अर्थशास्त्र / Economics

जेवन्स के आर्थिक विचार | सीमान्तवादी सम्प्रदाय में जेवन्स के आर्थिक विचार | विलियम स्टैनले जेवन्स के प्रमुख सीमान्तवादी आर्थिक विचारों का वर्णन

जेवन्स के आर्थिक विचार | सीमान्तवादी सम्प्रदाय में जेवन्स के आर्थिक विचार | विलियम स्टैनले जेवन्स के प्रमुख सीमान्तवादी आर्थिक विचारों का वर्णन

जेवन्स के आर्थिक विचार

सुप्रसिद्ध अंग्रेज अर्थशास्त्री विलियम स्टैनले जेवन्स को सीमान्त विश्लेषण के विकास के क्षेत्र के अतिरिक्त अर्थशास्त्र विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी अपने अनेक योगदानों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक Theory of Political Economy जो 1871 ई० में प्रकाशित हुई थी जॉन स्टवार्ट मिल को 1848 ई० में प्रकाशित पुस्तक Principles of Political Economy तथा  अल्फ्रेड मार्शल की 1890 ई० में प्रकाशित पुस्तक Principles of Economics के मध्य प्रकाशित एक महत्त्वपूर्ण प्रथम श्रेणी का लेखनकार्य था।

जेवन्स ने अर्थशास्त्र के अध्ययन को एक नया रूप प्रदान किया था। राष्ट्रों के धन को वे संसार में दरिद्रता को समाप्त करके मानव सुख का साधन बनाना चाहते थे। उन्होंने उत्पादन तथा वितरण की अपेक्षाकृत अपने अर्थशास्त्र में उपभोग को प्रधानता दी थी। इस सम्बन्ध में उनकी पुस्तक Theory of Political Economy fHci4h Principles of Political Economy जिसमें उपभोग की व्याख्या नहीं की गई थी, से भिन्न थी।

आर्थिक विचार

  1. उपयोगिता तथा आवश्यकता की तुष्टि विचार

जेवन्स के, अर्थशास्त्र में मानव आवश्यकताओं तथा उनकी तुष्टि को बहुत महत्त्व दिया गया है। अर्थशास्त्र में आवश्यकताओं के महत्त्व के सम्बन्ध में जेवन्स ने लिखा है कि “सम्पूर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र में मानव आवश्यकताओं को विभिन्नता का नियम सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि प्रत्येक आवश्यकता की तुष्टि हो सकती है परन्तु आवश्यकताएँ अनन्त हैं। एक आवश्यकता की तुष्टि अन्य आवश्यकताओं की जननी होती है। आवश्यकताओं में एक प्रकार का उत्तराधिकार नियम (law of succession) लागू होता है जिसके अन्तर्गत विभिन्न आवश्यकताओं को उनकी तीव्रता के अनुसार व्यवस्थित क्रम में रखा जा सकता है।”

जेवन्स ने ‘उपयोगिता’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी वस्तु की उपयोगिता उस वस्तु का वह अमूर्त गुण है जिसके द्वारा यह हमारी आवश्यकता की तुष्टि करती है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि किसी वस्तु की उपयोगिता उस वस्तु की उपभोक्ता को सुख प्रदान करने अथवा दुःख को रोकने का गुण होता है। सुख-दुःख राजनीतिक अर्थशास्त्र के कलन के अन्तिम लक्ष्य है। प्रत्येक व्यक्ति न्यूनतम कार्य अथवा कष्ट के द्वारा अधिकतम सन्तोष को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। दूसरे शब्दों में सुख अथवा सन्तोष को अधिकतम करना अर्थशास्त्र की केन्द्रीय समस्या है।

जेवस के विचारानुसार उपयोगिता वस्तु में निहित नहीं होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की आवश्यकता की तुष्टि करने से होता है। वस्तु की मात्रा में वृद्धि होने पर उसकी सीमान्त उपयोगिता कम हो जाती है तथा वस्तु की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि होने पर उपयोगिता के स्थान पर अनुपयोगिता उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता में अन्तर है। क्रमानुसार इकाइयों की उपयोगिता घटती जाती है परन्तु कुल उपयोगिता में वृद्धि होती है यद्यपि यह वृद्धि घटती हुई दर से होती है।

उपयोगिता को अन्तिम मात्रा (Final degree of utility) वस्तु की अन्तिम इकाई की उपयोगिता होती है। यह सीमान्त उपयोगिता का विचार है। गौसन के समान जेवन्स के विचारानुसार भी उपयोग विभिन्न वस्तुओं की अन्तिम अथवा सीमान्त उपयोगिताओं में समानता की प्रवृत्ति होती है। जेवन्स के अनुसार वस्तु की कुल उपयोगिता तथा वस्तु की सीमान्त इकाई की उपयोगिता-सीमान्त उपयोगिता-मापनीय थी।

  1. मूल्य निर्धारण का सिद्धान्त

जेवन्स के विचारानुसार किसी वस्तु का मूल्य पूर्णतया उसकी उपयोगिता के द्वारा निर्धारित होता है। इस सम्बन्ध में जेवन्स ने सुन्दर शब्दों में अपनी पुस्तक The Theory of Political Economy में लिखा है कि “बार-बार सोचने तथा छानबीन करने के पश्चात् मैं इस नवीन निर्णय को प्राप्त हुआ हूँ कि मूल्य पूर्णतया उपयोगिता पर निर्भर होता है। प्रचलित विचारधारा के अनुसार श्रम लागत वस्तु के मूल्य का कारण है तथा कुछ अर्थशास्त्रियों के विचारानुसार । श्रम लागत वस्तु के मूल्य का एकमात्र कारण है…….श्रम लागत मूल्य को केवल अप्रत्यक्ष रूप में वस्तु की पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी करके वस्तु की उपयोगिता में परिवर्तनों के द्वारा निर्धारित करती है।

जेवन्स के विचारानुसार वस्तु की सीमान्त उपयोगिता वस्तु के मूल्य का कारण धी। श्रम लागत  जो रिकार्डो तथा अन्य अर्थशास्त्र संस्थापकों द्वारा प्रतिपादित मूल्य निर्धारण सिद्धान्त का केन्द्र-बिन्दु था, जेवन्स के विचारानुसार मूल्य का निर्धारण नहीं करती है यद्यपि यह अप्रत्यक्ष रूप से वस्तु की पूर्ति में परिवर्तनों के द्वारा वस्तु की सीमान्त उपयोगिता में परिवर्तन करके वस्तु के मूल्य पर प्रभाव डाल सकती है। इस सम्बन्ध में जेवन्स ने वस्तु के मूल्य पर वस्तु की उत्पादन लागत के पड़ने वाले प्रभाव को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया है।

उत्पादन लागत पूर्ति को निर्धारित करती है।

परन्तु वस्तु के मूल्य पर यम लागत का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने की सम्भावना होते हुए भी जेवल्स के विचारानुसार बम का मूल्य (मजदूरी) स्वर्य वस्तु के मूल्य के द्वारा निर्धारित होता है, वस्तु का मूल्य प्रम के मूल्य के द्वारा निर्धारित नहीं होता है। जेवन्स ने रिकार्डों के इस विचार की कड़ी आलोचना की थी कि श्रम लागत पूर्ति की शक्ति के द्वारा वस्तु के मूल्य को निर्धारित करती है। मूल्य- निर्धारण का रिकार्डोवादी श्रम उत्पादन लागत सिद्धान्त गलत था। इसी प्रकार जेवन्स ने मजदूरी निर्धारण के रिकार्डोवादी मजदूरी कोष सिद्धान्त को भी गलत घोषित किया था। जेवन्स का कहना था कि “यदि हम अर्थशास्त्र के वास्तविक तथा व्यावहारिक जीवन की समस्याओं से साम्बन्धित विज्ञान बनाना चाहते हैं तो हमारे लिए अर्थशास्त्र को सदा के लिए रिकार्डोवादी सम्प्रदाय की गलत मान्यताओं तथा अन्य मूर्खताओं से मुक्त करना अनिवार्य है।” रिकार्डी, जो मूल्य निर्धारण के श्रम लागत सिद्धान्त के कट्टर समर्थक थे के सम्बन्ध में लिखते हुए जेवन्स ने लिखा था कि रिकार्डो एक ऐसे योग्य परन्तु पागल व्यक्ति थे जिन्होंने अर्थशास्त्र विज्ञान को गलत दिशा में मोड़ दिया था। मूल्य निर्धारण के श्रम लागत सिद्धान्त की आलोचना करते हुए जेवन्स ने लिखा है कि श्रम लागत वस्तु के मूल्य का कभी नियामक नहीं हो सकती है क्योंकि इसका स्वयं असम्मान मूल्य होता है। श्रमिक गुण तथा कार्यक्षमता में अत्यधिक भिन्न होता है।

जेवन्स के मूल्य निर्धारण सिद्धान्त का केन्द्रीय विचार यह है कि किसी वस्तु का मूल्य उस वस्तु की सीमान्त उपयोगिता के द्वारा निर्धारित होता है। यदि किसी वस्तु की पूर्ति कम होती है तो उस वस्तु के दुर्लभ होने के कारण उसकी उपभोग की जाने वाली अन्तिम इकाई की उपयोगिता अधिक होगी तथा इस कारण उस वस्तु का मूल्य अधिक होगा। इसके विपरीत यदि वस्तु की अत्यधिक मात्रा उपलब्ध है (जेवन्स के मतानुसार दुर्लभ अथवा अत्यधिक सापेक्ष विचार हैं। इनका सम्बन्ध सदा आवश्यकता अथवा माँग से होता है। ये विचार वस्तु की निरपेक्ष मात्रा को सम्बोधित नहीं करते हैं क्योंकि कोई वस्तु निरपेक्ष रूप में अधिक मात्रा में होते हुए भी दुर्लभ हो सकती है यदि उसकी माँग की अपेक्षाकृत इसकी निरपेक्ष मात्रा कम है। इसके विपरीत निरपेक्ष रूप में कम मात्रा में होते हुए भी वस्तु की मात्रा अत्यधिक हो सकती है यदि वस्तु की माँग बहुत कम है) तो अन्तिम इकाई की उपयोगिता कम होने के कारण इसका मूल्य कम होगा। इस प्रकार किसी दी हुई पूर्ति स्थिति में वस्तु का मूल्य उसकी मांग के अनुसार निर्धारित होता है।

प्रत्येक वस्तु का मूल्य उस वस्तु के सीमान्त उपयोगिता के द्वारा निर्धारित होने के कारण किन्हीं दो वस्तुओं के मध्य विनिमय अनुपात उन दोनों वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिता अनुपात का उल्टा होता है। इस विचार को जेवन्स ने गणितीय समीकरण के रूप में व्यक्त किया है। इस विचार को एक उदाहरण के द्वारा इस प्रकार समझाया जा सकता है। जेवन्स के विचारानुसार यदि दो व्यक्ति अ तथा ब आपस में दूध तथा चीनी का विनिमय करते हैं तो दूध तथा चीनी के मूल्य विनिमय मूल्य अथवा विभिन्न अनुपात निम्नलिखित आधार पर होगा।

(अ की दूध की सीमान्त उपयोगिता) × (विनिमय के पश्चात्  दूध की मात्रा)/(अ को चीनी की सीमान्त उपयोगिता) X (चीनी की विनिमय की गई मात्रा) = चीनी की विनिमय मात्रा/ दूध की विनिमय मात्रा =

(ब को दूध की सीमान्त उपयोगिता) X (विनिमय किये गये दूध की मात्रा)/(ब को चीनी की सीमान्त उपयोगिता) x (विनिमय के पश्चात् चीनी की मात्रा)

जेवन्स के मतानुसार सम्पूर्ण विनिमय सिद्धान्त का यह सार है कि विनिमय अनुपात दो वस्तुओं के मध्य विनिमय के पश्चात् उपभोग के लिए उपलब्ध मात्राओं की सीमान्त उपयोगिता अनुपात का उल्टा होगा। यदि दूध तथा चीनी की कुल मात्राओं को M तथा S के द्वारा, इन दोनों वस्तुओं की विनिमय की गई मात्राओं को X तथा Y के द्वारा तथा A तथा B व्यक्तियों के लिए इन दोनों वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिताओं को FA, GA, FB, तथा GB के द्वारा व्यक्त किया जाये तो विनिमय सन्तुलन को निम्नलिखित समीकरण के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

FB(M-X)/GA(Y) = Y/X =  FB(X)/GB(S-Y)

जेवेन्स ने कार्य करने में अनुभव होने वाले दुःख तथा कार्य करने के कारण प्राप्त हुई आय द्वारा प्राप्त होने वाले सुख के मध्य सन्तुलन को चित्र द्वारा समझाया है। इस चित्र में X-अक्ष पर कार्य करने के दिनों को व्यक्त किया गया है। Y-अक्ष पर 0 के बिन्दु के ऊपर सुख तथा 0 बिन्दु के नीचे दुःख ख को व्यक्त किया गया है। यद्यपि कार्य करने के दिन के आरम्भ में श्रमिक को कार्य करने में साधारणतः दु:ख का अनुभव होता है परन्तु कुछ घण्टे पश्चात् कार्य का अभ्यास हो जाने पर उसे सुख का अनुभव होता है। B तथा C बिन्दुओं के मध्य श्रमिक को सुख का अनुभव होता है। B तथा C बिन्दुओं पर श्रमिक को कार्य करने से सुख अथवा दुख किसी का भी अनुभव नहीं होता है। C बिन्दु के पश्चात् अधिक घण्टे कार्य करने से श्रमिक को दुख का अनुभव होता है। श्रमिक की आय की सीमान्त उपयोगिता अथवा सुख की मात्रा PP रेखा द्वारा व्यक्त की गई है। इस रेखा का ऋणात्मक ढाल हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम पर आधारित है। M बिन्दु पर सुख की मात्रा QM तथा दुख की मात्रा DM में परस्पर समानता है। अन्य शब्दों में M बिन्दु पर आयु के द्वारा प्राप्त सीमान्त सुख की मात्रा कार्य करने के द्वारा अनुभव किये गये सीमान्त दुख को मात्रा के समान है। इस प्रकार श्रमिक OM घण्टे प्रतिदिन कार्य करेगा क्योंकि ऐसा करने से उसे अधिकतम सुख की प्राप्ति होती है।

  1. प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र की आलोचना

जेवन्स द्वारा प्रतिपादित हास्यमान सीमांत उपयोगिता नियम ने प्रसिद्ध स्मिथ वादी पानी- हीरा विरोधाभास का समाधान किया था। एप पिचका पर विश्वास था कि पातु की उपयोगिता का इसके विनिमय मूल्य से कम अथवा अधिक होने से कोई संबंध नहीं था क्योंकि हीरो की तुलना में बहुत अधिक उपयोगी होते हुए भी पानी का मूल्य हीरो की तुलना में बहुत कम था। हास्यमान सीमांत उपयोगिता नियम एवं स्पष्ट करता है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यद्यपि पानी की कुल उपयोगिता हीरो की कुल उपयोगिता से अधिक परंतु हीरो की सीमांत मात्रा के सीमांत उपयोगिता पानी की कम सीमित अथवा प्रचुर मात्रा की सीमांत उपयोगिता से बहुत अधिक है।

मुद्रा की हास्यमान सीमांत उपयोगिता के आधार पर जेवंस ने यह व्यक्त किया था कि जुए से कोई लाभ कहाँ है परन्तु बोणे लाभ है। पार पातो हुए किसी को जुए से स्वयं कोई आनन्द पाप्त नहीं होता है तथा पर केवल जीतो को दलित को जुआ खेलता पदा को उस मात्रा को उपयोगिता को हम हार सकते है, सभा को समान मात्रा को उपयोगिता की तुलना में जिसे हम जीत सकते है अधिक होती है। परना चोरी के मामले में बीमा पोधियम के रूप में भुगतान की गई मुद्राराशि को थोड़ी मात्रा को उपयोगिता गुदा को उस पनी मारा जिसे हम भीमा नहीं कराने की स्थिति में खो सकते है कि उपयोगिता को तुलना में बहुत कम होती है।

4. अन्य विचार

अर्थशास्त्री होने के अतिरिक्त विलियमस्टेलेजेवन्स अपने समय की सामाजिक समस्याओं में भी रुचि रखते हैं। निःशुल्क सार्वजनिक अजायबघरों, पुस्तकालयों तथा शिक्षा के पक्ष में थे। वे कानून के द्वारा शिशु सम पर भी पतिबध लगाने के पक्ष में थे। जेवस व्यापार चक के सूर्य चिन्ह सिद्धांत के प्रतिपादक थे।

मूल्यांकन

अन्त में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जेवस हासमान सीमान्त उपयोगिता तथा सम- सीमान्त उपयोगिता नियमों का प्रतिपादन करके आर्थिक विचारों के इतिहास में एक विशेष मूल योगदान दिया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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