अर्थशास्त्र / Economics

मुद्रा का योगदान | पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान | समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान

मुद्रा का योगदान | पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान | समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान | समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान | पूँजीवादी, समाजवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान | अर्थव्यवस्था के प्रकार

मुद्रा का योगदान

यों तो विश्व में तीन प्रकार की अर्थव्यवस्थायें हैं जिन्हें पूँजीवाद, समाजवाद एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में समझा जाता है, उक्त तीनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा का क्या योगदान है, इस तथ्य पर प्रकाश डालें तो निम्न रूप से मुद्रा का महत्त्व परिलक्षित होता है।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान

(Role of Money in Capitalist Economy)- 

प्रो. चैण्डलर ने पूँजीवादी समाज में मुद्रा के महत्व को विनिमय में अप्रत्याशित वृद्धि एवं अधिकाधिक मुद्रा प्राप्ति की इच्छा के रूप में वर्णित किया है। यह सत्य है कि पूँजीवाद की आधारशिला मुद्रा है, अत; जहाँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादक क्रियाओं का पोषण मुद्रा द्वारा सम्भव है वही विशिष्टीकरण प्राप्त करने के लिए पूँजी की मूलभूत आवश्यकता होती है, जो मुद्रा के द्वारा ही सम्भव है अतः पूँजी एवं मुद्रा में घनिष्ठ सम्बन्ध ही नहीं बल्कि पर्याय हैं, इसलिए पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में धन का संग्रह मुद्रा के माध्यम से होता है। आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण व्यापार क्रियायें तीव्र करना। बाजार का विकसित स्वरूप, उत्पादन वृद्धि, परिवहन विकास, बैंकिंग विकास आदि की रीढ़ में मुद्रा ही होती है। इतना ही नहीं, उपभोग क्रिया कलापों के सरल वितरण को प्रभावी बनाने में मुद्रा ही योगदान करती है।

यदि मुद्रा के जन्म एंव विकास की मात्रा पर ध्यान दें तो पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाएँ मुद्रा के बल पर ही पोषित हुई हैं क्योंकि स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था (Free Economy) के क्रया-विक्रय उपभोग, उत्पादन, विनिमय आदि की स्वतन्त्रता की आधारशिला मुद्रा होती है। अतः पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा जीवन दायिनी है, बगैर मुद्रा के पूँजीवादी व्यवस्था घोषित नहीं हो सकती है ही बचत, विनियोग, वेतन आदि का आधार होती है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान

(Role of Money in socialist Economy)- 

समाजवादी अर्थव्यवस्था मे मुद्रा का योगदान सीमित समझा जाता है, क्योंकि समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का विरोध किया गया। मुद्रा के प्रारम्भिक समय में तत्कालीन पादरियों एवं धार्मिक लोगों ने सभी बुराइयों की जड़ मुद्रा को बताया। यहूदियों ने तो कम ब्याज पर उधार देना भी प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन यह विरोध अधिक दिनों चल न सका।

दूसरी ओर समाजवादी विचारकों में कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने मुद्रा को शोषण का हथियार बनाया। मार्क्स का कहना था कि मुद्रा अतिरिक्त मूल्य सिद्धान्त (Theroy of Surplus Value) के माध्यम से शोषण का एक रूप है, इसलिए मुद्रा द्वारा विनिमय कार्य नहीं होने चाहिए अर्थात सम्पूर्ण व्यापार एवं लेन-देन वस्तुओं के माध्यम से किए जाने चाहिए। अतः समय आने पर मुद्रा को समाप्त करना ही बेहतर होगा। परिणामस्वरूप रोबर्ट ओविन ने इंग्लैण्ड में कारखानों के मजदूरों को कूपन द्वारा मजदूरी देने की प्रथा प्रारम्भ कर दी, जिन कूपनों से कारखाने का सामान सस्ती कीमत पर दिया जाने लगा, लेकिन यह व्यवस्था अधिक दिनों तक टिक न सकी।

तीसरे चक्र में समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं में विशेषकर रूस (Russia) की क्रान्ति के बाद कुछ समय तक मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था चलाई गई, लेकिन 1917 में रूस की सत्ता वोशेल्विक दल के हाथों में आने पर सरकारी व्ययों को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। 1912 में ट्रारस्की ने समाजवादी अर्थव्यवस्था की आर्थिक योजनाओं के सफल संचालन हेतु मुद्रा की सुदृढ़ व्यवस्था लागू कर दिया, क्योंकि मुद्राविहीन देश में अनेक समाजवादी संकटों के बादल मंडरा रहे थे, फलतः समाजवादी देश रूस में भी बैंकिंग संस्थाओं का विकास हुआ और आज समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्रा का विशेष योगदान दिखाई देता है। अतः समाजवाद में भी मुद्रा एक आवश्यक अंग है क्योंकि इसे मिटाने से भुगतान में कठिनाई, भ्रष्टाचार का भय, पूँजी निर्माण विदेशी व्यापार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान पूँजीवादी देशों के समान हो गया है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था में मुद्रा का योगदान

(Role of Money in mixed Economy)-

यदि मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा के योगदान पर ध्यान दें तो कह सकते हैं कि मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवादी अर्थव्यवस्था एंव पूँजीवादी अर्थव्यवस्था दोनों के दर्शन होते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन के द्वारा योजनाबद्ध आर्थिक विकास पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से होते हैं, इनमें मुद्रा का प्रयोग एवं विनियोग हेतु पूँजी का माध्यम एवं सशक्त आधार मुद्रा होती है। इसके दूसरी और निजी क्षेत्र की ओद्यौगिक क्रियायें, कृषि उत्पादन, खनिज उत्पादन, सेवाएँ आदि में मुद्रा का विशेष स्थान होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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