होने वाले कुछ कार्यों को संक्षेप में निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-
(1) फक्शन कीज (Function Keys)
फंक्शन कीज की-बोर्ड की प्रथम पंक्ति में स्थित होती हैं। ये बारह कीज होती हैं। इन पर F1 से लेकर F12 तक अंक अकित होते हैं। ये हमारे कार्य को सुविधापूर्वक हल करने में सहायता करती हैं। अलग अलग सॉफ्टवेयर के अनुसार इनसे विभिन्न कार्य लिए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए Turbo C कम्पाइलर सॉफ्टवेयर में C लैंग्वेज में बने प्रोग्राम को सेव (Save) करने हेतु F2 की का प्रयोग करते हैं।
(2) न्यूमेरिक कीज व न्यूमेरिक की-पैड (Numeric Keys & Numeric key-pad)
वे कीज जिन पर 0 से लेकर 9 तक अंकित होता है, न्यूमेरिक कीज कहलाती हैं। ये की-बोर्ड की दूसरी पंक्ति में आती हैं। इन न्यूमेरिक कीज के साथ कुछ अन्य स्पेशल कैरेक्टर्स (characters) भी छपे होते हैं। इन्हें विशेष चिह्न (Special character) कहते है और इनका प्रयोग ‘शिफ्ट की’ के साथ किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि हमें $चिह्न छापना है तो हम ‘शिफ्ट की’ (Shift Key) के साथ अंक 4 दबाएँगे।
की-बोर्ड के दाईं ओर न्यूमेरिक की-पैड होता है, जिसमें कैलकुलेटर जैसी कीज होती हैं। इनमें से कुछ कीज के दो कार्य भी होते हैं, जैसे 9 नम्बर वाली की पृष्ठ को ऊपर ले जाने के लिए भी प्रयोग की जाती है। दो कार्यों को करने वाली की को ‘Num Lock’ बटन द्वारा कंट्रोल किया जाता है। जब ‘Num Lock’ चालू (On) होता है तब ये सभी कीज ‘नंबर कीज’ की भाँति काम करती हैं। जब Num Lock बन्द (Off) होता है तो ये सभी ‘कर्सर कीज’ की भाँति काम करती हैं।
(3) ऐल्फाबेट कीज (AIphabet Keys )
A से लेकर 2 तक की सभी कीज को ऐल्फाबेट कीज कहते हैं। ये ‘नम्बर कीज’ के बाद आती हैं। इसमें कुल 26 अक्षर होते हैं।
(4) स्पेशल फंक्शन कीज (Special Function Keys)
की-बोर्ड में कुछ विशेष कीज भी होती हैं, जो निम्नांकित हैं-
(a) एस्केप की (Esc Key) – इस की के द्वारा ठीक पहले फीड की गई एण्ट्री या कमाण्ड को रद्द कर सकते हैं।
(b) टैब की (Tab Key) – यह की कर्सर को एक पंक्ति के साथ प्री-सेट पॉइण्ट (Pre-set point) अर्थात् पहले से निर्धारित जगह तक ले जाती है।
(c) कैप्स लॉक की (Caps Lock Key) – इस की का प्रयोग अक्षरों को कैपिटल में ही टाइप करने के लिए किया जाता है। कैरेक्टर को पुन: सामान्य रूप में टाइप करने के लिए इसे पुनः दबा देते हैं।
(d) शिफ्ट की (Shift Key) – इस की के प्रयोग से हम स्मॉल कैरेक्टर्स के साथ-साथ कैपिटल कैरेक्टर भी टाइप कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि कहीं भी ‘की’ में दो सिम्बल (symbol) या कैरेक्टर हैं, तो शिफ्ट की को दबाए रखकर, उस कैरेक्टर की को दबाने से ऊपर लिखा सिम्बल (symbol) टाइप हो जाता है; जैसे- &, $, @, ? आदि।
(e) डिलीट की (Del Key) – डिलीट की के दबाने से स्क्रीन से वह कैरेक्टर इरेज (Erase) हो जाता है जिस पर कर्सर है।
(f) बैकस्पेस की (Backspace Key) – बैकस्पेस की के दबाने से कर्सर एक कैरेक्टर पीछे चला जाता है तथा जिस कैरेक्टर पर कर्सर पहले था, वह डिलीट (delete) हो जाता है।
(g) प्रिण्ट स्क्रीन की (Print Screen Key) – इस की के साथ ‘शिफ्ट की को दबाने से स्क्रीन (Screen) पर प्रदर्शित सामग्री प्रिण्टर पर प्रिण्ट हो जाती है।
(h) एण्टर की (Enter Key) – एण्टर की का प्रयोग पंक्ति या पैराग्राफ का प्रारम्भ करने के लिए किया जाता है। एण्टर की के द्वारा किसी कार्य को करने के कमाण्ड (command) भी दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह विभिन्न प्रोग्राम्स में डाटा को फीड कराने के काम भी आती है। इसे सिम्बल ” के द्वारा दर्शाया जाता है।
(i) स्पेसबार की (Spacebar Key) – दो अक्षरों व शब्दों आदि के बीच रिक्त स्थान (empty space) देने के लिए स्पेसबार की का प्रयोग किया जाता है।
(J) ऑल्ट की व कण्ट्रोल की (Alt Key and Ctrl Key) – ये विशेष कीज होती हैं। अलग-अलग प्रोग्राम्स में ये कीज अलग-अलग कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए, फॉक्स-प्रो में Ctrl+W से फाइल को सेव (save) किया जाता है।
(k) इन्सर्ट की (Insert Key) – इसके द्वारा विशिष्ट पैकेज में डाटा की फीडिंग (feeding) की जाती है।
(l) पॉज की (Pause Key) – पॉज का अभिप्राय है-रुकना। यदि हम DOS प्रोग्राम में काम कर रहे हैं और हमने कोई कमाण्ड दी है, जिससे सूचनाएँ एक के बाद एक करके स्क्रीन पर आने लगें तो सूचनाओं के तीव्र गति से प्रदर्शित होने के कारण हम उन्हें सरलता से नहीं पढ़ सकते । पॉज की द्वारा हम इन सूचनाओं को पृष्ठानुसार रुकने का निर्देश दे सकते हैं। जब पुन: आगे की सूचना पढ़नी हो तो हम किसी भी अन्य की के साथ दबाकर इसी कार्य को कर सकते हैं।
(5) लॉजिकल साइन कीज (Logical Sign Keys)
सभी लॉजिकल साइन वाली कीज इस श्रेणी में आती हैं। इन कीज के विभिन्न कार्य होते हैं, जो विभिन्न प्रोग्राम्स में भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रयुक्त किए जाते हैं।
(6) अर्थमैटिक कीज (Arithmetic Keys)
अर्थमैटिक कार्य के लिए प्रयोग की जाने वाली कीज को ‘अर्थमैटिक कीज’ कहते हैं। इनके द्वारा जोड़, घटाना, गुणा, भाग, प्रतिशत आदि कार्य किए जाते हैं।
(7) ऐरो कीज (Arrow Keys)
ये कीज कर्सर को स्क्रीन पर बाएँ, दाएँ, ऊपर और नीचे लाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। इनसे कर्सर को एक अक्षर (character) की दूरी तक ले जाया जा सकता है।
(8) कर्सर कण्ट्रोल कीज (Cursor Control Keys)
ये विशेष प्रकार की कीज होती हैं, जो कर्सर की स्थिति पर नियन्त्रण करती हैं। ये Keys निम्नलिखित हैं-
(a) होम की (Home key) – इस की से कर्सर को किसी डॉक्यूमेण्ट या पंक्ति के आरम्भ में ले जाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(b) एण्ड की (End key) – इस की का प्रयोग कर्सर को डॉक्यूमेण्ट या पंक्ति के अन्त में ले जाने के लिए होता है।
(c) पेज आप की (page up key) – इस की का प्रयोग सामान्यतः पहले वाले पेज को मॉनिटर पर देखने और उस कार्य करने के लिए होता है।
(d) पेज-डाउन की (Page down key) – इस की का प्रयोग पेज को नीचे करने अथवा अगले पेज को मॉनीटर पर देखने और उस पर कार्य करने के लिए होता है।
माउस (Mouse)
1980 के दशक में कंप्यूटर के साथ, सामान्यतया प्राइमरी इनपुट डिवाइस के रूप में केवल ‘की-बोर्ड’ का प्रयोग किया जाता था इसके पश्चात् विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम तथा अन्य ग्राफिकल यूजर इण्टरफेस (जी०यू०आई०) युक्त सॉफ्टवेयर तथा ऑपरेटिंग सिस्टम के आगमन पर, एक पॉइण्टिंग डिवाइस (pointing device) प्रयोग किया जाने लगा जिसे माउस कहा गया। माउस एक ऑनलाइन इनपुट डिवाइस है जिसे एक समतल सतह पर रखकर, इधर-उधर घुमाने पर कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रदर्शित एक पॉइण्टर कण्ट्रोल होता है। यह पॉइण्टर एक तीर (Arrow) के समान दिखाई देता है जो स्क्रीन पर प्रदर्शित किसी ऑब्जेक्ट को इंगित (point) करने, उसे एक्सीक्यूट करने, मैन्यू के साथ कार्य करने, फाइलों को ऑपरेट करने, सामान्यतया सभी कार्य जो डाटा को स्क्रीन पर व्यवस्थित करने में सहायक हों (टाइप करने के अतिरिक्त) में किया जाता है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त माउस का प्रयोग ग्राफिक्स व डिजाइनिंग (Graphics and Designing) के कार्यों में भी होता है। ग्राफिक्स व डिजाइनिग मे जो कार्य हम की-बोर्ड के माध्यम से नहीं कर सकते, वह माउस द्वारा किया जा सकता है; जैसे-कोई आकृति बनाना आदि।
माउस एक तार द्वारा सी० पी० यू० (CPU) से जुड़ा होता है। माउस के आरम्भिक मॉडलों में नीचे एक रबड़ बॉल लगी होती है तथा ऊपर की ओर तीन बटन होते हैं। अधिकतर हम बाईं ओर के बटन का प्रयोग करते हैं। दाहिनी ओर के बटन के प्रयोग के लिए कुछ अतिरिक्त प्रावधान होते हैं, जिनका कभी-कभी प्रयोग किया जाता है।
माउस कर्सर एक तीर का निशान होता है। अलग अलग प्रोग्राम्स के अनुसार माउस का बटन दबा कर और उसे पैड पर चलाकर हम स्क्रीन पर प्रदर्शित परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।
माउस का आविष्कार सन् 1977 में स्टेनफोर्ड लैबोरेटरी के वैज्ञानिक डगलस सी० इन्जेलवर्ट ने किया था । पहले इसका नाम पॉइण्टिग डिवाइस रखा गया था। माउस निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
(i) मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
(ii) ऑप्टोमैकेनिकल माउस (Optomechanical Mouse)
(iii) ऑप्टिकल माउस (Optical Mouse)
(iv) कॉर्डलैस माउस (Cordless Mouse)
(1) मैकेनिकल माउस (Mechanical Mouse)
मैकेनिकल माउस में एक रबड़ बॉल (rubber ball) होता है जिसका कुछ भाग माउस की बाहरी बॉडी के नीचे निकला होता है। जब माउस को समतल सतह पर रखकर घुमाते हैं तो रबड़ बॉल, माउस की बॉडी के भीतर घूमता है। माउस के भीतर रबड़ बॉल के घूमने से भीतर लगे सेंसर कम्प्यूटर को संकेत भेजते हैं जिसमें बॉल के घूर्णन (rotation) की गति, दिशा तथा दूरी सम्मिलित होती है। इस डाटा के आधार पर कम्प्यूटर स्क्रीन पर पॉइण्टर की स्थिति निर्धारित करता है ।
(2) ऑप्टिकल माउस (Optical Mouse)
ऑप्टिकल माउस वर्तमान में प्रचलित एक नए प्रकार का नॉन-मैकेनिकल माउस (Non-mechanical mouse) है। इसमें प्रकाश का एक पुंज (beam) इसकी निचली सतह से उत्सर्जित होता है। इस प्रकाशीय पुंज के परावर्तन (reflection of Light beam) के आधार पर यह ऑब्जेक्ट (जिस पर प्रक्रिया करनी है) की दूरी, दिशा तथा गति तय करता हैं।
(3) ऑप्टोमैकेनिकल माउस (Optomechanical Mouse)
यह माउस मैकेनिकल माउस के समान होता है, अन्तर केवल इतना है कि यह बॉल के घूर्णन को ऑप्टिकल सेंसर्स की सहायता से समझता है।
(4) कॉर्डलैस माउस (Cordless Mouse)
कॉर्डलैस माउस रेडियो फ्रीक्वेंसी (radio frequency) पर कार्य करता है जिससे इसे कम्प्यूटर से कनेक्ट करने के लिए किसी तार की आवश्यकता नहीं होती है। यह माउस रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीक की सहायता से आपके कम्प्यूटर स्क्रीन पर स्थित पॉइण्टर को कण्ट्रोल करता है। ताररहित माउस में दो प्रमुख कम्पोनेण्ट्स-ट्रांसमीटर (transmitter) तथा रिसीवर (Receiver) होते हैं। ट्रांसमीटर माउस में लगा होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल के रूप में माउस की गति तथा इसके क्लिक किए जाने की सूचना भेजता है। रिसीवर, कम्प्यूटर से जुड़ा होता है तथा ट्रांसमीटर द्वारा भेजे गए सिग्नल्स को प्राप्त करता है, इन्हें डिकोड (decode) करता है तथा इसे माउस ड्राइवर सॉफ्टवेयर तथा ऑपरेटिंग सिस्टम को भेजता है। रिसीवर अलग से जोड़ा जाने वाला एक संयन्त्र भी हो सकता है तथा इसे बोर्ड के किसी स्लॉट में कार्ड के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। आजकल रिसीवर, कम्प्यूटर में इनबिल्ट (inbuilt) भी होता है।
जॉयस्टिक (Joystick)
जॉयस्टिक का प्रयोग कम्प्यूटर गेम खेलने में किया जाता है। जॉयस्टिक में एक ऊर्ध्वाधर (Vertical) लीवर लगा होता है। यह लीवर जॉयस्टिक के आधार (Base) से जुड़ा होता है। इसे स्टिक (Stick) भी कहते हैं। इसी स्टिक का प्रयोग करके हम स्क्रीन पर कर्सर को किसी भी दिशा में घुमा सकते हैं।
जॉयस्टिक के आधार में पोटेंशियोमीटर (Potentiometer) नामक यन्त्र लगाया जाता है, जो स्टिक के घूमने की मात्रा को स्टोर करता है तथा इसी मात्रा के आधार पर स्क्रीन कर्सर घूमता है। जॉयस्टिक के आधार में एक स्प्रिंग भी होती है जो स्टिक को सेण्ट्रल पोजीशन (Central Position) में लाती है।
स्कैनर (Scanner)
स्कैनर एक ऐसी इनपुट डिवाइस है जिसके द्वारा किसी चित्र या लिखित जानकारी को सीधा ही कम्प्यूटर में स्टोर किया जा सकता है। यह फोटोकॉपी मशीन के समान कार्य करती है। फोटोकॉपी मशीन पेपर पर फोटोकॉपी बनाती है, जबकि स्कैनर कम्प्यूटर की मैमोरी में चित्र अथवा लिखित जानकारी को स्टोर कर लेता है। स्कैनर द्वारा स्टोर डाटा मैमोरी में सामान्य से अधिक स्थान (Space) लेता है।
स्कैनर से डाटा रिसीव करने के लिए कम्प्यूटर में अतिरिक्त सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर की आवश्यकता होती है।
- प्रयोग के आधार पर स्कैनर्स निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-
फ्लैटबेड स्कैनर (Flatbed scanner) – यह एक समतल काँच की पृष्ठ का बना होता है। इस पृष्ठ पर स्कैन किया जाने वाला डॉक्यूमेण्ट रखा जाता है। इसमें डॉक्यूमेण्ट से सामग्री (content) कैप्चर (capture) करने के साथ-साथ सेंसर ऐरे (sensor array) तथा लाइट-सोर्स कॉच के पृष्ठ के नीचे गति करते हैं। डॉक्यूमेण्ट पर उपस्थित सामग्री की इमेज (image) बनकर कम्प्यूटर में इनपुट के रूप में ट्रांसफर हो जाती है। फ्लैटबेड स्कैनर्स विशेषकर सजिल्द (bound) डॉक्यूमेण्ट्स; जैसे पुस्तकों के लिए उपयोगी होते हैं।
शीट-फीड स्कैनर (Sheet-fed scanner) – इस स्कैनर में, स्कैन किए जाने वाले डॉक्यूमेण्ट को स्कैनर में दिए गए क्षैतिज अथवा उर्ध्व स्लॉट में फीड (fed) किया जाता है। यहाँ पेपर स्थिर स्कैनर हैड के सामने होकर जाता है। इस प्रकार के स्कैनर्स एकल पेज वाले डॉक्यूमेण्ट्स को स्कैन करने में प्रयोग किए जाते हैं।
हैण्डहेल्ड स्कैनर (Handheld scanner)- हैण्डहेल्ड स्कैनर एक छोटी मैनुअल स्कैनिंग डिवाइस होती है जो स्कैन किए जाने वाले ऑब्जेक्ट पर घुमाई जाती है।
फोटो स्कैनर (Photo scanner)– फोटो स्कैनर सामान्यतया फोटोग्राफ स्कैन करने में प्रयोग किए जाते हैं। फोटोग्राफ स्कैन करने में हाई-रिजोल्यूशन तथा कलर डेप्थ की आवश्यकता होती है तथा फोटो स्कैनर में यह क्षमता उपास्थित होती है।
फिल्म स्कैनर (Film seanner)- फिल्म स्कैनर, फोटोग्राफिक फिल्म को कम्प्यूटर में सीधे स्कैन करने में प्रयोग किया जाता है।
पोर्टेबल स्कैनर (portable scanner) – यह अत्यंत छोटा होने के कारण इधर उधर ले जाने में सुविधाजनक होते हैं। इस प्रकार के स्कैनर्स टैक्स्ट डॉक्यूमेण्ट की स्कैनिंग में उपयोगी होते हैं। इन्हें हाई-रिजोल्यूशन स्कैनिंग के कार्यों जैसे फोटोग्राफ स्कैनिंग में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
एम० आई० सी० आर० (Magnetic Ink Character Recognition)
इसके माध्यम से मुख्यत: बैंकों के चैक पर नीचे की ओर अंकित बैंक संख्या, जमाकर्त्ता का खाता संख्या तथा कुछ अन्य संकेत एक विशेष प्रकार की स्याही (Ink) द्वारा लिखे जाते हैं जिसमें चुम्बकित (Magnetized) हो सकने वाले पदार्थों के कण मिले होते हैं।
एम० आई० सी० आर० (MICR) के पढ़ने की गति लगभग 1,200 डॉक्यूमेण्ट प्रति मिनट होती है।
औ० सी० आर० (Optical Character Recognition)
औ० सी० आर० (OCR) का प्रयोग पेन्सिल या बॉलपेन्स से लिखे कैरेक्टर्स को पढ़ने में किया जाता है। ओ० सी० आर० सर्वप्रथम पढ़े जाने वाले प्रत्येक कैरेक्टर को अपने अन्दर पहले से स्टोर्ड कैरेक्टर्स से मिलाता है। यदि कैरेक्टर का मिलान हो जाता है तो कम्प्यूटर लिखे गए कैरेक्टर को जान जाता है। यदि कैरेक्टर का मिलान नहीं होता है तो इसे कम्प्यूटर द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। आ०सी०आर० में मुख्यतः दो प्रकार के फॉण्ट प्रयोग किए जाते हैं-OCR-A (अमेरिकन स्टैण्डर्ड) तथा OCR B (यूरोपियन स्टैण्डर्ड)। इनके पढ़ने की गति लगभग 2, 400 कैरेक्टर प्रति सेकण्ड होती है।
बार कोड रीडर (Bar Code Reader)
बार कोड रोडर वर्तमान में प्रचलित तथा महत्त्वपूर्ण इनपुट डिवाइसेस में से एक है। इसका प्रयोग किसी उत्पाद के पैकेट के ऊपर छपे हुए बार कोड को पढ़ने के लिए किया जाता है। बार कोड, उत्पाद की कीमत तथा उससे सम्बन्धित अन्य सूचनाओं को रिकॉर्ड रखता है। बार कोड रीडर मुख्यतया दो मॉडलों में आते हैं-
फ्लटबेड मौडल (flatbed model) – इसका प्रयोग बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर, शॉपिंग मौल आदि में किया जाता है।
हैण्डहेल्ड मॉडल (Handheld model) – इसका प्रयोग कोरियर, छोटे डिपार्टमेण्टल स्टोर्स आदि में किया जाता है।
कार्ड रीडर (Card Reader)
कार्ड रीडर का प्रयोग सामान्यतया स्मार्ट कार्ड (smart card) को पढ़ने में किया जाता है। इसे स्मार्ट कार्ड रीडर भी कहते हैं। स्मार्ट कार्ड क्रेडिट कार्ड तथा डेबिट कार्ड के आकार का एक डिवाइस है जिसमें एक इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी होती है। इसका प्रयोग अनेक कार्यो; जैसे-मैडिकल रिकॉर्ड रखना, डिजिटल फण्ड को ट्रैक तथा स्टोर करना, पहचान पत्रों को कण्ट्रोल करना; में किया जाता है। आधुनिक होटलों में स्मार्ट कार्ड का प्रयोग सामान्य रूप से कमरे की ‘की’ (key) के रूप में किया जाता है।
कार्ड रीडर, कार्ड के भीतर स्टोर सूचनाओं को पढ़ता है। कार्ड रीडर की सहायता से ऑनलाइन शॉपिंग अधिक सुविधाजनक एवं सुरक्षित ढंग से की जा सकती है ।
वेब कैमरा (Web Camera)
वेब कैमरा एक इनपुट डिवाइस है जिसके प्रयोग से हम स्टिल (Still) फोटो अथवा वीडियो (Video) को कम्प्यूटर में स्टोर कर सकते हैं तथा उन्हें विभिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्त कर सकते हैं। आजकल इण्टरनेट का प्रयोग बढ़ रहा है, वेब कैमरे के प्रयोग से आप इण्टरनेट द्वारा प्रदत्त वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का लाभ उठा सकते हैं। दूर बैठे व्यक्ति से इस प्रकार बात कर सकते हैं जैसे कि वह आपके सामने बैठा है।
वेब कैमरे को कम्प्यूटर के यू० एस० बी० (USB) पोर्ट में लगाते हैं। कम्प्यूटर के साथ इन्स्टॉल होने के पश्चात् यह एक वीडियो कैमरे के समान कार्य कर सकता है।
माइक्रोफोन (Microphone)
माइक्रोफोन एक ऐसी डिवाइस है जिसके द्वारा ध्वनि-ऊर्जा (sound energy) को इलेक्ट्रिकल ऊर्जा (electrical energv) में परिवर्तित किया जाता है। इसका उपयोग रेडियो ब्रॉडकास्टिंग, रिकॉर्डिंग तथा साउण्ड ऐम्पलीफाइंग सिस्टम्स में किया जाता है। यह निम्नलिखित प्रकार कार्य करता है-
ध्वनि तरंगे (sound waves) माइक्रोफोन के भीतर डायाफ्राम (diaphragm) के आगे-पीछे गति उत्पन्न करती हैं।
डायाफ्राम की गति इलेक्ट्रिक आउटपुट में परिवर्तन उत्पन्न करती है।
लाइट पैन (Light Pen)
लाइट पैन, एक पैन-आकार की प्रकाश-संवेदी (hight-sensitive) डिवाइस होती है तो कम्प्यूटर स्क्रीन पर सीधे टच (touch) करके प्रदर्शित सूचनाओं को एक्सेस (access) कर सकती है।
महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय संविधान की विशेषताएँ
- जेट प्रवाह (Jet Streams)
- चट्टानों के प्रकार
- भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ (SALIENT FEATURES)
- Indian Citizenship
- अभिभावक शिक्षक संघ (PTA meeting in hindi)
- कम्प्यूटर का इतिहास (History of Computer)
- कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ (Generations of Computer)
- कम्प्यूटर्स के प्रकार (Types of Computers )
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com