अर्थशास्त्र / Economics

उत्तर प्रदेश में कृषि पैदावार सम्बन्धी विषमताएं | उत्तर प्रदेश में कृषि एवं सहयोगी क्षेत्र की क्षेत्रवार स्थिति | उद्योग सम्बन्धी विषमताएँ | औद्योगिक विषमताएं

उत्तर प्रदेश में कृषि पैदावार सम्बन्धी विषमताएं | उत्तर प्रदेश में कृषि एवं सहयोगी क्षेत्र की क्षेत्रवार स्थिति | उद्योग सम्बन्धी विषमताएँ | औद्योगिक विषमताएं | Agricultural production inequalities in Uttar Pradesh in Hindi | Area wise status of agriculture and allied sector in Uttar Pradesh in Hindi | Industry Disparities in Hindi | industrial disparities in Hindi

उत्तर प्रदेश में कृषि पैदावार सम्बन्धी विषमताएं

उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है यहाँ की जनसंख्या की कृषि पर निर्भरता राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। प्रदेश में उपलब्ध भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। निम्न तालिका को देखने से पता चलता है कि उत्तर- प्रदेश की तीन चौथाई कृषि भूमि सीमान्त आकार की श्रेणी में आती है यदि क्षेत्रवार आँकड़ों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि सर्वाधिक सीमान्त जोतें राज्य के पूर्वी क्षेत्र में हैं। पश्चिमी क्षेत्र में वह न्यूनतम है।

तालिका: उत्तर प्रदेश में कृषि एवं सहयोगी क्षेत्र की क्षेत्रवार स्थिति

कृषि एंव सहयोगी क्षेत्र

पूर्वी

पश्चिमी

केन्द्रीय

बुन्देलखण्ड

उ.प्र.

भारत

1. 1.0 हेक्टेअर से कम की कृषि भूमि का प्रतिशत (1995-96)

83:0

68.8

76.6

70.3

75.4

61.6

2. एक हेक्टेअर से कम भूमि का औसत आकार (1995-96)

0.4

0.4

0.4

0.5

0.4

0.4

3. प्रति हेक्टेअर फसल क्षेत्रफल पर उर्वरकों का वितरण (किग्रा.) (2003-04)

132.8

154.4

122.8

39.0

129.5

89.8

4. प्रति हेक्टेअर सकल फसल क्षेत्र में कृषि उत्पादन का सकल मूल्य (स्थिर कीमत पर, आधार 2003-04)रु.

12757

15939

13556

10676

13898

12856

(2001-02)

5. प्रति व्यक्ति शुद्ध फसल क्षेत्रफल (हेक्टेअर) (2003-04)

0.08

0.09

0.10

0.24

0.10

0.14

(2001-02)

6. मुख्य फसलों की उत्पादकता (कुन्तुल/हेक्टेअर) (2003-04)

           

अ. कुल खाद्यात्र

ब. गेहूं

स. चावल

द. आलू

य. तिलहन

र. गन्ना

21.5

24.8

22.2

177.4

6.6

467.4

25.7

31.9

22.3

229.4

11.1

607.5

22.0

27.7

21.0

172.6

6.7

482.7

13.0

22.7

11.4

209.2

5.1

441.7

21.9

279

21.8

209.2

8.4

557.2

17.3

27.1

20.2

181.1

10.7

589.9

7. प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन (किग्रा.)(2003-04)

237.5

260.04

247.2

359.6

253.7

199.0

स्रोतः Uttar Pradesh Eleventh and Annual Plan 2007-2008. Volume I (Part II)

यदि कृषि उत्पादन का मूल्यांकन करें तो ज्ञात होता है कि कृषि उत्पादकता के मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश सबसे अग्रणी है तथा आलू को छोड़कर अन्य सभी फसलों में बुन्देलखण्ड सबसे पीछे है यही नहीं बुन्देलखण्ड तथा पश्चिमी क्षेत्र के बीच उत्पादकता में अन्तर 50 प्रतिशत न्यूनतम है तथा अधिकतम यह 100 प्रतिशत से भी अधिक है। चावल को छोड़कर अन्य फसलों के सम्बन्ध में पूर्वी क्षेत्र भी काफी पीछे है जबकि पूर्वी क्षेत्र राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है और यहाँ जल संसाधन भी व्यापक स्तर पर पाये जाते हैं फिर भी यहाँ कृषि का पिछड़ापन दिखाई देता है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता सम्बन्धी अन्तर के कई कारणों हो सकते हैं जिनमें प्रमुख हैं- कृषि का आधुनिकीकरण तथा तकनीकी विकास। बुन्देलखण्ड में फसल सघनता (जिसे निर्धारित करने वाले प्रमुख तत्व हैं सिंचाई तथा उर्वरक) न्यूनतम हैं और सबसे अधिक पश्चिमी क्षेत्र में हैं। इसका अभिप्राय है कि पश्चिमी क्षेत्र में सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र को सिंचाई सुविधा का लाभ प्राप्त है जबकि बुन्देलखण्ड में मात्र आधे कृषि क्षेत्र को बावजूद तीन चौथाई से भी कम कृषि क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो पा रही है। सिंचाई सुविधा में अन्तर का स्पष्ट प्रभाव उर्वरकों के प्रयोगों पर पड़ता है क्योंकि बिना सिंचाई के उर्वरकों का प्रयोग सम्भव नहीं हो पाता है। पश्चिमी क्षेत्रों में प्रति हेक्टेअर कृषि क्षेत्र पर उर्वरकों का प्रयोग सबसे अधिक हो रहा है इसके पश्चात् पूर्वी क्षेत्र में उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है और बुन्देलखण्ड में उर्वरकों का प्रयोग बहुत ही कम है। निम्न उत्पादकता कृषि आधुनिकीकरण के निम्न स्तर के कारण पूर्वी क्षेत्र तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र कृषि में उन्नति नहीं कर पा रहे हैं।

उत्तर-प्रदेश में कृषि में व्याप्त अन्तक्षेत्रीय विषमताएँ कम नहीं हो पा रही हैं तथापि यह बात सही है कि सभी क्षेत्रों में कुछ न कुछ विकास हो रहा है किन्तु इसकी रफ्तार कम है जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था को शिथिल कर रही है और यह अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ती जा रही है।

उद्योग सम्बन्धी विषमताएँ या औद्योगिक विषमताएं-

एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए गैर कृषि क्षेत्र का विकास अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है इसके विकास से न केवल इसी क्षेत्र का विकास होता है बल्कि यह कृषि समेत समस्त अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास को प्रोत्साहित भी करता है किन्तु उत्तर प्रदेश में गैर कृषि क्षेत्र, विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्र का विकास सन्तोषजनक गति से नहीं हो पा रहा है और इसी कारण से प्रदेश की आर्थिक विकास दर भी निम्न स्तर पर है यदि प्रति व्यक्ति औद्योगिक उत्पादन के सकल मूल्य का क्षेत्रवार विश्लेषण करें तो पता चलता है कि प्रदेश के सभी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास थोड़ा बहुत अवश्य हो रहा है किन्तु जब इसका विश्लेषण प्रदेश के चारों क्षेत्रों के बीच करते हैं तो इनके बीच अन्तर व्याप्त है। वर्ष 2002-03 में पश्चिमी क्षेत्र में सर्वाधिक उत्पादन था जहाँ प्रति व्यक्ति औद्योगिक उत्पादन का सकल मूल्य रु. 8593 था। इसके बाद केन्द्रीय क्षेत्र में था। जहाँ पर यह रु. 3834 था। बुन्देलखण्ड तीसरे स्थान पर जबकि पूर्वी क्षेत्र सबसे निम्न स्थान पर है। इससे यह बात पता चलती है कि उत्तर-प्रदेश में औद्योगिक पिछड़ापन है और प्रदेश में जो कुछ औद्योगिकरण हो रहा है वह केवल पश्चिमी क्षेत्र तक ही सीमित है वह भी पश्चिमी क्षेत्र के कुछ जिलों तक ही सीमित है। वास्तव में उत्तर प्रदेश में औद्योगीकरण का कोई उपयुक्त वातावरण ही नहीं बन पा रहा है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश में प्रत्येक क्षेत्र में कुल निबल आय में विर्निमाण खण्ड का भाग घटा है। जैसे पश्चिमी क्षेत्र में 1993-94 में विर्निमाण खण्ड का हिस्सा कुल क्षेत्रीय आय में 27.1 प्रतिशत था, जो 2004-05 में घटकर 15.9 प्रतिशत रह गया। इसी प्रकार केन्द्रीय क्षेत्र में यह 22.5 प्रतिशत से घटकर 10.4 प्रतिशत, बुन्देलखण्ड में 13.3 प्रतिशत से घटकर 5.1 रह गया और पूर्वी क्षेत्र में भी 19.4 प्रतिशत से घटकर 8.9 प्रतिशत ही रह गया। इसी के साथ प्रदेश में प्रति लाख जनसंख्या में पंजीकृत कारखानों में लगे व्यक्तियों की संख्या प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ने की बजाय घट रही है। पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर प्रत्येक क्षेत्र में यह पहले की अपेक्षा आधे से भी कम रह गयी है। सर्वाधिक गिरावट केन्द्रीय क्षेत्र तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आयी है। विभिन्न क्षेत्रों के बीच अंन्तर इतना अधिक हो गया है कि पश्चिमी क्षेत्र में 2003-04 में प्रति लाख जनसंख्या पर पंजीकृत कारखानों में लगे व्यक्तियों की संख्या 483 थी, वहीं केन्द्रीय क्षेत्र में यह 243 पूर्वी क्षेत्र में 105, तता बुन्देलखण्ड में मात्र 66 थी। उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्रवार विषमता के दो प्रमुख कारण हो सकते हैं- पहला, उत्तर प्रदेश में औद्योगिक वातावरण का अभाव तथा दूसरा-देश में आर्थिक सुधारों के दौरान अन्य राज्यों के औद्योगिक क्षेत्र को बढ़वा देना।

इस प्रकार उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय विषमताएँ काफी अधिक व्यापक हो गयी हैं। अधिकतर संकेतकों से यह पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में पश्चिमी क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में सर्वाधिक विकसित है। पूर्वी क्षेत्र सबसे अधिक पिछड़ा हुआ है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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